Monday, July 28, 2014

किताबों की दुनिया - 97


गलियों गलियों दिन फैलाता हूँ लेकिन 
घर में बैठी शाम से डरता रहता हूँ 

पेड़ पे लिख्खा नाम तो अच्छा लगता है 
रेत पे लिख्खे नाम से डरता रहता हूँ 

बाहर के सन्नाटे अच्छे हैं लेकिन 
अंदर के कोहराम से डरता रहता हूँ 

"किताबों की दुनिया" श्रृंखला धीरे धीरे जिस मुकाम पर पहुँच रही है उसकी कल्पना इसके शुरू करते वक्त कम से कम मुझे तो नहीं थी। अब इसके पीछे आप जैसे सुधि पाठकों का प्यार है , मेरा जूनून है या फिर उन किताबों में छपी शायरी की कशिश है जिनका जिक्र इस श्रृंखला में हो चुका है, हो रहा है या होगा ये बहस का मुद्दा हो सकता है लेकिन यकीन जानिये इस वक्त मैं इस बहस के मूड में कतई नहीं हूँ , इस वक्त तो बस मेरा मूड उस किताब का जिक्र करने का हो रहा है जिसका नाम है " आस्मां अहसास " और शायर हैं जनाब "निसार राही " साहब।


लफ़्ज़ों से तस्वीर बनाते रहते हैं 
जैसे तैसे जी बहलाते रहते हैं 

जब से चेहरा देखा उनकी आँखों में 
आईने से आँख चुराते रहते हैं 

बारिश, पंछी, खुशबू, झरना, फूल, चराग़ 
हम को क्या क्या याद दिलाते रहते हैं 

नक़्शे-पा से बच कर चलता हूँ 
अक्सर ये रस्ता दुश्वार बनाते रहते हैं 

जोधपुर, राजस्थान में 3 अगस्त 1969 को जन्में निसार साहब ने एम एस सी (बॉटनी) करने के बाद उर्दू में एम ऐ और पी.एच.डी की डिग्रियां हासिल कीं जो हैरत की बात है, हमारे ज़माने में ऐसे लोग कम ही मिलेंगे । निसार साहब ने अपने शेरी-सफ़र की शुरुआत ग़ज़ल से की । जोधपुर के हर छोटे बड़े मुशायरे का आगाज़ उनके मुंतख़िब शेरों की किरअत से होता था। बचपन में स्टेज से मिली दाद ही ने उन्हें शेर कहने पर उकसाया होगा।

ये चाहता हूँ कि पहले बुलंदियां छू लूँ 
फिर उसके बाद मैं देखूं मज़ा फिसलने का 

कभी तो शाम के साये हों उसके भी घर पर 
कभी हो उसको भी अहसास खुद के ढलने का 

सुनाई देती है आवाज़ किस के क़दमों की 
बहाना ढूंढ रहा है चराग जलने का  

'निसार',जोधपुर से ताल्लुक रखते हैं जहाँ बारिश औसत से भी कम होती है और तीसरे साल अकाल पड़ता है बावजूद इसके उनकी शायरी में आप समंदर, बारिश, पेड़ नदी हरियाली का जिक्र पूरी शिद्दत से पाएंगे। उनकी शायरी ज़िंदादिली से जीने की हिमायत करती शायरी है। वो अपने शेरों में गहरी बातें बहुत ही सादा ज़बान में पिरोने के हुनर से वाकिफ हैं।

दिल में हज़ार ग़म हों मगर इस के बावजूद 
चेहरा तो सब के सामने शादाब चाहिए 

खुशबू, हवा, चराग़, धनक, चांदनी, गुलाब 
घर में हर एक किस्म का अस्बाब चाहिए 

बादल समन्दरों पे भी बरसें हज़ार बार 
लेकिन 'निसार' सहरा भी सेराब चाहिए 

भारतीय जीवन बीमा निगम में मुलाज़मत कर रहे निसार साहब का एक और ग़ज़ल संग्रह 'रौशनी के दरवाज़े' सन 2007 में मंज़रे आम पर आ कर मकबूलियत पा चुका है। निसार साहब के इस ग़ज़ल संग्रह में भी चौकाने वाले खूबसूरत शेर बहुतायत में पढ़ने को मिल जाते हैं। सबसे बड़ी बात है के निसार साहब के शेरों में सादगी है पेचीदगी नहीं और इसी कारण उनका कलाम सहज लगता है बोझिल नहीं।

इस तरह धूप ने रख्खा मिरे आँगन में क़दम 
जैसे बच्चा कोई सहमा हुआ घर में आये 

ज़र्द पत्तों को जो देखा तो ये मालूम हुआ 
कितने मौसम तेरी यादों के शजर में आये 

जाने ये कौनसा रिश्ता है मिरा उस से 'निसार' 
उसके आंसू जो मिरे दीदा-ऐ-तर में आये

'निसार' साहब ने ग़ज़लों के आलावा नात, सलाम, मंतकब, दोहे, माहिये और नज़्में भी लिखीं और खूब लिखीं। सर्जना प्रकाशक बीकानेर द्वारा प्रकाशित किताब 'आस्मां अहसास' में आप निसार साहब की करीब 60 चुनिंदा ग़ज़लों के अलावा 50 बेहतरीन नज़्में भी पढ़ सकते हैं। इस किताब की प्राप्ति के लिए आप सर्जना प्रकाशक को उनके इस मेल आई डी sarjanabooks@gmail.com पर मेल करें या फिर निसार साहब को उनकी खूबसूरत शायरी के लिए 09414701789 पर फोन कर बधाई देते हुए उनसे किताब की प्राप्ति का आसान रास्ता पूछें। मैं तो भाई इस किताब को दिल्ली में हुए विश्व पुस्तक मेले से खरीद कर लाया था।

बारिश के इस मौसम में आईये मैं उनकी एक ग़ज़ल के ये शेर पढ़वाते हुए अब आपसे विदा लेता हूँ।

आग लगी है सपनों में 
बरसा पानी बारिश कर 

झूट ज़मीं से बह जाए 
ऐसी सच्ची बारिश कर 

बेकाबू हो उसका प्यार 
उस दिन जैसी बारिश कर 

भूल न जाएँ लोग 'निसार' 
जल्दी जल्दी बारिश कर

19 comments:

  1. क्या कहें?तारीफ़ समीक्षा की करे या
    निसार साहब की शायरी की,दोनों ही
    सादगी लिए है दोनों अपनी अपनी सी लगी
    निसार साहब की ये किताब जरूर पढ़ेंगे
    बहुत दिनों से अच्छी गज़ले पढी भी नहीं।

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  2. आग लगी है सपनों में
    बरसा पानी बारिश कर

    झूट ज़मीं से बह जाए
    ऐसी सच्ची बारिश कर

    बेकाबू हो उसका प्यार
    उस दिन जैसी बारिश कर

    भूल न जाएँ लोग 'निसार'
    जल्दी जल्दी बारिश कर

    lajwab ----barsat ke mousam mei bhiga -bhiga sa shama ---bahut khub

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  3. बाहर के सन्नाटे अच्छे हैं लेकिन
    अंदर के कोहराम से डरता रहता हूँ

    बादल समन्दरों पे भी बरसें हज़ार बार
    लेकिन 'निसार' सहरा भी सेराब चाहिए

    bahut khoob ,,waah !!!

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  4. शेर और समीक्षा

    दोनो पढ कर मज़ा आ गया

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  5. ये चाहता हूँ कि पहले बुलंदियां छू लूँ
    फिर उसके बाद मैं देखूं मज़ा फिसलने का

    कभी तो शाम के साये हों उसके भी घर पर
    कभी हो उसको भी अहसास खुद के ढलने का
    वाह .... बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  6. Received on Mail:-
    अच्छी शायरी से तआरूफ़ करने के लिए शुक्रिया

    ये चाहता हूँ कि पहले बुलंदियां छू लूँ
    फिर उसके बाद मैं देखूं मज़ा फिसलने का

    निसार राही साहब को बहुत बहुत मुबारकबाद ​
    और आप का बेहद शुक्रिया

    रमेश 'कँवल'

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  7. Msg on Face Book:-

    दर्शन कौर धनोय धनोय आग लगी है सपनों में
    बरसा पानी बारिश कर

    झूट ज़मीं से बह जाए
    ऐसी सच्ची बारिश कर

    बेकाबू हो उसका प्यार
    उस दिन जैसी बारिश कर

    भूल न जाएँ लोग 'निसार'
    जल्दी जल्दी बारिश कर--- bahut khub

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  8. Msg On Face Book :-

    Parul Singh बारिश, पंछी, खुशबू, झरना, फूल, चराग़

    हम को क्या क्या याद दिलाते रहते हैं
    वाकई बारिश कमाल की हो रही है,भीग गए शेरों की नाजुकी से शायर हो तो निसार साहब जैसा हो।

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  9. नीरज जी!हमेशा की ही तरह एक और बेहतरीन शायर से तारुफ़ और बहुत ही उम्दा critique!एक एक शेर लाजवाब है ! बधाई !


    बाहर के सन्नाटे अच्छे हैं लेकिन
    अंदर के कोहराम से डरता रहता हूँ

    ये चाहता हूँ कि पहले बुलंदियां छू लूँ
    फिर उसके बाद मैं देखूं मज़ा फिसलने का

    दिल में हज़ार ग़म हों मगर इस के बावजूद
    चेहरा तो सब के सामने शादाब चाहिए

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  10. आपकी लिखी रचना बुधवार 30 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  11. बाहर के सन्नाटे अच्छे हैं लेकिन
    अंदर के कोहराम से डरता रहता हूँ
    वाह..........क्या बौछार है...शानदार. बहुत शुक्रिया पढवाने के लिये..

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  12. Received on e-mail :-

    अच्छे शायर और अच्छे संकलन का इंतिखाब किया है नीरज भाई !
    निसार साहिब बड़ी नर्मी ग़ज़ल की मिटटी की गूंध कर अपने मधुर अशआर की तस्वीर बनाते हैं . सीधी सादी ज़बान में अच्छी और सच्ची शायरी !
    हमेशा की तरह आप का अंदाज़े पेशकश भी सराहनीय है . ईश्वर आप के सीने में ग़ज़ल चराग़ को इसी तरह रौशन रखे !

    Khursheed आलम

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  13. वाह बहुत ही खूबसूरत, गहन और सार्थक प्रस्तुति. दिल को छू गई

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  14. पेड़ पे लिख्खा नाम तो अच्छा लगता है
    रेत पे लिख्खे नाम से डरता रहता हूँ
    बाहर के सन्नाटे अच्छे हैं लेकिन
    अंदर के कोहराम से डरता रहता हूँ
    ......... बहुत सुन्दर ...
    शायर जनाब "निसार राही " साहब की शायरी ,"आस्मां अहसास" पुस्तक की बहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण ..

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  15. खूबसूरत शायरी से रूबरू करवाने के लिए धन्यवाद...

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  16. उनकी शायरी ज़िंदादिली से जीने की हिमायत करती शायरी है। वो अपने शेरों में गहरी बातें बहुत ही सादा ज़बान में पिरोने के हुनर से वाकिफ हैं।

    दिल में हज़ार ग़म हों मगर इस के बावजूद
    चेहरा तो सब के सामने शादाब चाहिए

    खुशबू, हवा, चराग़, धनक, चांदनी, गुलाब
    घर में हर एक किस्म का अस्बाब चाहिए

    बादल समन्दरों पे भी बरसें हज़ार बार
    लेकिन 'निसार' सहरा भी सेराब चाहिए


    जितनी खूबसूरत शायरी उतनी ही सुंदर समीक्षा।

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  17. हमेशा की तरह उम्दा और बेहतरीन समीक्षा... आप को स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

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  18. निसार की इस किताब के इजरा ( लोकार्पण ) पर मैंने एक मज़्मून ( परचा ) पढ़ा था .... कभी फ़ुर्सत मैं उसे आप के साथ शेयर करूँगा ...... एक कबीले ज़िक्र किताब है ये , नयी नस्ल के हवाले से , खास कर ४०-५० के उम्र में जो शाइर हैं , उन के हवाले से ...

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे