आपको याद होगा पिछले महीने की पोस्ट में मैंने एक अत्यंत प्रतिभा शाली युवा शायर अखिलेश तिवारी जी का परिचय आप सब से करवाया था. उनकी ग़ज़ल को सुधि पाठकों ने बहुत पसंद भी किया था इसीलिए आज फिर एक बार आपको अखिलेश जी की एक बेहद खूबसूरत ग़ज़ल पढवाता हूँ. मुझे उम्मीद है आप इस होनहार शायर की हौंसला अफ़जाही जरूर करेंगे. उनका मोबाईल नंबर एक बार फिर नोट कर लें:- 9460434278
हँसना रोना पाना खोना मरना जीना पानी पर
पढ़िए तो क्या क्या लिक्खा है दरिया की पेशानी पर
मँहगाई है दाम मिलेंगे सोचा था हमने लेकिन
शर्मिंदा हो कर लौटे हैं ख़्वाबों की अर्ज़ानी पर
अर्ज़ानी : सस्ताई, मंदी
इस उजड़ेपन में भी कुछ तो नज्ज़ारों के लायक हैं
वर्ना जमघट क्यूँ उमड़ा रहता है इस वीरानी पर
रात जो आँखों में चमके जुगनू मैं उनका शाहिद हूँ
आप भले चर्चा करिए अब सूरज की ताबानी पर
ताबानी: गर्मी , ताकत
सुब्ह,सवेरा दफ्तर,बीवी,बच्चे,महफ़िल,नींदें,रात
यार किसी को मुश्किल भी होती है इस आसानी पर
उसकी सपनों वाली परियां मैं क्यूँ देख नहीं पाता
बच्चा हैराँ है मुझ पर मैं बच्चे की हैरानी पर
एक अछूता मंज़र मुझको छूकर गुज़रा था अब तो
पछताना है खुद में डूबे रहने की नादानी पर
हम फ़नकारों की फितरत से वाकिफ हो तुम तो 'अखिलेश'
मक्सद समझो रुक मत जाना बस लफ़्ज़ों के मानी पर
एक अछूता मंज़र मुझको छूकर गुज़रा था अब तो
ReplyDeleteपछताना है खुद में डूबे रहने की नादानी पर
बहुत उम्दा ग़ज़ल....
बधाई अखिलेश जी ...और आभार नीरज जी ..इसे सभी तक पहुँचाने के लिए ...!!
बहुत सुन्दर रचना. एक प्रतिभावान शायर से परिचय कराने का आभार!
ReplyDeleteउसकी सपनों वाली परियां मैं क्यूँ देख नहीं पाता
ReplyDeleteबच्चा हैराँ है मुझ पर मैं बच्चे की हैरानी पर
एक अछूता मंज़र मुझको छूकर गुज़रा था अब तो
पछताना है खुद में डूबे रहने की नादानी पर
हर पंक्ति लाजवाब ... अखिलेश जी की इस रचना प्रस्तुति के लिये आपका आभार ।
हर एक शेर लाजवाब है..
ReplyDeleteबहुत उम्दा गज़ल पढवाई है ..आभार
ReplyDeleteउसकी सपनों वाली परियां मैं क्यूँ देख नहीं पाता
ReplyDeleteबच्चा हैराँ है मुझ पर मैं बच्चे की हैरानी पर........................
खो गई पढ़ते हुए
वाह बहुत खूब ...अखिलेश जी को पढना सच में अच्छा लगा ...
anu
हँसना रोना पाना खोना मरना जीना पानी पर
ReplyDeleteपढ़िए तो क्या क्या लिक्खा है दरिया की पेशानी पर
नीरज जी ,शुरुआत में ही आह:और वाह.. निकाल दी ...अखिलेश जी नें ...बधाई !
खुश और स्वस्थ रहें !
शुभकामनायें!
सुन्दर रचना. अखिलेश जी को जाना. आभार.
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई |
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ||
आज 29 - 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
अखिलेश जी को पढना सच में अच्छा लगा .
ReplyDeletewakai bahut badhiyaa
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा गजल है .अखिलेशजी जी से परिचय करने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteरात जो आँखों में चमके जुगनू मैं उनका शाहिद हूँ
ReplyDeleteआप भले चर्चा करिए अब सूरज की ताबानी पर .
बहुत उम्दा गज़ल ...
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति। परिचय का आभार।
ReplyDeleteउसकी सपनों वाली परियां मैं क्यूँ देख नहीं पाता
ReplyDeleteबच्चा हैराँ है मुझ पर मैं बच्चे की हैरानी पर
सुभानाल्लाह.......दिल जीत लिए इस शेर ने.......वाह......वाह........कमाल
कई बार तो निशब्द कर देते हैं………हर शेर ज़िन्दगी को झकझोर जाता है…………पढवाने के लिये हार्दिक आभार्।
ReplyDeleteComment from Gurudev PRAN SHARMA JI received from ENGLAND:-
ReplyDeleteप्रिय नीरज जी ,
आपके ब्लॉग पर श्री अखिलेश की ग़ज़ल पढ़ी है.
अच्छी है . इसी ज़मीन पर कई साल पहले मेरी कही
ग़ज़ल भी है . मेरे ग़ज़ल संग्रह ` ग़ज़ल कहता हूँ ` में
है . पढ़िएगा . शायद पृष्ठ 41 पर है .
शुभ कामनाओं के साथ ,
प्राण शर्मा
शब्द विहीन करती हुई बहुत ही अच्छी गजल /सारे शेर ही लाजबाब हैं /इतने प्रतिवावान शायर की गजल पढवाने के लिए शुक्रिया आपका /बधाई आपको /
ReplyDeleteplease visit my blog.
www.prernaargal.blogspot.com
रात जो आँखों में चमके जुगनू मैं उनका शाहिद हूँ
ReplyDeleteआप भले चर्चा करिए अब सूरज की ताबानी पर
बहुत अच्छा ख्याल है , मुबारक हो
बहुत अच्छी गजल...हर शेर लाजवाब है ...धन्यवाद !
ReplyDeleteशुक्रिया....
ReplyDeleteComment received on e-mail from Sh.Om Prakash Sapra Ji:-
ReplyDeleteneeraj ji
"dariya ki peshani pe"
it is a very novel and unique imagination
and also an experiment,
congrats to u and shri akhilesh tiwari ji.- a good gazal, of course.
regds.
-om sapra, delhi-9
9818180932
सुब्ह,सवेरा दफ्तर,बीवी,बच्चे,महफ़िल,नींदें,रात
ReplyDeleteयार किसी को मुश्किल भी होती है इस आसानी पर
इसका बहुत बड़ा अर्थ है जी...
सुबह-सवेरा,दफ्तर,बीवी-बच्चे-महफ़िल,नींदें-रातें
यार बड़ी मुश्किल होती है मुझको इस आसानी पर
करोड़ो जिन्दगियां यहीं खत्म हो जाती हैं, जन्म जन्म भर आदमी यही करता है, दुनियां भर की समस्याएं पैदा करते हुए...उन्हें हल करते हुए..
अखिलेश जी की ग़ज़लों को पढना सुनना दोनों अच्छा लगा...... ऐसे नायब हीरे को सामने लेन का आपको हार्दिक शुक्रिया......!!! प्रतीक्षा है अगले अंक की.....!!
ReplyDeleteबहुत नाज़ुक और बेशकीमती शेर लिखा है यह.....
उसकी सपनों वाली परियां मैं क्यूँ देख नहीं पाता
बच्चा हैराँ है मुझ पर मैं बच्चे की हैरानी पर
वाह वाह!!!!!
एक अछूता मंज़र मुझको छूकर गुज़रा था अब तो
ReplyDeleteपछताना है खुद में डूबे रहने की नादानी पर
behtreen gajal , waah
अति लाजवाब रचना, परिचय के लिये आभार.
ReplyDeleteरामराम
उसकी सपनों वाली परियां मैं क्यूँ देख नहीं पाता
ReplyDeleteबच्चा हैराँ है मुझ पर मैं बच्चे की हैरानी पर
कितनी मासूमियत से कहा गया बेहतरीन शेर...
एक अछूता मंज़र मुझको छूकर गुज़रा था अब तो
पछताना है खुद में डूबे रहने की नादानी पर
बहुत उम्दा, अखिलेश जी के साथ साथ नीरज जी आपको भी मुबारकबाद.
लाज़वाब प्रस्तुति...परिचय करवाने के लिए आभार.
ReplyDeleteएक एक मिसरा नायाब है| ग़ज़ल पढ़ा तो पढ़ता ही चला गया| थेंक्यू सर जी अखिलेश भाई की एक और शानदार ग़ज़ल पढ़वाने के लिए|
ReplyDeleteवाह नीरज जी, अखिलेश जी की इस गज़ल के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteAkhilesh jee se parichay karvane ke liye dhanyvaad sabhee sher ek se bad kar ek hai.
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=0vJD6TzsmA0&feature=related
ise link ko suniye aur circulate karne me madad kariye .
dhanyvaad .
Comment received on e-mail from famous shayar janab Aalam Khurshiid Saheb:
ReplyDeleteनीरज भाई !
अखिलेश जी की ग़ज़ल पसंद आई .
उन्होंने सलीके से ग़ज़ल कही है. मेरी ओर से उन्हें बधाई !
आलम खुरशीद
एक अछूता मंज़र मुझको छूकर गुज़रा था अब तो
ReplyDeleteपछताना है खुद में डूबे रहने की नादानी पर
वाह,बेहतरीन ग़ज़ल..,आभार ..
बहुत उम्दा गज़ल
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया गज़ल.. एक प्रतिभावन शायर से मिलवाने के लिए शुक्रिया !!
ReplyDeleteमनोज
नीरज जी अखिलेश जी से परिचय करवाने का शुक्रिया ।
ReplyDeleteरात जो आँखों में चमके जुगनू मैं उनका शाहिद हूँ
आप भले चर्चा करिए अब सूरज की ताबानी पर
सुब्ह,सवेरा दफ्तर,बीवी,बच्चे,महफ़िल,नींदें,रात
यार किसी को मुश्किल भी होती है इस आसानी पर बहुत उम्दा ।
बहुत उम्दा ग़ज़ल....
ReplyDeleteअखिलेश जी की बेहतरीन ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें ।
ReplyDeleteबिल्कुल नया अंदाज नयी बानगी नये तसव्वुर और सब कुछ सामयिक..ताज़ा और ताजगी से भरपूर
ReplyDeleteआपकी पारखी निगाह और पेशकस को सलाम
आपके कमेन्टेटर्स को देखकर लगा कि
काश जो आपके हैं वो मेरे भी होते। आपकी खूबसूरत दुनिया को भी सलाम
सुब्ह,सवेरा दफ्तर,बीवी,बच्चे,महफ़िल,नींदें,रात
ReplyDeleteयार किसी को मुश्किल भी होती है इस आसानी पर
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल. अखिलेश जी के बारे में पहले भी पढ़वाया है आपने. वो पोस्ट भी बढ़िया और ये ग़ज़ल भी.
वाह वाह!! गज़ब...जरुर इनसे फोन पर चर्चा की जायेगी...आपका आभार.
ReplyDeleteComment received from Sh.Prakash Singh Arsh on fb:-
ReplyDeleteहाँ आपके ब्लोग पर मैं गया था और जनाब अखीलेश साब की शाईरी खूब पढी.. बहुत अछा लिखते हैं...
Comment received from Mr. Ankit Joshi on fb:-
ReplyDeleteनीरज जी, आप की हर पोस्ट पढता हूँ, मगर वहां हाज़िरी दर्ज करने का समय नहीं मिल पता, केवल अच्छा लगा जैसी छोटी टिप्पणी करने से अच्छा, ख़ामोशी से पढ़ कर गुज़र जाने में समझता हूँ. ख़ुद मैंने कितने महीने से अपने ब्लॉग पे लिखने की फुर्सत नहीं निकाल पा रहा हूँ. अखिलेश जी की अभी वाली ग़ज़ल भी पढ़ चुका हूँ और पहले वाली भी पढ़ी हैं. बहुत अच्छा लिखते हैं."
अखिलेश जी की इस नायाब गज़ल को पढ़ के मज़ा आ गया ... दिल करता है ऐसे शायर का हाथ चूम लूं ... बहुत ही लाजवाब शेर हैं सभी ... आपका शुक्रिया नीरज जी इस तोहफे के लिए ...
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