Monday, July 11, 2011

उधर आंख कुछ भी छुपाती नहीं है



इधर ये जुबां कुछ बताती नहीं है
उधर आंख कुछ भी छुपाती नहीं है

पता है रिहाई की दुश्वारियां पर
ये क़ैदे क़फ़स भी तो भाती नहीं है

कमी रह गयी होगी कुछ तो कशिश में
सदा लौट कर यूँ ही आती नहीं है

मुझे रास वीरानियाँ आ गयी हैं
तिरी याद भी अब सताती नहीं है

ख़फा है महरबान है कौन जाने
हवा जब दिये को बुझाती नहीं है

रिआया समझदार होने लगी अब
अदा हुक्मरां की लुभाती नहीं है

अगर हो गए सोच में आप बूढ़े
तो बारिश बदन को जलाती नहीं है

गुमाँ प्यार का हो रहा तब से 'नीरज'
कसम जब से मेरी वो खाती नहीं है


(ये ग़ज़ल गुरुदेव पंकज सुबीर जी की मेहरबानी से हुई है )

61 comments:

  1. गुमाँ प्यार का हो रहा तब से 'नीरज'

    कसम जब से मेरी वो खाती नहीं है

    ...खूबसूरत गजल..मन को छू गई..बधाई.

    _______________
    शब्द-शिखर / विश्व जनसंख्या दिवस : बेटियों की टूटती 'आस्था'

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  2. पता है रिहाई की दुश्वारियां पर


    ये क़ैदे क़फ़स भी तो भाती नहीं है






    कमी रह गयी होगी कुछ तो कशिश में


    सदा लौट कर यूँ ही आती नहीं है

    Adbhud abhivyakti Neeraj jee.Kayal aur ghayal kar diya aapne.
    -Saurabh.

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  3. बहुत सुन्दर ग़ज़ल. हमेशा की तरह. ये शेर बड़े अनोखे बन पड़े हैं;

    मुझे रास वीरानियाँ आ गयी हैं
    तिरी याद भी अब सताती नहीं है

    रिआया समझदार होने लगी अब
    अदा हुक्मरां की लुभाती नहीं है

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  4. इधर ये जुबां कुछ बताती नहीं है
    उधर आंख कुछ भी छुपाती नहीं है

    हायेऽऽ… ये मज़बूरियां :)

    आदरणीय भाईसाहब नीरज जी
    सादर प्रणाम !

    आपका भी जवाब नहीं … क्या लिखते हैं !

    हर शे'र कलेजा थामने पर मज़बूर कर देता है पढ़ने वाले को ।

    अगर हो गए सोच में आप बूढ़े
    तो बारिश बदन को जलाती नहीं है
    हुऽऽम्म… !
    बम्बई की जब चाहे तब होने वाली बारिश आपको बहुत जलाती है यह तो सर्वविदित बात है … :))

    गुमां प्यार का हो रहा तब से 'नीरज'
    कसम जब से मेरी वो खाती नहीं है

    प्यारे मक़्ते के साथ पूरी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद !

    हार्दिक मंगलकामनाओं सहित

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  5. lovely..
    maza aa gaya padh k

    Last 4 lines were amazing !!

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  6. कमी रह गयी होगी कुछ तो कशिश में
    सदा लौट कर यूँ ही आती नहीं है
    waah...sach hai

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  7. खूबसूरत ग़ज़ल.. बहुत सुन्दर...

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  8. मुझे रास वीरानियाँ आ गयी हैं
    तिरी याद भी अब सताती नहीं है

    ....waah waah waah !!!

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  9. इधर ये जुबां कुछ बताती नहीं है
    उधर आंख कुछ भी छुपाती नहीं है


    गुमाँ प्यार का हो रहा तब से 'नीरज'
    कसम जब से मेरी वो खाती नहीं है


    जवाब नहीं , बहुत-बहुत-बहुत-बहुत-बहुत सुन्दर ग़ज़ल..

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  10. ख़फा है महरबान है कौन जाने
    हवा जब दिये को बुझाती नहीं है

    रिआया समझदार होने लगी अब
    अदा हुक्मरां की लुभाती नहीं है

    bahut sunder ...

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  11. बहुत ही उम्दा और खूबसूरत ग़ज़ल...
    कहने को बहुत कुछ है मगर ,
    इस ग़ज़ल की खुमारी जाती नही है|
    नीरज जी,
    बधाई और शुभकामनायें!

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  12. अहा, बस यही निकलता है पढ़ने के बाद।

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  13. आदरणीय नीरज गोस्वामीजी
    इधर ये जुबां कुछ बताती नहीं है
    उधर आंख कुछ भी छुपाती नहीं है

    पता है रिहाई की दुश्वारियां पर
    ये क़ैदे क़फ़स भी तो भाती नहीं है

    बहुत खूबसूरत गजल.

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  14. यिआआआ, ये हुई न बात| तभी मैं कहूँ पिछले शनिवार को हुज़ूरेआला के मिज़ाज बदले बदले क्यूँ लग रहे थे| नीरज जी क्या ग़ज़ल पेश की है आपने| भई वाह, मज़ा आ गया| काफ़ियों को ढूंढ ढूंढ कर, उन्हें तराश तराश कर, क्या खूब उकेरा है शब्द चित्रों के माध्यम से| ग़ज़ल अपने लब्बोलुआब के ज़रिये पहले से सीधे आख़िरी शेर तक बेरोकटोक ले जाती है| अब तो हम यही कहेंगे :-

    इसे पढ़ के भैया जलन हो रही है|
    ग़ज़ल हमसे ऐसी क्यूँ आती नहीं है||
    :)))))))))))))))))

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  15. अगर हो गए सोच में आप बूढ़े
    तो बारिश बदन को जलाती नहीं है


    बहुत खूबसूरत गज़ल ..

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  16. इधर ये जुबां कुछ बताती नहीं है
    उधर आंख कुछ भी छुपाती नहीं है
    अगर हो गए सोच में आप बूढ़े
    तो बारिश बदन को जलाती नहीं है

    गुमाँ प्यार का हो रहा तब से 'नीरज'
    कसम जब से मेरी वो खाती नहीं है

    गज़ब कर दिया नीरज जी…………हर शेर का भाव शानदार है……………और पूरी गज़ल तो सुभान अल्लाह!

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  17. "अगर हो गए सोच में आप बूढ़े
    तो बारिश बदन को जलाती नहीं है"

    एक सेर तो अगला सवा सेर - वाह

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  18. अगर हो गए सोच में आप बूढ़े
    तो बारिश बदन को जलाती नहीं है
    क्या बात कही है | खुदा शायर की सोच को सदा जवान रखे ताकि वो ऐसे ही फड़कते शेर लिखता रहे| बहुत बहुत मुबारकवाद |

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  19. सुभानाल्लाह हर एक शेर शानदार है ....दाद कबूल करे|

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  20. बेहतरीन ग़ज़ल।
    थमकर एक-एक शे’र कई-कई बार पढ़े तब जाकर मन भरा।

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  21. ACHCHHEE GAZAL KE LIYE AAPKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .

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  22. इधर ये जुबां कुछ बताती नहीं है
    उधर आंख कुछ भी छुपाती नहीं है

    पता है रिहाई की दुश्वारियां पर
    ये क़ैदे क़फ़स भी तो भाती नहीं है

    कमी रह गयी होगी कुछ तो कशिश में
    सदा लौट कर यूँ ही आती नहीं है
    नीरज जी,
    क्या कहें,हर शेर लाजवाब ! मतला कमाल का है !
    मुबारक हो इतनी बेहतरीन ग़ज़ल के लिए !

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  23. इधर ये जुबां कुछ बताती नहीं है
    उधर आंख कुछ भी छुपाती नहीं है
    इन पंक्तियों के लिये बधाई स्‍वीकारें ...नि:शब्‍द कर दिया इन्‍होंने तो ।

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  24. सुन्दर ग़ज़ल. हमेशा की तरह
    हर शेर शानदार है

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  25.  अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  26. ग़ज़ल पूरी की पूरी शानदार, ईमानदार, जानदार, लेकिन बारिश में:
    अगर हो गए सोच में आप बूढ़े
    तो बारिश बदन को जलाती नहीं है
    की बात ही कुछ और है।
    अपुन की तो बचपन से ही कुछ ऐसी ही हालत है।

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  27. इधर ये जुबां कुछ बताती नहीं है
    उधर आंख कुछ भी छुपाती नहीं है

    यही अपने आप में सम्पूर्ण ग़ज़ल है .

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  28. बहुत खूब लिखा आपने.... मुझे रास वीरानियाँ आ गयी हैं
    तिरी याद भी अब सताती नहीं है................वीरानियो का संगीत ...वो सिर्फ सुना दिल ही सुन सकता है

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  29. रिआया समझदार होने लगी अब
    अदा हुक्मरां की लुभाती नहीं है

    क्या बात है.एकदम सच्ची! ग़ज़ल किनकी है.अत्यंत प्रभावी पोस्ट!
    हमज़बान की नयी पोस्ट मेन इटर बन गया शिवभक्त फुर्सत हो तो पढें

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  30. "गुमाँ प्यार का हो रहा तब से 'नीरज'
    कसम जब से मेरी वो खाती नहीं है"

    छा गये उस्तादजी।

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  31. ख़फा है महरबान है कौन जाने
    हवा जब दिये को बुझाती नहीं है
    क्या खूब अंदाज़ है...ग़ज़ल का बेहतरीन शेर है नीरज जी...
    हर शेर बहुत उम्दा.

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  32. मतले से ही समां बंधने लगा था बड़े भाई! और मकते तक आते आते तो बस जान ही निकाल दी!!हुक्मरानों को भी नहीं बख्शा, और सोच का बुढापा, कसमें खाना.. बस छा गए!!

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  33. चाहूँ कुछ कहना आपकी शाइरी पर
    पर मीठे शब्दों की थाती नहीं है.
    मजबूरी में ही अब ये कहना पड़ेगा
    ग़ज़ल आपकी ये गुर्राती नहीं है.

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  34. नीरज जी ,
    हर शेर पर बस वाह ही निकला दिल से.... किसको चुनूँ किसको छोडूं ..

    बहुत गहरे भाव लिए हैं आपके अशआर ..बेहद उम्दा गज़ल.. मन खुश हो गया पढ़ कर

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  35. एक बार फिर इतनी प्‍यारी गजल पढवाई, शुक्रिया।

    ------
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  36. बहुत सुन्दर! पूरी गज़ल ही लाजवाब रही पर न जाने क्यों, निम्न पद थोडा सा ऑउट ऑफ प्लेस लगा
    अगर हो गए सोच में आप बूढ़े
    तो बारिश बदन को जलाती नहीं है

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  37. रिआया समझदार होने लगी अब
    अदा हुक्मरां की लुभाती नहीं है

    अगर हो गए सोच में आप बूढ़े
    तो बारिश बदन को जलाती नहीं है

    नीरज जी एक एक शेर कमाल का है ।
    बहुत सुंदर गज़ल

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  38. रिआया समझदार होने लगी अब
    अदा हुक्मरां की लुभाती नहीं है

    उम्दा शेर...लाजवाब....

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  39. भाई नीरज जी बहुत ही सुंदर गजल बधाई और शुभकामनायें |

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  40. हर पंक्ति लाजवाब है !
    इधर ये जुबां कुछ बताती नहीं है
    उधर आँख कुछ भी छुपाती नहीं है !
    बहुत सुंदर भाव !
    आभार मेरे ब्लॉग पर आने के लिये !

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  41. मुझे रास वीरानियाँ आ गयी हैं
    तिरी याद भी अब सताती नहीं है...

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  42. सभी शेर लाजवाब.बहुत प्यारी ग़ज़ल है,नीरज जी.
    और ये शेर:-

    गुमाँ प्यार का हो रहा तब से 'नीरज'
    कसम जब से मेरी वो खाती नहीं है.

    अहा,क्या कहने.
    वाक़ई मज़ा आ गया.

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  43. bahut achchhi gazal. har sher lajvaab !shubhkamnayen !

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  44. सामयिक परिस्थितियों का भी अक्स है इस ग़ज़ल में.


    अंबेडकर और गाँधी

    ReplyDelete
  45. अंतिम चार पंक्तियाँ बेजोड़!

    अगर हो गए सोच में आप बूढ़े
    तो बारिश बदन को जलाती नहीं है

    गुमाँ प्यार का हो रहा तब से 'नीरज'
    कसम जब से मेरी वो खाती नहीं है

    परवरिश पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
    आभार

    ReplyDelete
  46. सुभानाल्लाह .......!!

    कहाँ से लाते हैं ऐसे ख्याल .......
    वैसे ये आँखें हैं किसकी ......:)

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  47. अगर हो गए सोच में आप बूढ़े
    तो बारिश बदन को जलाती नहीं है ...

    नीरज जी ... हम तो आपकी गलों की प्रतीक्षा करते हैं ... हर बार कुछ चोकाने वाला जो देते अहिं आप ... इस लाजवाब गज़ल के बारे में क्या कहूँ ... बहुत ही लाजवाब ... बेहतरीन ... रोज मर्रा के शब्दों से उठाई हुयी गज़ल है ... और ये शेर तो कब से गुनगुना रहा हूँ ... ताकि सोच में बूढा न हो जाऊं ...

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  48. पता है रिहाई की दुश्वारियां पर
    ये क़ैदे क़फ़स भी तो भाती नहीं है
    subhanalaah!

    ye sher hamara hua....

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  49. हर शेर बहुत भावपूर्ण है ..सुन्दर रचना..

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  50. बेहतरीन लिखा है आपने ।

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  51. आपकी गजल इतनी खूबसूरत होती हैं कि कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं होती...
    वाह...वाह..वाह...

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  52. आदरणीय नीरज गोस्वामीजी
    इधर ये जुबां कुछ बताती नहीं है
    उधर आंख कुछ भी छुपाती नहीं है
    पता है रिहाई की दुश्वारियां पर
    ये क़ैदे क़फ़स भी तो भाती नहीं है
    बहुत खूबसूरत गजल.

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  53. बहुत ही बेहतरीन गजल.......वाकई मजा आ गया...धन्यवाद.

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  54. गुमाँ प्यार का हो रहा तब से 'नीरज'
    कसम जब से मेरी वो खाती नहीं है

    adbhut panktiyan hain... waise saare sher dilkash hain....
    Aakarshan

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  55. बहुत बोलती है तुम्हारी ये आंखें,
    ज़रा इन आंखों पे पर्दे गिरा दो...
    मुझे छू रही हैं तेरी नर्म सांसें.
    मेरे रात दिन महकने लगे हैं...

    जय हिंद...

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  56. पता है रिहाई की दुश्वारियां पर
    ये क़ैदे क़फ़स भी तो भाती नहीं है


    -वाह!!!

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  57. बेहद ख़ूबसूरत मतला है नीरज जी ,

    ख़फा है महरबान है कौन जाने
    हवा जब दिये को बुझाती नहीं है
    कमाल के अश’आर बेहद आसान अल्फ़ाज़ में कहना आप की ही ख़ुसूसियत है

    बहुत ख़ूब !!

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे