Monday, March 11, 2013

जो आँधियों में दीपक थामे हुए खड़ा है

गुरुदेव पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर इस बार बसंत पंचमी के अवसर पर हुए मुशायरे में अद्भुत ग़ज़लें पढने को मिलीं। सम सामयिक विषयों पर शायरों ने खूब शेर कहे। उसी तरही, जिसका मिसरा था " ये कैदे बा-मशक्कत जो तूने की अता है " , में भेजी खाकसार ग़ज़ल यहाँ भी पढ़िए :



ये कैदे बा-मशक्क्त जो तूने की अता है
मंज़ूर है मुझे पर, किस जुर्म की सजा है ?

ये रहनुमा किसी के दम पर खड़ा हुआ है
जिसको समझ रहे थे हर मर्ज़ की दवा है

नक्काल पा रहा है तमगे इनाम सारे
असली अदीब देखो ताली बजा रहा है

इस दौर में उसी को सब सरफिरा कहेंगे
जो आँधियों में दीपक थामे हुए खड़ा है

रोटी नहीं हवस है, जिसकी वजह से इंसां
इंसानियत भुला कर वहशी बना हुआ है

मीरा कबीर तुलसी नानक फरीद बुल्ला
गाते सभी है इनको किसने मगर गुना है

आभास हो रहा है हलकी सी रौशनी का
उम्मीद का सितारा धुंधला कहीं उगा है

हालात देश के तुम कहते ख़राब "नीरज "
तुमने सुधारने को बोलो तो क्या किया है ?

25 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.

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  2. वाह..बहुत नायाब लिखा है आपने, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  3. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  4. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल.

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  5. ग़ज़ल के बारे में पेचीदगियों की प्रचलित सामान्‍य धारणा से हटकर सरल हृदय भावों को सरल भाषा के साथ कैसे प्रस्‍तुत किया जा सकता है इसका उदाहरण रहती हैं आपकी ग़ज़लें।

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  6. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.congrats
    -om sapra, delhi-9
    M-09818180932

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  7. बहुत खूबसूरत गज़ल...

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  8. बहुत उम्दा प्रस्तुति आभार

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये

    आप मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे

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  9. दिनांक 13/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  10. रोटी नहीं हवस है, जिसकी वजह से इंसां

    इंसानियत भुला कर वहशी बना हुआ है
    और अंतिम वाला भी बहुत ही बढिया । वैसे तो सारी गज़ल ही नायाब शेरों से भरी है ।
    सच कुछ किये बिना हम कब तक हालातों की शिकायत करते रहेंगे .

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  11. सीधे शब्दों में लिखी .. मन में उतरने वाली गज़ल ...
    बार बार पढ़ने पे नया मज़ा देती है ..

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  12. बहुत खूब लिखा है आपने महोदय
    ,साभार......











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  13. हालात देश के तुम कहते ख़राब "नीरज "
    तुमने सुधारने को बोलो तो क्या किया है ?

    वाकई कितने खुद से ये सवाल कर पाते हैं.

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  14. इस दौर में उसी को सब सरफिरा कहेंगे
    जो आँधियों में दीपक थामे हुए खड़ा है

    क्या बात है !सच है नीरज भैया

    आभास हो रहा है हलकी सी रौशनी का
    उम्मीद का सितारा धुंधला कहीं उगा है

    यही उम्मीद तो ज़िंदा रखती है हमें
    बहुत ख़ूब !

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  15. बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ......बधाई .हर शेर लाजवाब है .

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  16. bhai neeraj ji
    namsty
    gud , very gud gazal, thanx for sending such a gud mail
    regds.-om sapra, delhi-9

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  17. हालात देश के तुम कहते ख़राब "नीरज "
    तुमने सुधारने को बोलो तो क्या किया है ?

    सरल, विरल और तरल गज़ल.

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  18. बहुत सटीक प्रस्तुति

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  19. Respected Neeraj Ji,

    Waaah waaah....bahut khoob
    kya kahne...yoon to pooree
    ghazal hi nayab hai par is
    she'r ke liye khusoosee daad
    qubool farmaayen....

    नक्काल पा रहा है तमगे इनाम सारे
    असली अदीब देखो ताली बजा रहा है
    ........kya haqeeqat bayani hai

    Satish Shukla 'Raqeeb'
    Juhu, Mumbai-49.

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  20. मीरा कबीर तुलसी नानक फरीद बुल्ला
    गाते सभी है इनको किसने मगर गुना है

    सटीक बयानी नीरज जी... हर शेर बहुत गहराइयाँ समेटे है... और उतना ही सहज भी.. आपकी ग़ज़लों की यही खास बात मुझे बहुत भाती है... मैंने इस गज़ल को बहुत सहजता से " तकदीर का फ़साना जा कर किसे सुनाएँ "की धुन पे गुनगुना के पढ़ा ...:)

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे