(ये पोस्ट मेरे हम नाम भाई नीरज जाट जी की घुमक्कड़ी को समर्पित है)
कहीं पढ़ा था "घूमने का कोई मौसम नहीं होता, जब दिल करे तब घूमिये"...याने हर मौसम घूमने का मौसम है क्यूँ की हर मौसम का अपना आनंद है. मन में घूमने की ललक हो तो जेठ की धूप भी चांदनी सी लगती है. अक्सर लोग मौसम का इंतज़ार ही करते रह जाते हैं और घूमने का समय हाथ से निकल जाता है.
आप सोचेंगे क्या उल-जलूल बात की जा रही है, बाहर भयंकर गर्मी पड़ रही है और ये महाशय घूमने की बात कर रहे हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दें के भाई हम बात ही नहीं करते घूमते भी हैं
अभी पिछले दिनों की ही बात है.अचानक बैठे ध्यान आया की हमारे घर के पास एक बहुत विशेष हिल स्टेशन है, जहाँ किसी भी प्रकार के वाहन के चलने पर प्रतिबन्ध है और जिसे हमने आजतक देखा भी नहीं है, तो क्यूँ ना वहां चला जाए? ...जी हाँ आप सही समझे हम "माथेरान" का जिक्र कर रहे हैं. साथ चलने के लिए बहुत से मित्रों से बात चीत की जिनमें से अधिकाँश मौसम, गर्मी, समय की कमी, बच्चों की पढाई और तबियत नासाज़ होने जैसे शाश्वत बहाने बना कर किनारा कर गए. एक मित्र जो निहायत शरीफ किस्म के हैं और हमारी किसी भी बात को नहीं टालते साथ चलने को तैयार हो गए.
नेरल स्टेशन से, जो हमारे घर से मात्र तीस की.मी. दूर है, एक छोटी सी खिलौना रेल गाडी माथेरान तक चलती है. अंग्रेजों के ज़माने से चली इस ट्रेन को कोई सौ साल हो चुके हैं. हमारे "माथेरान" जाने के कार्यक्रम के पीछे पहाड़ के अलावा इस ट्रेन की यात्रा का लोभ भी था. घर से सुबह छै बजे अपनी कार से चले और सात बजे तक नेरल स्टेशन पहुँच गए जहाँ से साढ़े सात की माथेरान जाने वाली पहली ट्रेन पकड़ ली, जिसका रिजर्वेशन पहले से ही करवा के रखा था. ड्राइवर को बोल दिया की भाई तुम दोपहर तक माथेरान में जहाँ तक कार जा सकती है वहां हमें लेने आ जाना. ट्रेन के कूपे में हम दो परिवार ही थे. कारण ये के छुट्टियाँ न होने की वजह से भीड़ अधिक नहीं थी और दूसरे मुंबई वाले ये सुबह की ट्रेन कम ही पकड़ते हैं क्यूँ की इसके लिए उन्हें अपना घर पांच बजे जो छोड़ना पड़ता है.
नेरल जंक्शन मुंबई से लगभग अस्सी की.मी. दूर है और यहाँ से पूना या दक्षिण की और जाने वाली गाड़ियाँ धडधडाती हुई गुज़रती रहती हैं. छोटी सी चार डिब्बों की टॉय ट्रेन जब नेरल स्टेशन से चली तो हम बिलकुल बच्चे बन गए...भूल गए के हमारे पोती(मिष्टी)-पोते(इक्षु) भी हैं...दरवाज़े के बाहर लटक लटक कर धीमी गति से चलती ट्रेन से फोटो खींचने लगे...शोर मचाने लगे... आज मैं इस पोस्ट के माध्यम से माथेरान यात्रा की उन्हीं फोटो से आपका परिचय करवा रहा हूँ...आप में से जो खोपोली के नाम से से मेरे यहाँ आने में कतराते रहे हैं वो कम से कम ये चित्र देख कर इस यात्रा का लुत्फ़ लेने जरूर आयेंगे.
पच्चीस रुपये का टैक्स भर कर फिर आप माथेरान में दाखिल होते हैं. यहाँ रुकने के लिए सैंकड़ों छोटे बड़े होटल हैं, खाने पीने के रेस्टुरेंट हैं और घूमने के लिए बीस से ऊपर जगह हैं. जैसा की मैंने पहले ही बताया यहाँ घूमने के लिए आपको कोई टैक्सी, बस या ऑटो नहीं मिलेगा. घोड़ों खच्चरों और पालकियों की भरमार मिलेगी. हमने बाहर निकल कर घोड़े किये. ज़िन्दगी में पहली बार जाना घुड सवारी का मज़ा क्या होता है. अपनी शादी में भी घोड़े पर ये सोच कर नहीं बैठे की क्या पता हमारे इस क्रांतिकारी कदम से प्रभावित हो कर , घोड़े पर बैठने जैसे पुराने रिवाज़ से लोग मुंह मोड़ लेंगे, ऐसा कुछ हुआ नहीं, लेकिन अब शादी के चौंतीस साल बाद घोड़े पर बैठने का औचित्य समझ में आया .
मैं आम इंसान की बात कर रहा हूँ, घुड सवारों की नहीं.शादी और घोड़े पर बैठने में एक समानता है. अगर आप पहली बार घोड़े पर बैठे हैं तो आपको बहुत आनंद आएगा रोमांच होगा और थोड़ी देर बाद जब घोडा अपने हिसाब से चलने लगेगा तो डर के मारे आपकी घिघ्घी बंध जाएगी आखिर उस पर से उतरने के बाद आपके जो अंग प्रत्यंगों में पीड़ा और जकड़न होगी वो कई दिन तक आपको न ढंग से बैठने देगी और न सोने. आप कहेंगे तौबा मेरी तौबा जो फिर से घोड़े पे बैठा तो.
शादी में भी ये ही कुछ होता है...शुरू शुरू में रोमांच आनंद और फिर बाद में वोही सब कुछ जो घोड़े पे बैठे रहने पर होता है...डर, दर्द और जकड़न. घोड़े पर से आपको उतरने की सुविधा है लेकिन शादी नाम के घोड़े से आपको आसानी से उतरने नहीं दिया जाता. आप हाय हाय करते बैठे रहते हैं.
हमने घोड़े वाले से बिनती की के हमें पूरा दिन नहीं घुमाये सिर्फ एक आध जगह पर ही ले जाये बस.
ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर घुड़सवारी का आनंद(?) उठाते हुए जब हम वहां की एकमात्र छोटी सी झील पर पहुंचे तो सारी थकान उतर गयी.
हम तो उसी दिन वापस लौट आये लेकिन अगर आप माथेरान आना चाहते हैं तो कम से कम दो दिन वहां रुकें...देखें, घूमें, आनंद लें.एक जरूरी बात आपको इस छोटी टॉय ट्रेन का टिकट पहले से ही करवा लेना चाहिए क्यूँ की इसका टिकट बहुत आसानी से नहीं मिलता क्यूँ की भाई कम सीटें जो हैं. यूँ तो आप माथेरान कभी भी जा सकते हैं लेकिन जुलाई से सितम्बर तक के समय को छोड़ दें तो फिर कभी भी जाएँ वैसे इस मौसम का भी अपना आनंद है क्यूँ के इन दिनों भारी बरसात होती है लेकिन जुलाई से सितम्बर तक ये ट्रेन बंद रहती है. अक्तूबर में आप खूब हरियाली के अलावा इक्का दुक्का झरने भी देख सकते हैं. तो फिर कब आ रहे हैं इन दृश्यों का आनंद उठाने?
सबसे पहले देखिये वो ट्रेन जो नेरल से आपको माथेरान तक ले जाएगी.
दो घंटों की यात्रा में ट्रेन कोई तीन सौ से अधिक बार बल खाती है.
मज़े की बात है इस छोटी सी यात्रा में दो स्टेशन भी हैं, पहला है जुम्मा पट्टी. जहाँ ऊपर से आने वाली ट्रेन को पास दिया जाता है. यहाँ आप चाय और नमकीन का लुत्फ़ उठा सकते हैं.
जुम्मा पट्टी के बाद असली चढाई शुरू होती है और ट्रेन का बल खाना भी बढ़ जाता है.
बीच बीच में सड़क भी हमारे साथ चलती है और कोई आठ दस बार पटरियों को क्रास भी करती है.
अभी साथ लाया नाश्ता ख़तम होता है के दूसरा स्टेशन आ जाता है , "वाटर पाइप" .
वाटर पाइप स्टेशन के बाद बाहर का दृश्य बदल जाता है...आप बहुत ऊंचे उठ जाते हैं....नीचे घाटी में मकानों से उठता धुआं और साथ चलती हरियाली आपका मन मोहने लगती है.
कुछ दृश्य तो सांस रोक कर देखने लायक मिलते हैं.
जैसे जैसे माथेरान पास आने लगता है बाहर की हरियाली बढती जाती है.
और फिर माथेरान से पहले का अंतिम स्टेशन "अमन लाज" आता है, अगर आप कार से या और किसी भी यांत्रिक वाहन से यात्रा कर रहे हैं तो आपको यहीं रोक दिया जायेगा. सिर्फ रेल ही यहाँ से आगे जाती है, वर्ना यहाँ से माथेरान जाने के लिए या तो आप अपने पाँव का सहारा लें या फिर घोड़े या पालकी का.
दो घंटे की दिलचस्प और यादगार यात्रा के बाद आ जाता है माथेरान स्टेशन .
पच्चीस रुपये का टैक्स भर कर फिर आप माथेरान में दाखिल होते हैं. यहाँ रुकने के लिए सैंकड़ों छोटे बड़े होटल हैं, खाने पीने के रेस्टुरेंट हैं और घूमने के लिए बीस से ऊपर जगह हैं. जैसा की मैंने पहले ही बताया यहाँ घूमने के लिए आपको कोई टैक्सी, बस या ऑटो नहीं मिलेगा. घोड़ों खच्चरों और पालकियों की भरमार मिलेगी. हमने बाहर निकल कर घोड़े किये. ज़िन्दगी में पहली बार जाना घुड सवारी का मज़ा क्या होता है. अपनी शादी में भी घोड़े पर ये सोच कर नहीं बैठे की क्या पता हमारे इस क्रांतिकारी कदम से प्रभावित हो कर , घोड़े पर बैठने जैसे पुराने रिवाज़ से लोग मुंह मोड़ लेंगे, ऐसा कुछ हुआ नहीं, लेकिन अब शादी के चौंतीस साल बाद घोड़े पर बैठने का औचित्य समझ में आया .
मैं आम इंसान की बात कर रहा हूँ, घुड सवारों की नहीं.शादी और घोड़े पर बैठने में एक समानता है. अगर आप पहली बार घोड़े पर बैठे हैं तो आपको बहुत आनंद आएगा रोमांच होगा और थोड़ी देर बाद जब घोडा अपने हिसाब से चलने लगेगा तो डर के मारे आपकी घिघ्घी बंध जाएगी आखिर उस पर से उतरने के बाद आपके जो अंग प्रत्यंगों में पीड़ा और जकड़न होगी वो कई दिन तक आपको न ढंग से बैठने देगी और न सोने. आप कहेंगे तौबा मेरी तौबा जो फिर से घोड़े पे बैठा तो.
शादी में भी ये ही कुछ होता है...शुरू शुरू में रोमांच आनंद और फिर बाद में वोही सब कुछ जो घोड़े पे बैठे रहने पर होता है...डर, दर्द और जकड़न. घोड़े पर से आपको उतरने की सुविधा है लेकिन शादी नाम के घोड़े से आपको आसानी से उतरने नहीं दिया जाता. आप हाय हाय करते बैठे रहते हैं.
हमने घोड़े वाले से बिनती की के हमें पूरा दिन नहीं घुमाये सिर्फ एक आध जगह पर ही ले जाये बस.
ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर घुड़सवारी का आनंद(?) उठाते हुए जब हम वहां की एकमात्र छोटी सी झील पर पहुंचे तो सारी थकान उतर गयी.
माथेरान देखने की यात्रा में बन्दर आपका साथ कभी नहीं छोड़ते...आपके साथ रहते हैं लेकिन तंग नहीं करते.
जब ऐसे दृश्य सामने हों तो जी करता है समय यहीं रुक जाए.
और सच में तब कितना भी बड़ा बोझ चाहे कन्धों पर हो या दिल में बोझ लगता ही नहीं...प्रकृति के नजदीक जाने पर ये करिश्मा आप भी देख सकते हैं.
हम तो उसी दिन वापस लौट आये लेकिन अगर आप माथेरान आना चाहते हैं तो कम से कम दो दिन वहां रुकें...देखें, घूमें, आनंद लें.एक जरूरी बात आपको इस छोटी टॉय ट्रेन का टिकट पहले से ही करवा लेना चाहिए क्यूँ की इसका टिकट बहुत आसानी से नहीं मिलता क्यूँ की भाई कम सीटें जो हैं. यूँ तो आप माथेरान कभी भी जा सकते हैं लेकिन जुलाई से सितम्बर तक के समय को छोड़ दें तो फिर कभी भी जाएँ वैसे इस मौसम का भी अपना आनंद है क्यूँ के इन दिनों भारी बरसात होती है लेकिन जुलाई से सितम्बर तक ये ट्रेन बंद रहती है. अक्तूबर में आप खूब हरियाली के अलावा इक्का दुक्का झरने भी देख सकते हैं. तो फिर कब आ रहे हैं इन दृश्यों का आनंद उठाने?
गाडी बुला रही है...सीटी बजा रही है...
{ये चित्र मेरे साधारण मोबाईल के दो मेगा पिक्सल वाले कैमरे से खींचे गए हैं...सोचिये यदि येही चित्र किसी डिजिटल कैमरे से खींचे गए होते तो कैसे लगते और जब आपकी आँख इन वास्तविक दृश्यों को त्रि-आयाम में देखेगी तो कैसा लगेगा? आप समझ रहे हैं न जो मैं कह रहा हूँ}
जो लोग किसी कारण वश चाह कर भी माथेरान यात्रा का लुत्फ़ नहीं उठा सकते उनके लिए विशेष तौर पर ये वीडिओ लगाया है , जिसे मैंने आप सब के लिए यू-टयूब से चुराया है वो भी बिना विडिओ मालिक की अनुमति लिए. इस उम्मीद के साथ के अगर मुझ पर कापी राईट उलंघन का आरोप लगाया जाता है जो आप मेरी मदद को आयेंगे. आयेंगे ना?