Monday, March 7, 2011

किताबों की दुनिया - 47

दोस्तों किताबों की दुनिया की पिछली श्रृंखला में मैंने आपको एक अलमस्त शायर से मिलवाया था. इस बार भी आपकी मुलाकात ऐसे ही एक शायर से करवाता हूँ जो आत्म स्तुति और चमचों की भीड़ भाड़ से कोसों दूर साहित्य साधना में लगा हुआ है. शायर हैं जनाब "सजीवन मयंक" जी जिनकी ग़ज़लों के संकलन "दिन अभी ढला नहीं" का जिक्र हम आज किताबों की दुनिया श्रृंखला में करने जा रहे हैं.


घर से गए जो एक बार आज के बच्चे
वापिस वो ज़िन्दगी में दुबारा न घर गए

समझा के थक गए तो स्वयं मौन हो गए
कहने लगे बच्चे कि पापा सुधर गए

फुर्सत नहीं मरने की बहुत काम है बाकी
फुर्सत मिली तो ऐसी कि फुर्सत में मर गए

बोलचाल की भाषा में वज़नदार शेर कहना सजीवन साहब की खूबी है. सादा सादा लफ़्ज़ों से सजी संवरी ग़ज़लों में ज़िन्दगी के रंग भर देने की कलाकारी सजीवन मयंक को खूब आती है. आज की ग़ज़लों को विषयों का टोटा नहीं है इसीलिए मयंक जैसे पारखी शायर बंधी बंधाई लीक पर न चलते हुए नए नए विषय अपने अशआरों में पिरोते हैं.

जिस कुएं में आज डूबे जा रहे हैं हम
वो हमारे ही पसीने से बना है

ठोकरों से सरक सकता है हिमालय
जो अपाहिज हैं ये उनकी कल्पना है

खोल दो पिंजरा मगर उड़ न सकेगा
कई वर्षों से ये पंछी अनमना है

इस किताब की भूमिका में श्री मोहन वर्मा जी ने बहुत सच्ची बात मयंक जी के लिए कही है " मयंक शायरी में अरूज़, बहर, शेर मिसरा काफिया रदीफ़, मतला-ओ-मकता और खास तौर से शेर के वज्न को ख्याल रखते हुए शायरी करते हैं. शायरी में वज्न, फूल में खुशबू और जिस्म में जान की तरह होता है और इस लिहाज़ से ये शर्तिया कहा जा सकता है कि सजीवन मयंक की शायरी जानकार की शायरी है." तल्ख़ सच्ची बातों को व्यंग का जामा पहनना आसान नहीं होता, खास तौर पर शायरी में.इसीलिए देखा गया है के अक्सर शायरी में तंज़ बहुत कम देखने को मिलता है. सजीवन मयंक ने लेकिन इस विधा पर भी शेर कहे हैं और क्या खूब कहे हैं:-

गीता रामायण की बातें किसे भली अब लगती हैं
अब तो हर जुबान से सुन लो चलती क्या खंडाला है

सोच समझकर बात करो अब राहों में भिखमंगों से
वरना तुम को समझा देगा वो भी इज्ज़त वाला है

नर्मदा के किनारे बसे होशंगाबाद, मध्य प्रदेश, निवासी सजीवन जी ने एम्.एस.सी.(रसायन शास्त्र ) और हिंदी विशारद करने के बाद शिक्षण कार्य किया और आचार्य के पद से सेवा निवृत हुए. सजीवन जी पिछले पचास वर्षों से निरंतर लिख रहे हैं और उनकी अब तक चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. ग़ज़ल लेखन के लिए उन्हें सन 2006 में शिव संकल्प साहित्य परिषद् द्वारा ग़ज़ल गौरव सम्मान भी मिल चुका है. आपकी रचनाएँ भारत की लगभग सभी महत्व पूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती हैं. पाठक सजीवन जी से प्रेम करते हैं क्यूँ की उनकी ग़ज़लों में हम सब की दास्ताँ जो छुपी होती है:

अपनों से कुछ भी कह पाना मुश्किल होता है
कोई बिगड़ी बात बनाना मुश्किल होता है

नहीं चाहता अपने दुःख को अपनों में बांटू
पर चेहरे का भाव छुपाना मुश्किल होता है


कैसे कह दूं आज मेरे घर कोई नहीं आया
तेरी खुशबू को झुठलाना मुश्किल होता है

"दिन अभी ढला नहीं" को मयंक प्रकाशन नरसिंह गली होशंगाबाद ने प्रकाशित किया है. इस किताब में मयंक जी की लगभग नब्बे ग़ज़लें संगृहीत हैं और सभी ग़ज़लें दिल को छूती हैं. आप सजीवन से उनके मोबाईल 9425043627 पर संपर्क करके अथवा उन्हें sajeevanmayank@rediffmail.com पर मेल से निवेदन करके ये अद्भुत किताब मंगवा सकते हैं.

बदली न जा सके कोई आदत नहीं होती
कमज़ोर दीवारों पर कोई छत नहीं होती

दौलत के पीछे भागते न ज़िन्दगी गुज़ार
दिल के सुकून से बड़ी दौलत नहीं होती


सब जानते हैं फिर भी कोई मानता नहीं
दो गज ज़मीन से अधिक जरूरत नहीं होती

मुझे लगता है के हमको ऐसे साहित्य आराधक की प्रशंशा में कंजूसी नहीं करनी चाहिए जो नाम और दाम के पीछे न भागते हुए सच्चे मन से साहित्य को समृद्ध कर रहा है. इसलिए आपसे उम्मीद करता हूँ के आप कमसे कम सजीवन को फोन पर इस किताब और और इसमें छपी ग़ज़लों के लिए बधाई तो देगें ही, किताब मंगवाएं न मंगवाएं ये आपकी मर्ज़ी है. चलते चलते इसी किताब की एक ग़ज़ल के चंद शेर और पढवाए देता हूँ और निकलता हूँ अगली किताब की तलाश में:

यहाँ ज़िन्दगी है सरकस सी केवल खेल तमाशा है
सच पूछो तो सभी हवा में लटक रहे हैं बाबूजी

सर पर लटक रहीं तलवारें केवल कच्चे धागों से
कितनी बेफिक्री से हम सब मटक रहे हैं बाबूजी

जीने का अधिकार हमें है मरने पर है पाबन्दी
इसीलिए बहुतेरे मुर्दे भटक रहे हैं बाबूजी

35 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर और रोचक लगी | आपकी हर पोस्ट
    आप मेरे ब्लॉग पे भी आये |
    मैं अपने ब्लॉग का लिंक दे रहा हु
    http://vangaydinesh.blogspot.com/

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  2. नहीं चाहता अपने दुःख को अपनों में बांटू
    पर चेहरे का भाव छुपाना मुश्किल होता है

    कैसे कह दूं आज मेरे घर कोई नहीं आया
    तेरी खुशबू को झुठलाना मुश्किल होता है
    बहुत खूब ...हर पंक्ति लाजवाब ...।

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  3. सोच समझकर बात करो अब राहों में भिखमंगों से
    वरना तुम को समझा देगा वो भी इज्ज़त वाला है
    sajivan mayank ji ko yahan prastut karke achha kiya

    सब जानते हैं फिर भी कोई मानता नहीं
    दो गज ज़मीन से अधिक जरूरत नहीं होती
    waah

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  4. सजीवन मंयक जी की चर्चा करके आपने पुराने दिन याद दिला दिए। होशंगाबाद में हमने उन्‍हें नजदीक से देखा और सुना है। कुछ काव्‍य गोष्ठियों में साथ बैठने का मौका भी मिला।
    नमर्दा के पानी की तरह साफ साफ बात कहता लेखन है उनका।

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  5. धन्यवाद्

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  6. सोच समझकर बात करो अब राहों में भिखमंगों से
    वरना तुम को समझा देगा वो भी इज्ज़त वाला है
    बहुत सुंदर
    सजीवन जी से परिचय का आभार .....

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  7. घर से गए जो एक बार आज के बच्चे
    वापिस वो ज़िन्दगी में दुबारा न घर गए

    फुर्सत नहीं मरने की बहुत काम है बाकी
    फुर्सत मिली तो ऐसी कि फुर्सत में मर गए

    बहुत खूब्……………हर शेर लाजवाब्।

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  8. नीरज जी,

    आपका आभार सजीवन जी से परिचय करवाने का......ये शेर मुझे बहुत पसंद आया......कितना दर्द, कितनी बेबसी छुपी है इस शेर में.....वाह....वाह....

    समझा के थक गए तो स्वयं मौन हो गए
    कहने लगे बच्चे कि पापा सुधर गए

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  9. सबसे पहले तो 'पापा सुधर गए' वाला शेर मस्त है |

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  10. नीरज जी
    प्रणाम !
    --
    घर से गए जो एक बार आज के बच्चे
    वापिस वो ज़िन्दगी में दुबारा न घर गए

    फुर्सत नहीं मरने की बहुत काम है बाकी
    फुर्सत मिली तो ऐसी कि फुर्सत में मर गए

    बहुत खूब्!…हर शेर लाजवाब्।
    सजीवन जी से परिचय का आभार !

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  11. आम बोलचाल के भाषा में इतने प्रभावशाली ग़ज़ल/शेर.. विलक्षण प्रतिभा है मयंक जी में... किताब के लिए निवेदन कर दिया है... नीरज जी आज एक और बेहतरीन किताब ले के आप आये हैं !

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  12. इस किताब के बारे में जानकारी देने के लिए धन्यवाद्। एक एक शेर लाजवाब है।

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  13. खोल दो पिंजरा मगर उड़ न सकेगा
    कई वर्षों से ये पंछी अनमना है
    hame to sher bahut pasand aaya ...

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  14. बहुत आभार आपका.

    रामराम.

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  15. घर से गए जो एक बार आज के बच्चे
    वापिस वो ज़िन्दगी में दुबारा न घर गए


    सब जानते हैं फिर भी कोई मानता नहीं
    दो गज ज़मीन से अधिक जरूरत नहीं होती...

    हरेक शेर लाज़वाब...पुस्तक और रचनाकार से परिचय कराने के लिये आभार..

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  16. जल्दी ही सजीवन जी से मुलाकात होती है होशंगाबाद में और रु-ब-रु सुनते हैं उनकी शायरी!
    आप तैयार रहे!

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  17. समझा के थक गए तो स्वयं मौन हो गए
    कहने लगे बच्चे कि पापा सुधर गए

    बदले ज़माने का कड़वा सच ।

    सोच समझकर बात करो अब राहों में भिखमंगों से
    वरना तुम को समझा देगा वो भी इज्ज़त वाला है

    आजकल तो भिखारी ही इज्ज़तवाले हैं ।

    सब जानते हैं फिर भी कोई मानता नहीं
    दो गज ज़मीन से अधिक जरूरत नहीं होती

    यही एक समझ है जो किसी के समझ नहीं आती ।
    आभार इन सीधे सादे शायर से मुलाकात करवाने का ।

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  18. इस सुंदर रचना को हम तक पहुचाने के लिये आप का धन्यवाद

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  19. Comment received through e-mail:-


    समझा के थक गए तो स्वयं मौन हो गए
    कहने लगे बच्चे कि पापा सुधर गए

    kuchh un hi ham bhi ab sudhar gaye hain....................

    hardik aabhar hai जनाब "सजीवन मयंक" जी जिनकी ग़ज़लों se ru-ba-ru karane ka.

    chandra mohan gupta

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  20. बेहतर रचनाएं पढ़वाने के लि‍ये धन्‍यवाद।

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  21. सच कहा है नीरज जी इतने लाजवाब शेरो की तारीफ़ में कोई कंजूसी हो भी नहीं सकती ...
    मयंक जी ने कमाल किया है इन शेरोन में ... सभी नगीने हैं ... और आपने कुछ नगीनों को गुलदस्ते की तरह पेश किया है ... जो बहुत ही कमाल का है ..

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  22. एक उम्दा शायर के लाजवाब शायरी से परिचय कराने के लिए आपका शुक्रिया ! बहुत बढ़िया पंक्तियाँ है ...

    फुर्सत नहीं मरने की बहुत काम है बाकी
    फुर्सत मिली तो ऐसी कि फुर्सत में मर गए

    सोच समझकर बात करो अब राहों में भिखमंगों से
    वरना तुम को समझा देगा वो भी इज्ज़त वाला है

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  23. जीने का अधिकार हमें है मरने पर है पाबन्दी
    इसीलिए बहुतेरे मुर्दे भटक रहे हैं बाबूजी

    क्या खूब लिखते हैं सजीवन जी. मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ कि हमें ऐसे साहित्य आराधक की प्रशंसा में कंजूसी नहीं करनी चाहिए.

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  24. भाई नीरज जी बहुत उम्दा शायर और शायरी से आपने परिचय कराया बधाई |एक बार डॉ० जमीर अहसन को पढ़ने का कष्ट दूँगा इस शायर ने उर्दू में रामचरित मानस का अनुवाद किया है |छान्दसिक अनुगायन पर इस शायर की तीन गज़लें हैं ......

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  25. अच्छा लगा पढ़कर यह समीक्षा...

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  26. सुन्दर और रोचक,धन्‍यवाद।

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  27. जीवन के रंग बिरंगे सत्यों को इतनी काव्यमयी भाव से प्रस्तुत किया। बहुत सुन्दर। परिचय का आभार।

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  28. उत्सुकता जाग गयी सलिल जी पुस्तक के लिए.

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  29. अच्‍छी रचना।
    बेहतर सीख।
    ' दौलत के पीछे भागते न ज़िन्दगी गुज़ार
    दिल के सुकून से बड़ी दौलत नहीं होती'

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  30. घर से गए जो एक बार आज के बच्चे
    वापिस वो ज़िन्दगी में दुबारा न घर गए

    समझा के थक गए तो स्वयं मौन हो गए
    कहने लगे बच्चे कि पापा सुधर गए

    lajabab....wah....

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  31. "सजीवन मयंक"जी को पुस्तक की तथा समीक्षा की बधाई.

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  32. सजीवन मयंक जी को पढ़ना अच्छा लगा |
    नीरजजी
    अगर आप मेल से अपना पता भेज सके तो मुझे अपना काव्य संग्रह "शब्द भाव "आप तक पहुंचाने में ख़ुशी होगी |
    धन्यवाद

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  33. मजा आ गया नीरज साहब, मयंक जी से परिचय करवाकर हम सब पर उपकार किया है आपने।
    सभी शेर एक से एक शानदार।

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  34. हमेशा की तरह सुन्दर समीक्षा। संजीवन मंयक जी का परिचय करवाने के लिये धन्यवाद।

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  35. समझा के थक गए तो स्वयं मौन हो गए
    कहने लगे बच्चे कि पापा सुधर गए

    कोई इतना अच्छा शेर भी कह सकता है, आज यकीन हुआ ............ गजब !!!

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे