दर्द दिल में मगर लब पे मुस्कान है
हौसलों की हमारे ये पहचान है
लाख कोशिश करो आके जाती नहीं
याद इक बिन बुलाई सी महमान है
खिलखिलाता है जो आज के दौर में
इक अजूबे से क्या कम वो इंसान है
ज़र ज़मीं सल्तनत से ही होता नहीं
जो दे भूखे को रोटी, वो सुलतान है
मीर, तुलसी, ज़फ़र, जोश, मीरा, कबीर
दिल ही ग़ालिब है और दिल ही रसखान है
पांच करता है जो, दो में दो जोड़ कर
आजकल सिर्फ उसका ही गुणगान है
ढूंढ़ता फिर रहा फूल पर तितलियां
शहर में वो नया है या नादान है
गर न समझा तो 'नीरज' बहुत है कठिन
जान लो ज़िन्दगी को तो आसान है
(लिखने वाले वो ही हम और संवारने वाले वो ही गुरुदेव पंकज सुबीर जी)
पांच करता है जो, दो में दो जोड़ कर
ReplyDeleteआजकल सिर्फ उसका ही गुणगान है
बिलकुल सही. बहुत खूबसूरत गजल. हमेशा की तरह.
ज़र ज़मीं सल्तनत से ही होता नहीं
ReplyDeleteजो दे भूखे को रोटी, वो सुलतान है
लाजवाब नीरज जी !!!
ढूंढ़ता फिर रहा फूल पर तितलियां
ReplyDeleteशहर में वो नया है या नादान है
सुंदर रचना , बधाई
पांच करता है जो, दो में दो जोड़ कर
ReplyDeleteआजकल सिर्फ उसका ही गुणगान है
ढूंढ़ता फिर रहा फूल पर तितलियां
शहर में वो नया है या नादान है
गर न समझा तो 'नीरज' बहुत है कठिन
जान लो ज़िन्दगी को तो आसान है
क्या कहूँ नीरज जी, शब्द नहीं , लाजबाब !
खिलखिलाता है जो आज के दौर में
ReplyDeleteइक अजूबे से क्या कम वो इंसान है
वाह सही कहा सबसे महंगी तो हंसी ही हो गयी आज कल ..बहुत बढ़िया लिखा है आपने शुक्रिया
वाह नीरज जी .......... किसी एक शेर नही पालकी पूरी ग़ज़ल में ताज़ा तरीन शेर हैं .......... अनायास वाह, सुभान अल्ला निकल जाता है ..... हर शेर के बाद ...... और आखरी शेर ...... जितना सोच रहा हूँ उतना ही जिंदगी को समझने का प्रयास कर रहा हूँ .... सच कहा है ..... जिंदगी समझ आ जाए तो जीवन आसान है ..........
ReplyDeleteगर न समझा तो 'नीरज' बहुत है कठिन
जान लो ज़िन्दगी को तो आसान है
लाख कोशिश करो आके जाती नहीं
ReplyDeleteयाद इक बिन बुलाई सी महमान है
खिलखिलाता है जो आज के दौर में
इक अजूबे से क्या कम वो इंसान है
yun to poori gazal ka har sher lajawaab hai magar ye dono to dil ko chhoo gaye.........yaad ko jo upma di hai wo to kabil-e-tarif hai.
बहुत ही लाजवाब. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
सर जी बहुत अच्छा है यह ग़ज़ल.
ReplyDeleteहर एक शे'र पर सौ दाद.
खासकर ये वाला..
ज़र ज़मीं सल्तनत से ही होता नहीं
जो दे भूखे को रोटी, वो सुलतान है
बिलकुल सही. बहुत खूबसूरत गजल. हमेशा की तरह.
ReplyDeleteक्या कहूँ नीरज जी, शब्द नहीं , लाजबाब !
ReplyDeleteमीर, तुलसी, ज़फ़र, जोश, मीरा, कबीर
ReplyDeleteदिल ही ग़ालिब है और दिल ही रसखान है
goya subhanallah......pate i baat ahi..
बस फिलहाल तो यही दुआ कीजिये के हमारे यहाँ सूरज रोज शक्ल दिखाता रहे ओर सचिन आज सेंचुरी मार दे ....
इस ग़ज़ल को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा।
ReplyDeletegazal har chhand me behtareen hai
ReplyDeleteआदरणीय नीरज जी, आदाब
ReplyDeleteदर्द दिल में मगर लब पे मुस्कान है.....
से शुरू हुआ सफर
लाख कोशिश करो आके जाती नहीं....
खिलखिलाता है जो आज के दौर में....
हर शेर पर वाह करने को रुककर-
पांच करता है जो, दो में दो जोड़ कर
आजकल सिर्फ उसका ही गुणगान है...
यहां कयाम के लिये ठहर गया....
ये तो आपको ही नहीं, सभी के दिल को छूने वाला है-
ढूंढ़ता फिर रहा फूल पर तितलियां
शहर में वो नया है या नादान है
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
सादर
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
मीर, तुलसी, ज़फ़र, जोश, मीरा, कबीर
ReplyDeleteदिल ही ग़ालिब है और दिल ही रसखान है
sabse khuubsurat
ज़र ज़मीं सल्तनत से ही होता नहीं
ReplyDeleteजो दे भूखे को रोटी, वो सुलतान है
लाजवाब , सुंदर रचना
regards
sundar bhavnaon susajjit shern ke liye badaiyaan.
ReplyDeleteखिलखिलाता है जो आज के दौर में
ReplyDeleteइक अजूबे से क्या कम वो इंसान है
बहुत सही कहा, नीरज जी। आजकल हंसी भी बनावटी नज़र आती है।
"ज़र ज़मीं सल्तनत से ही होता नहीं
ReplyDeleteजो दे भूखे को रोटी, वो सुलतान है
मीर, तुलसी, ज़फ़र, जोश, मीरा, कबीर
दिल ही ग़ालिब है और दिल ही रसखान है "
भई वाह! ज़फर तो उतने नहीं, मगर आगरे के मियां नजीर याद आ गये!
लाख कोशिश करो आके जाती नहीं
ReplyDeleteयाद इक बिन बुलाई सी महमान है..
वाह सर जी ,वाह.
दोनो को सलाम इतना ही कहूँगी क्या गज़ल है एक ही शब्द निशब्द गण्तन्त्र दिवस की शुभकामनायें
ReplyDeleteवाह ! हमेशा की तरह बेहतरीन और विनम्र !शुभकामनायें !
ReplyDeleteखूब शेर निकाले है, नीरज जी , बहुत खूब...
ReplyDeleteथोड़ा दिल्लगी का मन कर रहा है!..........
''शहर में हूँ नया और नादान भी,
तितलियों का पता तो बता दीजिये!''
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ReplyDelete.
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लाख कोशिश करो आके जाती नहीं
याद इक बिन बुलाई सी महमान है
खिलखिलाता है जो आज के दौर में
इक अजूबे से क्या कम वो इंसान है
ज़र ज़मीं सल्तनत से ही होता नहीं
जो दे भूखे को रोटी, वो सुलतान है
ढूंढ़ता फिर रहा फूल पर तितलियां
शहर में वो नया है या नादान है
वाह नीरज जी वाह, क्या शेर निकाले हैं... चिपकेंगे एकदम जुबान पर...
आभार!
बहुत सुंदर गजल ओर सभी शॆर बहुत अच्छॆ लगे
ReplyDeleteआप को गणतंत्र दिवस की मंगलमय कामना
ढूंढ़ता फिर रहा फूल पर तितलियां
ReplyDeleteशहर में वो नया है या नादान है
इस अंदाज के हम दीवाने हैं नीरज जी ... हर शे'र जिस नाजुकी से आप कह जाते हैं दुसरे के बूते की बात नहीं होती है ...
अर्श
ढूंढ़ता फिर रहा फूल पर तितलियां
ReplyDeleteशहर में वो नया है या नादान है
...वाह! क्या शेर है! इतना मासूम शेर तो वही लिख सकता है जिसपर गुरू की कृपा हो.
खिलखिलाता है जो आज के दौर में
ReplyDeleteइक अजूबे से क्या कम वो इंसान है
बिल्कुल सही फ़र्माया आप ने
बढ़िया एक से बढ़कर एक शेरों से बुनी रचना पर, आपको मुबारकबाद नीरज भाई
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में सभी भारत माता की संतानों को मेरी मंगल कामनाएं
स - स्नेह,
- लावण्या
"मीर, तुलसी, ज़फ़र, जोश, मीरा, कबीर
ReplyDeleteदिल ही ग़ालिब है और दिल ही रसखान है"
अरे वाह-वाह, नीरज जी! वाह-वाह!! क्या शेर लिखा है सरकार। हजारों दाद कबूल करें सर।
और इस मिस्रे पर "पांच करता है जो, दो में दो जोड़ कर" पर तो उफ़्फ़्फ़्फ़-हाय-आह वाली बात है।
जान लिया जिन्दगी को ...बहुत ही आसान है ...
ReplyDeleteतितलियाँ फूलो पर नहीं ...महलों पर मंडराती है आजकल ...
खोजा जिसने नादान है ....
अच्छी लगी आपकी कविता ....!!
मीर, तुलसी, ज़फ़र, जोश, मीरा, कबीर
ReplyDeleteदिल ही ग़ालिब है और दिल ही रसखान है
पांच करता है जो, दो में दो जोड़ कर
आजकल सिर्फ उसका ही गुणगान है
iski kahan par to jitni daad doon sab kam hai.
ढूंढ़ता फिर रहा फूल पर तितलियां
शहर में वो नया है या नादान है
kitane sada lekin naye dhang se aapane kaha hai. aanand aa gaya. aaj ka di saarthak ho gayaa.
उफ़्फ़ शीर्षक ही कातिल थी , पूरी पंक्तियां तो पार्थिव देह ने पढी है । नीरज जी अद्भुत है रचना
ReplyDeleteअजय कुमार झा
गर न समझा तो 'नीरज' बहुत है कठिन
ReplyDeleteजान लो ज़िन्दगी को तो आसान है..
Pata nahee kaun samajh paya!
Aapko gantantr diwas mubarak ho!
खिलखिलाता है जो आज के दौर में
ReplyDeleteइक अजूबे से क्या कम वो इंसान है
waah kya baat kahi hai
ज़र ज़मीं सल्तनत से ही होता नहीं
जो दे भूखे को रोटी, वो सुलतान है
waah
मीर, तुलसी, ज़फ़र, जोश, मीरा, कबीर
दिल ही ग़ालिब है और दिल ही रसखान है
पांच करता है जो, दो में दो जोड़ कर
आजकल सिर्फ उसका ही गुणगान है
ढूंढ़ता फिर रहा फूल पर तितलियां
शहर में वो नया है या नादान है
kyaa kamaal ka sher hai
गर न समझा तो 'नीरज' बहुत है कठिन
जान लो ज़िन्दगी को तो आसान है
maqta gazab ka kaha hai
Aadarneey Neeraj ji
kamaal ki gazal har sher khoobsurat
लिखने वाले वो ही नीरज जी और संवारनेवाले वो ही गुरूदेव पंकज सुबीर जी....और पढ़कर घायल होने वाले वो ही मेरे जैसे कुछ सिरफ़िरे :)
ReplyDeleteअब इतनी कशिश भरी गज़ल लिखियेगा तो हमारा सर न फ़िरेगा तो क्या होगा ? सारे शेर बेजोड़ हैं। खड़े होकर तालियां बजाता हूं।
..... बेहतरीन गजल!!!!!
ReplyDeleteढूंढ़ता फिर रहा फूल पर तितलियां
ReplyDeleteशहर में वो नया है या नादान है
khud ko khuda maane, ya doosro ko murkh jaane,
bhul gaya hai, ki khud sirf ek insaan hai ;)))
oye chacha, aap reply kaahaan pe karte ho.....
ReplyDeleteसारे शेर एक से बढ़कर एक हैं !! बहुत बहुत बधाई !!
ReplyDeleteयार इतने खूबसूरत अशआर, फंस कर रह गया हूँ. किसे छोडूं, किसे माथे लगाऊँ, जैसा हाल हो गया है. एक तो देर से आया, भाई लोगों ने कहने- सुनने को कुछ बाकी नहीं छोड़ा. फिर भी 'पांच करता है जो' का जवाब नहीं.
ReplyDeleteहम, बल्कि वो सभी, जो गणित के इन ताज़ा तरीन फार्मूलों से अनभिज्ञ हैं, इस युग में मिसफिट हैं.
आप के साथ सुबीर जी का शुक्रिया न अदा किया जाए तो शायद बेईमानी होगी.
E-mail received from Om Prakash Sapra Ji:-
ReplyDeleteshri neeraj ji
namastey,
this is also a good gazal- "phool par titliyan"
The caption is also attractive one.
congrats,
also say our regards to pankaj subeer ji,
regards,
-om sapra,
delhi-9
bahut acche...
ReplyDeleteज़र ज़मीं सल्तनत से ही होता नहीं
जो दे भूखे को रोटी, वो सुलतान है
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ढूंढ़ता फिर रहा फूल पर तितलियां
शहर में वो नया है या नादान है
ye line bahut acchi lagi....
Aabhar...
नमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत मतला है और उससे अगला ही शेर "लाख कोशिश करो................." वाह वाह वाह वाह,
यादों के बारे क्या thought निकला है,
इस शेर के बारे में क्या कहेंगे,
खिलखिलाता है जो आज के दौर में
इक अजूबे से क्या कम वो इंसान है
अब इसे अगर आप से जोड़े तो मालूम चलेगा की आप कितने महान हैं जो हर वक़्त ख़ुशी बाटते रहते हैं.
आप मुंबई आ गए हैं क्या?
वाह साहव ""जिनके होंठो पे हंसी पांव मे छाले होगे,वो तेरे चाहने वाले होंगे । आके जाते नही ऐसे महमान जैसी याद ""आप बुधबार को पधारे है आज है सोमबार हद करदी ।खिलखिलाता है +आज के माहौल मे हंसने वाले ,तेरा कलेजा पत्थर का होगा ।यह जानते हुए कि पडोसी भूखा है ( उपवास नही ) कैसे लोगों के गले मे रोटी उतर जाती है ।उर्दू शायर मीर हिन्दी कवियत्री मीरा और उर्दू शायर जोश और हिन्दी लेखक जोशी । दो और दो का मिलकर पांच हुआ करता है ,पढा लिखा तो बहुत है थोडी नादानी भी सीख ।नादान तो है ही क्योंकि भंवरों ने तितलियों को जगह ही कहां छोडी है ।जिन्दगी आसान है लेकिन "जिन्दगी से बडी सजा ही नही और क्या जुर्म है पता ही नही ।आपकी गजल बहुत अच्छी लगी
ReplyDeleteफिर एक कमाल की ग़ज़ल,
ReplyDeleteनीरज जी !
ये तितलियाँ ढूँढने वाली नादानी है
वह यकीनन बड़ी नेमत है न ?
==========================
शुक्रिया
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
behtareen ghazal !
ReplyDeleteहर शेर दाद मांग रहा है.... इसे ही कहते हैं संपूर्ण ग़ज़ल..धन्यवाद नीरज सर... सुबीर सर को भी अभिवादन..
ReplyDeleteजय हिंद...
फूल खिलता है तितली की तारीफ़ में
ReplyDeleteऔर तितली की भी फूल में जान है
आपकी इस रचना को पढ़ के तो पहले मैंने दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम किया.......
ReplyDeleteऔर फिर इसे अपने मित्रो को सुनाने के लिए याद करके भी जा रहा हूँ.....
गर न समझा तो 'नीरज' बहुत है कठिन
ReplyDeleteजान लो ज़िन्दगी को तो आसान है
अरे वाह, इतनी सहज फिर भी इतनी कठिन!
वाह बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ! इस लाजवाब और उम्दा रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
ReplyDeleteबेमिसाल,लाजवाब बस और क्या लिखूं
ReplyDeleteये पोस्ट मिस हो गयी थी, आज देखी। अब इतनी सारी टिप्पणियॉं आपको इस पोस्ट पर मिल चुकी हैं कि दाता तो क्या किसी के भी नाम से मॉंगो, नहीं दूँगा-बिल्कुल नहीं दूँगा। हॉं इतना तो कह ही सकता हूँ कि हर शेर दहाड़ रहा है।
ReplyDeleteआपके तीसरे शेर के मुताबिक आप-हम तो अजूबे ही हैं।
चलिये अब आप रास्ते की धूल का मजा लें और कुछ झाड़ें या दहाड़ें।
नीरज जी, आपकी ग़ज़ल कि शान में पेश है उसी कि तर्ज़ पर लिखा मेरा एक शेर-
ReplyDeleteहम को ग़म भी मिले तो नही ग़म कोई
तुमको खुशियाँ मिले ये ही अरमान है.
जैसे खुशबू मिले गुलाबों में
ReplyDeleteजब कभी मेरी याद आए तो
मैं मिलूँगा इन्हीं किताबों में - अज़ीज़ अंसारी
आपका शायरी और ग़ज़लों का कीमती खज़ाना पढ़ने की बहुत ख्वाहिश है। खोज-खोज कर पढ़ूँगा।