अपनी इक पुरानी ग़ज़ल को झाड़-पौंछ कर फिर से प्रस्तुत कर रहा हूँ , उम्मीद है पसंद आएगी
खौफ का खंजर जिगर में जैसे हो उतरा हुआ
आज कल इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ
चाहते हैं आप खुश रहना अगर, तो लीजिये,
हाथ में वो काम जो मुद्दत से है छूटा हुआ
पाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
जिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ
फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ
झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
सच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
वो हमारे हो गए 'नीरज' ये क्या कम बात है
खुद ग़रज़ दुनिया में वरना कौन कब किसका हुआ
खुद ग़रज़ दुनिया में वरना कौन कब किसका हुआ
Harek pankti gazab kee hai!
ReplyDeleteअगर यह ग़ज़ल पुरानी है, तो यही कहूंगी कि ओल्ड इज गोल्ड :) हरएक शेर तो अच्छा है ही, अच्छे संदेश भी देता है। शुक्रिया हमसे बांटने का।
ReplyDeleteअपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
ReplyDeleteत्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
बहुत उम्दा बात को एक मुकम्मल शे'र के माध्यम से कह दिया है । रंग-ए-नीरज से भरा पूरा शे'र ।
हर शेर दाद के काबिल्……………पूरी गज़ल दिल मे उतरती चली गयी……………शानदार्।
ReplyDeleteआ. नीरज जी,
ReplyDeleteआपकी अन्य दूसरी ग़ज़लों की तरह इस ग़ज़ल में भी एक बेहतर इंसानियत की ख्वाहिशें पिन्हा हैं. सचमुच आनंद आ गया....
बहुत बढ़िया सर...
ReplyDeleteआपको कविता कोष में भी पढ़ती हूँ.
सादर.
झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
ReplyDeleteसच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ !
हर दिल की बात है यह... बहुत अच्छी ग़ज़ल नीरज जी .. ! बहुत बधाई !
अर्श्
सभी शेर बहुत अच्छे है ...खूबसूरत गज़ल.
ReplyDeleteचाहते हैं आप खुश रहना अगर, तो लीजिये,
ReplyDeleteहाथ में वो काम जो मुद्दत से है छूटा हुआ
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने इन पंक्तियों में ..
सार्थक सन्देश देते शे'र ...
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें !नीरज जी |
फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
ReplyDeleteक्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ
झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
सच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ
खूबसूरत गज़ल ... सच्चाई को कहता हुआ हर शेर .
आप की ग़ज़लों में हमेशा जिंदगी की सच्चाई झलकती है .
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल .
पाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
ReplyDeleteजिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ... रोटी ही फिर पाप और पुण्य बनकर रह जाता है . सोच की हदों से उभरी पंक्तियाँ
आपने तो जीने का यह सूत्र दे दिया -
ReplyDeleteअपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
बस, अपने को मोगरा मानने लगें हम!
ओल्ड इज गोल्ड ||
ReplyDeleteबधाई ||
बहुत सुन्दर सार्थक रचना। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक रचना। धन्यवाद।
ReplyDeleteनमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है.
मतला लाजवाब कर दे रहा है.
"खौफ का खंजर जिगर में जैसे हो उतरा हुआ
आज कल इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ"
"पाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी....................", वाह वा
"फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,..................", अद्भुत
"अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये......................", बहुत खूब कहा है.
".........खुद ग़रज़ दुनिया में वरना कौन कब किसका हुआ" वाह वा
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई.
चाहते हैं आप खुश रहना अगर, तो लीजिये,
ReplyDeleteहाथ में वो काम जो मुद्दत से है छूटा हुआ
बहुत सुन्दर!
फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
ReplyDeleteक्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ
वाह!!!
हम तो रूह तक मुअत्तर हो गए इस मोगरे की खुशबू में!!
ReplyDeleteLAAJAWAAB GAZAL KE LIYE AAPKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .
ReplyDeleteपाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
ReplyDeleteजिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ
वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही धुल कर नयी हो गयी है चमचमा रही अहि :-)
पर इस शेर के लिए खास तौर से दाद कबूल करें....वाह.....वाह
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
ReplyDeleteत्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
सुन्दर सीख देती हुई पंक्तियाँ ..
फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
ReplyDeleteक्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ...
वाह सुभान अल्ला ... क्या गज़ब का शेर है नीरज जी ... बहुत देर से इसी पे अटका हुवा हूँ ... कमाल का लिखते हैं आप ... इतने गज़ब के भाव, नयी सि सोच कहाँ से लाते हैं ... जबरदस्त ....
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
ReplyDeleteत्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
आप के कलाम को पढ़कर बहुत देर ये सोचने में लग जाती है कि कौन सा शेर "न" कोट किया जाए
बहुत ख़ूब !!
आप की इस ग़ज़ल ने मशहूर शायर "वामिक़ जौनपुरी" मरहूम की ये नज़्म याद दिला दी ----
"तुम ने सूखे हुए बेले भी कभी सूंघे हैं
उन को मसला न करो
कितनी आज़ुरदा मगर भीनी महक देते हैं
उन को फेंका न करो
ग़म से कुम्हलाए हुए चेहरों को समझा भी करो
सिर्फ़ देखा न करो
दिल में रिस्ते हुए ज़ख़्मों का मदावा भी करो
सिर्फ़ छेड़ा न करो
तुम ने सूखे हुए बेले भी कभी सूंघे हैं "
बहुत सुन्दर और सार्थक गजल..बहुत खूब कहा........अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
ReplyDeleteत्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
ReplyDeleteत्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
wah behhad umda sher..
फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
ReplyDeleteक्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ
वाह गज़ब ......बहुत खूब ...हर शे की किम्मत पता चल गई ...
खूब झाड पोछ कर बढिया गज़ल संवार दी नीरज भाई ।
ReplyDeleteकाश, यह खुशबू कभी न जाये..
ReplyDeleteपाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
ReplyDeleteजिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
बेहतरीन गज़ल ....
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
ReplyDeleteत्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
बेहद खूबसूरत. हर पंक्ति अपनी खुशबू, मन पर छोड़ जाती है.
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
ReplyDeleteत्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
अद्भुत अभिव्यक्ति...सभी शेर बहुत अच्छे लगे|
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
ReplyDeleteत्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
सच दुबक कर चलता है , झूठ है अकड़ा हुआ फिर भी नज़्म की सकारात्मकता प्रभावित करती है !
कल 01/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, कैसे कह दूं उसी शख़्स से नफ़रत है मुझे !
ReplyDeletePHOOL KI KHUSHBOO HI TYA KARTI HAI USKI KEEMTE
ReplyDeleteKYA KABHI TUMNE SUNA KHAR KA SAUDA HUA
Bahut hi sundar gazal, Ek sarthak,sachhaie ko batati gazal
BADHAIE
फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
ReplyDeleteक्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ...laajawaab kar diya:))
बेहद ख़ूबसूरत मतला . “ ख़ौफ़ का ख़ंजर " में बहुत सुन्दर अनुप्रास भी है.
ReplyDeleteअपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
यह तो बदहाली के लिये दवा जैसा है । वाह वाह ! भाई जान.
वो हमारे हो गए 'नीरज' ये क्या कम बात है
खुद ग़रज़ दुनिया में वरना कौन कब किसका हुआ
बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल ! ये दो शे’र बहुत बहुत ख़ूब.
bahut sundar panktiyan
ReplyDeleteबहुत अच्छी ग़ज़ल!
ReplyDeleteइतने परिपक्व शेर, और कभी कहे थे। माशाअल्लाह। बहुत खूबसूरत ग़ज़ल।
ReplyDeleteआपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत अभूत शुक्रिया!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! सच्चाई को आपने बहुत सुन्दरता से हर एक शेर द्वारा प्रस्तुत किया है !
बेहतरीन गजल!
ReplyDeleteसादर
झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
ReplyDeleteसच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ
गहन विचारों का सम्मिलन,ह्रदय स्पर्शी रचना।
चाहते हैं आप खुश रहना अगर, तो लीजिये,
ReplyDeleteहाथ में वो काम जो मुद्दत से है छूटा हुआ
बस आजकल कमेन्ट देने का काम ही छूटा हुया है आपकी सलाह पर आ गये।
ये शेर---
फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ। आप समझ लीजिये कि मै खडी हो कर तालियाँ बजा रही हूँ। हर एक शेर दाद के काबिल है। बधाई।
झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
ReplyDeleteसच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
वो हमारे हो गए 'नीरज' ये क्या कम बात है
खुद ग़रज़ दुनिया में वरना कौन कब किसका हुआ
मैंने तो पहली बार ही पढ़ी है....
क्यूँ कि ब्लॉग जगत में काफी देर से आना हुआ है.....!!
मेरी खुशनसीबी कि इतनी बेहतरीन गज़ल से वाकया हुआ मेरा....शुक्रिया...!!
बहुत खूबसूरत, बधाई.
ReplyDeleteअपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
ReplyDeleteत्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
वाह आदरणीय नीरज सर...
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल...
सादर बधाई...
ek ek sher kayaamat hai sir.. lajawaab.. :)
ReplyDeletekabhi waqt mile to mere blog par bhi aaiyega.. ummeed karta hun niraash nahi karunga..
http://palchhin-aditya.blogspot.in
पाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
ReplyDeleteजिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ
हर शेर बेमिसाल... शानदार... जानदार...आभार...
वो हमारे हो गए 'नीरज' ये क्या कम बात है
ReplyDeleteखुद ग़रज़ दुनिया में वरना कौन कब किसका हुआ.
वाह,बहुत सच्ची और अच्छी बात कही है आपने इस शेर में.
ग़ज़ल बहुत बढ़िया है.
बेजोड़ भावाभियक्ति....
ReplyDeleteक्या आपकी उत्कृष्ट-प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रवारीय चर्चामंच
की कुंडली में लिपटी पड़ी है ??
charchamanch.blogspot.com
फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
ReplyDeleteक्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ
behad sundar sher hai ...dil khush hua padh kar ...
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
ReplyDeleteत्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
wah bahut khoob..bahut sundar
har sher bahut kamaal. bahut prerak ye sher...
ReplyDeleteअपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
daad sweekaaren.
You are SUPERB Neeraj uncle...
ReplyDeleteअपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ...
-- www.ngoswami.blogspot.com
Loved it...
Sorry, but without your permission I have added this line to my gtalk status message(ofcourse with link to your blog). Hope I am not violating the copyright.. :-)
लाजवाब रचना....
ReplyDeleteसराहनीय.....
कृपया इसे भी पढ़े
नेता,कुत्ता और वेश्या
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज charchamanch.blogspot.com par है |
ReplyDeleteपुरानी है तो क्या हुआ भाव तो ताजे है,..
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल लाजबाब प्रस्तुती .
MY NEW POST ...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...
bahut badiya...
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल..
ReplyDelete@चाहते हैं आप खुश रहना अगर, तो लीजिये,
ReplyDeleteहाथ में वो काम जो मुद्दत से है छूटा हुआ
सुन्दर रचना, उपयोगी सलाह!
बहुत बेहतरीन...आनन्द आ गया!!
ReplyDeleteपाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
ReplyDeleteजिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ
फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ
झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
सच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ
नीरज जी, बस लूट ही लिया, वाह !!!!!!
फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
ReplyDeleteक्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ
झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
सच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ
bahut hi sundar chiran badhai ke sath amantran bhi Neraj ji.
comment received on mail:-
ReplyDeleteआदरणीय नीरज जी,
बहुत खूब... क्या कहने..निहायत खूबसूरत ग़ज़ल
और इस शे'र का तो जवाब नहीं
"अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ"
दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं.
सादर,
सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
Msg received on e-mail:-
ReplyDeleteNeeraj Uncle sadar namaste..
Shayari meree tumhare jikra se,
Mogare ki sabj dali ho gayee
Aapake Is sher aur blog header ko punah aapane bahut behtar dhang se yaad dilaya usake liye shukriya. Mogare ka photo aur sher wah kya kahana. (Tyagta khushbu kahan hai mogra sukha huva)
Apanatva ka bhav aur aatmeeyata liye sher bejod hai.
wo hamare ho gaye neeraj ye kya kam baat hai
is khud garaj dunia men varna kaun kab kiska huva hai.
Jitanee taliya peeti jayen kam hain.
Rgds
Vishal
फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
ReplyDeleteक्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
खूबसूरत ग़ज़ल के खूबसूरत शेर...
Msg recd. on mail:-
ReplyDeleteshri neeraj ji
thanx for such gud gazal,
thanx
om sapra delhi-9
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ
ReplyDeleteकहाँ से लाते हैं ऐसे मिसरे .....?
और .....
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
तो माशाल्लाह ज़िन्दगी जीना सिखला गया ....
सभी अशआर बेहतरीन ....
हर एक शेर पर आपकी छाप लगी है... बहुत ही लाजवाब हैं सारे के सारे शेर...
ReplyDeleteअगर आपका मेरे ब्लॉग पर आगमन होता हैं तो ये मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी की बात होगी... आभार
आप मेरे ब्लॉग पर पधारे और कमेन्ट किया; आपका अनत अनत शुक्रिया...
ReplyDeleteऔर आपने मुझे follow किया इससे बढकर मेरे लिए और कोई ख़ुशी की बात हो ही नही सकती...
एक बार फिर बहुत बहुत शुक्रिया ।
बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुमन सिन्हा जी का परिचय देखें यहां ...
खूबसूरत ग़ज़ल. और ये शेर तो गज़ब है;
ReplyDeleteपाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
जिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ
पुरानी चीजों में जो बात है.. बस कमाल है ।
ReplyDeleteग़ज़ल बहुत सुदंर बन पड़ी है.
ReplyDeleteपाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
ReplyDeleteजिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ
क्या बात है भाई सा. भूक इंसान को गद्दार बना देती है
फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
ReplyDeleteक्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा
बहुत खूब -यतार्थ से ओतप्रोत.