जिस शजर ने डालियों पर देखिए फल भर दिए
हर बशर ने आते - जाते उसको बस पत्थर दिए
शजर : पेड़
रब की नज़रों में सभी इक हैं तो उसने क्यों भला
एक को पत्थर दिए और एक को गौहर दिए
गौहर : मोती
गुल हमेशा चाहता हमसे रहा बदले में वो
जिसने हमको हर कदम पर बेवजह नश्तर दिए
गुल हमेशा चाहता हमसे रहा बदले में वो
जिसने हमको हर कदम पर बेवजह नश्तर दिए
नश्तर: कांटे
खो रहे हैं क्यूँ अदावत में उन्हें, ये सोचिये
प्यार करने के खुदा ने जो हमें अवसर दिए
अदावत: दुश्मनी
खो रहे हैं क्यूँ अदावत में उन्हें, ये सोचिये
प्यार करने के खुदा ने जो हमें अवसर दिए
अदावत: दुश्मनी
मिल गए हैं रहजनों से लूटने के वास्ते
मुल्क को चुनकर ये कैसे आपने रहबर दिए
रहज़न: लुटेरे
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
नींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
ज़िन्दगी बख्शी खुदा ने माना के "नीरज" हमें
पर लगा हमको कि जैसे खीर में कंकर दिए
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
नींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
ज़िन्दगी बख्शी खुदा ने माना के "नीरज" हमें
पर लगा हमको कि जैसे खीर में कंकर दिए
( आदरणीय गुरुदेव प्राण शर्मा जी की रहनुमाई में लिखी ग़ज़ल )
जिस शजर ने डालियों पर देखिए फल भर दिए
ReplyDeleteहर बशर ने आते - जाते उसको बस पत्थर दिए
bahut badhiya lagi aapki gazal....
खो रहे हैं क्यूँ अदावत में उन्हें, ये सोचिये
ReplyDeleteप्यार करने के खुदा ने जो हमें अवसर दिए
दुश्मनी में प्यार के एहसास ही तो भूल जाता है इंसान
मिल गए हैं रहजनों से लूटने के वास्ते
मुल्क को चुनकर ये कैसे आपने रहबर दिए
नेताओं पर अच्छा कटाक्ष है ..
ज़िन्दगी बख्शी खुदा ने माना के "नीरज" हमें
पर लगा हमको कि जैसे खीर में कंकर दिए
बहुत अच्छी गज़ल है ...हर शेर उम्दा ..
बहुत सुन्दर ग़ज़ल. हर एक शेर बढ़िया.
ReplyDeleteजिस शजर ने डालियों पर देखिए फल भर दिए
ReplyDeleteहर बशर ने आते - जाते उसको बस पत्थर दिए
बस यही तो दुनिया का दस्तूर है जिसे दुनिया खूबसूरती से निभाना जानती है।
रब की नज़रों में सभी इक हैं तो उसने क्यों भला
एक को पत्थर दिए और एक को गौहर दिए
क्या करें……………किस्मत एक सी नही थी ना।
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
नींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
कुछ पाने के बदले कुछ तो खोना ही पडता है।
ज़िन्दगी बख्शी खुदा ने माना के "नीरज" हमें
पर लगा हमको कि जैसे खीर में कंकर दिए
चलिये कुछ तो मिला हमे उसने इस काबिल ही समझा।
नीरज जी,
गज़ल का हर शेर सोचने को मजबूर करता है………………हमेशा की तरह बहुत ही चुन चुन कर मोती निकाल कर लाते हैं आप्……………बेहतरीन्।
poori ghazal behtareen bani hai
ReplyDeleteकुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
नींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
ye sher sabse jyada pasand aayaa...
बड़ी सुन्दर, गहरी रचना।
ReplyDeleteनीरज जी,
ReplyDeleteशानदार ग़ज़ल कुछ शेर बहुत उम्दा बन पड़े हैं ........दाद कबूल फरमाएं |
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 5-10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
ReplyDeleteकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
ज़िन्दगी बख्शी खुदा ने माना के "नीरज" हमें
ReplyDeleteपर लगा हमको कि जैसे खीर में कंकर दिए
" behd khubsurat..."
regards
खो रहे हैं क्यूँ अदावत में उन्हें, ये सोचिये
ReplyDeleteप्यार करने के खुदा ने जो हमें अवसर दिए ..
सुभान अल्ला .... अगर हर कोई इस शेर के ज़ज़्बे को समझ सके तो दुनिया बदल जाए ....
बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल है ...
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
ReplyDeleteनींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
अपन ने तो अभी तक रेशमी बिस्तर देखे ही नहीं.......शायद इसीलिए भाग्यशाली हूँ कि नींद में कोई दखल नहीं, जो भी मिलाती है, सकून दे जाती है.
शानदार ग़ज़ल एक बार फिर हमेशा की ही तरह......
बधाई...बधाई...
चन्द्र मोहन गुप्त
वाह. आनंद आ गया नीरज जी.
ReplyDelete"खीर में कंकर".. "रेशमी बिस्तर", "अवसर" वाले शेर तो क्या कहने.
जिस शजर ने डालियों पर देखिए फल भर दिए
ReplyDeleteहर बशर ने आते - जाते उसको बस पत्थर दिए
वाह !क्या बात है !
बेहद ख़ूबसूरत मतले से शुरू हो कर ग़ज़ल अपनी बलंदियों को छूते हुए मक़ते तक पहुंची
खो रहे हैं क्यूँ अदावत में उन्हें, ये सोचिये
प्यार करने के खुदा ने जो हमें अवसर दिए
सुबहान अल्लाह !
मेरी नज़र में तो हासिले ग़ज़ल शेर है ये
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
नींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
बहुत ख़ूब!हक़ीक़त बयान की है आप ने
एक बहुत उम्दा ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकार करें
रब की नज़रों में सभी इक हैं तो उसने क्यों भला
ReplyDeleteएक को पत्थर दिए और एक को गौहर दिए
??????????????????????????????
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
ReplyDeleteनींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए।
हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है यहाँ। बहुत खूब ग़ज़ल है।
ज़िंदगी की तुलना खीर में आए कंकरों से भी खूब बन पड़ी है।
वाह , वाह नीरज जी । अति सुन्दर ग़ज़ल । सत्य ब्यान करती हुई ।
ReplyDeleteniraj ji
ReplyDeletesundar gajl likhi apne
har sher umda hai
kabile tarif
badhai
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
ReplyDeleteनींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
ज़िन्दगी बख्शी खुदा ने माना के "नीरज" हमें
पर लगा हमको कि जैसे खीर में कंकर दिए
क्या कहूँ ? और कहने को क्या रह गया ...
इतनी सुन्दर पंक्तियाँ हैं कि मेरे पास शब्द नहीं है तारीफ़ के लिए ...
"कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
ReplyDeleteनींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए" वाह !
हर शेर को पढ़ने के बाद एक ही शब्द दिमाग में गूंजता रहा "कमाल"
ReplyDeleteआज बस कह लेने दीजिए आपकी बात आप ही की ग़ज़ल के बारे में... वो कलम कहाँ है जिससे आपने ये गज़ल लिखी...चूमने को जी कर रहा है... बेहद खूबसूरत लफ्ज़ और उतने ही खूबसूरत ज़ज्बात पिरोये हैं आपने अपनी गज़ल में…
ReplyDeleteएक को पत्थर मिला और एक को गौहर मिला।
ReplyDeleteपर एतराज न करें:
जोडि़यॉं ही वो बनाता है जहां में इस तरह
एक को बीबी मिली और एक को शौहर मिला।
अब किस को क्या मिला ये मुकद्दर की बात है।
खैर ये तो हुआ विशुद्ध हास्य आप जैसी हास्य प्रवृत्ति के लिये, गंभीर बात यह है कि इस ग़ज़ल में आपने जो गौहर दिये हैं वो सम्हाल कर रखने की चीज हैं। आपकी घड़ी मूर्ति पर प्राण शर्मा साहब की रहनुमाई, जैसे सोने पर सुहागा
भूमंडलीकृत सोच है। बधाई।
मिल गए हैं रहजनों से लूटने के वास्ते
ReplyDeleteमुल्क को चुनकर ये कैसे आपने रहबर दिए
बहुत खूब...सारे शेर बहुत ही उम्दा हैं..
किब्ला, क्या शेर लिखे हैं आपने. दाद क़ुबूल फरमाएं, हौसला -अफजाई गर , इस नाचीज़ कि क़ुबूल हो तो अगली ग़ज़ल/नज़्म/या शेर लिख मारे , बंदा बेताब है , बहुत खूब कभी बन्दे के ब्लॉग पर तशरीफ़ अता फरमाएं............................
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद
ReplyDeleteअच्छी गज़ल है भाई ।
ReplyDeleteजिस शजर ने डालियों पर देखिए फल भर दिए
ReplyDeleteहर बशर ने आते - जाते उसको बस पत्थर दिए
vaah neeraj jee, kitana khoobsoorat matalaa diya hai...kamaal hai
खो रहे हैं क्यूँ अदावत में उन्हें, ये सोचिये
प्यार करने के खुदा ने जो हमें अवसर दिए...
insaniyat ke liye...insaniyat ka paigam...
poori ghazal dil ko chhoo gaee.
खो रहे हैं क्यूँ अदावत में उन्हें, ये सोचिये
ReplyDeleteप्यार करने के खुदा ने जो हमें अवसर दिए
बहुत ही सुन्दर रचना...आभार
आज तो लगते है पूरी, तबीयत में वो 'नीरज',
ReplyDeleteदिए छांट छांट कर, शेर चुन चुन कर दिए ..
ज़िन्दगी बख्शी खुदा ने माना के "नीरज" हमें
ReplyDeleteपर लगा हमको कि जैसे खीर में कंकर दिए
यह शेर सिर्फ़ शेर ही रहे
नीरज जी बहुत ही खूबसूरत गज़ल पेश की है ।
ReplyDeleteकुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
नींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
ज़िन्दगी बख्शी खुदा ने माना के "नीरज" हमें
पर लगा हमको कि जैसे खीर में कंकर दिए
वाह वाह ।
बाऊ जी,
ReplyDeleteनमस्ते!
आनंद! आनंद! आनंद!
आशीष
--
प्रायश्चित
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
ReplyDeleteनींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
शानदार रचना ,कमाल है ।
नीरज जी गजल क्या है बस फूलों का गुलदस्ता है जिसमें एक से बढ़कर एक फूल अपनी खुशबू बिखेर रहा है। एक बात मुझे बताएं कि मैं तो नश्तर का अर्थ घाव ही समझती आयी थी, आपने इसे कांटे बताया है?
ReplyDeleteनीरज जी किस किस शेर की तारीफ करूँ? आपकी कलम हो और प्राण भाई साहिब की रहनुमाई तो फिर हमारे कहने को क्या रह जाता है। कमाल के शेर हैं
ReplyDeleteमिल गए हैं रहजनों से लूटने के वास्ते
मुल्क को चुनकर ये कैसे आपने रहबर दिए
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
नींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
ज़िन्दगी बख्शी खुदा ने माना के "नीरज" हमें
पर लगा हमको कि जैसे खीर में कंकर दिए
यूँ मुझे तो हर एक शेर बहुत ही अच्छा लगा। बधाई आपको।
जिस शजर ने डालियों पर देखिए फल भर दिए
ReplyDeleteहर बशर ने आते - जाते उसको बस पत्थर दिए
वाह! बेहद खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है नीरज जी. यूँ तो हर एक शेर एक दुसरे से बढ़कर है, लेकिन ऊपर वाला तो ज़बरदस्त है!
नीरज जी हर एक शेर कमाल का है और बहुत ही अर्थवान है ! किसे चुनें किसे छोड़ें चयन करना मुश्किल है !
ReplyDeleteमिल गए हैं रहजनों से लूटने के वास्ते
मुल्क को चुनकर ये कैसे आपने रहबर दिए
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
नींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
बहुत शानदार और प्राणवान गज़ल ! आपको बहुत बहुत बधाई !
तकदीर की बाते है, सबको अलग-अलग मुक्कदर दिए,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गजल लिखी, और शब्द बड़े मुक्तसर दिए !!
जिस शजर ने डालियों पर देखिए फल भर दिए
ReplyDeleteहर बशर ने आते - जाते उसको बस पत्थर दिए
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां, गहरे भावों के साथ अनुपम हमेशा की तरह ।
बहुत ही सुंदर !
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल, हर शेर एक से बढ़ कर एक !
हार्दिक शुभकामनाएं !
नीरज जी, क्या उम्दा लिखते हैं. ...
ReplyDeleteगज़ल के हर शेर पर दाद है.........
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
नींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
आप हमेशा कुछ सोचने के मजबूर करते हैं.
भूख बेचकर ही तो दो रोटी खरीदी है हमने.
नींद बेचकर - कुछ ख्वाब संभाल पाएं हैं.
टिप्पणी में क्या कहें, कितने हमें अच्छे लगे
ReplyDeleteहर्फ़ कुछ जोड़े, बताकर गज़ल, आगे कर दिए
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
ReplyDeleteनींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
waah, bahut hi achhi panktiyaan
नींद ले बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए ...
ReplyDeleteजीवन की विसंगतियों पर अच्छी कविता/ग़ज़ल ...!
खो रहे हैं क्यूँ अदावत में उन्हें, ये सोचिये
ReplyDeleteप्यार करने के खुदा ने जो हमें अवसर दिए......
बहुत सुन्दर विचार जिन्हें अगर दुनिया अपना सके तो सारे झगड़े ही समाप्त हो जायेंगे...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार..
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
ReplyDeleteनींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
बहुत खूब नीरज जी .... बहुत सुंदर रचना ... बधाई स्वीकारें ..
ज़िंदगी बख़्शी ख़ुदा ने माना के नीरज हमें,
ReplyDeleteपर लगा हमको कि जैसे खीर में कंकर दिए।
वाह...वाह...ज़िदगी के अनदेखे कोनों पर आपकी नज़रें घूम घूम कर ग़ज़लें कहती रहती हैं...बधाई।
behtreen khayaal or khoobsurat kafiye...wah bhai ji wah....
ReplyDeleteaapki gajal hr jindagi ki ek khubasurat kahani hai
ReplyDeletearganik bhagyoday.blogspot.com
हर शेर सोचने को मजबूर करता हुआ.
ReplyDeleteऔर पूरी गज़ल उम्दाय्गी के मोतियों से सजी बेहतरीन गज़ल.
बधाई.
रब की नज़रों में सभी इक हैं तो उसने क्यों भला
ReplyDeleteएक को पत्थर दिए और एक को गौहर दिए
गज़ल का हर शेर दाद के काबिल है..बहुत खूबसूरत गज़ल
very good neeraj darling
ReplyDeleteनीरज साहब,
ReplyDeleteगुल, गुलशन और गुलफ़ाम कर दिया जी आपने।
एक सुझाव दूँ, कठिन शब्दों के हिन्दी अर्थ अगर पंक्ति के सामने दे सकें या फ़िर गज़ल के बाद में, तो रौ में पढ़ने का और ज्यादा मजा आ जाता। छोटे मुंह बड़ी बात हो गई न? जानता हूँ आप बुरा नहीं मानेंगे।
एक एक शेर नायाब है।
नीरज जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत रवां दवां ग़ज़ल कही है एक बार फिर से आपने । सबसे अच्छी बात यह कि कहीं भी भर्ती के लफ़्ज़ नहीं हैं । सहज संप्रेषणीय आमफ़हम ज़ुबान में कहा गया एक एक मिसरा ता'रीफ़ का मुस्तहक़ है ।
एक शे'र , दो शे'र कोट करने की गुंजाइश नहीं है , क्योंकि पूरी ग़ज़ल ही कोट के लायक है । दिलजोई के लिए एक शे'र छांटा है -
खो रहे हैं क्यूं अदावत में उन्हें, ये सोचिये
प्यार करने के खुदा ने जो हमें अवसर दिए
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हाय!! हर शेर पर खड़े होकर दाद बरसाई...दिखे क्या?
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन..
जिस शजर ने डालियों पर देखिए फल भर दिए
हर बशर ने आते - जाते उसको बस पत्थर दिए
आपकी खीर के कंकड़ पसंद आए।
ReplyDeleteआज थोड़ी उदास लगी गजल.......काहे जी....
ReplyDeleteश्रीमान जी ... बहुत ही बढ़िया रचना ...
ReplyDeleteमुझे तो हर शेर पसंद आया ...
आभार ..
नीरज भाई.....
ReplyDeleteजिस शजर ने डालियों पर देखिए फल भर दिए
हर बशर ने आते - जाते उसको बस पत्थर दिए
......वाह वाह ! क्या बात कही. (@ अब तो किस्मत हैं उनके पत्थर ही, जिन दरख्तों ने फल उगाये हैं,)
रब की नज़रों में सभी इक हैं तो उसने क्यों भला
एक को पत्थर दिए और एक को गौहर दिए
यह शेर भी खूब रहा......!
खो रहे हैं क्यूँ अदावत में उन्हें, ये सोचिये
प्यार करने के खुदा ने जो हमें अवसर दिए
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मिल गए हैं रहजनों से लूटने के वास्ते
मुल्क को चुनकर ये कैसे आपने रहबर दिए
हालत को पहचानने वाले दोनों शेर लिख दिए नीरज भाई....दाद क़ुबूल करें.
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
नींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
आहा !!!!!!!!!!! क्या सच्चाई और बेबसी बयां की है ........बहुत सुन्दर !
खो रहे हैं क्यूँ अदावत में उन्हें, ये सोचिये
ReplyDeleteप्यार करने के खुदा ने जो हमें अवसर दिए
- आज की परिस्थिति में मौजूं |
गुल हमेशा चाहता हमसे रहा बदले में वो
ReplyDeleteजिसने हमको हर कदम पर बेवजह नश्तर दिए
बहुत खूब!
-ग़ज़ल का हर शेर नायाब लगा .
बहुत दिनों बाद ब्लॉग खोला ,ग़ज़ल पढ़ कर मज़ा आ गया .सुंदर अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनायें ।
ReplyDeleteकुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में....Beautiful !
ReplyDeletebehtareen
ReplyDeleteवाह नीरज जी..किस किस शेर पे दाद दूं...पूरी ग़ज़ल ही बेहतरीन बन पड़ी है....बधाई हो..
ReplyDeleteजिस शजर ने डालियों पर देखिए फल भर दिए
ReplyDeleteहर बशर ने आते - जाते उसको बस पत्थर दिए
यही तो दुनिया की रीत है ....
जरा सी बात पर यहाँ हर कोई पत्थर उठा लेता है ......
रब की नज़रों में सभी इक हैं तो उसने क्यों भला
एक को पत्थर दिए और एक को गौहर दिए
शायद हमारे कर्मों के हिसाब से ......
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
नींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
सही कहा ......
आपकी गजलें हमेशा ही बहुत गहरी बात कह जातीं है ....
क्या कहूँ ? बस इतना ही बहुत ही उम्दा .....
नमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteइन दो शेरों ने तो लाजवाब कर दिया.
"मिल गए हैं रहजनों से लूटने के वास्ते
मुल्क को चुनकर ये कैसे आपने रहबर दिए."
"कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
नींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए."
ज़िन्दगी बख्शी खुदा ने माना के "नीरज" हमें
ReplyDeleteपर लगा हमको कि जैसे खीर में कंकर दिए..............................
amazing lines ...very close to heart and life....
hats off sir..
बहुत सुन्सेर अल्फाज़ खीर के कंकर तो खूब भाए।
ReplyDeleteनीरज जी ,
ReplyDeleteबहुत उम्दा गज़ल.....हर शेर गज़ब ..गहन... असरदार....
बधाई