Monday, May 3, 2010

किताबों की दुनिया - 28

" गागर में सागर " आपने ये जुमला अक्सर सुना होगा लेकिन मैं नहीं जानता के आप में से कितने ऐसे हैं जिन्होंने इसे महसूस किया है. गागर में सागर वाले करिश्मे बहुत कम हुआ करते हैं लेकिन ये करिश्मा ,कम से कम मेरे लिए तो, किया है वाग्देवी प्रकाशन वालों ने. उन्होंने पकिस्तान के उस्ताद शायर जनाब वजीर आग़ा साहब की एक किताब प्रकाशित की है जिसका नाम है " उजड़े मकाँ का आईना " . मात्र पच्चीस रुपये की इस छोटी सी पेपर बैक किताब के एक सौ साठ पृष्ठों में उर्दू शायरी का अनमोल खज़ाना भरा पड़ा है. वो लोग जो उर्दू शायरी की नफासत और नजाकत को पसंद करते हैं इस किताब को सीने से लगाये रक्खेंगे ये मेरा दावा है.




इतना न पास आ कि तुझे ढूंढते फिरें
इतना न दूर जा कि हमावक्त पास हो
हमावक्त = हर समय

मैं भी नसीमे-सुब्ह की सूरत फिरूं सदा
शामिल गुलों की बास में गर तेरी बास हो
नसीमे-सुब्ह = सुबह की हवा

पाकिस्तान के सरगोधा में १८ मई १९२२ में जन्में वज़ीर आग़ा साहब हालाँकि हिंदी के पाठकों में अपने दूसरे साथियों की तरह बहुत अधिक प्रसिद्द नहीं हो पाए क्यूँ की वो मुशायरों के शायर कभी नहीं रहे जहाँ कमोबेश रोमांटिक ग़ज़लें पेश की जातीं हैं लेकिन अदबी हलकों में उनका दबदबा बाकायदा कायम है. आग़ा साहब नज्मों के उस्ताद माने जाते हैं लेकिन जब उन्होंने ग़ज़लें कहीं तो किसी से पीछे नहीं रहे:

यकीं दिलाओ न मुझको कि तुम पराये नहीं
मुझे तो ज़ख्म लगे तुमने ज़ख्म खाए नहीं

ये आईना किसी उजड़े मकाँ का आईना है
मैं गर्द साफ़ भी कर दूं तो मुस्कुराये नहीं

मकाँ ख़मोश अगर है तो दोष किसका है
करे भी क्या जो कोई उसको घर बनाये नहीं

आग़ा साहब की रचनाएँ हिंदी और पंजाबी के अलावा ग्रीक, अंग्रेजी, स्वीडिश, स्पेनिश आदि कई यूरोपियन भाषाओँ में अनूदित हुई हैं. कई सम्मानों से अलंकृत वजीर आग़ा कुछ आलोचकों की दृष्टि में नोबेल पुरूस्कार के लिए पाकिस्तान से वाजिब हकदार हैं.

चुप रहूँ और उसे मलाल न हो
अनकही का तो ऐसा हाल न हो

कुफ्ल कैसे खुलेगा उस लब का
मेरे लब पर अगर सवाल न हो
कुफ्ल= ताला

हूँ अकेला भरे ज़माने में
कोई मुझसा भी बेमिसाल न हो

जनाब शीन काफ निजाम और नन्द किशोर आचार्य जी ने बहुत मेहनत से इस किताब को सम्पादित किया है. इसमें आग़ा साहब की लगभग सौ से अधिक ग़ज़लें और चालीस के करीब नज्में समोहित हैं. उर्दू शायरी का हुस्न बिखरती उन्ही हर ग़ज़ल और नज़्म लाजवाब है और बार बार पढने लायक है. ये किताब ऐसी नहीं जिसे आप एक सांस में पढ़ कर उठ जाएँ बल्कि इसे घूँट घूँट पी कर देर तक इसके सरूर में डूबे रहें जैसी है.

तमाम उम्र ही गुजरी है दस्तकें सुनते
हमें तो रास न आया खुद अपने घर रहना

ज़रा सी ठेस लगी और घर को ओढ़ लिया
कहां गया वो तुम्हारा नगर नगर रहना

आईये अब उनके छोटी बहर में किये गए बेमिसाल हुनर पर भी इक नज़र डालें और इस नायाब किताब को मंगवाने की ईमानदार कोशिश करे. आप ये पुस्तक वाग्देवी प्रकाशन से उनके मेल vagdevibooks@gmail.com पर अपना पता भेज कर मंगवा सकते हैं या फिर उनसे 0151-2242023 फोन नंबर पर संपर्क कर इसके बारे में जानकारी ले सकते हैं.

एक लम्हा अगर गुज़र जाये
दूसरा तो गुज़र ही जायेगा

अब ख़ुशी भी तो दिल पे वार करे
ग़म तो ये काम कर ही जायेगा

ज़ब्त करता रहा अगर यूँ ही
ये शज़र बे-समर ही जायेगा
बे-समर = फल रहित

छोटी बहर ही में उनकी एक और ग़ज़ल का लुत्फ़ उठाईये और देखिये के कैसे कम लफ़्ज़ों में गहरी बात की जाती है. ये हुनर हर किसी को ऊपर वाला अता नहीं करता.

आँख में तेरी अगर सहरा नहीं
हाल पर मेरे तू क्यूँ रोया नहीं

दस्तकें ही दस्तकें हैं हर तरफ
आदमी इक भी नज़र आता नहीं

मैं सदा दूं और तू आवाज़ दे
इस भरी दुनिया में मुमकिन क्या नहीं

रो रहा हूँ एक मुद्दत से मगर
आँख से आंसू कोई टपका नहीं

बस अभी इतना ही...अगर आप शायरी खास तौर पर अच्छी संजीदा शायरी के शौकीन हैं तो फिर ये किताब आपके लिए है. आपको सिर्फ एक मेल या फोन करने की देर है वाग्देवी प्रकाशन बीकानेर वाले इसे आप तक पहुँचाने में ज्यादा वक्त नहीं लेंगे. इसका मुझे पूरा विश्वाश है. मिलते हैं एक नयी किताब के साथ कुछ दिनों बाद.

30 comments:

  1. हमेशा की तरह नायाब मोती ढूँढकर लाये हैं……………आभार्।

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  2. ये आईना किसी उजड़े मकाँ का आईना है
    मैं गर्द साफ़ भी कर दूं तो मुस्कुराये नहीं

    सुबह सुबह दिन बना दिया... कुछ शेर जब अपने अंदाज़ में बोल कर पढता हूँ ... वाह-वाह मच जाती है पर श्रोताओं के बीच हाय-हाय मच जाती है :)

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  3. बेहतरीन! बेहतरीन!!

    हम अनजान थे, आपका आभार!

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  4. ज़रा सी ठेस लगी और घर को ओढ़ लिया
    कहां गया वो तुम्हारा नगर नगर रहना
    ........kitni sundar laine!!!abhar aapka.

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  5. फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई

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  6. एक लम्हा अगर गुज़र जाये
    दूसरा तो गुज़र ही जायेगा
    ... sachche moti ke jauhree hain aap

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  7. AAPKAA KAAM BHARPOOR PRASHANSHA KE
    YOGYA HAI.SHUBH KAMNA.

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  8. निजाम और आचार्य जी बधाई के पात्र हैं .. और आप भी , जिनसे
    आज मैंने यह जानकारी पायी ..
    सवाल पैदा करती बातें है जनाब की !
    इस तरह आप हर बार परिचय में नया कुछ जोड़ते ही रहते हैं ! धन्यवाद !

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  9. "रो रहा हूँ एक मुद्दत से मगर
    आँख से आंसू कोई टपका नहीं"
    क्या बात है!

    नीरज साहब, वज़ीर आग़ा जी से परिचित कराने के लिये आपका धन्यवाद।

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  10. आपकी पोस्‍ट से ए कबात तो कन्‍फर्म हो गयी कि अब याददाश्‍त पर ज्‍यादह भरोसा नहीं किया जा सकता है।
    मुझे कुछ ऐसा स्‍मरण था कि:
    इतना न पास आ कि तुझे ढूंढते फिरें
    इतना न दूर जा कि हमावक्त पास हो
    अली सरदार जाफरी साहब का शेर है, अर्सा पहले पढ़ा था इस ग़ज़ल को रीडर्स डायजेस्‍ट के स्‍पेशल 'सर्वोत्‍तम' में।
    किस-किस शेर की बात की जाये, इन्‍तहा है दर्द की:
    ज़रा सी ठेस लगी और घर को ओढ़ लिया
    कहां गया वो तुम्हारा नगर नगर रहना
    आनन्‍द आ गया पढ़कर और पुस्‍तक पाने का साधन जानकर।

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  11. हूँ अकेला भरे ज़माने में
    कोई मुझसा भी बेमिसाल न हो


    अब ख़ुशी भी तो दिल पे वार करे
    ग़म तो ये काम कर ही जायेगा

    कमाल है भाई ... एक बार फिर आप की पोस्ट ने दिल खुश कर दिया. बेहतरीन शेर पढवाए हैं .... शुक्रिया अभी नहीं ...

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  12. बहुत खूबसूरत खज़ाना शायरी का ।
    आगा साहब की शायरी सरल भी दिलकश भी । आभार।

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  13. हमेशा की तरह उम्दा प्रस्तुति

    नायाब पुस्तक

    मूल्य मात्र २५ रुपये, वाह

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  14. नीरज जी ग़ज़ल की महान हस्तियों और उनकी रचनाओं के प्रस्तुति का यह क्रम भी बेहतरीन रहा...बढ़िया ग़ज़ल पढ़ने को मिली...बहुत बहुत धन्यवाद

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  15. नीरज भाई ,
    क्या शुक्रिया अदा करूँ ? आप ऐसे ही रूह को राहत देते रहें ,किताबों से मिलवाते रहें.

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  16. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है. आप ठीक कहते हैं कि इस किताब को सीने से लगाये रक्खेंगे ये मेरा दावा है.
    सारे ही अश'आर कमाल के हैं.
    ज़ब्त करता रहा अगर यूँ ही
    ये शज़र बे-समर ही जायेगा
    रो रहा हूँ एक मुद्दत से मगर
    आँख से आंसू कोई टपका नहीं
    जनाब वजीर आग़ा साहब की शायरी के कुछ नगीने पढ़वाने के लिए बहुत शुक्रिया.
    महावीर शर्मा

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  17. yeh kitab to padni hi padegi ...

    shukriya !!

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  18. बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना! ये किताब तो पढ़ना ही पड़ेगा! उम्दा प्रस्तुती!

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  19. This comment has been removed by the author.

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  20. हकीकत में ये पोस्ट भी गागर में सागर है.."

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  21. एक बेहतरीन शायर से मिलवाने के लिए आभार !

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  22. वजीर आगा साहब को पहले पढ़ा है मैंने भी, मगर आपने लिख तो फिर से जी किया कि उन्हें दोहराया जाए......किताब मेरे पास थी ही.......फिर से हुज़ूर को पढ़ रहा हूँ...मज़े लूट रहा हूँ मगर शुक्रिया नीरज जी आपका कि आपने वजीर साहब के बारे में इतना बेहतरीन लिखा......उनकी तो बात ही निराली है.

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  23. नीरज जी,
    वजीर आगा साहब के बारे में जानकर और पढकर अच्छा लगा।

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  24. एक लम्हा अगर गुज़र जाये
    दूसरा तो गुज़र ही जायेगा


    वाह नीरज जी !
    बहुत अच्छी ग़ज़लें और बहुत उम्दा फनकार से रूबरू करवाया आपने !
    हमेशा की तरह ....
    बहुत बहुत शुक्रिया और यूँ ही आगे भी इस दुनिया में घुमाते रहें ....:)

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  25. वज़ीर आगा, शायरी की दुनिया का अजीमुश्शान सितारा. जिन्हें अदबी जौक है, वो इस इस नाम से बखूबी वाकिफ हैं और जो बदकिस्मती से अन्जान थे अब तक, उन्हें 'नीरज गोस्वामी' नाम का फरिश्ता अल्लाह ने मुहैया करा दिया है ताकि इस दुनिया में जितनी नायाब शख्सियतें अदब की खिदमत करती रही हैं, उनकी जानकारी इस फरिश्ते से ले लो.
    बहुत ग्रेट काम कर रहे हैं नीरज भाई, ऊपर वाली का हाल मुझे तो नहीं पता लेकिन इस दुनिया में जन्नत आपके नाम.

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  26. मेरे संग्रह में एक और इजाफ़ा करवाने जा रहा है ये पोस्ट। आगा साब को कम ही पढ़ा है। इस एक मतले ने तो जान ही निकाल कर रख दी है:-

    चुप रहूँ और उसे मलाल न हो
    अनकही का तो ऐसा हाल न हो

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे