गुरुदेव पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर इस बार बसंत पंचमी के अवसर पर हुए मुशायरे में अद्भुत ग़ज़लें पढने को मिलीं। सम सामयिक विषयों पर शायरों ने खूब शेर कहे। उसी तरही, जिसका मिसरा था " ये कैदे बा-मशक्कत जो तूने की अता है " , में भेजी खाकसार ग़ज़ल यहाँ भी पढ़िए :
ये कैदे बा-मशक्क्त जो तूने की अता है
ये कैदे बा-मशक्क्त जो तूने की अता है
मंज़ूर है मुझे पर, किस जुर्म की सजा है ?
ये रहनुमा किसी के दम पर खड़ा हुआ है
जिसको समझ रहे थे हर मर्ज़ की दवा है
नक्काल पा रहा है तमगे इनाम सारे
असली अदीब देखो ताली बजा रहा है
इस दौर में उसी को सब सरफिरा कहेंगे
जो आँधियों में दीपक थामे हुए खड़ा है
रोटी नहीं हवस है, जिसकी वजह से इंसां
इंसानियत भुला कर वहशी बना हुआ है
मीरा कबीर तुलसी नानक फरीद बुल्ला
गाते सभी है इनको किसने मगर गुना है
आभास हो रहा है हलकी सी रौशनी का
उम्मीद का सितारा धुंधला कहीं उगा है
हालात देश के तुम कहते ख़राब "नीरज "
तुमने सुधारने को बोलो तो क्या किया है ?
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteवाह..बहुत नायाब लिखा है आपने, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
वाह क्या बात है. उम्दा
ReplyDelete.
बहुत उम्दा गजल....नीरज जी,,
ReplyDeleteRecent post: रंग गुलाल है यारो,
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवारीय चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ग़ज़ल.
ReplyDeleteग़ज़ल के बारे में पेचीदगियों की प्रचलित सामान्य धारणा से हटकर सरल हृदय भावों को सरल भाषा के साथ कैसे प्रस्तुत किया जा सकता है इसका उदाहरण रहती हैं आपकी ग़ज़लें।
ReplyDeleteबेहतरीन...
ReplyDeleteबहुत खूब ,,,उम्दा
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.congrats
ReplyDelete-om sapra, delhi-9
M-09818180932
बहुत खूबसूरत गज़ल...
ReplyDeleteबहुत उम्दा प्रस्तुति आभार
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
आप मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे
अहा, बहुत खूब..
ReplyDelete
ReplyDeleteदिनांक 13/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
रोटी नहीं हवस है, जिसकी वजह से इंसां
ReplyDeleteइंसानियत भुला कर वहशी बना हुआ है
और अंतिम वाला भी बहुत ही बढिया । वैसे तो सारी गज़ल ही नायाब शेरों से भरी है ।
सच कुछ किये बिना हम कब तक हालातों की शिकायत करते रहेंगे .
सीधे शब्दों में लिखी .. मन में उतरने वाली गज़ल ...
ReplyDeleteबार बार पढ़ने पे नया मज़ा देती है ..
बहुत खूब लिखा है आपने महोदय
ReplyDelete,साभार......
हालात देश के तुम कहते ख़राब "नीरज "
ReplyDeleteतुमने सुधारने को बोलो तो क्या किया है ?
वाकई कितने खुद से ये सवाल कर पाते हैं.
इस दौर में उसी को सब सरफिरा कहेंगे
ReplyDeleteजो आँधियों में दीपक थामे हुए खड़ा है
क्या बात है !सच है नीरज भैया
आभास हो रहा है हलकी सी रौशनी का
उम्मीद का सितारा धुंधला कहीं उगा है
यही उम्मीद तो ज़िंदा रखती है हमें
बहुत ख़ूब !
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ......बधाई .हर शेर लाजवाब है .
ReplyDeletebhai neeraj ji
ReplyDeletenamsty
gud , very gud gazal, thanx for sending such a gud mail
regds.-om sapra, delhi-9
हालात देश के तुम कहते ख़राब "नीरज "
ReplyDeleteतुमने सुधारने को बोलो तो क्या किया है ?
सरल, विरल और तरल गज़ल.
बहुत सटीक प्रस्तुति
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ReplyDeleteRespected Neeraj Ji,
Waaah waaah....bahut khoob
kya kahne...yoon to pooree
ghazal hi nayab hai par is
she'r ke liye khusoosee daad
qubool farmaayen....
नक्काल पा रहा है तमगे इनाम सारे
असली अदीब देखो ताली बजा रहा है
........kya haqeeqat bayani hai
Satish Shukla 'Raqeeb'
Juhu, Mumbai-49.
मीरा कबीर तुलसी नानक फरीद बुल्ला
ReplyDeleteगाते सभी है इनको किसने मगर गुना है
सटीक बयानी नीरज जी... हर शेर बहुत गहराइयाँ समेटे है... और उतना ही सहज भी.. आपकी ग़ज़लों की यही खास बात मुझे बहुत भाती है... मैंने इस गज़ल को बहुत सहजता से " तकदीर का फ़साना जा कर किसे सुनाएँ "की धुन पे गुनगुना के पढ़ा ...:)