Monday, September 19, 2011

किताबों की दुनिया - 60

लीजिये ख़रामा ख़रामा चलते हुए आज किताबों की दुनिया अपने साठवें पड़ाव पर पहुँच गयी है. इंसान जब साठ का होता है तो कहते हैं वो सठिया गया है याने उससे अब कुछ नया प्राप्त करने की सम्भावना क्षीण हो गयी है. देखा भी गया है कि साठ के बाद का व्यक्ति सिर्फ अपने विगत अनुभवों की जुगाली ही करता है, लेकिन "किताबों की दुनिया "श्रृंखला के लिए ये बात उलट है. वो उतरोत्तर जवान हो रही है. अपने साठवें पड़ाव पर इस श्रृंखला में हम प्रस्तुत कर रहे हैं एक ऐसे युवा शायर की किताब जिसके अशआर आपके साथ हँसते हैं, खेलते हैं, रोते हैं, साँस लेते हैं. इस शायर को पढ़ कर यकीन हो जाता है के उर्दू ग़ज़ल का भविष्य बहुत उज्जवल है. वो लोग, जिन्हें लगता है कि उर्दू शायरी अब दम तोड़ने लगी है, इस किताब को जरूर पढ़ें मुझे यकीन है कि इसे पढने के बाद वो कम से कम इस फ़िक्र से तो ग़मज़दा नहीं ही होंगें. जो शायर

बहुत घुटन है, नयी शायरी जरूरी है
ग़ज़ल के शहर में अब ताजगी जरूरी है

या फिर

चबाते हो उन्हीं थूके हुए निवालों को
नए रदीफ़ नए काफिये तलाश करो

जैसे अनूठे अशआर कह रहा है उसका तहे दिल से इस्तेकबाल मेरे ख़याल से बहुत जरूरी है. ये इस्तेकबाल एक नए शायर का ही नहीं है उस रौशनी का है जो पुराने अँधेरे कमरों को रोशन करने आ रही है. तो आईये आज खुले दिल से बात करते हैं होनहार युवा शायर डा."विकास शर्मा राज़ "की पहली किताब "बारिश खारे पानी की" के बारे में जिसे "लफ्ज़ प्रकाशन" नोएडा द्वारा प्रकाशित किया गया है.


जिस वक्त रौशनी का तसव्वुर मुहाल था
उस शख्स का चिराग़ जलाना कमाल था
तसव्वुर: कल्पना :मुहाल: कठिन

उसके बिसात उलटने से मालूम हो गया
अपनी शिकस्त का उसे कितना मलाल था

अफ़सोस ! अपनी जान का सौदा न कर सके
उस वक्त कीमतों में बला का उछाल था

नए नवेले अंदाज़ में शेर कहने वाले विकास शर्मा राज़ जी ने विज्ञान विषय (रसायन शास्त्र ) में एम्.फिल, पी.एच.डी. किया है और वर्तमान में सोनीपत, हरियाणा में विज्ञान शिक्षक की हैसियत से कार्यरत हैं. वो दुनिया को वैज्ञानिक दृष्टि से देखते हैं और तर्क का प्रयोग करते हुए शेर कहते हैं:

धूप को चांदनी कहा कीजे
वक्त के साथ भी चला कीजे

दरमियाँ पत्थरों के रहना है
अपने लहजे को खुरदुरा कीजे

अपनी सोहबत बड़ी जरूरी है
वक्त कुछ खुद को भी दिया कीजे

विज्ञान के छात्र होने से इंसान के सोचने का तरीका शुष्क नहीं हो जाता बल्कि उसमें और भी कोमलता आ जाती है. राज़ जब भी कोमल अहसास से लबरेज़ शेर कहते हैं तो वो सीधे दिल में घर कर जाते हैं.

निगाहों से उजाला बोलता है
वो चुप रह कर भी क्या क्या बोलता है

नज़र आती है ऐसी रौशनी कब
वो घर पर है दरीचा बोलता है
दरीचा: खिड़की

कोई सहरा कहे तो मान भी लें
बहुत प्यासा हूँ दरिया बोलता है

ग़ज़ल का इतिहास खासा पुराना है पुराने ही वो लफ्ज़ हैं जो उसमें इस्तेमाल होते हैं और तो और इंसानी ज़ज्बात, जैसे दुःख सुख आशा निराशा भी नहीं बदले हैं. आज भी हम उसी बात पर आंसू बहाते या हँसते हैं जिस बात पर सदियों पहले बहाया या हंसा करते थे. ऐसे में कामयाब शायर वोही है जिसे उन्हीं पुरानी बातों या ज़ज्बात को नए अंदाज़ में नए नज़रिए से पेश करने का हुनर आता है. उन्हीं बातों को नए कलेवर में देख हम तालियाँ बजाने लगते हैं. इस हुनर को हासिल करने में उम्र बीत जाया करती है और फिर भी ये हुनर किसी किसी को ही नसीब होता है. ख़ुशी की बात ये है कि विकास राज़ को ये हुनर बहुत कम उम्र में ही हासिल हो गया है.

वो जो डूबा है तो अपनी ही अना के कारण
वो अगर चाहता आवाज़ लगा सकता था

कोशिशें की तो, तअल्लुक को बचने की बहुत
एक हद तक ही मगर खुद को झुका सकता था

अब भी हैरान हूँ क्यूँ उसने बिसात उलटी थी
वो अगर चाहता तो मुझको हरा सकता था

विकास राज़ अपनी शायरी का सारा श्रेय अपने गुरु जनाब "तुफैल चतुर्वेदी" जी को देते हैं. तुफैल साहब जनाब कृष्ण बिहारी "नूर" साहब के शागिर्द रहे हैं उनकी किताब "सारे वर्क तुम्हारे" का जिक्र हम इस श्रृंखला में कर चुके हैं. विकास के नाना प. चन्द्र भान 'मफ्लूक' भी अजीम शायर थे. विकास को शायरी का पहला पाठ जनाब 'नाज़' लायलपुरी साहब ने पढाया. याने शायरी की ये गंगा राज़ के आँगन में हिमालय जैसी बुलंद शख्सियत वाले शायरों से होती हुई उतरी है.

हवा के साथ यारी हो गयी है
दिये की उम्र लम्बी हो गयी है

फ़कत ज़ंजीर बदली जा रही थी
मैं समझा था रिहाई हो गयी है

बची है जो धनक उसका करूँ क्या
तेरी तस्वीर पूरी हो गयी है

मैंने हमेशा कहा है और आज फिर कह रहा हूँ शायर की असली पहचान उसकी छोटी बहर में कही ग़ज़लों से ही मिलती है. शायरी का पूरा अनुभव निचोड़ कर छोटी बहर में खर्च कर देना पड़ता है तब कहीं जा कर एक आध ढंग का शेर हो पाता है. ये ऐसी विधा है जिसे हर कोई अपनाना तो चाहता है लेकिन जिस पर बस किसी किसी का ही चल पाता है. विकास राज़ की इस पहली किताब में अधिकांश ग़ज़लें छोटी बहर में ही हैं. ये उनके गुरुओं का आशीर्वाद ही है जो उनसे छोटी बहर में बेहतरीन अशआर कहलवा गया है. इस विधा में मैं अभी तक विज्ञान व्रत जी को ही श्रेष्ठ मानता आया हूँ.

शमअ कमरे में सहमी हुई है
खिडकियों से हवा झांकती है

जिस दरीचे पे बेलें सजी थीं
जाला मकड़ी वहां बुन रही है

सिर्फ चश्मा उतारा है मैंने
ज़हन में रौशनी हो गयी है

उम्र भर धूप में रहते रहते
ज़िन्दगी सांवली हो गयी है

"तुफैल चतुर्वेदी" साहब ग़ज़लों और व्यंग विनोद की श्रेष्ठ भारतीय पत्रिका " लफ्ज़ "के प्रकाशक और मुख्य संपादक हैं उन्हीं के साथ सह संपादक की हैसियत से 'राज़' लफ्ज़ का काम काज भी सँभालते हैं. तुफैल साहब ने किताब की भूमिका में बहुत ज़ज्बाती होते हुए लिखा है: "मैं अपने दादा उस्ताद स्वर्गीय 'फ्ज़ल अब्बास नक़वी' साहब अपने उस्ताद स्वर्गीय 'कृष्ण बिहारी नूर' के हुज़ूर में जब भी पहुंचूंगा तो इस शान और एतमाद के साथ पहुंचूंगा कि मैंने, उनसे मुझ तक आया इल्म, उनके पोते 'राज़' तक ईमानदारी से पहुंचा दिया है. अगर ये कोई बड़ी बात है तो है और अगर नहीं है तो न सही"

ऐसी प्यास और ऐसा सब्र
दरिया पानी-पानी है

धरती, धूप, हवा, बारिश
दाता कितना दानी है

हमने चख कर देख लिया
दुनिया खारा पानी है

इस किताब की प्राप्ति के लिए आप 'लफ्ज़ प्रकाशन , पी-12, नर्मदा मार्ग, सेक्टर -11 नोएडा -201301 को संपर्क करें या फिर 09810387857 पर फोन करें. राज़ साहब को इस बेहतरीन किताब के लिए 9896551481 पर फोन कर मुबारक बाद जरूर दें. लगभग छियासी ग़ज़लों में से एक भी ग़ज़ल ऐसी नहीं है जिसे यहाँ कोट न किया जा सके लेकिन क्या करें इस पोस्ट की अपनी सीमाएं हैं इसलिए हमें अब यहाँ रुकना होगा . आपके दिल में अच्छी शायरी की प्यास हमने जगा दी है अब इसे बुझाना आपका काम है. आखरी में जनाब मुनव्वर राणा साहब की इस बात के साथ जो मेरे भी दिल की भी आवाज़ है, हम आपसे इज़ाज़त चाहेंगे:"अगर मुझे ईमानदारी से अपनी बात कहने की अनुमति हो तो ये आसानी से कह सकता हूँ कि विकास की ग़ज़लों के चराग़ से मुझ जैसे उम्र की ढलान पर खड़े हुए लोगों की आँखों की रौशनी बढ़ जाती है."

कट न पायी किसी से चाल मेरी
लोग देने लगे मिसाल मेरी

मेरे घर आके मुझको चौंका दे
लॉटरी भी कभी निकाल मेरी

मेरे शेरों को गुनगुनाता है
बंद है जिस से बोलचाल मेरी

30 comments:

  1. सतत प्रेरणा आपकी, बढ़ा इधर उत्साह ||
    रचनाकारों को सदा , रहें दिखाते राह ||

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  2. पहले तो में आप से माफ़ी चाहता हु की में आप के ब्लॉग पे बहुत देरी से पंहुचा हु क्यूँ की कोई महताव्पूर्ण कार्य की वजह से आने में देरी हो गई
    आप मेरे ब्लॉग पे आये जिसका मुझे हर वक़त इंतजार भी रहता है उस के लिए आपका में बहुत बहुत आभारी हु क्यूँ की आप भाई बंधुओ के वजह से मुझे भी असा लगता है की में भी कुछ लिख सकता हु
    बात रही आपके पोस्ट की जिनके बारे में कहना ही मेरे बस की बात नहीं है क्यूँ की आप तो लेखन में मेरे से बहुत आगे है जिनका में शब्दों में बयां करना मेरे बस की बात नहीं है
    बस आप से में असा करता हु की आप असे ही मेरे उत्साह करते रहेंगे

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  3. इतने सुन्दर परिचय के लिये आभार।

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  4. एक और बहुत बढ़िया पोस्ट. विकास जी की गज़लें लफ्ज़ में पढ़ी थीं. बहुत खूब लिखते हैं, यह कहने की ज़रुरत नहीं लेकिन जब भी आप किसी शायर और किताब से परिचय करवाते हैं तो वह अनूठा ढंग से करवाते हैं. और यही बात किताबों की दुनियाँ सीरीज की हर पोस्ट को नायाब बनाती है.

    इस सीरीज की साठ पोस्ट होने की आपको और आपके पाठकों को बधाई.

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  5. आ. तुफैल जी जैसे ग़ज़ल के सशक्त हस्ताक्षर के प्रिय शिष्य विकास 'राज़' की इस अनमोल कृति को हम लोगों के साथ साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद मान्यवर| राज़ एक अच्छे शायर होने के अलावा एक अच्छे इंसान भी हैं, यह अल्फ़ाज़ मैने खुद श्री तुफैल जी के मुँह से सुने हैं| खुद तुफैल जी से सुने राज़ भाई के दो शेर आप लोगों के साथ साझा करना चाहूँगा:-

    कोई कांधा नहीं ही रोने को|
    आईने से लिपट गया हूँ मैं||

    तुम बहुत देर कर के लौटे हैं|
    खुद को तसलीम कर चुका हूँ मैं||


    क़िताबों की दुनिया के शतक का इंतेज़ार है अब तो|

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  6. पुस्तक और शायर की जिस तरह आप भूमिका देते हैं, किताब के प्रति रूचि बढ़ जाती है. सभी शेर अच्छे लग रहे हैं और आज की धरती से जुड़े हैं... एक और बेहतरीन अंक.

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  7. नीरज जी,
    इस किताब के बारे में यहाँ पढ़ने का मुन्तज़िर था,

    जितना सोच था आपने उससे भी बढ़िया लिखा है और कोई जितना सोच सकता है राज़ जी की ग़ज़लें उससे भी उम्दा हैं

    आभार

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  8. धूप को चांदनी कहा कीजे
    वक्त के साथ भी चला कीजे
    bahut hi sundar ...Raj ji ko badhaee ...

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  9. मेरे घर आके मुझको चौंका दे
    लॉटरी भी कभी निकाल मेरी

    मेरे शेरों को गुनगुनाता है
    बंद है जिस से बोलचाल मेरी

    इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आपका बहुत-बहुत आभार ।

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  10. सभी शेर लाजबाब है ......आपने फिर एक महान हस्ती से परिचय कराया ...........आभार

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  11. बेहतरीन शायर से मुलाकात करने के लिए आभार । बहुत उम्दा शायरी है विकास शर्मा जी की ।

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  12. चबाते हो उन्हीं थूके हुए निवालों को
    नए रदीफ़ नए काफिये तलाश करो
    *
    विकास जी का यह शेर केवल गज़लकारों पर नहीं,‍बल्कि कई कवियों और कवियत्रिओं पर भी लागू होता है। अगर उनपर रत्‍ती भर भी इस शेर का असर पड़े तो बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
    *
    विकास जी से परिचय के लिए धन्‍यवाद।

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  13. बहुत सार्थक प्रयास है आपका. ईश्वर करे यह १५० वें पडाव तक भी यूं ही निर्बाध सिलसिला चलता रहे.

    रामराम

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  14. नीरज जी ,बधाई स्वीकारें!
    बेहतरीन तारुफ कराने के लिए ...शंमा रौशन रहें!

    "फ़कत ज़ंजीर बदली जा रही थी
    मैं समझा था रिहाई हो गयी है"....वाह: आप से रिहाई चाहिए भी नही ......

    शुभकामनाएँ!

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  15. आज फिर एक बेहतरीन शायर से मुलाकात करने के लिए आपको बहुत धन्यवाद.

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  16. आप अपने ब्लॉग पर यूंही पुरवाई का एह्सास कराते रहिये ताकि हमारे ज़ह्नों की खिड़्कियां ताज़ा हवाओं के लिये खुली रहें बंद न होने पाएं

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  17. आभार हमेशा की तरह इस बेहतरीन परिचय का......कित्ती बार आभार करुँ आखिर?

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  18. अपनी सोहबत बड़ी जरूरी है
    वक्त कुछ खुद को भी दिया कीजे
    ...

    मेरे शेरों को गुनगुनाता है
    बंद है जिस से बोलचाल मेरी
    waah...

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  19. गज़ल को देखने और कहने का विकास जी का अंदाज़ लाजवाब लगा .. अपना अलग मुकाम बन पड़ा है उनके शेरों का ... और आपने तो नीरज जी हमेशा की तरह ... दिल में उत्सुकता जगा दी है ... बहुत ही उम्दा प्रस्तुति है ...

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  20. Comment received from Sh.Vishaal on my e-mail:-

    अंकल जी,
    नमस्ते

    विकास की ग़ज़लों के चराग़ से मुझ जैसे उम्र की ढलान पर खड़े हुए लोगों की आँखों की रौशनी बढ़ जाती है." वाह साब! आपके ब्लॉग टिप्पणियों से 'बहुत खूब'' 'धमाल' चैनल के लिए शैलेष लोढ़ा जी ने चुराया है। क्योंकि हम तो कितने वर्षों से कह रहे हैं बहुत खूब।

    मेरे शेरों को गुनगुनाता है
    बंद है जिस से बोलचाल मेरी

    नवीन भाई चतुर्वेदी ने भी इस शेर से ‍परिचित कराया। उनका आभार।

    कोई कांधा नहीं ही रोने को|
    आईने से लिपट गया हूँ मैं||

    आपका
    विशाल

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  21. सुन्दर परिचय के लिये आभार .......

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  22. डा."विकास शर्मा राज़ और उनके ग़ज़ल संग्रह से परिचय अच्छा लगा.

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  23. नमस्कार नीरज जी,
    हर बढ़ते कदम के साथ, किताबों की दुनिया का सफ़र सुहावना होता जा रहा है.
    विकास जी के शेर कमाल के हैं. हर एक शेर एक नयापन, एक अलग खुश्बू लिए हुए है. बहुत बहुत बधाइयाँ उनको, ईश्वर से कामना करता हूँ कि वो ऐसे ही बेहतरीन शेर लिखते रहें. जल्द ही ये किताब मंगवा के पढता हूँ.

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  24. जब मैं फुर्सत में होता हूँ , पढ़ता हूँ और तहेदिल से इन भावनाओं का शुक्रगुज़ार होता हूँ ....

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  25. pahli bar aapke blog par aai hoon yahan aana safal raha shayri mujhe humesha pasand aati hain.aapke blog par achche shayar aur shayri ppadhne ko mili.bahut bahut aabhar aapka.aage bhi milti rahungi.

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  26. सभी शेर अच्छे लग रहे हैं क्या बात है, बहुत खूब इससे ज्यादा कुछ कहने के लायक हम नहीं हैं....

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  27. बेहतरीन कमेंट्री। हम लोग भी हवा खाने वाली पब्लिक में शामिल थे

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  28. दरमियाँ पत्थरों के रहना है
    अपने लहजे को खुरदुरा कीजे

    ये पंक्तियाँ तो ज़माने पर उम्दा टिप्पणी है.

    किसी पुस्तक की खूबियों को सलीके से पेश करने का तरीका कोई आप से सीखे. इतने अच्छे शायर से वाकिफ़ कराने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया.

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  29. very useful information.movie4me very very nice article

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे