Monday, September 27, 2010

किताबों की दुनिया - 38

" किताबों की दुनिया " में आपको सब की दुनिया मिल जाएगी लेकिन सब की दुनिया में किताबें मिलें ऐसा शायद संभव न हो....किताबों हमें हमेशा कुछ न कुछ देती हैं बिना बदले में हमसे कुछ भी लिए...इसलिए मैं हमेशा आग्रह करता हूँ के अपनी दुनिया में किताबों को जगह दो...जिनको आपने अब तक जगह दे रखी है उन्हें वहीँ रहने दो लेकिन किताबों के लिए भी थोड़ी सी जगह बना लो. आज माना आप बहुत व्यस्त हैं, आपके ढेर मित्र हैं, नाते, रिश्तेदार हैं, जिम्मेवारियां हैं, सामने बड़े बड़े टार्गेट हैं, पैसा कमाने की होड़ है लेकिन ये स्तिथि हमेशा नहीं रहेगी. एक दिन आप तन्हा होंगे एक दम तन्हा...इतने तन्हा के सन्नाटा बोला करेगा और आप उसे सुन कर डरेंगे तब आपको किताबें सहारा देंगी, सन्नाटों को संगीत के सातों सुरों से भर देंगी. सूखे पेड़ों पर हरी पत्तियां ले आएँगी, उन पर फिर से फूल खिला देंगीं

क्या कहा ?? जी ?? टाइम खोटी मत करूँ सीधे मुद्दे पे आऊँ ? ठीक है भाई सीधे मुद्दे पर आता हूँ और आपको एक ऐसी किताब से रूबरू करवाता हूँ जो आपको अभी पढने का वक्त न होने की स्तिथि में भी खरीद कर रख लेनी चाहिए. शायरी की ये किताब ज़मीन से जुडी किताब है जो गुलाब के फूलों की नहीं उसके काँटों की बात करती है क्यूँ की, यदि मुग़ल-ऐ-आज़म फिल्म का डायलोग दोहराने की इजाज़त दें तो कहूँगा "काँटों को मुरझाने का खौफ़ नहीं होता"

भूख के अहसास को शेरों सुखन तक ले चलो
या अदब को मुफलिसों की अंजुमन तक ले चलो

जो ग़ज़ल माशूक के जल्वों से वाकिफ हो गयी
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो

ग़ज़ल के इस 'अदब' को 'मुफलिसों की अंजुमन' और 'बेवा के माथे की शिकन' तक ले चलने की आवाज़ लगाने वाले शायर का नाम है " अदम गोंडवी ", आज हम उनकी ही बेमिसाल शायरी की किताब " समय से मुठभेड़ " का जिक्र करेंगे जिसे "वाणी प्रकाशन" दरियागंज , नयी दिल्ली ने प्रकाशित किया है .आप उनसे फोन न: 011-23273167 / 23275710 पर या फिर उनकी ई-मेल vaniprakashan@gmail.com द्वारा भी संपर्क कर सकते हैं


बाईस अक्तूबर १९४७ को गोस्वामी तुलसीदास के गुरु स्थान सूकर क्षेत्र के करीब परसपुर (गोंडा) के आटा ग्राम में स्व. श्रीमती मांडवी सिंह व् श्री देवी कलि सिंह के पुत्र के रूप में बालक रामनाथ सिंह का जन्म हुआ जो बाद में "अदम गोंडवी" के नाम से सुविख्यात हुए.

अदम जी कबीर परंपरा के कवि हैं, अंतर यही कि अदम ने कागज़ कलम छुआ पर उतना ही जितना किसान ठाकुर के लिए जरूरी था.

देखना सुनना व् सच कहना जिन्हें भाता नहीं
कुर्सियों पर फिर वही बापू के बन्दर आ गए

कल तलक जो हाशिए पर भी न आते थे नज़र
आजकल बाजार में उनके कलेंडर आ गए

दुष्यंत जी ने अपनी ग़ज़लों से शायरी की जिस नयी राजनीति की शुरुआत की थी, अदम ने उसे उस मुकाम तक पहुँचाने की कोशिश की है जहाँ से एक एक चीज़ बगैर किसी धुंधलके के पहचानी जा सके.

जो उलझ कर रह गयी है फाइलों के जाल में
गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में

बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गयी
राम सुधि की झौपड़ी सरपंच की चौपाल में

खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हम को पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में

मुशायरों में ,घुटनों तक मटमैली धोती, सिकुड़ा मटमैला कुरता और गले में सफ़ेद गमछा डाले एक ठेठ देहाती इंसान जिसकी और आपका शायद ध्यान ही न गया हो यदि अचानक माइक पे आ जाए और फिर ऐसी रचनाएँ पढे के आपका ध्यान और कहीं जाए ही न तो समझिए वो इंसान और कोई नहीं अदम गोंडवी हैं. उनकी निपट गंवई अंदाज़ में महानगरीय चकाचौंध और चमकीली कविताई को हैरान कर देने वाली अदा सबसे जुदा और विलक्षण है.

किसको उम्मीद थी जब रौशनी जवां होगी
कल के बदनाम अंधेरों पे मेहरबां होगी

खिले हैं फूल कटी छातियों की धरती पर
फिर मेरे गीत में मासूमियत कहाँ होगी

आप आयें तो कभी गाँव की चौपालों में
मैं रहूँ या न रहूँ भूख मेज़बां होगी

अदम शहरी शायर के शालीन और सुसंस्कृत लहजे में बोलने के बजाय वे ठेठ गंवई दो टूकपन और बेतकल्लुफी से काम लेते हैं.उनके कथन में प्रत्यक्षा और आक्रामकता और तड़प से भरी हुई व्यंग्मयता है.

वस्तुतः ये गज़लें अपने ज़माने के लोगों से 'ठोस धरती की सतह पर लौट ' आने का आग्रह कर रही हैं.

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नजारों में
मुसलसल फन का दम घुटता है इन अदबी इदारों में

अदीबों ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ
मुलम्मे के सिवा क्या है फ़लक के चाँद तारों में

अदम जी की शायरी में आज जनता की गुर्राहट और आक्रामक मुद्रा का सौंदर्य मिसरे-मिसरे में मौजूद है, ऐसा धार लगा व्यंग है के पाठक का कलेजा चीर कर रख देता है.आप इस किताब का कोई सफह पलटिए और कहीं से भी पढ़ना शुरू कर दीजिए, आपको मेरी बात पर यकीन आ जायेगा.

काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में

पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो हवाश में

अदम साहब की शायरी में अवाम बसता है उसके सुख दुःख बसते हैं शोषित और शोषण करने वाले बसते हैं. उनकी शायरी न तो हमें वाह करने के अवसर देती है और न आह भरने की मजबूरी परोसती है. सीधे सच्चे दिल से कही उनकी शायरी सीधे सादे लोगों के दिलों में बस जाती है.

बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को

सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरखान को

शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को

लगभग सौ पृष्ठों की इस अनमोल किताब में ऐसे ढेरों शेर हैं जिन्हें पढ़ कर कभी मुस्कराहट के फूल खिलते हैं तो कभी विद्रोह के अंगार. आम इंसान के दुःख दर्द समेटे इन अशआरों को एक नहीं बार बार पढ़ने का जी करता है. शब्दों की मारक क्षमता का अंदाज़ा आपको इस किताब को पढकर हो जायेगा. लिजलिजी थोथी भावुकता से कोसों दूर ये अशआर आपको अपने लगने लगेंगे.

घर में ठन्डे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है
बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है

बगावत के कमल खिलते हैं दिल की सूखी दरिया में
मैं जब भी देखता हूँ आँख बच्चों की पनीली है

सुलगते ज़िस्म की गर्मी का फिर अहसास हो कैसे
मोहब्बत की कहानी अब जली माचिस की तीली है

अमूमन मैं किसी किताब के बहुत अधिक शेर इस श्रृंखला में कोट नहीं करता बहुत से अपने पास रख लेता हूँ लेकिन इस किताब के दिल करता है सारे शेर कोट कर दूं, मुझे पता नहीं क्यूँ ये आभास होता है के अधिकांश पाठक इस पोस्ट को पढ़ने के बाद इस श्रृंखला में चर्चित किताब को बजाये खरीदने के भूल जाते हैं, मैं चाहता हूँ के आप मेरी इस धारणा तोडें, और इसे खरीद कर पड़ें, इसलिए अपने आप पर संयम रखते हुए आपको और अधिक शेर नहीं पढ़वाऊंगा आप इस किताब को ढूंढें तब तक मैं भी तलाशता हूँ आपके लिए कोई और शायरी किताब. चलते चलते न चाहते हुए भी ये शेर और दिए जा रहा हूँ पढ़ने के लिए...आप भीं क्या याद रखेंगे. पढ़िए और सोचिये क्या कह गए हैं अदम साहब...

जो बदल सकती है इस दुनिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये

जल रहा है देश ये बहला रही है कौम को
किस तरह अश्लील है संसद की भाषा देखिये



श्री अदम गोंडवी साहब

47 comments:

  1. किताबों हमें हमेशा कुछ न कुछ देती हैं बिना बदले में हमसे कुछ भी लिए...सही कहा आपने. मुझे भी किताबें पढना अच्छा लगता है, पर अभी बच्चों वाली .

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  2. नीरज जी,

    हर शेर सच ऐसा ही है जो साथ साथ चल दे बहुत बहुत शुक्रिया।

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  3. हर बार आपका किताबों की दुनिया में ले जाना एक नया अनुभव होता है।

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  4. आज कि पेशकश बहुत अच्छी लगी

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  5. हर बार की तरह उमदा समीक्षा । बेमिसाल लगती है ये पुस्तक। श्री अदम गोंडवी साहब की कुछ सालिम गज़लें अगर हमे पढवा सकें तो मेहरबानी होगी। श्री अदम गोंडवी साहब को शुभकामनायें। आपका धन्यवाद।

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  6. जल रहा है देश ये बहला रही है कौम को
    किस तरह अश्लील है संसद की भाषा देखिये
    बहुत बढ़िया शेर.... बिंदास समीक्षा अभिव्यक्ति के लिए आभार

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  7. आप हमेशा ऐसी समीक्षा करते हैं कि उस पुस्तक को पढने का मन हो आता है ...


    काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में
    उतरा है रामराज विधायक निवास में

    पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
    इतना असर है खादी के उजले लिबास में

    बहुत सशक्त बातें लिखी हैं शायर ने ..
    बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को
    भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को

    सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए
    गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरखान को

    सच्चाई और मजबूरी को कहते शेर ...

    समीक्षा बहुत अच्छी लगी

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  8. नीरज जी, आप किताबों की समीक्षा क्या करते हैं - पूरी किताब ही खोल कर पाठकों के सामने रख देते हैं.

    अदम गोंडवी साहिब का चित्र अपने आप में इनके हृदय कि दास्ताँ कह रहा हैं.

    "काँटों को मुरझाने का खौफ़ नहीं होता" - जिंदगी गुज़ारने के लिया ख्याल अच्छा है.

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  9. मुझे अक्सर ताजुब होता है जब लोग शायरी को गाँव और गरीबो से दूर होने की बात करतें है. मेरे देखे तो गाँव की पृष्टभूमि रखने वाले की साहित्यिक समझ आम शहरी से ज्यादा ही होती है. वो भले ही अनपद हो और गरीब हो, पर उसकी बुद्धि में व्यवहारिकता और भावानुभूती तो मैंने आम लोगों से ज्यादा ही पाई. और ऐसे लोग शिक्षक और कवि जैसे पेशे का सम्मान भी बहुत करतें है.
    जहाँ तक अदम साहब का सवाल है, तो उनके ज्यादातर कलाम तो पसंद ही आये. परिचय करवाने के लिए आपका आभार ..

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  10. हमेशा की तरह बेमिसाल प्रस्तुति………………हर शेर चोट करता हुआ।

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  11. अदम गोंडवी साहब से परिचय करवाने के लिए आपका शुक्रिया. बहुत सशक्त शायरी है.

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  12. सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए
    गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरखान को ।


    हमेशा की तरह अनुपम प्रस्‍तुति, आभार ।

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  13. गोंडवी साहब से परिचय करवाने के लिए आपका आभार.बढ़िया समीक्षा.एक नया अनुभव अभिव्यक्ति के लिए आभार

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  14. बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गयी
    राम सुधि की झौपड़ी सरपंच की चौपाल में


    बहुत सुन्दर.. एक लंबी लिस्ट लेकर जाऊँगा इस बार किताबों कि दूकान पर...

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  15. आप की किताबो की दुकान बहुत ही सुंदर लगी, साथ मे श्री अदम गोंडवी साहब से परिचय करवाने के लिये आप का धन्यवाद

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  16. एक बेहतरीन किताब की जानकारी देने का शुक्रिया ....और भूमिका में जो भी आपने किताबों के बारे में कहा उससे मैं पूरी तरह सहमत हूँ ........अदम गोंडवी साहब की शायरी लीक से काफी अलग हट के है ....कुछ शेर बहुत पसंद आये|

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  17. किताबें इंसान की बेहतरीन दोस्त साबित होती हैं .

    जो उलझ कर रह गयी है फाइलों के जाल में
    गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में
    वाह ..एक से बढकर एक ..बहुत शुक्रिया.

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  18. इतनी सुन्दर रचनायें पढ़ाने का शत शत आभार।

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  19. बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को
    भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को

    सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए
    गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरखान को...
    नीरज जी...
    एक शानदार शख़्सियत से परिचय कराया है आपने...
    अदम साहब को पहले भी पढ़ने का इत्तेफ़ाक़ हुआ है...
    यहां पढ़कर और भी अच्छा लगा.

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  20. निःसंदेह इस किताब को तो खरीदकर ही पढ़ना पड़ेगा। आपने जितने भी अशआर यहां लिखे सभी दिल को हिला देने वाले हैं। वीणा प्रकाशन ने अद्भुत पुस्तक प्रकाशित की है। इससे रूबरू कराने के लिए आभार।

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  21. चरण वन्‍दन हुजूर इस कद के शाइर की किताब लाने के लिये।

    भूख के अहसास को शेरों सुखन तक ले चलो
    या अदब को मुफलिसों की अंजुमन तक ले चलो

    जो ग़ज़ल माशूक के जल्वों से वाकिफ हो गयी
    उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो

    बस दो ही शेर काफ़ी हैं इनका कद ज़ाहिर करने के लिये, और यहॉं तो एक से एक उम्‍दा शेर मौजू़द हैं, जि़ंदगी के हर एहसास को जीते हुए।

    अदम साहब को पहले भी पढ़ने का सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ है और अशआर में ओज के दर्शन भी किये हैं।

    आपसे एक निवेदन है कि प्रकाशक से र्इ-मेल भी प्राप्‍त कर उपलब्‍ध करा दिया करें जिससे आदेश देने में सुविधा रहे। पहले वाणी प्रकाशन को कई बार संपर्क किया लेकिन कोई उत्‍तर आता ही नहीं।

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  22. एक और अच्छी पुस्तक से परिचय कराने का शुक्रिया. अब पुस्तकें खरीदने के पहले आपके पोस्ट्स में से एक लिस्ट बनाई जायेगी.

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  23. प्रणाम नीरज दा
    क्या महफिल जमायी है आपने इस बार वाह!वाह!
    अदम जी जैसे शायर बहुत कम होते हैं, जिनका जीना-मरना सब कुछ शायरी होती है। मंच पर ऐसे रूप में आना कि जो न जानता हो उसे विश्वास ही न हो कि ये व्यक्ति शायर भी हो सकता है, लेकिन जब कंठ से शेर निकलें वो भी बिना किसी सुर-ताल के लेकिन क्या मजाल सामने वाला हिल भी जाय। जब तक वो पहले शेर के तिलिस्म में अपना वजूद तलाशे तब तक दूसरा शेर हाजिर फिर तीसरा, चैथा। आप कभी उनसे बातें करें तो आपको उनसे खरी बात कहने वाला अपने जेहन में दूसरा नजर ही न आये। अदम जी के व्यक्तित्व के विषय में जितना कहा जाय उतना कम है। अभी पिछले वर्ष उनके चरण स्पर्श का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। आज आपने फिर से चरण वन्दन का सुअवसर दिया है आपको साधुवाद।

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  24. कृपया ये देखलें कि वाणी प्रकाशन है या वीणा प्रकाशन तथा हो सकें तो प्रकाशक का फोन न0 या ई-मेल पता भी दे दें।

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  25. नीरज जी,
    अब का बताएँ ..ई भी नहीं कह सकते कि हमारे ख़यालात बहुत मिलते जुलते हैं.. अभी कुछ दिन पहले बड़े भाई राजेस उत्साही जी से अदम गोंडवी जी का बात चीत हो रहा था.. इनके सायरी का आग ऐसा है कि कोई नाअह्ल छू ले तो हाथ जल जाए. बस इनको तो प्रणाम ही कर सकते हैं हम..अऊर आपको भी!!

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  26. अदम जी की शायरी में गाँव का भोलापन और आत्मीयता की झलक साफ़ दिख रही है ।
    सुन्दर , सरल स्वाभाव के व्यक्तित्त्व से परिचय कराने के लिए आपका आभार ।

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  27. आज का दिन बना दिया आपने। दुष्यंत जी ने हिंदी ग़ज़लों में जिस परंपरा की शुरुआत की थी उसके सच्चे वारिस दिखाई दिये अदम साहब. निश्चय ही पूरी किताब पढ़ने योग्य है।

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  28. अदम जी की शायरी का जवाब नही । हमारे यहाँ के इप्टा टीम ने उनकी कई गज़लों को स्वर दिया है ।

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  29. आपका कहना काफ़ी हद तह ठीक है, हम लोग जब पढ़ते हैं उस समय जोश रहता है किताबें खरीदने का, फ़िर भूल जाते हैं। आप जो कर रहे हैं, बह एक साधना से कम नहीं है।
    अदम गोंडवी जी को जितना भी पढ़ा है, हर बार कमाल का लगता है।
    आपका आभार कि आपके बहाने से हमें ऐसी अनमोल किताबों का परिचय मिलता रहता है।

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  30. अहा!! क्या एक से एक उम्दा शेर...आप मेरे घर में पूरी लायब्रेरी बनवाये बिना न मानेंगे.... :)

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  31. समीक्षा बहुत अच्छी लगी ..!

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  32. अदम गोंडवी साहब से परिचय करवाने के लिए आपका शुक्रिया. बहुत सशक्त शायरी है.

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  33. उनको खूब पढ़ा है.....ओर महसूस किया है के वे जमीनी शायर है .रूमानी नहीं......

    कल तलक जो हाशिए पर भी न आते थे नज़र
    आजकल बाजार में उनके कलेंडर आ गए




    देखिये न कितनी वाजिब बात कह दी उन्होंने.....वैसे तो ज़माना अब अपने इश्तेहार के पम्पलेट बांटने वालो का भी है

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  34. मौजूदा राजनितिक परिदृश्य में अच्छी दखल, आपने बेहतरीन किताब को उठाया है. यह पढनी ही होगी... आज सुबह सुबह ही मेरे एक दोस्त ने यह शेर सुनाया था

    काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में
    उतरा है रामराज विधायक निवास में

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  35. E-mail received from Mr.ratan Kumar:-

    Maja aa gaya ... Dil khush kar diya Adam Sahab ne...


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    घर में ठन्डे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है
    बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है




    Very touching...

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  36. अदम जी की शायरी आज और आने वाले १०० वर्षों तक सामयिक और यथार्थ से जुड़ी रहेगी ..... कितना सटीक लिखा है उन्होने ... हर शेर वाह वाह बोलने पर मजबूर करता है .... इतने सारे शेर सामाजिक व्यवस्था पर इकट्ठे नही लिखे होंगे किसी ने .... सलाम है अदम साहब की कलाम को ... और शुक्रिया आपका उनसे परिचय कराने का ....

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  37. जो ग़ज़ल माशूक के जल्वों से वाकिफ हो गयी
    उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो
    यह शेर तो बस लाजबाब था....
    शुक्रिया इतनी बढ़िया कृति और उसके शायर से परिचित करवाने को

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  38. सच कहा किताबों से जो प्यार नहीं करता ,वो इंसान कॆसा ?
    जो बदल सकती है इस दुनिया के मौसम का मिजाज़
    उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये.
    अति सुंदर......

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  39. गोंडवी जी हकीकतबयानी करते शेर पढ़वाने के लि‍ये शुक्रि‍या।

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  40. किताबों की दुनिया से
    एक और नायाब गौहर
    हम तक पहुंचाने के लिए
    आपका बहुत बहुत शुक्रिया

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  41. अदम साहब को सलाम,
    हर शेर सोचने को मजबूर कर दे रहा है.

    ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नजारों में
    मुसलसल फन का दम घुटता है इन अदबी इदारों में

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  42. इस लेख की तारीफ़ के लिए मेरे पास शब्द कम रह गए.पढ़कर बहुत ही ख़ुशी हुई. एक से बढ़कर एक शेर .....मज़ा आ गया.
    इसके लिए आपको आभार.

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  43. बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को
    भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को
    श्री अदम गोंडवी साहब जी को हमारा नमन
    आपका भी हार्दिक आभार उनकी इस उत्कृष्ट पुस्तक से रु-ब-रु करने के लिए

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  44. अदम जी जैसे महान शायर से रूबरू करवाने के लिय आपका बहुत बहुत धन्यवाद...शेर पढ़ने के बाद मन यही कह रहा है कितना जल्दी किताब ले लूँ...नीरज जी आपका बहुत बहुत आभार....

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  45. अनमोल हीरे छुपे हैं धरती माँ की कोख में
    सामनें आते हैं तो नज़र चुंधिया जाती है ।
    सच कहा आपने ,एक वक्त ऐसा आयेगा जब कोई आस पास नही होगा तब ये किताबें ही सहारा देंगी, फूल खिलायेंगी मन में उमंगों के । आप सही कह रहे हैं कि सारे पाठक किताबें नही खरीदते । हम तो साल के 6 महीने इधर गुजारते हैं तो किताबें खरीदना तो तभी हो पाता है जब वापिस जाते हैं और तब जो मिल जाती हैं ।
    पर आपकी पोस्टों का सहारा है कि इनका नाम पता तो मिल ही जायेगा ।

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  46. भूख के अहसास को शेरों सुखन तक ले चलो
    या अदब को मुफलिसों की अंजुमन तक ले चलो


    जो ग़ज़ल माशूक के जल्वों से वाकिफ हो गयी
    उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो

    Neeraj ji aapka jawaab nahiN. Aapki mehnat se hame muft me faayda milta hai. Aur Adam saaheb ne to inhiN do sheroN se jagah banaa li thi. Aage ke sher bhi ek se badh kar ek haiN.

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  47. आदरणीय नीरज गोस्वामी जी
    नमस्कार !

    " किताबों की दुनिया " के माध्यम से आप हर बार जो कमाल किया करते हैं , उस कड़ी में इस बार रामनाथ सिंह जी उर्फ़ "अदम गोंडवी जी" और उनकी पुस्तक " समय से मुठभेड़ " के परिचय ने मंत्रमुग्ध कर दिया ।

    पुस्तक मंगवा रहा हूं मैं भी , और इस उपयोगी जानकारी के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूं ।
    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे