फोटो: गूगल साभार
(दोस्तों पेश है एक और छोटी बहर की गज़ल)
बिन डरे सच कहें किस तरह
सीखिये आइनों से हुनर
(दोस्तों पेश है एक और छोटी बहर की गज़ल)
दूरियां मत बढ़ा इस कदर
दूँ सदाएं तो हों बेअसर
सोच मत, ठान ले, कर गुज़र
जिंदगी है बडी मुख़्तसर
याद तेरी हमें आ गयी
मुस्कुराए, हुई ऑंख तर
बिन डरे सच कहें किस तरह
सीखिये आइनों से हुनर
गर सभी के रहें सुर अलग
टूटने से बचेगा न घर
राह, मंजिल हुई उस घड़ी
तुम हुए जिस घड़ी हमसफ़र
घर जला कर मेरा झूमते
दोस्तों की तरह ये शरर
हैं सभी पास “नीरज” कहाँ
वो जिसे ढूंढती है नज़र
मुख़्तसर: छोटी, शरर: चिंगारियां ,
दूरियां मत बढ़ा इस कदर
ReplyDeleteदूँ सदाएं तो हों बेअसर
neeraj ji
is sher ko kayi baaer padh liya hai , aaj subah subah aap na jaane mujhe kahan lekar chale gaye ....
kya kahun...
aaj is akele sher par main apni kavitao ko kurbaan karta hoon,
mera naman aapki lekhni ko ..
aapka
vijay
आपकी हर ग़ज़ल एकदम A1 होती है ! मज़ा आ गया पढकर ... लाजवाब !
ReplyDeleteसोच मत, ठान ले, कर गुज़र
ReplyDeleteजिंदगी है बडी मुख़्तसर
कमाल है नीरज जी,,,,
छोटी बहर में बड़ी तालीम देने का फ़न तो कोई आपसे सीखे
याद तेरी हमें आ गयी
मुस्कुराए, हुई ऑंख तर
मुस्कुराए...और आंख तर???
क्या तकरार है वाह
गर सभी के रहें सुर अलग
टूटने से बचेगा न घर
एक सूत्र में बांधने का मूलमंत्र दिया है आपने.
हर शेर बेहतरीन है.
वहुत खूब ,
ReplyDeleteअच्छा लिखते है आप
कविता कहने का अंदाज़ पसंद आया !
नीरज जी,
ReplyDeleteवाह..वाह....बहुत खुबसूरत छोटी बहार की ग़ज़ल की अपनी खूबसूरती होती है जिसे आपने बखूबी पेश किया है...सुभानाल्लाह.....ये शेर बहुत पसंद आये.....
दूरियां मत बढ़ा इस कदर
दूँ सदाएं तो हों बेअसर
सोच मत, ठान ले, कर गुज़र
जिंदगी है बडी मुख़्तसर
बिन डरे सच कहें किस तरह
सीखिये आइनों से हुनर
गर सभी के रहें सुर अलग
टूटने से बचेगा न घर
bahut khoob...
ReplyDeleteraat bhar jagta main raha
apni aankho mein leke sahar ..
दूरियां मत बढ़ा इस कदर,
ReplyDeleteदूँ सदाएं तो हों बेअसर।
सोच मत ठान ले कर गुज़र,
जिंदगी है बडी मुख़्तसर।
नीरज जी,
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है
सभी शे‘र एक से बढ़कर एक हैं
wahwa........shandaar bhai ji...wah
ReplyDeleteदूरियां मत बढ़ा इस कदर,
ReplyDeleteदूँ सदाएं तो हों बेअसर।
सोच मत ठान ले कर गुज़र,
जिंदगी है बडी मुख़्तसर।
बिन डरे सच कहें किस तरह
सीखिये आइनों से हुनर|
दो तीन शेर काफी असरदार लगे
याद तेरी हमें आ गयी
ReplyDeleteमुस्कुराए, हुई आँख तर
गर सभी के रहें सुर अलग
टूटने से बचेगा न घर
हैं सभी पास “नीरज” कहाँ
वो जिसे ढूंढती है नज़र
Excellent again Sir!! Maza aa gaya. Monday means neeraj jee ki gajal or tabsira.. (book review).
बेहतरीन ग़ज़ल..... हर शेर बेमिसाल है|
ReplyDeleteAapne to gagar mein sagar bhar diya
ReplyDeletehai. khoob ! Bahut khoob !!
सारी दुनिया शोर मचा रही है कि जंगलों में शेरों की संख्या कम हो रही है, यहॉं आकर कारण देख ले, शेर इस तरह सधने लगे तो जंगलों में कहॉं बचेंगे।
ReplyDeleteमत्ले और मक्ते के बीच बँधा हर शेर खूबसूरत लग रहा है। बहुत खूबसूरत ग़ज़ल।
ज़िन्दगी की तल्ख सच्चाइयों से रु-ब-रु करवाति बेहद उम्दा गज़ल्।
ReplyDeleteघर जला कर मेरा झूमते
ReplyDeleteदोस्तों की तरह ये शरर
हैं सभी पास “नीरज” कहाँ
वो जिसे ढूंढती है नज़र
...बहुत खूब जी !!
_________________
'शब्द-शिखर' पर पढ़िए भारत की प्रथम महिला बैरिस्टर के बारे में...
बिन डरे सच कहें किस तरह
ReplyDeleteसीखिये आइनों से हुनर ...
gazal ke baare me jyada nahi jaanta lekin padh kar bahut achha laga.. khas taur par yah sher... bahut sundar !
पसंद आई।
ReplyDeleteघर जला कर मेरा झूमते
ReplyDeleteदोस्तों की तरह ये शरर
behad khubsurat sher hua hai ye.... :)
हैं सभी पास “नीरज” कहाँ
ReplyDeleteवो जिसे ढूंढती है नज़र
माशाल्लाह जबाब नहीं.
घर जला कर मेरा झूमते
ReplyDeleteदोस्तों की तरह ये शरर
बहत खूबसूरत ग़ज़ल. हर एक शेर बेमिसाल.
नीरज साहब,
ReplyDeleteहम तो फ़िर फ़िर कर वहीं पहली पंक्ति पर पहुंच रहे हैं,
"दूरियां मत बढ़ा इस कदर
दूँ सदाएं तो हों बेअसर"
बहुत अच्छी गज़ल लगी।
दूरियां मत बढ़ा इस कदर
ReplyDeleteदूँ सदाएं तो हों बेअसर
बहुत उम्दा नीरज जी,
सोच मत, ठान ले, कर गुज़र
जिंदगी है बडी मुख़्तसर
वाक़ई वक़्त तो हाथ से रेत की तरह फिसल ही जाता है
याद तेरी हमें आ गयी
मुस्कुराए, हुई ऑंख तर
क्या बात है !सुबहान अल्लाह !
बड़ा ही ज़बर्दस्त मुताले’आ है इंसानी ज़हन ओ दिल
छोटे बहर की बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल
मुबारक हो
नीरज जी, अब आपकी ग़ज़ल के लिए बेहतर, बेहतरीनऔर ख़ूबसूरत जैसे लफ्ज़ बौने नज़र आते हैं...बहर छोटी भले हो पर मानी इतने बुलंद हैं कि बस सब कुछ उसमें सिमटा दिखाई देता है. एक खासियत और जो मुझको मुतासिर कर गयी वो ये कि सारे अशार बस आस पास से उठाये हुए लगते हैं.. गुफ्तगू करती सही मायनों में एक मुकम्मल ग़ज़ल!!
ReplyDeleteढा दिया आपने है,
ReplyDeleteगजबिया कहर।
लाजवाब ग़ज़ल...
ReplyDeleteबिन डरे सच कहें किस तरह
सीखिये आइनों से हुनर
बेहतरीन शेर
सोच मत, ठान ले, कर गुज़र
ReplyDeleteजिंदगी है बडी मुख़्तसर...
neeraj ji aap vishwaas nahi karogey... par aapki inn panktiyon ney va_kai mein.. mere andar ek nayi soch ko janm diya hai... aur mere liye yeh bohot hee sahi time pey aapney share kiya hai... bohot bohot dhanyawaad... aapka aur inn pankityon ka aabhaar... :)
बहुत खूब. जैसे हमेशा लिखते हैं आप. ये शेर;
ReplyDeleteबिन डरे सच कहें किस तरह
सीखिये आइनों से हुनर
आईने हमें हमारी औकात बता देते हैं:-)
मैं विजय ज़ी सहमत हूँ.
ReplyDeleteयाद तेरी हमें आ गयी
ReplyDeleteमुस्कुराए, हुई ऑंख तर
बिन डरे सच कहें किस तरह
सीखिये आइनों से हुनर
बहुत खूबसूरत बात कह दी है इन शेरों में ....सुन्दर ...
बिन डरे सच कहें किस तरह
ReplyDeleteसीखिये आइनों से हुनर
बहुत ही सुन्दर शब्दों का संगम है यहां तो
अनुपम प्रस्तुति ।
बिन डरे सच कहें किस तरह
ReplyDeleteसीखिये आइनों से हुनर
सीखेंगे......
पर पहले आप सिखाईय की किस प्रकार छोटे छोटे शब्दों में इत्ती बड़ी बड़ी बातें कह जाते हैं..
सोच मत, ठान ले, कर गुज़र
ReplyDeleteजिंदगी है बडी मुख़्तसर ..simply great..wahwa!!
हैं सभी पास “नीरज” कहाँ
ReplyDeleteवो जिसे ढूंढती है नज़र
......
behtareen sher hain. shubhkamna
बहुत खूब....सभी शेर बहुत उम्दा है. बधाई.
ReplyDeleteneeraj ji ,
ReplyDeletepahala sher to lajwab tha hi uspar ye ....
याद तेरी हमें आ गयी
मुस्कुराए, हुई ऑंख तर
kya kahun aap itana achha likhte hain .subhanallh.
हैं सभी पास “नीरज” कहाँ
ReplyDeleteवो जिसे ढूंढती है नज़र
आपकी हर गजल दिल को छू लेती है ! सीख देती है और मीठी टीस भी ! आभार
घर जला कर मेरा झूमते,
ReplyDeleteदोस्तों की तरह ये शरर|
यहाँ "दोस्तों की तरह ये शरर" में उपमालंकार ने सौन्दर्य-वृद्धि में अपना योगदान दिया है!
पूरी ग़ज़ल ही सुन्दर बन पड़ी है...बधाई!
लाजवाब!
ReplyDeleteसोच मत, ठान ले, कर गुज़र
जिंदगी है बडी मुख़्तसर
कुछ एेसी सलाह की जरुरत थी, इस गजल के माध्यम से मिल गई.
वाह वाह नीरज जी
ReplyDeleteएक कामयाब मुश्किल कोशिश...
मुश्किल ऐसी कि ...
रास्ते हर कदम पुरखतर
हो बसर की कहां पर बसर?
बहुत खूबसूरत गज़ल.
ReplyDeletebehad achchi lagi.
ReplyDeleteइस बहर मे बेहतरीन गज़ल है यह
ReplyDeleteBahut khuub....
ReplyDeleteगर सभी के रहें सुर अलग
ReplyDeleteटूटने से बचेगा न घर
छोटी बहर में इतनी खूबसूरत ग़ज़ल कहना कोई आपसे सीखे .... बहुत ही लाजवाब शेर .. सधे हुवे ... कमाल के ....
एक ही शब्द - अतिसुन्दर !!
ReplyDeletesir bahut hi behatreen gazal . har panktiyan bhaut hi sundar bhav samete huye.
ReplyDeleteयाद तेरी हमें आ गयी
मुस्कुराए, हुई ऑंख तर
बिन डरे सच कहें किस तरह
सीखिये आइनों से हुनर
bilkul sach.
sir bahut dino se aap mere blog par nahi aaye.kripya mera marg darshan
mere blog par aakar karen .
dhanyvaad sahit -------
poonam
सोच मत, ठान ले, कर गुज़र
ReplyDeleteजिंदगी है बडी मुख़्तसर
Simply gr8.
दूरियां मत बढ़ा इस कदर
ReplyDeleteदूँ सदाएं तो हों बेअसर
सोच मत, ठान ले, कर गुज़र
जिंदगी है बडी मुख़्तसर
नीरज जी वैसे तो गज़ल का हर एक शेर कमाल का है पर उपर वाले दो कुछ कीमती संदेश दे रहे हैं ।
The "Ghazal" is sweet short and smart.
ReplyDeleteतुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे
Chaand Shukla
Denmark
बहुत खूब नीरज जी बधाई।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गज़ल.. मतला बहुत ही अच्छा लगा.
ReplyDelete"आइनों से..", "जिस घडी हमसफ़र..", "हुई आँख तर.." शेर खास तौर पर पसंद आये.
नीरज जी,
ReplyDeleteआपकी बहुत सी गजलें पढ़ डाली पिछले दो तीन दिन में..बेहतरीन अभिव्यक्ति गज़ब कि पकड़ ,विषय और शब्द दोनों पर ही....बहुत अच्छा लगा आपको पढ़ना...
वैसे तो गुलशन के हर फूल कि अपनी खुशबु अपना रंग होता है..पर इस गज़ल का ये शे'र बेहतरीन लगा ..
बिन डरे सच कहें किस तरह
सीखिये आइनों से हुनर
बहुत बढ़िया....
नमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteछोटी बहर अपना मज़ा भी है और मुश्किलें भी.
मतला क्या खूब कहा है,
"दूरियां मत बढ़ा इस कदर
दूँ सदाएं तो हों बेअसर"
ये शेर भी बेहद पसंद आया........
"बिन डरे सच कहें किस तरह
सीखिये आइनों से हुनर "
Bahut khoobsurat aur alag sa khyaal liye hue matla ..
ReplyDeleteaur ye sher bhi kam kamaal nahi tha
गर सभी के रहें सुर अलग
टूटने से बचेगा न घर
waah kitni gahri baat kah di
दूरियां मत बढ़ा इस कदर
ReplyDeleteदूँ सदाएं तो हों बेअसर
याद तेरी हमें आ गयी
मुस्कुराए, हुई ऑंख तर
wah kya baat hai....
har sher ek se bad kar ek hai....