Monday, September 5, 2011

किताबों की दुनिया - 59

दोस्तों आज आपके साथ चलते चलते इस ब्लॉग को चार साल पूरे हो गए हैं. आपका स्नेह ही वो उर्जा है जो इसे चलाये हुए है.

*********
आज से तैतीस साल पहले याने सन 1978 में एक फिल्म आई थी "गमन" जिसे मुजफ्फर अली साहब ने निर्देशित किया था और जिसमें फारुख शेख और स्मिता पाटिल ने अभिनय.किया था. फिल्म आई, फ़िल्मी हलकों में बहुत चर्चित हुई, लेकिन कुछ खास चली नहीं. "गमन" रोटी रोज़ी की जद्दोजेहद में गाँव से मुंबई आकर टैक्सी चलाने का काम करने वाले एक आम इंसान पर बनी मार्मिक फिल्म थी. आईये इस फिल्म का एक गीत सुनते/देखते हैं:


इस फिल्म के लिए सन १९७९ में संगीतकार "जयदेव" जी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय पुरूस्कार दिया गया और इस गीत के लिए गायिका "छाया गांगुली" को सर्वश्रेष्ठ महिला गायिका का राष्ट्रीय पुरूस्कार मिला. मजे की बात है इस गीत को पकिस्तान की मशहूर गायिका आबिदा परवीन (http://www.youtube.com/watch?v=y71um-KfgAE&feature=related) और टीना सानी जी (: http://www.youtube.com/watch?v=qSghQYU_9qc&feature=related) ने भी गाया है.

अफ़सोस "छाया गांगुली" जी का गीत तो बहुत अधिक चर्चित नहीं हुआ लेकिन इस फिल्म के एक दूसरे गीत ने धूम मचा दी. गीत के बोलों में आम जन को अपनी ही कहानी सुनाई दी. इस मधुर गीत को स्वर दिया था सुरेश वाडकर जी ने, आईये सुनते/देखते हैं:


पीड़ा को, चाहे वो विरह की हो या घर से दूर हालात से लड़ते हुए इंसान की, इतने खूबसूरत शायराना अंदाज़ में पहले शायद ही कभी किसी फिल्म में बयां किया गया हो. मुलाहिजा कीजिये :

याद के चाँद दिल में उतरते रहे
चांदनी जगमगाती रही रात भर

***
दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूंढें
पत्थर की तरह बेहिसो बेजान सा क्यूँ है

आप सोच रहे होंगे ये क्या हुआ "किताबो की दुनिया " श्रृंखला में फिल्म की चर्चा कैसे? सही सोच रहे हैं,क्या है कि बात को घुमा फिरा कर कहना ही आजकल फैशन में है. चर्चा शुरू हमने जरूर फिल्म से की है लेकिन बात पहुंचाई है उस शायर तक जिसका नाम है "शहरयार". आज हम उन्हीं की किताब "सैरे ज़हां" की चर्चा करेंगे.


डा.अख़लाक़ मोहम्मद खान "शहरयार" साहब की इस किताब की लोकप्रियता को देखते हुए वाणी प्रकाशन वाले 2001 से अब तक इसके तीन संस्करण निकाल चुके हैं लेकिन मांग है के पूरी ही नहीं हो पाती. आज के दौर में शायरी की किताब के तीन संस्करण बहुत मायने रखते हैं. इसकी खास वजह ये है के शहरयार साहब की शायरी उर्दू वालों को उर्दू की और हिंदी वालों को हिंदी की शायरी लगती है.

इस जगह ठहरूं या वहां से सुनूँ
मैं तेरे जिस्म को कहाँ से सुनूँ

मुझको आगाज़े दास्ताँ है अज़ीज़
तेरी ज़िद है कि दरमियाँ से सुनूँ
आगाज़े दास्ताँ : कहानी का आरम्भ

कितनी मासूम सी तमन्ना है
नाम अपना तेरी ज़बां से सुनूँ

शहरयार साहब , जिनका जन्म 16 जून 1936 को बरेली के पास अन्वाला गाँव में हुआ,साहित्य के लिए भारत का सर्वश्रेष्ठ "ज्ञान पीठ" पुरूस्कार प्राप्त करने वाले उर्दू के चौथे रचनाकार हैं. इनसे पूर्व ये पुरूस्कार प्राप्त करने वाले महान उर्दू शायर "फ़िराक गोरखपुरी "(किताब :गुले-नगमा, 1969), अफसाना निगार "कुर्रुतुलैन हैदर" (किताब:आखरी शब् के हमसफ़र, 1989) और शायर "अली सरदार जाफरी" (उर्दू साहित्य को समृद्ध करने पर,1997) ही हैं. शहरयार साहब को ये पुरूस्कार सन 2008 में दिया गया. इसके पहले सन 1987 में शहरयार साहब को उनकी किताब "ख्वाब का दर बंद है " के लिए "साहित्य अकादमी" पुरूस्कार भी दिया गया.

हवा से उलझे कभी सायों से लड़े हैं लोग
बहुत अज़ीम हैं यारों बहुत बड़े हैं लोग

इसी तरह से बुझे जिस्म जल उठें शायद
सुलगती रेत पे ये सोच कर पड़े हैं लोग

सुना है अगले ज़माने में संगो-आहन थे
हमारे अहद में तो मिटटी के घड़े हैं लोग
संगो-आहन = पत्थर और लोहा (मज़बूत)

शहरयार साहब लगभग एक दशक तक अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में कार्य करने के बाद सन 1996 में उर्दू विभाग के चेयर मैन और अध्यक्ष पद से रिटायर हुए. उसके बाद से वो वहीँ बस गए हैं और अब उर्दू साहित्य की लगातार सेवा अपनी पत्रिका "शेरो-हिकमत " के माध्यम से कर रहे हैं.

शहरयार साहब अपनी शायरी के माध्यम से इंसानी ज़िन्दगी में प्यार और सरोकार भरते हैं. ऐसी कोई हलचल जिस से ज़िन्दगी जीने में बाधा पड़े उनको नागवार गुज़रती है और वो इसका विरोध करते हैं. जीवन मूल्यों में होती लगातार गिरावट उन्हें दुखी करती है.

तुम्हारे शहर में कुछ भी हुआ नहीं है क्या
कि तुमने चीखों को सचमुच सुना नहीं है क्या

मैं एक ज़माने से हैरान हूँ कि हाकिमे-शहर
जो हो रहा है उसे देखता नहीं है क्या

उजाड़ते हैं जो नादाँ इसे उजड़ने दो
कि उजड़ा शहर दोबारा बसा नहीं है क्या

प्रसिद्द कथाकार कमलेश्वर कहते हैं " शहरयार को पढता हूँ तो रुकना पड़ता है...पर यह रूकावट नहीं, बात के पडाव हैं, जहाँ सोच को सुस्ताना पड़ता है- सोचने के लिए. चौंकाने वाली आतिशबाजी से दूर उनमें और उनकी शायरी में एक शब्द शइस्तगी है. शायद येही वजह है कि इस शायर के शब्दों में हमेशा कुछ सांस्कृतिक अक्स उभरते हैं...सफ़र के उन पेड़ों की तरह नहीं हैं जो झट से गुज़र जाते हैं बल्कि उन पेड़ों की तरह हैं जो दूर तक चलते हैं और देर तक सफ़र का साथ देते हैं "

हुआ ये क्या कि खमोशी भी गुनगुनाने लगी
गयी रुतों की हर इक बात याद आने लगी

खबर ये जब से पढ़ी है, ख़ुशी का हाल न पूछ
सियाह रात ! तुझे रौशनी सताने लगी

बुरा कहो कि भला समझो ये हकीक़त है
जो बात पहले रुलाती थी अब हँसाने लगी

आम उर्दू शायरी के दीवानों के लिए शहरयार सिर्फ उस शायर का नाम है जिसने फिल्म उमराव जान के गीत लिखे, उन्हें सामान्यतः मुशायरों में नहीं देखा /सुना गया है .उन्हें शायद मुशायरों में जाना भी पसंद नहीं है. उन्होंने ने साहित्य शिल्पी में छपे अपने एक साक्षात्कार में कहा है: "इंडिया मे मुशायरों और कवि सम्मेलनों मे सिर्फ चार बाते देखी जाती है- पहली, मुशायरा कंडक्ट कौन करेगा? दूसरी- उसमे गाकर पढ़्ने वाले कितने लोग होगे? तीसरी- हंसाने वाले शायर कितने होंगे और चौथी यह कि औरतें कितनी होगीं? मुशायरा आर्गेनाइज –पेट्रोनाइज करने वाले इन्ही चीजों को देखते है। इसमे शायरी का कोई जिक्र नहीं। हर जगह वे ही आजमाई हुई चीजें सुनाते है। भूले बिसरे कोई सीरियस शायर फँस जाता है, तो सब मिलकर उसे डाउन करने की कोशीश करते है। इसे आप पॉपुलर करना कह लीजिए। फिल्म गज्ल भी बहुत पॉपुलर कर रहे है। पर बहुत पापुलर करना वल्गराइज करना भी हो जाता है बहुत बार। इंस्टीट्यूशन मे खराबी नहीं, पर जो पैसा देते है, वे अपनी पसद से शायर बुलाते है। गल्फ कंट्रीज मे भी जो फाइनेंस करते है, पसद उनकी ही चलती है। उनके बीच मे सीरियस शायर होगे तो मुशकिल से तीन चार और उन्हे भी लगेगा जैसे वे उन सबके बीच आ फँसे है। जिस तरह की फिलिंग मुशायरो के शायर पेश करते है, गुमराह करने वाली, तास्तुन, कमजरी वाली चीजें वे देते है, सीरियस शायर उस हालात मे अपने को मुश्किल मे पाता है।"

न खुशगुमान हो उस पर तू ऐ दिले-सादा
सभी को देख के वो शोख़ मुस्कुराता है

जगह जो दिल में नहीं है मेरे लिए न सही
मगर ये क्या कि भरी बज़्म से उठाता है

अजीब चीज़ है ये वक्त जिसको कहते हैं
कि आने पाता नहीं और बीत जाता है

शहरयार साहब की अब तक चार प्रसिद्द किताबें उर्दू में शाया हो चुकी हैं उनकी सबसे पहली किताब सन १९६५ में "इस्मे-आज़म", दूसरी १९६९ में " सातवाँ दर", तीसरी १९७८ में "हिज्र के मौसम" और चौथी १९८७ में " ख्वाब के दर बंद हैं" प्रकाशित हुई. उर्दू के अलावा देवनागरी में भी उनकी पांच किताबें छप कर लोकप्रिय हो चुकी हैं.सैरे-जहाँ किताब की सबसे बड़ी खूबी है के इसमें उनकी चुनिन्दा ग़ज़लों के अलावा निहायत खूबसूरत नज्में भी पढने को मिलती हैं. वाणी प्रकाशन वालों ने इसे पेपर बैक संस्करण में छापा है जो सुन्दर भी है और जेब पर भारी भी नहीं पड़ता.

जो कहते थे कहीं दरिया नहीं है
सुना उनसे कोई प्यासा नहीं है

दिया लेकर वहां हम जा रहे हैं
जहाँ सूरज कभी ढलता नहीं है

चलो आँखों में फिर से नींद बोएँ
कि मुद्दत से तुझे देखा नहीं है

इस किताब की हर ग़ज़ल यहाँ उतारने लायक है लेकिन मेरी मजबूरी है के मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाउँगा. अगर आपको ऐसी नज्में और ग़ज़लें पढनी हैं जो दिलो दिमाग को सुकून पहुंचाएं, हमारे चारों और के हालात पर, ज़िन्दगी पर रौशनी डालें तो ये किताब .आपके पास होनी चाहिए. वाणी प्रकाशन वालों का पता मैं यूँ तो अब तक न जाने कितनी बार इस श्रृंखला में दे चुका हूँ लेकिन अगर आप पीछे मुड़ कर देखने में विश्वास नहीं रखते तो यहाँ एक बार फिर दे देता हूँ :वाणी प्रकाशन:21-ऐ दरियागंज, नयी दिल्ली, फोन:011-23273167 और इ-मेल: vaniprakashan@gmail.com

नाम अब तक दे न पाया इस तअल्लुक को कोई
जो मेरा दुश्मन है क्यूँ रोता है मेरी हार पर

बारिशें अनपढ़ थीं पिछले नक्श सारे धो दिए
हाँ तेरी तस्वीर ज्यों की त्यों है दिले-दीवार पर

आखरी में देखते सुनते हैं वो गीत जिसने शहरयार साहब के नाम को हिन्दुस्तान के घर घर में पहुंचा दिया. आज तीस साल बाद भी जब ये गीत कहीं बजता है तो पाँव ठिठक जाते हैं. इस गीत में रेखा जी की लाजवाब अदाकारी,आशा जी की मदहोश करती आवाज़,खैय्याम साहब का संगीत और शहरयार साहब के बोल क़यामत ढा देते हैं.


44 comments:

  1. नीरज जी ,नमस्कार !
    किताबों की दुनियां ...से बड़ा कुछ पढ़ने,और सीखने को मिल रहा है ! आभार
    पर क्या बात है !!!?
    मुझको आगाज़े दास्ताँ है अज़ीज़
    तेरी ज़िद है कि दरमियाँ से सुनूँ

    खुश और स्वस्थ रहें !
    शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  2. "सिने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यों हैं --इस शहर में हर शख्स परेशां सा क्यों हैं "

    शहरयार साहब को कोई विरला ही होगा जो जानता न हो धन्यवाद नीरज साहेब
    .उनका परिचय आपके द्वारा मिला

    जो कहते थे कहीं दरिया नहीं है
    सुना उनसे कोई प्यासा नहीं है

    दिया लेकर वहां हम जा रहे हैं
    जहाँ सूरज कभी ढलता नहीं है

    चलो आँखों में फिर से नींद बोएँ
    कि मुद्दत से तुझे देखा नहीं है

    ReplyDelete
  3. सबसे पहले तो किताबों की इस दुनिया के चार वर्ष पूरे होने पर बहुत-बहुत बधाई यह सफर यूं ही जारी रहें ... शुभकामनाएं ।

    ReplyDelete
  4. नीरज जी
    सबसे पहले तो ब्लोग के चार साल पूरे होने पर हार्दिक बधाई स्वीकारें और ये ब्लोग सालों साल इसी तरह चलता रहे ताकि हमे नये नये शायरों से मिलने और उन्हे पढने का मौका मिलता रहे।
    शहरयार साहब को पढवाकर तो आपने उपकार ही किया है………कौन ऐसा होगा जो इस शायरी का कायल नही होगा……………हार्दिक आभार्।

    ReplyDelete




  5. चार साल !
    मुबारकां जी मुबारकां !!


    आदरणीय भाईजी नीरज जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !



    ¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤
    आपके ब्लॉग के आज चार वर्ष पूरे होने पर बहुत बहुत बधाइयां और शुभकामनाएं !

    यह सफ़र यूं ही शाना-ब-शाना जारी रहे … और ब्लॉगजगत को अदब के हसीन मनाज़िर से रू-ब-रू होने के स्वर्णिम अवसर मिलते रहें … आमीन !
    ¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤

    शहरयार साहब की शायरी और उनके चंद नग़्मात के वीडियो के लिए आपका आभार !

    …और आपको सपरिवार
    बीते हुए हर पर्व-त्यौंहार सहित
    आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  6. नमस्कार नीरज जी,
    इस यादगार और खूबसूरत सफ़र के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ. इन गुज़रते चार सालों में आपने, "किताबों की दुनिया" से जो खज़ाना इस ब्लॉग के जरिये सब में बांटा है, उसे यहाँ पे कुछ लफ़्ज़ों में बधाई का जामा पहना के कह देना, इसके साथ थोडा नाइंसाफी होगा. इसलिए आप से मिलकर ही इसकी बधाई आपको तहे-दिल से दूंगा.

    ReplyDelete
  7. आपके ब्लॉग के द्वारा बहुत कुछ सीखनेऔर जानने का मौका मिलता है .....चार साल पुरे होने की बहुत -बहुत बधाई

    ReplyDelete
  8. बहुत-बहुत महान शायर और महान इंसान हैं. ऐसी-ऐसी कृतियाँ जिन्हें पढ़ते हुए जैसा कमलेश्वर जी ने कहा कि रुकना पड़ता है. रूककर सोचते हैं कि क्या ख़याल आते हैं इन महान शायर को.
    संयोग से बहुत दिनों बाद किसी किताब का जिक्र हुआ जो मेरे पास है. मुशायरे में जब बोलते हैं तो लगता है कि सुनते ही जायें. अज़ीम शायर!

    ब्लागिंग में चार वर्ष पूरे करने की बधाई. बधाई देना तो एक औपचारिकता है. हम सब से यही कहते हैं कि आपका ब्लॉग हमारे बीच सबसे अच्छे ब्लॉग में से एक है. हम थोड़ी बधाई खुद को दे लेते हैं. यह सोचते हुए कि आपका ब्लॉग बनाने की वजह से कुछ लोग़ आपके माध्यम से हमें भी जानते हैं.

    ReplyDelete
  9. हर बार किताबों के माध्यम से नया दृष्टिकोण उजागर हो जाता है।

    ReplyDelete
  10. ४ साल की बधाई. इस अवसर पर हम फिर से कहते हैं कि हमें शेरो-शायरी और कविता की समझ थोड़ी कम है :) पर साथ ही आपका ब्लॉग उन कुछेक ब्लोग्स में से है जिसकी हर पोस्ट पढ़ी जाती है.

    ReplyDelete
  11. आपके ब्लोगिंग के चार साल पूरे होने पर बधाई हौसला मिला है मुझे भी.
    शहरयार साहब के बारे में जानना सच ही अच्छा लगा. उनके बारे में ज्यादा मालूम नहीं था पर हा जिन गानों का अपने जिक्र किया वो सभी मुझे बहुत अच्छे लगते हैं
    एक बार फिर से बधाई स्वीकारें

    ReplyDelete
  12. ब्लोगिंग में चार साल पूरे होने पर बधाई ।
    शहरयार साहब की ग़ज़लें लाज़वाब रही हैं ।
    दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये --इस ग़ज़ल के बारे में उनका खुद का इंटरव्यू सुना था ।
    बहुत आनंद आया था ।

    ReplyDelete
  13. हमेशा की तरह आज भी लाजवाब.

    ReplyDelete
  14. bahut achchha lagaa unhen padhna ...blog ke chaar saal poore hone aur ..itna popular hone ki badhaaee ...

    ReplyDelete
  15. यह मजमुआ मेरे कलेक्शन की शान बढ़ा रहा है कई दिनों से.. कमाल के शायर हैं शहरयार!! मुशायरों में एक बार इनकी कमजोर आवाज़ के कारण लोग उठकर जाने लगे तो बुलंद आवाज़ के मालिक जनाब मुनव्वर राना को गुजारिश करनी पड़ी!! फिर तो जो समां बंधा वो कमाल था!!
    आपका आभार, इस प्रस्तुति के लिए!!

    ReplyDelete
  16. बधाई तथा आभार

    ReplyDelete
  17. अजीब चीज़ है ये वक्त जिसको कहते हैं
    कि आने पाता नहीं और बीत जाता है

    आप ने सच कहा है वाक़ई दिल चाहता है कि सारे अश’आर कोट कर दूं लेकिन ये संभव नहीं है
    बहुत उम्दा शायरी है लेकिन आप की समीक्षा इस के हुस्न में एज़ाफ़ा कर देती है
    किताब को पढ़ने का इश्त्याक़ बढ़ जाता है
    बहुत ख़ूब !

    ReplyDelete
  18. kitni khoobsurti se sabko piroya hai ...

    याद के चाँद दिल में उतरते रहे
    चांदनी जगमगाती रही रात भर

    ReplyDelete
  19. ब्लॉग की सालगिरह भी मुबारक हो

    ReplyDelete
  20. शहरयार साहब को पढकर एक दिली खुशी मिलती है। आभार, उनकी पुस्‍तक सेपरिचय कराने का।

    ------
    नमक इश्‍क का हो या..
    पैसे बरसाने वाला भूत...

    ReplyDelete
  21. नीरज जी
    आशीर्वाद
    चार वर्ष ब्लॉग के पूर्ण हुए
    बधाई व शुभ कामनाएँ

    ReplyDelete
  22. ४ साल....

    गज़लों से साये में..
    सुंदर गीतों को गुनगुनाते हुए...
    "तुम ना जाने किस जहाँ में खो गये"
    इन सब को दिखाते हुए..
    दीप से दीप जलाते हुए..
    नीरज जी बहुत बहुत हार्दिक बधाई स्वीकार करें...

    दूसरे ......
    सीने में सुलगते है अरमान.. पसंदीदा गीत है.... और ताज्जुब हो रहा है... ये फिल्म नहीं देखी.

    ReplyDelete
  23. मुझको आगाज़े दास्ताँ है अज़ीज़
    तेरी ज़िद है कि दरमियाँ से सुनूँ

    कितनी मासूम सी तमन्ना है
    नाम अपना तेरी ज़बां से सुनूँ

    शहरयार साहब की नायाब शायरी पर क्‍या कहूँ।

    ReplyDelete
  24. Comment received on mail:-

    aapko bahut bahut badhai,hum ummid kartey hai kavita ,gajal our kitabo ki ye yatra anwarat chalti rahegi

    Regards
    RAJENDRA KABRA
    DISTRIBUTOR
    GULF OIL&FILTERS,S.F BATTERY
    SUPER COMPLEX,GURUDWARA ROAD
    BETUL M.P
    09425002368

    ReplyDelete
  25. ब्लॉगिंग के चार साल पूरे करने पर बधाई. आपके यहाँ पहले भी आ चुका हूँ. गीतों और शायरी की यह महफिल यूँ ही सजी रहे. शुभकामनाओं सहित आपका,
    भारत भूषण.

    ReplyDelete
  26. ब्लाग के चार साल पूरे होने की बधाई |
    बहुत बहुत आभार श्रेष्ठ शायर से परिचय करवाने के लिए |

    ReplyDelete
  27. ब्लॉग की चौथी वर्षगांठ की बहुत बहुत बधाई एवं दिली शुभकामनाएँ...बेहतरीन सफर रहा अब तक...आगे और आनन्द आयेगा, यह भी तय है....जारी रहें.

    ReplyDelete
  28. शायर परिचय का आभार बिना कहे भला कैसे चला जाता......

    ReplyDelete
  29. नीरज जी आपके ब्लॉग को बस चार वर्ष हुए लगता है आप और हम सालों से यहीं हैं । आप का ब्लॉग मेरे पसंदीदा ब्लॉगों में से एक है । इस बार तो आपका एक अलग अंदाज दिखा । सिनेमा से शुरू किया और शहरयार साहब के शायरी की चर्चा भी हो गई । इतने सारे अमोल शेर एक चुनना मुश्किल ।

    ReplyDelete
  30. ब्लॉगजगत में चार साल की उम्र बहुत होती है.....मुबारकबाद |

    कितनी मासूम सी तमन्ना है
    नाम अपना तेरी ज़बां से सुनूँ

    शहरयार साहब की शायरी गज़ब की है शुक्रिया आपका|

    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|

    ReplyDelete
  31. चार साल ही हुए हैं बस, यूं कहिए सर जी| अभी तो आप से बहुत से नगीनों का परिचय मिलना है| आप के खुद के बहुत से नगीनों को पाना है| आप का यह ब्लॉग और आप के बेहतरीन शाहकार यूं ही पढ़ने को मिलते रहें| शहरयार साहब को पढ़वा कर दिल खुश कर दित्ता नीरज भाई|

    ReplyDelete
  32. 4 saal pure hone kee shubhkaamnaayen....

    main naya hoon..... kripya mere blog par bhi aayen..
    aabhar.

    http://umeashgera.blogspot.com/

    ReplyDelete
  33. निरापद भाव से लगातार चार साल के सिलसिले के लिये आपको हार्दिक बधाईयां और निरंतर ये सिलसिला चलता रहे इसके लिये अग्रिम शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  34. वाह नीरज जी .. शहरयार जी की गज़लों और गमन के गीतों का जो गुलदस्ता आपने पेश किया है बो बेशकीमती है ... हर शेर छांट छांट के लाते हैं आप ... शुक्रिया ...

    ReplyDelete
  35. 58 लोगों के काव्‍य का संकलन तो हुआ, यह सदा बढ़े फले फूले यही शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  36. इतनी औकात नहीं कि शहरयार जी के विषय में लिख सकूं,,,,,,, बस इतना ही कहूँगा कि शायरी के बहुत ही बड़े नगीने पर लिख डाला आपने.... !!! साधुवाद स्वीकार करें

    ReplyDelete
  37. नमस्कार नीरज जी
    सबसे पहले तो किताबों की इस दुनिया के चार वर्ष पूरे होने पर बहुत-बहुत बधाई यह सफर यूं ही जारी रहें ,
    शुभकामनाएं ।

    ReplyDelete
  38. आपके ब्‍लॉग के चार साल पूरे होने पर बधाई। 'गमन' फिल्‍म में सुरेश वाडकर का गीत मुझे सर्वाधिक प्रिय है। लेकिन एक अन्‍य गीत 'रस के भरे तोरे नैन सांवरिया' भी सुनने लायक है।

    ReplyDelete
  39. ब्लॉग के चार साल पूरे होने की बधाई,नीरज जी.

    ReplyDelete
  40. बधाई क़ुबूल फर्माएँ नीरज जी... इस सफर के लिये ख़ास तौर से ... जहाँ लोगों को हमेशा ही किताबों से मिलवाते रहते हैं आप... नेक काम कर रहे हैं आप.
    सफर जारी रहे... आमीन.


    अर्श

    ReplyDelete
  41. शहरयार जी को पहले भी पढ़ा है लेकिन आज उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में जानकार बहुत अच्छा लगा. उमराव जान के गाने कौन भूल सकता है. बहुत बहुत आभार इस सुन्दर आलेख के लिए.

    ब्लॉग के ४ साल पूरे होने पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  42. आज पहली बार ऐसा हुआ है कि आपने जिस किताब के बारे में लिखा वो मेरे पास है। खरीदे मुद्दत हुई पर सारी ग़ज़लें अब तक नहीं पढ़ पाया। बाकी शहरयार के गीत तो दिलअजीज़ हैं ही।

    ReplyDelete
  43. Comment received from Sh.Bhupesh Joshi:-

    ki tumne chikhon ko sach much suna nahi kya. Sheharyaar sahab ki in umda rachnao se rubaru krvane k liye abhar.

    ReplyDelete
  44. Comment received fro Sh:Ramesh Joshi

    नीरज जी
    आपका वेब पेज खोल लिया और अचानक ही उमराव जान की कुछ गज़लें सुनने को मिल गईं |बहुत कम ही होता है ऐसा संयोग |बहुत दिनों बाद , अपनी धरती से दूर अचानक मन तृप्त हो गया | किसे धन्यवाद दूँ, आपको, आशा जी को, मुज़फ्फर अली को, शहरयार को, खय्याम साहब को |
    ब्लॉग के चार वर्ष पूरे होने पर बधाई दूँ या नहीं क्योंकि यह तो बरसा-बरस चलने वाला है |
    शुभेच्छु
    रमेश जोशी

    ReplyDelete

तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे