लेकिन इस किताब की भूमिका में ही मेरी समस्या का हल मिल गया. इस किताब की भूमिका एक बहुत ही अनोखे अंदाज़ में लिखी है पद्मश्री "कुँअर बैचैन" जी ने. मैं उसी भूमिका में से कुछ पंक्तियाँ आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ क्यूँ की इस पुस्तक की समीक्षा उन जैसे सिद्ध लेखक, कवि, शायर के बस की ही बात है.और इस किताब का आवरण पृष्ठ भी कुंअर बैचैन जी ने ही बनाया है, जो उनके लेखन के साथ साथ,चित्रकारी की कला में भी दक्ष होने का प्रमाण है.
जिस किताब का जिक्र मैं कर रहा हूँ उसके शायर हैं परम श्रधेय मेरे गुरुदेव श्री प्राण शर्मा जी , किताब का शीर्षक है "ग़ज़ल कहता हूँ"
इसे "अनुभव प्रकाशन" ई-28 लाजपत नगर, साहिबाबाद - 201005, ई-मेल: anubhavprakashan@rediffmail.com ने बहुत आकर्षक ढंग से प्रकाशित किया है.
प्राण जी बहुत प्यारे शायर हैं. वे भले ही यू के. चले गए किन्तु उनकी स्मृतियाँ अभी अपने देश भारत से जुडी हैं, उन्हें क्षोभ इस बात का है की पैसे की खातिर यू.के. चले आये. वे कहते हैं:
प्राण शर्मा जी ऐसे व्यक्ति हैं, जो घर परिवार को सर्वाधिक महत्व देते हैं. उन्हें इस बात का गहरा दुःख है कि आज परिवार टूट रहे हैं, उनमें दरारें पढ़ रही हैं, वे ढह रहे हैं. किन्तु यह वहीँ होता है जिनका आधार मज़बूत नहीं है:-
प्राण साहब के ज़िन्दगी पर कहे गए कई अशआर हैं, जो ज़िन्दगी के प्रति उनके दृष्टिकोण को व्यक्त करते हैं, जैसे की:-
प्राण जी के अशआरों में दार्शनिकता भी मिलती है क्यूँ की बिना दर्शन के कविता खोखली है, निष्प्रयोजन है. दुनिया तथा दुनिया से जुड़े अन्य तथ्यों पर प्राण जी ने बहुत अच्छी टिप्पणियां की हैं, आप भी पढें:-
प्राण जी आध्यात्म और दर्शन से जुड़े हैं और अपनी ग़ज़लों में उन्हें स्थान देते हैं, उतने ही वो इस संसार में व्याप्त विद्रूपताओं और विसंगतियों के प्रति सचेत भी हैं. ऐसे प्रसंगों में वे कुछ तिक्त हो जाते हैं वैसे तिक्तता उनका मूल स्वभाव नहीं है.किन्तु जहाँ जरूरी है वहां तो तिक्त हुआ ही जाता है. आप देखें उनकी तिक्तता भी ग़ज़ल के अंदाज़ में कितनी साफ्ट हो गयी है:-
किसी शायर की पहचान कि वह बड़ा है या छोटा, इस बात से होती है कि उसके कितने ऐसे शेर हैं जो उधृत करने योग्य हैं , जो अनुभव से लबालब भरे हैं और लोगों के होठों तक आने और याद रखने की सामर्थ्य रखते हैं, जैसे कि ये:-
शायर हमेशा दुखों में रहता है, उनमें तपता है , सोने से कंचन बनता है तब कहीं वो शायरी कर पाता है. कितनी सोचों में डूबता है तब कहीं कोई शेर हो पाता है.
प्राण जी बहुत प्यारे शायर हैं. वे भले ही यू के. चले गए किन्तु उनकी स्मृतियाँ अभी अपने देश भारत से जुडी हैं, उन्हें क्षोभ इस बात का है की पैसे की खातिर यू.के. चले आये. वे कहते हैं:
हरी धरती खुले नीले गगन को छोड़ आया हूँ
कि कुछ सिक्कों की खातिर मैं वतन को छोड़ आया हूँ
कहाँ होती है कोई मीठी बोली अपनी बोली सी
मगर मैं "प्राण" हिंदी की फबन को छोड़ आया हूँ
प्राण शर्मा जी ऐसे व्यक्ति हैं, जो घर परिवार को सर्वाधिक महत्व देते हैं. उन्हें इस बात का गहरा दुःख है कि आज परिवार टूट रहे हैं, उनमें दरारें पढ़ रही हैं, वे ढह रहे हैं. किन्तु यह वहीँ होता है जिनका आधार मज़बूत नहीं है:-
पुरजोर हवा में गिरना ही था उनको
ऐ "प्राण" घरों की दीवारें थीं कच्ची
***
चूल्हा चौका कपडा लत्ता खौफ है इनके बहने का
तूफानों का खौफ नहीं है खौफ है घर के ढहने का
जागती है कभी जगाती है
ज़िन्दगी चैन से नहीं सोती
***
छोड़ जाती है सभी को
ज़िन्दगी किसकी सगी है
***
ज़िन्दगी को ढूँढने निकला हूँ मैं
जिंदगी से बेखबर कितना हूँ मैं
***
नाचती है कभी नचाती है
जिंदगानी है इक नटी प्यारे
***
माना सुख दुःख से है लदी प्यारे
फिर भी प्यारी है ज़िन्दगी प्यारे
मुस्कुराता हो तो है कुछ दाम का
फूल मुरझाया हुआ किस काम का
***
यूँ तो किसी भी बात का डर था नहीं हमें
डरने लगे तो अपने ही साए से डर गए
***
रौशनी आये तो आये कैसे घर में
दिन में भी हर खिड़की पर पर्दा है प्यारे
***
आग लगे तो इसकी कीमत राख से ज्यादा क्या होगी
पीपल की लकडी हो चाहे या लकडी हो चन्दन की
बात मन की क्या सुनाई जान कर अपना उसे
बात जैसे पर लगा कर हर तरफ उड़ने लगी
***
वक्त था जब दर खुले रहते थे सबके
अब तो हैं तालों पे ताले सोचता हूँ
***
संग तुम्हारा मीठा है ये सोचा था
यह पानी खारा भी है मालूम न था
***
कौन है दोस्त, है सवाल मेरा
कौन दुश्मन है ये सवाल नहीं
उससे उम्मीद कोई क्या रक्खे
जिसका अपना कोई ख्याल नहीं
***
खो न देना कभी इसको कहीं रख कर
दोस्ती भी दोस्तों सौगात होती है
***
हर समस्या का कोई न कोई हल है दोस्तों
गाँठ हाथों से न खुल पाए, तो दाँतों से खुले
सोच की भट्टी में सौ सौ बार दहता है
तब कहीं जाकर कोई एक शेर कहता है
किताब प्राप्ति के लिए आप इस पते पर संपर्क करें :
श्री के.बी.एल सक्सेना
श्रीमहारानी भवन 3/8 रूप नगर
दिल्ली -11OOO7 मोबाईल: 9868478552
इस किताब में छपी प्राण साहब की 91 ग़ज़लों का आनंद आप जब तक उठायें तब तक हम ढूंढते हैं एक और नायाब किताब आपके लिए.
Kitabon kee duniya aisee hai jisme dubkee laga lo,to nikal aaneka man nahee karta..
ReplyDeleteWatan ko chhod ke chale gaye, kaash unhen bhee yah ehsaas ho,ki, wo log peechhe kya chhod aaye hain..
Sach 'Maut se kya gila? wo to rahat hai,
jo palken choom gahree neend sulatee hai,
Ye to zindagee hai,jo neenden haram kartee hai'...
Aap jaise diggajon ke samane apnee chand panktiyan rakhne kee jurrat kee hai...kshama karen!
पुस्तक चर्चा बढ़िया रही।
ReplyDeleteअच्छी चर्चा रही ..मुझे गजलें कवितायेँ जरा कम समझ आती है. किसी ने कह दिया की वह किताब अच्छी है, तब पढ़ लेती हूँ.
ReplyDeleteप्राण साहब की एक एक ग़ज़ल जब एक एक गुलाब का आनंद देती है तो फिर ये तो पूरा का पूरा गुलाबों का गुलदस्ता है इसकी खुश्बू तो ऐसी होगी कि जैसे आमों के बाग में बसंत बौराता फिर रहा हो । आपने जो अशआर प्रस्तुत किये हैं वो पूर्व में भी श्री प्राण साहब की ग़ज़लों के माध्यम से पढ़ चुका हूं । आपकी लेखनी के माध्यम से प्राण साहब से एक बार फिर परिचय प्राप्त करने का मौका मिला । मेरा एक विचार है कि जब आप किसी की पुस्तक पर चर्चा करें तो उस लेखक का एक चित्र तथा थोड़ा सा परिचय और यदि संभव हो पाये तो उसके वीडियो तथा आडियो की लिंक आदि भी दे दिया करें । पुस्तक के साथ साथ लेखक भी लोगों तक पहुंच जायेगा । नि:संदेह आप एक बड़ा दायित्व निभा रहे हैं । आज के दौर में तो लोग केवल अपनी ही सुनाना चाहते हैं दूसरों के बारे में कोई बात ही कब करना चाहता है । लेकिन मैं जानता हूं कि नीरज गोस्वामी जिस शख्स का नाम है उसका काम ही है दूसरों को आगे बढ़ाना ।
ReplyDeleteप्राण साहब की ये पुस्तक निश्चित रूप से पढ़ने योग्य होगी तथा सहेजने योग्य भी होगी । प्राण साहब जैसे गुणीजनों के कारण ही साहित्य इस कठिन दौर में भी जीवित है । आप हम जैसे लोग तो उनके ही पदचिन्हों पर चलने का प्रयास कर रहे हैं । लेकिन ये भी सच है कि हम चाहे कितना ही प्रयास कर लें लेकिन उनके पद चिन्हों तक पहुंच भी नहीं पाएंगे । मुझे तो हैरत इस बात पर होती है कि जितनी अच्छी तरह से वे पद्य लिखते हैं उतनी ही कुशलता से गद्य भी लिखते हैं । उनकी पैनी और धारदार लघुकथाएं उनकी ग़ज़लों से कहीं भी कम नहीं होती हैं । पिछले दिनों नया ज्ञानोदय में उनकी एक कविता भी पढने को मिली कविता पढ़ कर उनका एक और रूप सामने आया ।
प्राण साहब का भारत से बाहर होना हम लोगों के लिये मुश्किल का सबब हो गया नहीं तो हम तो उसी शहर में डेरा डाल लेते जहां वे रहते और पूरा ज्ञान लेने के बाद ही हटते । खैर इंटरनेट ने दूरियां तो कम की हैं और आज की तारीख में भी हम उनसे सीख ही रहे हैं । ईश्वर उनको दीर्घायु करे ताकि वे इसी प्रकार साहित्य की सेवा करते रहें और हम जैसों को राह दिखाते रहें । आमीन ।
आभार प्राण जी की इस बेमिसाल गजलो की किताब से परिचय करने का...
ReplyDeleteregards
बहुत चुन- चुन का शेर निकले हैं आपने गौतम जी ने लिंक भी दिया है... शुक्रिया...
ReplyDeleteचूल्हा चौका कपडा लत्ता खौफ है इनके बहने का
तूफानों का खौफ नहीं है खौफ है घर के ढहने का
माशा अल्लाह ! करीबी सच !!!!
पुस्तक और प्राण साहब के बारे में बताने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteवाह ये तो बढ़िया जानकारी है... साधुवाद....
ReplyDeleteआग लगे तो इसकी कीमत राख से ज्यादा क्या होगी
ReplyDeleteपीपल की लकडी हो चाहे या लकडी हो चन्दन की
बिल्कुल सही है आग से गुजरने पर लकडियो की किम्मत क्या............समय चले जाना भी रेत का मुठ्ठियो से फिसलने जैसा होत है दोनो की किम्मत खाक ही होती है .......
पुरजोर हवा में गिरना ही था उनको
ऐ "प्राण" घरों की दीवारें थीं कच्ची
आज की घरे बहुत ही कमजोर दिवारो से बनती है बिलकुल सही कहा आज किसके पास टाइम है ..................समय की किल्लत है यथार्थवाद दिखता है यहाँ........
चूल्हा चौका कपडा लत्ता खौफ है इनके बहने का
तूफानों का खौफ नहीं है खौफ है घर के ढहने का
सटिक है ..............
ज़िन्दगी को ढूँढने निकला हूँ मैं
जिंदगी से बेखबर कितना हूँ मैं
अंत मे तो यही हाथ लगता है कि मै अंजान कितना हूँ जिसे मै खोज रहा हूँ उससे........
सच मे आप सिप के मोतियो न जाने कितने जतन से हमारे लिये खोज के लाते है ..........बहुत बहुत आभार
ओम
एक से एक नायाब ग़ज़लों की झाँकी दिखाने के लिये हार्दिक आभार।
ReplyDeleteबहुत आभार इस पुस्तक के बारे मे बताने के लिये, आपका यह स्तंभ विविध शायरों की किताबों के बारे शानदार जानकारी देता है. हम जैसे लोग जो शायरी के बारे मे नही जानते हैं उनके लिये भी यह भी आपकी पोस्ट पथ प्रदर्षक साबित होती है. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी है,आपने....आजकल हर चीज़ की जानकारी मिल जाती है,पर किताबों के बारे में पता नहीं चल पाता...और खासकर हिंदी किताबों की...प्राण जी की ग़ज़लों से परिचय कराने का बहुत बहुत शुक्रिया..
ReplyDeleteबात मन की क्या सुनाई जान कर अपना उसे
ReplyDeleteबात जैसे पर लगा कर हर तरफ उड़ने लगी
pran sahab ko khaaksaar ka salaam!!
पारिवारिक दरारों की व्यथा मैं पढना चाहूँगी, यूँ भी श्रधेय प्राण शर्मा जी की ग़ज़ल मील का पत्थर हैं
ReplyDeleteवाह क्या लेखनी है प्राण जी की। एक एक शेर लाजवाब। मन को छू गए। कुंअर जी की भूमिका भी पसंद आई।
ReplyDeleteइस सुंदर जानकारी हम से बांटने के लिये आप का धन्यवाद
ReplyDeleteहरी धरती खुले नीले गगन को छोड़ आया हूँ
ReplyDeleteकि कुछ सिक्कों की खातिर मैं वतन को छोड़ आया हूँ
बहुत सुन्दर शेर है प्राण जी का !
नीरज जी आपने इस पुस्तक की जानकारी दे कर हम पर बहुत बडा उपकार किया है मंगवाती हू इसे उनकी शायरी के बारे मे मैं तो क्या कह सकती हूँ सूरज को दीपक कैन दिखाये? मगर उनकी एक बात मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूँ कि वो एक नेक दिल सुहृदय और बहुत ही अच्छे इन्सान हैं और मैं उन जैसा बडा भाई पा कर दुनिया की सब से खुशनसीब् बहन बन गयी हू। दूसरों को प्रोत्साहित करना और बहुत सहनशीलता से सिखाना कोई उन से सीखे।सब से बडी बात उनका बडप्पन हैकि वो श्रेय खुद को नहीं देने देते मुझ जैसी अल्पग्य को भी बडी मेहनत से सिखाते हैं। वो गज़ल ही नहीं कविता कहानी भी बहुत अच्छी लिखते हैं। उनकी कलम को और उन की इन्सानियत को मेरा सलाम है। अभिभूत हूँ उनकी काबलियत पर । भगवान उनको चिरायू और सुख समृद्धि दे ।उनको किताब के लिये बहुत बहुत बधाई और आपका धन्यवाद।
ReplyDeleteAadarneey Neeraj ji,
ReplyDeleteis baar ham aapse pahle kitaab ko padh rahe hain ye kitaab hi aajkal padh rahi hun ...... aapse puri tarah sahmat hun ki Pran ji ki kitaab ki taaref karna yaa kisi ek sher yaa gazal ko vishash mahatvv dena mushkil hai sabhi ek se badhkar ek hai
ye aapki kitaabon ki shrnkhla mujhe behad pasand hai
aisi hi nayaab kitaaben laate rahen
agar aap theek samjhe to kuch kitaab ke review main aapko bhejna chahti hun jo in kitaabon ki srinkhla mein shamil hone hi chahiye ................
aur ek zaruri baat to batana bhul hi gayi .....
Aapki batayi hui kitaab
viplavi ji "Subah ki ummeed"
maine manga li thi aur aajkal usi ko type karke kavitakosh mein jod rahi hun ........ aap chahe to uska link main aapko bhej dungi aap blog par lada den taaki zayada se zayada log un nayab gazlon ka bhi laabh utha saken
in kitaabon se milaane ke liye sadaiv aabhari rahungi
प्राण साहब की तारीफ में कुछ भी कहना छोटे मुंह बड़ी बात होगी ...........
ReplyDeleteहम तो बस आनंद ही ले सकते हैं ..... मज़ा ही ले सकते हैं उकी शायरी का, वाह वाह ही कर सकते हैं हर शेर पर और बस सुभान अल्ला सुभान अल्ला ही बोल सकते हैं ........... कमाल की किताब, कमाल की विवेचना और कमाल के शेर ........... बस सब कुछ कमाल ही कमाल है .......
बहुत खूबसूरत शेर लिखे हैं प्राण साहब ने.
ReplyDeleteइस उम्दा प्रस्तुति के लिए आप बधाई के पात्र हैं.
आभार
हरी धरती खुले नीले गगन को छोड़ आया हूँ
ReplyDeleteकि कुछ सिक्कों की खातिर मैं वतन को छोड़ आया हूँ
आदरणीय प्राण जी की गज़लों में जो सादगी है वह मन-प्राण में बस जाती है. बेचैन जी ने बहुत सहज ढंग से उनकी गज़लों की खूबियां बताई हैं. इसे प्रकाशित करने के लिए आप बधाई के पात्र हैं.
चन्देल
ग़ज़ल पितामह आदरणीय श्री प्राण शर्मा जी गज़ल्गोई से तो हम जैसे नवसिखिये हमेशा ही सीखते रहते हैं आपने उनकी पुस्तक के बारे में जानकारी दे एहसान करदिया हम सब पर ,,.. आज ही आर्डर दे डाला और कल तलक मेरे टेबल पर हाज़िर ... सच में जीस तरह से ये साहित्य की सेवा कर रहे हैं वो अपने आप में सिध्द्हत की बात है , इनसे मैं ब्याक्तिगत तौर पर भी बहुत सारी बातें सीखता रहता हूँ ग़ज़ल लेखन की बिधा को ... सच में इनकी गध और पध लेखन पे जो महारथ हासिल है वो पढ़ते ही बनता है .. इनकी कुछ लघु कथाएं पढ़ी है मैंने क्या खूब तेवर और मिजाज से लिखते हैं.. सलाम इनको और इनके लेखनी को ....ऊपर वाला इनको लम्बी उम्र बख्शे और बढ़िया स्वस्थ्य दे ...
ReplyDeleteअर्श
प्राण साहब की गज़लें, प्राण साहब का व्यक्तित्व, प्राण साहब के बारे में कुछ भी कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा है.
ReplyDeleteहम तो उन्के भक्त हैं और आज आपने इस पुस्तक के अंशा पढ़ाकर भक्त की मुराद पूरी की, जय हो आपकी भी.
सोच की भट्टी में सौ सौ बार दहता है
तब कहीं जाकर कोई एक शेर कहता है
-उनके लिए एकदम सौ प्रतिशत सच!!
धन्यवाद जी।
ReplyDeleteसोच की भट्टी में सौ सौ बार दहता है
ReplyDeleteतब कहीं जाकर कोई एक शेर कहता है
बात मन की क्या सुनाई जान कर अपना उसे
बात जैसे पर लगा कर हर तरफ उड़ने लगी
लाजवाब
हर लिहाज से बेहतरीन
इस किताब को जल्दी ही मंगवाता हूँ !
नीरज जी आपको तहे दिल से
शुक्रिया बोलना चाहता हूँ
आपने पूर्व में सैयद रियाज रहीम साहब की एक एक किताब का जिक्र किया था - ग़ज़ल संग्रह - "पूछना है तुम से इतना" !
मैंने उनसे फोन पर बात की थी ! आज ही उन्होंने बुक पोस्ट से वो किताब भेजी है !
मैं कब से सोच रहा था कि नीरज जी की "किताबों की दुनिया" कब इस अनमोल रतन का जिक्र करेगी...
ReplyDeleteघर पर मेरे पहुंच चुकी है ये किताब। छुट्टियों में मुलाकात होगी।
नीरज भाई ,
ReplyDeleteकल ही फिर दो हफ्ते के लिए न्यू यार्क पहुँच गया हूँ .प्राण जी की किताब और कुंवर 'बेचैन' जी की भूमिका ,अपने आप में ही सम्पूर्ण सही पर इस किताब की लालच आने पर पूरी होगी ही .वैसे पंकज जी की बात मेरी अपनी भी समझें तो आगे से सोने में सुगंध बन जायेगी .आपके हांथों ही ये सजावट भी हो .
..............दे दाता के नाम तुझको अल्ला रक्खे !
k
ReplyDeleteitabo ka parichya dene ka shukriya aapka andaz kitab kapoora parichya de deta hai.
कभी कभी लगता है शेर कहने वाला दो लाइनों में कितनी बड़ी बात कह जाता है .मसलन....
ReplyDeleteज़िन्दगी को ढूँढने निकला हूँ मैं
जिंदगी से बेखबर कितना हूँ मैं
ओर ये
रौशनी आये तो आये कैसे घर में
दिन में भी हर खिड़की पर पर्दा है प्यारे
वाकई !
शानदार प्रस्तुति.
ReplyDeleteप्राण जी की गजलें आपकी मार्फ़त पहले भी पढ़ चुका हूँ. उनकी गजलों में वतन से बिछड़ने के उनके भाव न जाने क्या-क्या कह जाते हैं. किताब से परिचय कराने की कड़ी में एक और कड़ी जुड़ गई है. चाहूँगा कि और कडियाँ जुड़ती जायेंगी.
yahan kuch kehna to sooraj ko roshni dikhana hoga..........adbhut lekhan..........zindagi ki parton ko khol diya hai.
ReplyDeleteसोच की भट्टी में सौ सौ बार दहता है
ReplyDeleteतब कहीं जाकर कोई एक शेर कहता है
प्राण जी की रचनाओं से अवगत करवाया बहुत बहुत आभार !!
लीजिये आपकी बदौलत एक और किताब हमारी अवश्य पढें लिस्ट में जुड गई । प्राण साहब के शेर कमाल के हैं और रोजमर्रा के जिंदगी से जुडे भी ।
ReplyDeleteबात मन की क्या सुनाई जान कर अपना उसे
बात जैसे पर लगा कर हर तरफ उड़ने लगी ।
हरी धरती खुले नीले गगन को छोड़ आया हूँ
ReplyDeleteकि कुछ सिक्कों की खातिर मैं वतन को छोड़ आया हूँ
इन पंक्तियों को लिख देने वाला कितना संवेदनशील और बेलाग व्यक्तित्व होगा..कल्पना की जा सकती है..
और आपकी सार्गर्भित विहंगम समीक्षा तो लाजवाब होती ही है..
नीरज के प्रस्तुति के लिए क्या कहूं क्या न कहूं समझ नहीं आ रहा है. शब्द थम से गए हैं. हाँ
ReplyDeleteगज़लकार प्राण शर्मा जी के इस संग्रह का अन्नंद लेते हुए मैंने ये महसूस किया है:
जब किसी रचनाकार की साहित्य रुचि किसी एक खास विधा में हो और वह उसके लिये जुस्तजू बन जाये तो वहाँ लेखन कला साधना स्वरूप सी हो जाती है. ऐसी ही एक स्थिती में अंतरगत प्राण शर्मा जी ने अपने इस ग़ज़ल संग्रह के आरंभ में लिखा है जिसे पढ़ कर सोच भी यही सोचती है कि किस जमीन की बुनियाद पर इस शब्दों की शिला टिकी होगी, किस विचार के उत्पन होने से, उसके न होने तक का फासला तय हुआ होगा. विचार की पुख़्तगी को देखिये, सुनिये और महसूस कीजिये.
"ग़ज़ल कहता हूँ तेरा ध्यान करके
यही ए प्राण अपनी आरती है."
अद्भुत, सुंदरता की चरम सीमा को छूता हुआ एक सच. यही भावार्थ लेकर एक शेर गणेश जी की गज़ल का इसी बात की सहमति दे रहा है
"एक आसमान जिस्म के अंदर भी है
तुम बीच से हटों तो नज़ारा दिखाई दे."
आमीन
देवी नागरानी
मुस्कुराता हो तो है कुछ काम का
ReplyDeleteफूल मुरझाया हुआ किस काम का
--वाह आपने फिर एक नायाब तोहफा दिया है धन्यवाद।
मुस्कुराता हो तो है कुछ काम का
ReplyDeleteफूल मुरझाया हुआ किस काम का
---इस शेर को पढ़कर वशीर बद्र का यह शेर याद आ गया
कोई कांटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफा नहीं होता
aaderniya neeraj ji,namaskar!
ReplyDeleteaap mere blog per aaye,mujhe padha,saraha,iske liye tahe-dil se shukriya.aapke blog per bahut kuch dekhne, janne aur padhne ko mila.aapki parkhi nazaron se meri bhi koi kitab ya rachna guzre to meri khushnaseebi hogi.bhavishya main bhi mere log per aate jaate nazar dal liya karenge,isi umeed ke sath.kavita'kiran'
neerajjibahut bahut dhanyvad aapakee post ke liye .
ReplyDeleteaap to parakhee hai.
अद्भुत लिखा है आपने! इतना सुंदर की तारीफ के लिए अल्फाज़ कम पर गए !
ReplyDeleteमेरे इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है -
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
बहुत चुन कर मोती लाये हैं आप इस पुस्तक से...आभार...ब्लॉग पर आकर हौसला अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteneeraj ji aap kripya pata chod den main aapko apni recent published gazal sangrah;'Tumhi kuch kaho na!'bhej dungi.
ReplyDeletevaah.....bahut sundar aur sarthak jaankaari....dhanywaad..
ReplyDeletepran ji ki rachna aur pustak sambandhi jaankari jo aapne hum tak pahuchai iske liye aabhari hai ,gazal to bahut hi shaandar lagi aur behad pasand bhi aai ,
ReplyDeleteसोच की भट्टी में सौ सौ बार दहता है
ReplyDeleteतब कहीं जाकर कोई एक शेर कहता है
बात मन की क्या सुनाई जान कर अपना उसे
बात जैसे पर लगा कर हर तरफ उड़ने लगी
wah laazwab
नीरज भाई साहब
ReplyDeleteआदरणीय प्राण भाई साहब जैसे रचनाकारों के लिए ही कहा है के,
जब् आम्र फलों से पेड़
लद जाता है तब
स्वत: झुक जाता है !!
-
वे भी ऐसे ही गुणी जन हैं -
उनका लिखा पढना ,
हमेशा आनंद देता है
वे लिखते रहे,
स्वस्थ व प्रसन्न रहें ~~
यही दुआ है
डाक्टर कुंवर बैचेन जी का चित्र व पुसक की
भूमिका भी बेहद सुरुचिपूर्ण है --
शुक्रिया
आपने उनकी पुस्तक से हमें
परिचित करवाया -
- आप का ऐसा कार्य
आवश्यक भी है और काबिले तारीफ़ भी है
बहुत स्नेह के साथ
- लावण्या
प्राण जी, हिन्दी गजल के शीर्ष पुरूषों में से एक हैं। उनकी किताब सेपरिचय पाकर अच्छालगा। आभार।
ReplyDelete--------
स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक।
चार्वाक: जिसे धर्मराज के सामने पीट-पीट कर मार डाला गया।
... ab kyaa taareef karen, bas aanand hi aanand hai !!!!
ReplyDeletejee....yeh kitaab mere paas bhi hai..... Usha raje Saxena ji ne mujhe yeh kitaab gift ki thi....
ReplyDeletemaine bhi isey kai baar padha hai...... bahut hi achchi kitaab hai...
dhanyawaad......
is pustak se parichay karane ka shukriya
ReplyDeleteBAHUT ACHHI BOOK H.
ReplyDeletePUBLIC OPNION KE LIYE THANK U.
VERY NICE THOUGHT.
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