दोस्तों आज पेशे खिदमत है मेरे अज़ीज़ दोस्त जनाब सतीश शुक्ला 'रकीब' साहब की निहायत खूबसूरत ग़ज़ल. सतीश साहब मुंबई में रहते हैं और इस्कोन मंदिर के प्रबंधन से जुड़े हुए हैं. सतीश जी बेहद मिलनसार और ज़हीन इंसान हैं उनसे मिलना एक हसीन इत्तेफाक है . पिछले दस वर्षों से वो ग़ज़ल लेखन में सक्रीय हैं. उनका लेखन मुंबई के उस्ताद शायर स्वर्गीय जनाब गणेश बिहारी 'तर्ज़' साहब की सोहबत में परिष्कृत हुआ है. इस ग़ज़ल में आप देखें सतीश जी ने किस ख़ूबसूरती से "कुछ कुछ" रदीफ़, जो बहुत अधिक प्रचलित नहीं है ,का निर्वाह किया है.ग़ज़ल पढ़ कर सतीश जी को उनके मोबाइल +919892165892 पर बात कर दाद जरूर दें.
परेशाँ है मेरा दिल, मेरी आँखें भी हैं नम कुछ कुछ
असर अन्दाज़ मुझ पर हो रहा है तेरा ग़म कुछ कुछ
वो अरमाँ अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में
ख़ुदा के फज्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ कुछ
फज्ल = मेहरबानी
ख़बर सुनकर मेरे आने की, सखियों से वो कहती हैं
ख़ुशी से दिल धड़कता है मोहब्बत की कसम कुछ कुछ
ज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों
मगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ कुछ
ज़मीं पर पाँव रखते भी, कभी देखा नहीं जिनको
जो चलने की सई की तो, हैं लरजीदा क़दम कुछ कुछ
सई = कोशिश , लरजीदा = लड़खड़ाते, डगमगाते
मेरे एहसास पर भी छा, गई वहदानियत देखो
मुझे भी आ रही है अब तो, ख़ुशबू-ए-हरम कुछ कुछ
वहदानियत = एकता या एकत्व की भावना
हरम = (अ) मक्का में वह पाक़ स्थान जहाँ क़त्ल की मनाही है
(ब) महल में वह स्थान जहाँ रखैलें रहती हैं
करीब अपने जो आएगा, वो चाहे हो 'रक़ीब' अपना
मगर रक्खेंगे हम उसकी, मोहब्बत का भरम कुछ कुछ
बहुत ख़ूबसूरत , सुन्दर भाव, सादर.
ReplyDeleteज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों
ReplyDeleteमगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ कुछ
आपकी कलम से आदरणीय सतीश जी को पढ़ने का अवसर मिला ..बहुत ही अच्छी प्रस्तुति आभार ।
वाकई 'कुछ कुछ' रदीफ की गजल पहली बार पढ़ रहा हूँ। बहुत बढि़या।
ReplyDeleteनीरज जी ,सतीश जी मुबारक कबूल करें !
ReplyDeleteअहसासों से भरपूर इस गज़ल को पढ़ कर
दिल हमारा भी धडकने लगा अब कुछ-कुछ ||
शुभकामनाएँ!
@ चलने लगा मेरा क़लम कुछ कुछ
ReplyDeleteपुल्लिंग के रूप में यह प्रयोग देख बहुत ख़ुशी हुई।
ब्लॉगजत में क़लम पुल्लिंग है कि स्त्रीलिंग, इसको लेकर भी एक बार विवाद हुआ था।
बेहतरीन ग़ज़ल!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteपरेशाँ है मेरा दिल, मेरी आँखें भी हैं नम कुछ कुछ
ReplyDeleteअसर अन्दाज़ मुझ पर हो रहा है तेरा ग़म कुछ कुछ...waah
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ReplyDeleteknkayastha knkayastha@gmail.com via blogger.bounces.google.com to me
show details 11:40
knkayastha has left a new comment on your post "ख़ुदा के फज्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ कुछ":
बहुत ही अच्छी गजल पढ़ाई आपने नीरजजी... गजलकार की योग्यता पर सवाल नहीं उठा रहा लेकिन एक जिज्ञासा है...
आपने लिखा है...
चलने लगा मेरा कलम कुछ-कुछ...
यह टाइपिंग की त्रुटि है या जानबूझकर लिखा गया है... क्यूंकि कलम तो स्त्रीलिंग होती है...
सॉरी...
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ReplyDelete2011/12/5 मनोज कुमार
मनोज कुमार has left a new comment on your post "ख़ुदा के फज्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ कुछ":
@ चलने लगा मेरा क़लम कुछ कुछ
पुल्लिंग के रूप में यह प्रयोग देख बहुत ख़ुशी हुई।
ब्लॉगजत में क़लम पुल्लिंग है कि स्त्रीलिंग, इसको लेकर भी एक बार विवाद हुआ था।
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ReplyDelete2011/12/5 मनोज कुमार
मनोज कुमार has left a new comment on your post "ख़ुदा के फज्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ कुछ":
बेहतरीन ग़ज़ल!
Posted by मनोज कुमार to नीरज at December 5, 2011 11:09 AM
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ReplyDelete2011/12/5 यादें....ashok saluja .
यादें....ashok saluja . has left a new comment on your post "ख़ुदा के फज्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ कुछ":
नीरज जी ,सतीश जी मुबारक कबूल करें !
अहसासों से भरपूर इस गज़ल को पढ़ कर
दिल हमारा भी धडकने लगा अब कुछ-कुछ ||
शुभकामनाएँ!
Posted by यादें....ashok saluja . to नीरज at December 5, 2011 10:52 AM
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ReplyDelete2011/12/5 S.N SHUKLA
S.N SHUKLA has left a new comment on your post "ख़ुदा के फज्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ कुछ":
बहुत ख़ूबसूरत , सुन्दर भाव, सादर.
Posted by S.N SHUKLA to नीरज at December 5, 2011 10:08 AM
खुदा का फज्ल है कि यह खूबसूरत गजल पढ़ी और टिप्पणी भी कर रहे हैं।
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ReplyDelete2011/12/5 GYANDUTT PANDEY
GYANDUTT PANDEY has left a new comment on your post "ख़ुदा के फज्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ कुछ":
खुदा का फज्ल है कि यह खूबसूरत गजल पढ़ी और टिप्पणी भी कर रहे हैं।
Posted by GYANDUTT PANDEY to नीरज at December 5, 2011 12:38 PM
ज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों
ReplyDeleteमगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ कुछ
बहुत सुंदर ग़ज़ल है ..!हर शेर काबिले तारीफ...!
इसे पढ़वाने के लिए शुक्रिया ...!!
वाह! उम्दा.... रकीब भाई को मुबारक बाद.....
ReplyDeleteसादर आभार....
ग़ज़ल की प्रस्तुति के बाद ....शब्दों को अर्थ के समझ कर ...एक बेहतरीन ग़ज़ल पढने को मिली
ReplyDeleteखास कर ये पंक्तियाँ ...........
ख़बर सुनकर मेरे आने की, सखियों से वो कहती हैं
ख़ुशी से दिल धड़कता है मोहब्बत की कसम कुछ कुछ
इतनी सुन्दर रचना पढ़वाने का बहुत आभार।
ReplyDeleteJANAAB SATISH SAHIB KEE GAZAL
ReplyDeletePADH KAR BAHUT ACHCHHAA LAGAA HAI .
UNHEN BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! अधिक से अधिक पाठक आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो
ReplyDeleteचर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
वो अरमाँ अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में
ReplyDeleteख़ुदा के फज्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ कुछ
*
हर शायर की बात है यह।
ज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों
ReplyDeleteमगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ कुछ
..............बहुत खूब !
ख़बर सुनकर मेरे आने की, सखियों से वो कहती हैं
ReplyDeleteख़ुशी से दिल धड़कता है मोहब्बत की कसम कुछ कुछ
बहुत खूब नीरज जी ... सतीश जी की लाजवाब गज़ल से मिलवाने का ... सुभान अल्ला ... क्या अंदाज़ है उनकी शायरी का ...
बेहतरीन ग़ज़ल!
ReplyDeleteरकीब अपने को कहते हैं, रफीकों जैसे तेवर हैं,
ReplyDeleteपढ़ा पहली दफा इनको, नशा होने लगा कुछ-कुछ!!
बड़े भाई! शानदार प्रस्तुति!
ज़मीं पर पाँव रखते भी, कभी देखा नहीं जिनको
ReplyDeleteजो चलने की सई की तो, हैं लरजीदा क़दम कुछ कुछ
Behad khoobsoorat Ghazal... I love the way you dig out the gems of urdu poetry, we also get to read such beautiful poetry and these marvelous poets.
Thanks
Fani Raj
ज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों
ReplyDeleteमगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ कुछ
बहुत सुंदर ग़ज़ल...
सतीश जी से अच्छा परिचय कराया आपने.
ReplyDeleteखूबसूरत जज़्बात समेटे है गज़ल। बहुत कुछ को भी कुछ कुछ कहने वाले गज़लगो को भी सलाम और परिचय कराने वाले नीरज बाऊजी को भी सलाम।
ReplyDeleteपढ़ कर ये ग़ज़ल हुआ मेरे भी दिल में कुछ-कुछ :-)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत |
नीरज जी सतीश जी कि गज़ल लाज़वाब लगी.एक सुन्दर गज़ल पढवाने के लिए आभार
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल! शानदार प्रस्तुति!
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल के लिए शुक्रिया नीरज जी, सतीश जी को मुबारकबाद...
ReplyDeleteमेरे एहसास पर भी छा, गई वहदानियत देखो
मुझे भी आ रही है अब तो, ख़ुशबू-ए-हरम कुछ कुछ
सुबहान अल्लाह...
करीब अपने जो आएगा, वो चाहे हो 'रक़ीब' अपना
मगर रक्खेंगे हम उसकी, मोहब्बत का भरम कुछ कुछ
बेहतरीन शेर...
और हां, एक कमेंट में क़लम के मोन्नस और मुज़क्कर (स्त्रीलिंग पुल्लिंग) होने का सवाल उठाया गया है...
रफ़ी साहब की आवाज़ में एक नज़्म है...
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की...
इसमें कहा गया है
क़लम हाथ से छूट जाता तो होगा...उमंगें क़लम फिर उठाती तो होंगी.
शायद बात कुछ साफ़ हो जाए.
Bahut khoob, Hamesha ki tarah ek aur behtareen ghazal se rubaroo karaane ke liye shukriya
ReplyDeletebehad khoobsoorat sher padhvaane ke liye shukriya ..
ReplyDeleteवो अरमाँ अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में
ReplyDeleteख़ुदा के फज्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ कुछ
ज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों
मगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ कुछ
बहुत ही उम्दा लिखते हैं सतीश शुक्ला 'रकीब' साहब
आप जिस हस्ती से रूबरू करवाते हैं वो दिल पर एक अमीट छाप छोड़ देते हैं
शुक्रिया |
नीरज जी मेरे ब्लॉग पर आपका comment मिलना मेरे लिए एक गौरव की बात है
दोबारा पधारिये....I have update my blog
Thank You.
COMMENT RECEIVED ON MAIL:-प्रिय सतीश जी आज आपकी एक शानदार ग़ज़ल नीरज जी के ब्लॉग पर पढी .आपको हादिक शुभकामनाएं व बधाई साथ साथ नीरज जी को भी इस शान दार ब्लॉग के लिए शुभकामनाएं
ReplyDeleteडा०सुरेन्द्र सैनी
आई आई टी रूड़की
097191001632
अगर ये कुछ-कुछ है तो बहुत-बहुत क्या होता है।
ReplyDeleteफिर से एक और हीरे से परिचय करवाया है आपने.
ReplyDeleteवो अरमाँ अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में
ReplyDeleteख़ुदा के फज्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ कुछ
WAAH WAAH
.
ReplyDeleteवो अरमाँ अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में
ख़ुदा के फज्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ कुछ
वाह ! क्या बात है …
शुक्रिया नीरज जी भाई साहब !
सतीश शुक्ला 'रकीब' साहब को मुबारकबाद !
ख़ूबसूरत ग़ज़ल है …
तमाम अश्'आर उस्तादाना हैं …
नीरज जी बिलाशक़ सतीस साहब ने काफिये का नया अंदाज़ पेश किया है और फोन पर आपके हवाले से मैं उनसे बात जरूर करूंगा..
ReplyDeleteयह अच्छा किया आपने कि हर शेर के बाद ही मानी दे दिए
कुछ अशआर बहुत अच्छे लगे
वो अरमाँ अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में
ख़ुदा के फज्ल से चलने लगा मेरा कलम कुछ कुछ
फज्ल = मेहरबानी
जरूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों
मगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ कुछ
जमीं पर पाँव रखते भी, कभी देखा नहीं जिनको
जो चलने की सई की तो, हैं लरजीदा क़दम कुछ कुछ
सई = कोशिश , लरजीदा = लड़खड़ाते, डगमगाते
करीब अपने जो आएगा, वो चाहे हो श्रक़ीबश् अपना
मगर रक्खेंगे हम उसकी, मोहब्बत का भरम कुछ कुछ
नीरज जी बिलाशक़ सतीस साहब ने काफिये का नया अंदाज़ पेश किया है और फोन पर आपके हवाले से मैं उनसे बात जरूर करूंगा..
ReplyDeleteयह अच्छा किया आपने कि हर शेर के बाद ही मानी दे दिए
कुछ अशआर बहुत अच्छे लगे
वो अरमाँ अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में
ख़ुदा के फज्ल से चलने लगा मेरा कलम कुछ कुछ
फज्ल = मेहरबानी
जरूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों
मगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ कुछ
जमीं पर पाँव रखते भी, कभी देखा नहीं जिनको
जो चलने की सई की तो, हैं लरजीदा क़दम कुछ कुछ
सई = कोशिश , लरजीदा = लड़खड़ाते, डगमगाते
करीब अपने जो आएगा, वो चाहे हो श्रक़ीबश् अपना
मगर रक्खेंगे हम उसकी, मोहब्बत का भरम कुछ कुछ
Aakhiri sher mein Raqeeb hai jo copy karne mein unicode ki gaflat se galat chhap gaya hai..
ReplyDeletealam khurshid to me
ReplyDeleteshow details 08:52 (56 minutes ago)
सलीके से कही गई खूबसूरत ग़ज़ल !
बहुत ख़ूब !
अच्छी पेशकश !
आलम खुरशीद
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमेरा शौक
मेरे पोस्ट में आपका इंतजार है,
आज रिश्ता सब का पैसे से
ज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों
ReplyDeleteमगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ कुछ
वाकई अगर ये कुछ कुछ है तो बहुत कैसा होगा ।
सतीश जी का और आपका अनेक धन्यवाद ये खूबसूरत गज़ल पढाने के लिये ।
behad khoobsoorat panktiyan
ReplyDeleteख़बर सुनकर मेरे आने की, सखियों से वो कहती हैं
ReplyDeleteख़ुशी से दिल धड़कता है मोहब्बत की कसम कुछ कुछ
इस शे'र के बारे मे कुछ कहना मुमकिन नहीं... बेहद उम्दा.. बहुत बधाई कहें !
अर्श
प्रिय नीरज जी,
ReplyDeleteप्रिय सतीश शुक्ल 'रक़ीब' जी एवं प्रिय ओम प्रकाश यती जी के आग्रह पर आका ब्लॉग देखा| प्रभावित हुआ| अच्छी रचनाओं को सराहने एवं उन्हें अन्य काव्य-रसिकों तक पहुँचाने का आपका प्रयास निश्चय ही श्लाघनीय है| तद्हेतु अनेकानेक साधुवाद एवं शुभकामनायें|
सतीश शुक्ल जी की ग़ज़ल की सराहना पूर्व में भी अन्यत्र कर चूका हूँ| पुनः इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए उनकी तथा इसे अपनी सुन्दर टिप्पणी के साथ सब तक पहुंचाने के लिए आपकी सराहना करता हूँ |
-अरुण मिश्र.
आदरणीय नीरज जी,
ReplyDeleteअपने ब्लॉग में खूबसूरत अंदाज़ में मेरी ग़ज़ल पोस्ट करने
के लिए आपको और उन सभी साहित्य प्रेमियों जिन्होंने इस
पोस्ट को पढने और उत्साह वर्धक टिप्पणी करने में अपना
अमूल्य समय दिया, तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूंगा.
शाहिद मिर्ज़ा साहब ने मेरी मुश्किल आसान कर दी, क़लम
के स्त्रीलिंग न होने की बात उदाहण द्वारा समझा कर, हार्दिक
आभार.
गत दो सप्ताह में लगभग दो हज़ार लोगों ने आपके ब्लॉग के
माध्यम से मेरी अब तक की श्रेष्ठ रचनाओं में से एक को पढ़ा
और दिल खोलकर सराहा, इसके लिए एक बार फिर से आपका
शुक्रिया इस पंक्ति के हवाले से, कि....
"तेरे साथ हम भी सनम मशहूर हो गए......
सादर,
सतीश शुक्ला 'रक़ीब'