Monday, August 30, 2010

किताबों की दुनिया - 36

हमने बौनों की जेब में देखी
नाम जिस चीज़ का सफलता है

तन बदलती थी आत्मा पहले
आजकल तन उसे बदलता है

एक धागे का साथ देने को
मोम का रोम रोम जलता है

उसका कुछ तो इलाज़ करवाओ
उसके व्यवहार में सरलता है

सीधे आम बोल चाल के शब्दों से गहरी बात करने में माहिर शायर बहुतायत में नहीं हैं. उन चंद नामवर शायरों में से एक जिनका नाम बहुत इज्ज़त से लिया जाता है शायर हैं हिंदी काव्य में अपनी मधुर गीतों के लिए प्रसिद्द श्री "बाल स्वरुप राही" साहब. ये ऐसी शख्शियत हैं जो किसी भी काव्य प्रेमी के लिए परिचय की मोहताज़ नहीं. आज हम उनकी पुस्तक " राही को समझाए कौन" का जिक्र करेंगे जिसे किताब घर प्रकाशन से प्रकाशित किया गया है.


हमें परहेज़ की बारीकियां समझाई जाती हैं
कि जब रंगीन शामों में खुली दावत के दिन आये

किसी महफ़िल, किसी जलवे, किसी बुत से नहीं नाता
पड़े हैं एक कोने में अजब फ़ुर्सत के दिन आये

बुजुर्गों में हमारा नाम भी शामिल हुआ शायद
बड़ी बदनामियों के बाद ये शोहरत के दिन आये

सोलह मई सन उन्नीस सौ छतीस तिमारपुर दिल्ली में जन्में राही साहब की पचपन ग़ज़लें समेटे ये पुस्तक अनूठी इस लिए है क्यूँ की इसमें हमें उनकी शायरी के कई रंग देखने को मिलते हैं. ऐसी ग़ज़लें जिनमें शुद्ध हिंदी शब्दों का प्रयोग है और ऐसी भी जिनमें उर्दू लफ़्ज़ों की भरमार है लेकिन उनकी ग़ज़ल में चाहे किसी भी ज़बान के लफ्ज़ हों एक बात पक्की है वो ये कि ग़ज़लें अपनी मारक क्षमता में कम नहीं हैं. राही साहब अपनी पसंद और ना पसंद के मामले में बड़े सख्त किस्म के इंसान हैं, जब तक कोई शख्स या चीज़ असाधारण ना हो, उनकी नज़रों में नहीं खुबती इसीलिए उनकी ग़ज़लों में भी असाधारण पन दिखाई देता है.

बुद्धिजीवी फिर इकठ्ठे हो गए
फिर ज़रूरी प्रश्न टाले जायेंगे

जिनकी कोशिश है कि कुछ बेहतर करें
नाम उनके ही उछाले जायेंगे

मिल गया राही सचाई का सिला
पेट में सूखे निवाले जायेंगे

प्रो.सादिक़ साहब इस किताब की भूमिका में लिखते हैं "राही साहब ने 1953 के आसपास जब ग़ज़ल / कविता लेखन शुरू किया तब कविता के नाम पर बहुत से प्रयोग हो रहे थे और लय बद्ध या छंद बद्ध कविताओं का बड़ी शिद्दत के साथ तिरस्कार किया जा रहा था , गीत और ग़ज़ल जैसी काव्य विधाओं को निरर्थक, निष्फल और अनुचित मानकर हिक़ारत की नज़र से देखा जाने लगा था लेकिन राही साहब पूरी संजीदगी से इन्हें अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाये रहे. ये अमल अपने और अपनी कला -क्षमता पर पूर्ण विशवास के बगैर संभव नहीं." सादिक़ साहब की बात इस किताब को पढ़ते वक़्त पूरी तरह खरी उतरती मालूम होती है:

हम पर दुःख का परबत टूटा तब हमने दो चार कहे
उस पे भला क्या बीती होगी जिसने शेर हज़ार कहे

अब किसके आगे हम अपना दुखड़ा रोयें छोड़ो यार
एक बात को आखिर कोई बोलो कितनी बार कहे

ढूंढ रहे हो गाँव गाँव में जा कर किस सच्चाई को
सच तो सिर्फ वही होता है जो दिल्ली दरबार कहे

इस किताब में मुझे एक खूबी मिली जो मुझे अन्य शायरी की किताबों में नहीं मिली वो ये कि इसमें राही साहब ने "हिंदी ग़ज़ल :आक्षेप और अपेक्षाएं" शीर्षक से लेख लिखा है जिसमें उन्होंने हिंदी ग़ज़ल पर बहुत विस्तृत लेकिन सार्थक चर्चा की है. हिंदी ग़ज़ल के प्रवर्तक अमीर खुसरो से शुरू हुई चर्चा कबीर से होती हुई भारतेंदु हरिश्चंद्र, प्रेम घन 'अब्र', श्री धर पाठक, मैथिलि शरण गुप्त, राम प्रसाद बिस्मिल, निराला, जयशंकर प्रसाद, रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' , रामावतार त्यागी जैसे अनेकों लब्ध प्रतिष्ठित कवियों की अनूठी ग़ज़लों से हमें रूबरू करवाती है. राही जी का ये लेख संग्रहणीय है.
आईये अब उनकी एक छोटी बहर की ग़ज़ल के कुछ शेरों पर नज़र डालें:-

रोटी सेक रहा है कौन
सारा शहर बना तंदूर

झूठ के जैसे तानाशाह
सच जैसे बंधुआ मज़दूर

इसका कोई नहीं इलाज़
स्वाभिमान ऐसा नासूर

राही को समझाए कौन
कविताई है सिर्फ फितूर

अपने युग की सर्वश्रेष्ठ कहानी की पत्रिका "सारिका" से जुड़ने के बाद राही जी ने बरसों "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" पत्रिका में काम किया और उसे लोकप्रियता की नयी बुलंदियों पर पहुँचाया. उन्होंने जहाँ काम किया अपनी शर्तों पर किया और जब भी जरा सी भी चोट उनके स्वाभिमान को पहुंची उन्होंने तुरंत बिना सोचे समझे उस काम को तुरंत छोड़ दिया. खुद्दारी से भी जिया जाता है ये सीख उन्होंने अपनी शायरी में भी दी है:-

लगे जब चोट सीने में ह्रदय का भान होता है
सहे आघात जो हंस कर वही इंसान होता है

लगाकर कल्पना के पर उड़ा करते सभी नभ पर
शिला से शीश टकरा कर मुझे अभिमान होता है

राही साहब की साहित्य साधना पिछले पचास वर्षों से निर्बाध रूप से चल रही है. इस दौरान उन्होंने कितनी ही कहानियां, कवितायेँ , ग़ज़लें , बाल गीत और यहाँ तक की हिंदी का प्रथम ओपेरा तक रच डाला है.. उनकी उपलब्धियों को तो गिनाने के लिए अलग से एक और पोस्ट लिखनी पड़ेगी, फिलहाल आखिर में उनकी एक ग़ज़ल के तीन शेर आपको पढवाते हुए अगली किताब की खोज करने तक आपसे विदा लेता हूँ:

पहचान अगर बन न सकी तेरी तो क्या ग़म
कितने ही सितारों का कोई नाम नहीं है

मत सोच कि क्या तूने दिया तुझको मिला क्या
शायर है जमा-ख़र्च तेरा काम नहीं है

उठने दे जो उठता है धुआं दिल की गली से
बस्ती वो कहाँ है जहाँ कोहराम नहीं है

टपकेगा रुबाई से तेरी ख़ून या आंसू
राही है तेरा नाम तू खैयाम नहीं है

43 comments:

  1. बहुत अच्छी लगी यह किताबी चर्चा..

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  2. हमने बौनों की जेब में देखी
    नाम जिस चीज़ का सफलता है

    क्या बात कह दी……॥गज़ब्।


    तन बदलती थी आत्मा पहले
    आजकल तन उसे बदलता है

    सही तो है………………आज का युग कृत्रिम युग जो बन गया है।

    एक धागे का साथ देने को
    मोम का रोम रोम जलता है

    उफ़्……………कितना दर्द भर दिया।

    उसका कुछ तो इलाज़ करवाओ
    उसके व्यवहार में सरलता है

    बिल्कुल जी , आजकल तो सरल इंसान का ही इलाज जरूरी है क्योकि जब तक वो बेईमान नही बनेगा बाकियों का जीना हराम नही हो जायेगा।

    नीरज जी,
    एक बार फिर आपके कार्य की किन शब्दो मे प्रशंसा करूँ………………एक से एक नायाब मोती लाते हैं आप्……………………हार्दिक आभारी हूँ।

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  3. एक धागे का साथ देने को
    मोम का रोम रोम जलता है

    बुद्धिजीवी फिर इकठ्ठे हो गए
    फिर ज़रूरी प्रश्न टाले जायेंगे

    झूठ के जैसे तानाशाह
    सच जैसे बंधुआ मज़दूर

    इसका कोई नहीं इलाज़
    स्वाभिमान ऐसा नासूर


    मत सोच कि क्या तूने दिया तुझको मिला क्या
    शायर है जमा-ख़र्च तेरा काम नहीं है

    सारे अश’आर कहां तक लिखूं ,चंद वो अश’आर हैं जो बहुत अच्छे लगे
    नीरज जी एक उम्दा शायर के बारे में
    जानकारी देने ,और उन का कलाम पढ़वाने का शुक्रिया

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  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति.

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  5. समीक्षा तो बढ़िया है ही,
    रचनाओं के माध्यम से बालकृष्ण राही से मिलकर भी बहुत अच्छा लगा!

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  6. एक धागे का साथ देने को
    मोम का रोम रोम जलता है

    बिलकुल नायाब सोच..

    हम पर दुःख का परबत टूटा तब हमने दो चार कहे
    उस पे भला क्या बीती होगी जिसने शेर हज़ार कहे
    ये तो मेरा पसंदीदा शेर है....

    बहुत बहुत शुक्रिया ,इस पुस्तक और राही जी की रचनाओं से रु-ब-रु करवाने का. मेहनत आपकी होती है...और लाभ हमारा...पुनः धन्यवाद

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  7. एक धागे का साथ देने को
    मोम का रोम रोम जलता है
    .............


    पहचान अगर बन न सकी तेरी तो क्या ग़म
    कितने ही सितारों का कोई नाम नहीं है
    mann in panktiyon me saansen lene laga

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  8. लाजवाब समीक्षात्मक प्रस्तुति।

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  9. समीक्षा बढ़िया रही...
    पहचान अगर बन न सकी तेरी तो क्या ग़म
    कितने ही सितारों का कोई नाम नहीं है

    कितनी किताबें है आपके पास....:)

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  10. एक धागे का साथ देने को
    मोम का रोम रोम जलता है


    देखिये ना इतने दिनो से किस गलत फहमी में थी इस शेर को ले कर। सोच रही थी कि ये गुलज़ार का शेर है....!! कभी ये पोस्ट भी लिखी थी
    http://kanchanc.blogspot.com/2008/12/blog-post_10.html
    आज पूरी ग़ज़ल देख पढ़ कर अच्छा लगा।

    हम पर दुःख का परबत टूटा तब हमने दो चार कहे
    उस पे भला क्या बीती होगी जिसने शेर हज़ार कहे

    पहचान अगर बन न सकी तेरी तो क्या ग़म
    कितने ही सितारों का कोई नाम नहीं है

    उठने दे जो उठता है धुआं दिल की गली से
    बस्ती वो कहाँ है जहाँ कोहराम नहीं है

    टपकेगा रुबाई से तेरी ख़ून या आंसू
    राही है तेरा नाम तू खैयाम नहीं है


    ये सारे शेर सुने तो थे, मगर जाना नही था कि किस संग्रह का है।

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  11. उसका कुछ तो इलाज़ करवाओ
    उसके व्यवहार में सरलता है

    बुजुर्गों में हमारा नाम भी शामिल हुआ शायद,
    बड़ी बदनामियों के बाद ये शोहरत के दिन आये
    बचपने में जितना निर्दोषपन, भोलापन होता है और बुजुर्गपन में उतनी ही सादगी।

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  12. अच्छी कविता लिखी है आपने .......... आभार
    कुछ लिखा है, शायद आपको पसंद आये --
    (क्या आप को पता है की आपका अगला जन्म कहा होगा ?)
    http://oshotheone.blogspot.com

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  13. बहुत सरल और कम शब्दों में ज्यादा कहने की कला है राही साहब में ।
    बहुत अच्छा लगा उनको पढना ।
    आभार इस प्रस्तुति के लिए , नीरज जी ।

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  14. आनन्द आ गया पढ़कर। आजकल सच में सरलता का इलाज कराना पड़ता है।

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  15. ये शेरो-शायरी कैसा सुकून देते हैं,छेड़ते तो हैं दुखती रगें
    गम उसका मेरा एक है , बस यही तस्दीक देते हैं

    एक धागे का साथ देने को
    मोम का रोम रोम जलता है
    उसका कुछ तो इलाज़ करवाओ
    उसके व्यवहार में सरलता है

    क्या बात कही है , जैसे शब्द मोहताज नहीं हैं ...कितनी सरलता से बात कह दी है ।

    रोटी सेक रहा है कौन
    सारा शहर बना तंदूर

    उठने दे जो उठता है धुआं दिल की गली से
    बस्ती वो कहाँ है जहाँ कोहराम नहीं है

    ये शेर तो नायाब हैं । आपका बहुत बहुत शुक्रिया

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  16. मत सोच कि क्या तूने दिया तुझको मिला क्या
    शायर है जमा-ख़र्च तेरा काम नहीं है
    !!!!!!!!!!!
    क्या कहने !

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  17. आज तो आपने खजाना ही दे दिया!

    छोटी बहर में, सरल शब्दों में, सादगी से, करारी मारक क्षमता सिद्ध करते इन बेहतरीन शेरों ने तो दिल को झकझोर ही दिया...

    रोटी सेक रहा है कौन
    सारा शहर बना तंदूर

    झूठ के जैसे तानाशाह
    सच जैसे बंधुआ मज़दूर

    इसका कोई नहीं इलाज़
    स्वाभिमान ऐसा नासूर

    राही को समझाए कौन
    कविताई है सिर्फ फितूर
    ..आभार।

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  18. सभी शेर बहुत अच्छॆ लगे, ओर समीक्षा भी सुंदर लगी धन्यवाद

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  19. वाह नीरज जी आपने तो आज का मेरा दिन सफल कर दिया. अनन्य आभार.

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  20. बालस्वरूप राही जी को बचपन से पढते रहे हैं..एतना बड़ा क़द है इनका कि इनके बिसय में कुछ भी कहना कम से कम हमरे लिए धृष्टता होगा...नीरज जी, आपका चयन है त फिर कहना ही क्या...राही जी को नमन अऊर आपके चयन को सलाम!

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  21. गुरुदेव, आपकी देखमदेख अब ये बच्चा भी एकाध कच्चे शे'र कहने लगा है और कहने को तो गज़ल भी लिखी है कच्ची-पक्की। लेकिन आप तो बालक को एकदम से ही भूल गये है कोई गुस्ताखी हो गई बेअदब से शान मे। तीन साल पहले जब ब्लाग की छटी की थी तब आपने ही अपनी टिप्पणी से संस्कार किया था..अब न जाने आप कहाँ बडे-बडे नामो मे खो गये है आप तो बडे है ही लेकिन इस नाचीज़ पर भी आपकी इनायत हो जाए तो मेरे लिए लिखे बोल भी मोगरे की डाली बन जाएं...
    बच्चे बडे भी तो हो जाते है!
    आभार सहित
    आपका स्नेहाकांक्षी

    डा.अजीत
    www.shesh-fir.blogspot.com
    www.monkvibes.blogspot.com
    www.paramanovigyan.blogspot.com

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  22. बुद्धिजीवी फिर इकठ्ठे हो गए
    फिर ज़रूरी प्रश्न टाले जायेंगे

    जिनकी कोशिश है कि कुछ बेहतर करें
    नाम उनके ही उछाले जायेंगे

    राही जी से और उनकी पुस्तक से परिचय करवाने के लिए आभार ...आपकी करी हुई समीक्षा बहुत पसंद आती है ....शुक्रिया

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  23. गज़ब कर डाला..क्या परिचय कराया है,,वाह!! डूब गये साहब:


    हम पर दुःख का परबत टूटा तब हमने दो चार कहे
    उस पे भला क्या बीती होगी जिसने शेर हज़ार कहे


    छा गया यह शेर दिलो दिमाग पर...नोट हो गया. यह किताब तो जरुर हासिल की जायेगी...

    कुछ पता ठिकाना दिजिये कि कहाँ से मंगाई जाये..

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  24. बहुत बढ़िया ! कहने का मन कर रहा है... कुछ तो इलाज करवाओ बहुत धांसू ब्लोग्गर है :)

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  25. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  26. बाल स्वरूप राही को तकरीबन छह साल पहले पढ़ा था ....कुछ शेर डायरी में भी जमा है उनके .......मेरठ से भी एक प्रकाशन ने कुछ गजलो के संग्रह निकाले थे .उनमे से एक राही साहब है

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  27. रही साहब का एक एक शेर बेहतरीन लगा ..........एक अच्छी पोस्ट उन लोगो के नाम जो शयद कहीं अंधेरों में गम हो गएँ हैं ...............आपका प्रयास सराहनीय है |

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  28. "राही को समझाए कौन"

    एक अच्छी किताब से परिचय करवाया ..... आभार...

    जिनकी कोशिश है कि कुछ बेहतर करें
    नाम उनके ही उछाले जायेंगे


    दुरुस्त ....

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  29. नीरज जी, आदाब
    आदरणीय ”बाल स्वरुप राही" साहब की शख़्सियत
    और कलाम से रूबरू कराने के लिए आपका शुक्रिया
    क्या लाजवाब शेर दिया है-
    हम पर दुःख का परबत टूटा तब हमने दो चार कहे
    उस पे भला क्या बीती होगी जिसने शेर हज़ार कहे
    वाह...
    ढूंढ रहे हो गाँव गाँव में जा कर किस सच्चाई को
    सच तो सिर्फ वही होता है जो दिल्ली दरबार कहे
    राजनीति पर कितना करारा व्यंग्य है.

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  30. आदरणीय नीरज जी,
    नहीं मालूम कि आप मुझे जानते हैं या नहीं। लेकिन मैं आपको भली-भांति जानता हूँ। आपकी 'किताबों की दुनिया' की दुनिया में मैं खूब सैर कर चुका हूँ, लगातार करता हूँ। शायरों का आलोचनात्मक परिचय या उनकी परिचयात्मक आलोचना में आप सिद्धहस्त हैं। यह बात तो हर पोस्ट में देखने को मिलती ही है। लेकिन इस बार की पोस्ट में तो आप एक नायब हीरा खोज लाये। खोज लाने का मतलब यह नहीं है कि राही साहब से आपने परिचय करा दिया। उन्हें कौन नहीं जानता। बहुत बड़ा धन्यवाद इसलिए कि आपने इस किताब के बारे में सारी जानकारी मुहैया करा दी। अब मैं भी खरीद सकता हूँ। राही साहब के बारे में क्या कहूं:

    एक धागे का साथ देने को
    मोम का रोम-रोम जलता है

    उसका कुछ तो इलाज करवाओ
    उसके व्यवहार में सरलता है
    ऐसे अशआर कहने वाले शायर के बारे में कुछ भी कहने की क्या ज़रुरत है। अशआर खुद बोलते हैं। बहरहाल, आपको एक बार और धन्यवाद ।

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  31. कृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
    अकेला या अकेली

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  32. यहाँ बाल स्वरुप राही जी पर ऐसे आलेख (किताबो की दुनिया के हवाले) हैं.
    नीरज सर, हम आपके अहसानमंद है कि आपने अन्य पहलुओं पर भी प्रकाश डाला है.
    किस शेर की बात करूँ.... नमन करता हूँ.

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  33. Sunder shyari aur ek mukammal shayar Bal swaroop Rahee ji se parichay karane ka abhar. Kamal ke sher hain.
    लगे जब चोट सीने में ह्रदय का भान होता है
    सहे आघात जो हंस कर वही इंसान होता है

    लगाकर कल्पना के पर उड़ा करते सभी नभ पर
    शिला से शीश टकरा कर मुझे अभिमान होता है

    पहचान अगर बन न सकी तेरी तो क्या ग़म
    कितने ही सितारों का कोई नाम नहीं है

    मत सोच कि क्या तूने दिया तुझको मिला क्या
    शायर है जमा-ख़र्च तेरा काम नहीं है

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  34. एक धागे का साथ देने को
    मोम का रोम-रोम जलता है

    kitne sundar sher hain...ab rahi ji ko aur padhne ka man kar raha hai. sare sher lajavaab hain.

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  35. आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
    बहुत बढ़िया !

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  36. एक धागे का साथ देने को
    मोम का रोम रोम जलता है

    बाऊ जी,
    ये वाला स्टैंड आऊट करता है!
    आशीष
    --
    अब मैं ट्विटर पे भी!
    https://twitter.com/professorashish

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  37. ढूंढ रहे हो गाँव गाँव में जा कर किस सच्चाई को
    सच तो सिर्फ वही होता है जो दिल्ली दरबार कहे

    - तीखा व्यंग्य !

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  38. bus sir ab kya kahe,,, sab ke sab gazlen ek se badhkar ek hain...very nice...

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  39. बेहद प्रभावित करने वाला लेखन लगा राही साहब का। आपका कोटिशः आभार इस पुस्तक से हमारा परिचय कराने के लिए।

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  40. नीरज जी आपके ब्लॉग पर ज्यादा आना-जाना हो नहीं पाता लेकिन कोशिश करता हूँ कि किताबों की आपकी ये सीरीज न छूटे...

    इस सीरीज की हर एक पोस्ट संजोकर रखने के लिये है..

    आज का अपना हिस्सा ले जा रहा हूँ
    "बुद्धिजीवी फिर इकठ्ठे हो गए
    फिर ज़रूरी प्रश्न टाले जायेंगे

    जिनकी कोशिश है कि कुछ बेहतर करें
    नाम उनके ही उछाले जायेंगे।"

    आभार!!

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  41. adarneeya neeraj bhai,
    aap ki pustak sameeksha padhi ,anand aagaya .waise aapney shuruat ke liye bahut hi umda sher chuna.Kuch bhi ho aap jo bhi likhtey hai ,wahi shreshtha ho jata hai.
    Hardik abhaar,
    sader,
    bhoopendra
    rewa mp

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  42. "बाल स्वरुप राही" साहब को जितना पढ़ा है उन्हें और पढने की इच्छा बढ़ी है, ये जादू है उनके अशआरों का और उनकी कलम का.
    बुद्धिजीवी फिर इकठ्ठे हो गए
    फिर ज़रूरी प्रश्न टाले जायेंगे

    जिनकी कोशिश है कि कुछ बेहतर करें
    नाम उनके ही उछाले जायेंगे

    हर शेर का असर इतना है कि उसे कम से कम चार से पांच बार पढ़ रहा हूँ.
    हम पर दुःख का परबत टूटा तब हमने दो चार कहे
    उस पे भला क्या बीती होगी जिसने शेर हज़ार कहे

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे