गुरुदेव पंकज सुबीर जी ने अपने ब्लॉग पर एक तरही मुशायरे का आयोजन किया था जिसमें बहुत से नामी गिरामी शायरों ने अपने बेमिसाल कलामों के साथ शिरकत की, उसी मुशायरे में खाकसार ने भी अपनी ग़ज़ल भेजी जिसे उसमें कुछ नए शेर जोड़ कर यहाँ पेश किया जा रहा है.
मुस्कुरा कर डालिए तो इक नज़र बस प्यार से
नर्म पड़ते देखिये दुश्मन सभी खूंखार से
नाम तो लेता नहीं मेरा मगर लगता है ये
रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से
फूल तितली रंग खुशबू जल हवा धरती गगन
सब दिया रब ने नहीं पर हम झुके आभार से
जो दिया था आपने, लौटा रहा है ये वही
किसलिए फिर कर रहे इतना गिला संसार से
दूर से भी दूर है वो पास से भी पास है
आप पर है आप करते याद किस अधिकार से
जब तलक है पास कीमत का पता चलता नहीं
आप उनसे पूछिए जो दूर हैं परिवार से
ज़िन्दगी में यूँ सभी से ही मिली खुशियाँ मगर
जो बिताये साथ तेरे दिन थे वो त्यौहार से
पीठ से मासूम की, लादा हुआ बस्ता हटा
दब रहीं किलकारियां हैं देख उसके भार से
झूठ कहने का हुनर 'नीरज' अगर सीखा नहीं
आप सहरा में नज़र आओगे फिर गुलज़ार से
फूल तितली रंग खुशबू जल हवा धरती गगन
ReplyDeleteसब दिया रब ने नहीं पर हम झुके आभार से
जो दिया था आपने, लौटा रहा है ये वही
किसलिए फिर कर रहे इतना गिला संसार से
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार्
भाई नीरज जी,
ReplyDeleteइतनी शानदार ग़ज़ल कि इसके किस -किस शेर की तारीफ करुँ.
फिर भी निम्न कुछ शेर मुझे विशेष रूप से पसंद आये........
फूल तितली रंग खुशबू जल हवा धरती गगन
सब दिया रब ने नहीं पर हम झुके आभार से
दूर से भी दूर है वो पास से भी पास है
आप पर है आप करते याद किस अधिकार से
झूठ कहने का हुनर 'नीरज' अगर सीखा नहीं
आप सहरा में नज़र आओगे फिर गुलज़ार से
आभार अपनी एक और बेशकीमती ग़ज़ल से रु-ब-रु करवाने का
चन्द्र मोहन गुप्त "मुमुक्षु"
जयपुर
मेरे ब्लाग का लिंक
www.cmgupta.blogspot.com
जिस पर "दोहे" आपका इंतजार कर रहे हैं.....प्रतिक्रियाओं के लिए
ज़िन्दगी में यूँ सभी से ही मिली खुशियाँ मगर
ReplyDeleteजो बिताये साथ तेरे दिन थे वो त्यौहार से
lajawab gazal,ye sher bahut hi pasand aaya.
ज़िन्दगी में यूँ सभी से ही मिली खुशियाँ मगर
ReplyDeleteजो बिताये साथ तेरे दिन थे वो त्यौहार से
वाह वाह नीरज जी बहुत सुन्दर ,...
क्या बात है ! बहुत सुन्दर, नीरज जी !!!
ReplyDeleteजो दिया था आपने, लौटा रहा है ये वही
ReplyDeleteकिसलिए फिर कर रहे इतना गिला संसार से....boht sunder gazal....
फूल तितली रंग खुशबू जल हवा धरती गगन
ReplyDeleteसब दिया रब ने नहीं पर हम झुके आभार से
ये शेर तो माशाल्लाह है... वाकई
भीनी भीनी खुशबू में बसी गजलें...कमाल लिखते हैं आप नीरज जी.
ReplyDeleteफूल तितली रंग खुशबू जल हवा धरती गगन
ReplyDeleteसब दिया रब ने नहीं पर हम झुके आभार से
बहुत अच्छे...
इससे मिलता जुलता बशीर बद्र साहब का शेर याद आया...
चाँद चेहरा, ज़ुल्फ़ दरिया, बात खुशबू, होठ फूल
एक खुदा ने तुम्हें देकर जाने क्या-क्या दे दिया मुझे
वाह वाह अशआर हैं के मोती हैं
ReplyDelete--->
गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम
दूर से भी दूर है वो पास से भी पास है
ReplyDeleteआप पर है आप करते याद किस अधिकार से
आप के किस शेर की तारीफ की जाये कौन बेहतरीन है, ये कहना जिनके वश की बात होगी, वो कुछ अलग गुर रखते होंहगे मुझमे नही है वो....!
हर शेर कितना खूबसूरत है ??
मैं लिखने बैठती हूँ तो कभी कहन फिसल जाती है कभी बहर...!
एक को कोट करने का मतलब ये नही कि यही सर्वश्रेष्ठ था..पूरी गज़ल कोट बी तो नही कर सकती थी....!
जब तलक है पास कीमत का पता चलता नहीं
ReplyDeleteआप उनसे पूछिए जो दूर हैं परिवार से,
नीरज जी,बहुत सुन्दर,
बेहतरीन गजलें!!!
नाम तो लेता नहीं मेरा मगर लगता है ये
ReplyDeleteरात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से
जो दिया था आपने, लौटा रहा है ये वही
किसलिए फिर कर रहे इतना गिला संसार से
दूर से भी दूर है वो पास से भी पास है
आप पर है आप करते याद किस अधिकार से
kis kis sher ki tarif karein......har sher kya poori gazal hi lajawaab hai.
ज़िन्दगी में यूँ सभी से ही मिली खुशियाँ मगर
ReplyDeleteजो बिताये साथ तेरे दिन थे वो त्यौहार से
नीरज जी इन पंक्तियो का जवाब नही ......क्या कहू एक से बढकर एक शेर है ....जो सीधे दिल मे उतर गई........अतिसुन्दर
झूठ कहने का हुनर 'नीरज' अगर सीखा नहीं
ReplyDeleteआप सहरा में नज़र आओगे फिर गुलज़ार से
बहुत खूब लिखा है नीरज जी।
Bahut hi sundar bhaav.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
नीरज जी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है...khaas taur pe ये शे'र तो बहुत ही उमदा है ..
ReplyDeleteफूल तितली रंग खुशबू जल हवा धरती गगन
सब दिया रब ने नहीं पर हम झुके आभार से
नाम तो लेता नहीं मेरा मगर लगता है ये
ReplyDeleteरात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से
bahut khoob
you are a very very good poet. i really liked your creation.specially these lines:
ReplyDeleteफूल तितली रंग खुशबू जल हवा धरती गगन
सब दिया रब ने नहीं पर हम झुके आभार से
जो दिया था आपने, लौटा रहा है ये वही
किसलिए फिर कर रहे इतना गिला संसार से
So simple,but yet so powerful and so true. Thanks for posting such a creation.
cheers!
पीठ से मासूम की, लादा हुआ बस्ता हटा
ReplyDeleteदब रहीं किलकारियां हैं देख उसके भार से
झूठ कहने का हुनर 'नीरज' अगर सीखा नहीं
आप सहरा में नज़र आओगे फिर गुलज़ार से
बहुत खूबसूरत अशआर हैं।
बधाई!
बहुत शानदार जी. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
नाम तो लेता नहीं मेरा मगर लगता है ये
ReplyDeleteरात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से
बिना आवाज के बिना नाम लिये पुकारना और शायद झट से सुनाई भी पड जाती होगी.
बहुत खूब
आदरणीय नीरज जी सादर प्रणाम,
ReplyDeleteआप तो भारत के उस्ताद शईरों में आतें है और आपके बारे में मैं भला क्या कह सकता हूँ बस आपके लिखे ग़ज़लों को पढ़ कर सीखता रहता हूँ एक शे'र निचे लिख रहा हूँ इसका मतलब कतई ये ना निकाला जाये के यही बेहतरीन था ....
दूर से भी दूर है वो पास से भी पास है
आप पर है आप करते याद किस अधिकार से
गिरह जी तरह से आपने लगाई है वो अलग से खड़े होकर दाद मांग रहा है ... नायब शे'र के लिए बहुत बहुत बधाई
अर्श
नाम तो लेता नहीं मेरा मगर लगता है ये
ReplyDeleteरात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से ...
क्या खूब कह डाला है नीरज जी ...पूरी ग़ज़ल ही बहुत सुन्दर है
पीठ से मासूम की, लादा हुआ बस्ता हटा
ReplyDeleteदब रहीं किलकारियां हैं देख उसके भार से
इस बेहतरीन गजल के लिये बहुत बहुत बधाई
सुन्दर गजल. एक-एक शेर क्या कुछ नहीं कहता. वाह!
ReplyDeleteजनाबे नीरज साहिब
ReplyDeleteआपकी ग़ज़ल में हुस्ने तकरार है ख़यालात का इज़हार है
हिंदी के शब्द सुन्दर हैं और ग़ज़ल को खूबसूरती देते हुए दिखते हैं
आपकी सोच जिंदगी की तलख़ हकीक़त बयाँ करती है
शिकवा नहीं करती शिकायत नहीं करती एहसान मंद है
छुपा कर बात करने का हुनर भी आपको है मंज़रकशी भी आप का
शेवा है जनाबे किबला साहिब माज़रत के साथ लिख रहा हूँ के
हो सकता हो के आपको कभी कबार अलहाम भी होता होगा
डर यह है के कहीं आप पर वही न नाज़िल हो जाये
कोई कंबख्त रात भर आपको उस पार से आवाज़ तो देता है
यह तो इल्म है आपको आपके नाम लेवा तो हैं तफ्तीश करे के वोह कौन है
में तो नहीं हो सकता
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
नाम तो लेता नहीं मेरा मगर लगता है ये
ReplyDeleteरात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से
ज़िन्दगी में यूँ सभी से ही मिली खुशियाँ मगर
जो बिताये साथ तेरे दिन थे वो त्यौहार से
भाई .... किस किस शेर की तारीफ़ हो. और सच कहूँ तो मैं कुछ भी कहने में खुद को नाकाफ़ी पाता हूँ. कोई टिपण्णी नहीं. बस पढ़ी ये खूबसूरत ग़ज़ल, और खामोश हूँ.
waise to poori gazal achchi hai but hamhe 3rd, 6th & 7th sher jyada pasand aaye
ReplyDeleteआब मै तो किसी एक शेर के बारे मे कह नहीं सकती क्यों कि मुझे तो सभी शेर बहुत पसंद आये।पूरी गज़ल लाजवाब है । आपकी लेखनी तो पठक को हर विधा मे बाँध लेती है फिर गज़ल हो तो सोने पे सुहागा है बहुत बडिया बधाई
ReplyDeletesundar bhav, laajawab adaaygi.
ReplyDelete"फूल तितली रंग खुशबू जल हवा धरती गगन
ReplyDeleteसब दिया रब ने नहीं पर हम झुके आभार से"
नीरज जी ,
आप की इस ग़ज़ल के बारे में क्या कहूँ.......हर शेर लाजवाब...पए ये शेर बहुत ही पसन्द आया।आप के बारे में तो पंकज जी ने जो वहाँ कहा है, अब उसके बाद और किसी के तारीफ़ की आवश्यकता मैं नही समझता कि है....फिर भी.....बहुत सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....
जो दिया था आपने, लौटा रहा है ये वही
ReplyDeleteकिसलिए फिर कर रहे इतना गिला संसार से
जानब हमारे शव्द भी कम पड रहे है तारीफ़ के, बहुत सुंदर..
धन्यवाद
जब तलक है पास कीमत का पता चलता नहीं
ReplyDeleteआप उनसे पूछिए जो दूर हैं परिवार से
ज़िन्दगी में यूँ सभी से ही मिली खुशियाँ मगर
जो बिताये साथ तेरे दिन थे वो त्यौहार से
वाह नीरज जी, आपने तो कमाल कर दिया
बहुत बढ़िया गज़ल बनाई है आपने।
गज़ल की खासियत इन दोनो शेरों से पता लगती है। पहली लाइन पढ़ कर कोई अन्दाज़ा नहीं लगा सकता के आप अगली लाइन में क्या कहेंगें। यही होना चाहिये गज़ल में। जो आपकी गज़ल में बखूबी है।
http://tanhaaiyan.blogspot.com
जो बिताये साथ तेरे दिन थे वो त्यौहार से" बस यह पंक्ति दिल ले गई -शरद कोकास ,दुर्ग
ReplyDeleteपूरी गजल शारदार
ReplyDeleteमक्ता डबल शानदार
झूठ कहने का हुनर 'नीरज' अगर सीखा नहीं
आप सहरा में नज़र आओगे फिर गुलज़ार से
वाह ....
वीनस केसरी
जब तलक है पास कीमत का पता चलता नहीं
ReplyDeleteआप उनसे पूछिए जो दूर हैं परिवार से
आपकी इन पंक्तियों से खुद को कहीं जुड़ा पाता हूँ..बधाई
जब तलक है पास कीमत का पता चलता नहीं
ReplyDeleteआप उनसे पूछिए जो दूर हैं परिवार से ....
Waise ye pahli baar ho raha hai ki. I cant decide which one is these lines are best..
Bahut achcha likha aapne sach mein.. bahut hinn achcha..
बहुत खूब नीरज भाई
ReplyDeleteनाम तो लेता नहीं मेरा मगर लगता है ये
रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से
सुंदर फिर वो ही बात। धन्यवाद।
फूल तितली रंग खुशबू जल हवा धरती गगन
ReplyDeleteसब दिया रब ने नहीं पर हम झुके आभार से
bahut gambheer bat bahut hee sahajta se kehana aapkee khaseeyat hai.
जय हॊ। आप इत्ता धांसू लिख दिये कि परेशान हो रहे हैं कि किसकी तारीफ़ करें किसको छोड़ दें।परेशानी से बचने के लिये हम पूरी की पूरी गजल की तारीफ़ कर दे रहे हैं सो जानना। एक मुश्किल आपने ई भी खड़ी कर दी कि इसकी पैरोडी बड़ी मुश्किल होगी अगर बनाते हैं। आपने अपनी गजल में पैरोडी लाक लगा दिया! :)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल। बिना किसी बेहद मुश्किल अल्फ़ाज़ के, सीधे दिल में उतरने वाली...वाह!
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteअनूप सुकुल जी की बात पढ़के हंस रहे हैं और क्या गज़ब लिखे हैं आप इस बारी वाह जी वाह ..
शानदार एक से बढ़कर एक ...मधुबाला की जितनी तारीफ़ की जाए , सब कम है ...
आपकी पसंदीदा नायिका हैं क्या ? :)
She is , simply, sublime
- लावण्या
नाम तो लेता नहीं मेरा मगर लगता है ये
ReplyDeleteरात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से
मन को छु लेने वाली पंक्तियाँ....
regards
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल।
ReplyDeleteहिन्दीकुंज
E-mail received from Om Prakash Sapra Ji:
ReplyDeleteShri neeraj ji
Namastey
Your gazal "phool titli rang khushboo" is really nice
and i wish to appreciate it.
The following lines are very touching and need special
appreciation:-
जो दिया था आपने, लौटा रहा है ये वही
किसलिए फिर कर रहे इतना गिला संसार से
दूर से भी दूर है वो पास से भी पास है
आप पर है आप करते याद किस अधिकार से
जब तलक है पास कीमत का पता चलता नहीं
आप उनसे पूछिए जो दूर हैं परिवार से
again congratulations,
-om sapra, delhi-9
9818180932
नीरज जी,
ReplyDeleteबहुत ही गहरी बात कही है आपने...
ग़ज़ल तो खैर बहुत खूब कही है आपने...
और इन पंक्तियों की तो बात ही निराली है...
जो दिया था आपने, लौटा रहा है ये वही
किसलिए फिर कर रहे इतना गिला संसार से...
झूठ कहने का हुनर 'नीरज' अगर सीखा नहीं
आप सहरा में नज़र आओगे फिर गुलज़ार से...
इन दिग्गजों के बाद अलग से मै क्या कहूँ ? इतनी क़बिलियत नही ...कई बार पढ़ती हूँ ..लेकिन comment नही कर पाती ..!
ReplyDeleteबहुत ख़ूब! हर शेर एक से बढ़ कर एक।
ReplyDeleteबधाई
जब तलक है पास कीमत का पता चलता नहीं
ReplyDeleteआप उनसे पूछिए जो दूर हैं परिवार से
पीठ से मासूम की, लादा हुआ बस्ता हटा
दब रहीं किलकारियां हैं देख उसके भार से
NEERAJ JI ........ AAPKI KLAM KE JAADOO KE TO SAB DIWAANE HAIN .... KYON HAIN YE BAAT IS GAZAL AUR ITNE LAJAWAAB SHERON SE BIN KAHE HI SAMAJH AA JAATI HAI ......
AAPKI KALAM KO AAPKE HAATH KO CHOOMNE KO MAN KARTA HAI .... KAMAAL KE SHER KAHTE HAIN AAP
फूल तितली रंग खुशबू जल हवा धरती गगन
ReplyDeleteसब दिया रब ने नहीं पर हम झुके आभार से
जब तलक है पास कीमत का पता चलता नहीं
आप उनसे पूछिए जो दूर हैं परिवार से
ज़िन्दगी में यूँ सभी से ही मिली खुशियाँ मगर
जो बिताये साथ तेरे दिन थे वो त्यौहार से
पीठ से मासूम की, लादा हुआ बस्ता हटा
दब रहीं किलकारियां हैं देख उसके भार से
Amazing Neeraj ji
har sher moti sa khoobsurat !!!
जो दिया था आपने, लौटा रहा है ये वही
ReplyDeleteकिसलिए फिर कर रहे इतना गिला संसार से
कितना सच कहा आपने , बिलकुल वैसा ही बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से हो
नीरज जी..ब्लोग पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर उत्साह बढाने के लिये तहे-दिल से शुक्रिया..ब्लोगिंग मे अभी शैशवावस्था मे हूँ..काफ़ी कुछ समझना बाकी है..आप जैसे वरिष्ठ ब्लोगर और साहित्यप्रेमी से प्रतिक्रिया पा कर मन बल्लियों उछलता है..और क्या कहूँ..आगे भी आपके स्नेह और मार्गदर्शन की अपेक्षा रहेगी..बहुत बहुत आभार!
ReplyDeleteज़िन्दगी में यूँ सभी से ही मिली खुशियाँ मगर
ReplyDeleteजो बिताये साथ तेरे दिन थे वो त्यौहार से
क्या सहज अभिव्यक्ति हैं...मन को भाया आपका यह शेर
साधू!
आदरणीय नीरज जी,
ReplyDeleteआपके शेरों की तारीफ़ के लिये शब्द ढूंढना मुश्किल हो जाता है। हर शेर ही दमदार है। आनंद आ गया।
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने! सुंदर भाव और शानदार प्रस्तुती के लिए बधाई! खासकर मुझे ये पंक्तियाँ बेहद पसंद आया -
ReplyDeleteफूल तितली रंग खुशबू जल हवा धरती गगन
सब दिया रब ने नहीं पर हम झुके आभार से
नमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteएक बेहतरीन ग़ज़ल, शुरुआत ही इतनी शानदार है.
मतला में मासूमियत इतनी सहज है की हर कोई आपका दीवाना हो जाये, बचपन की मुश्किलों को बयान करता ये शेर अपने आप में उम्दा है.............
"पीठ से मासूम की, लादा हुआ बस्ता हटा
दब रहीं किलकारियां हैं देख उसके भार से"
जाते जाते मकते ने ग़ज़ल के हर शेर के बुनियाद बता दी है.
जब तलक है पास कीमत का पता चलता नहीं
ReplyDeleteआप उनसे पूछिए जो दूर हैं परिवार से
पीठ से मासूम की, लादा हुआ बस्ता हटा
दब रहीं किलकारियां हैं देख उसके भार से
बहुत खूब...सच्ची बात कही आपने!
पीठ से मासूम की, लादा हुआ बस्ता हटा
ReplyDeleteदब रहीं किलकारियां हैं देख उसके भार से
subhan allah ye to aapne vahi baat kahi jo roj subah ham mahsoos karte hai....der se aaya hun taab tak kai haazreen apni baat kah chuke hai ....
Comment received through e-mail from Sh. Sarvat Zamal:
ReplyDeleteनीरज भाई, नमस्कार.
एक बेहद खूबसूरत गजल आपके ब्लॉग पर देखने के बाद खुद को रोक नहीं पाया. मैं आपकी शान में एक गुस्ताखी कर रहा हूँ. एक मिसरा मुझे थोड़ा सा खटका, इसी लिए यहाँ आ गया. गजल तो पोस्ट हो चुकी है और मैं उस्ताद या गुरु बिलकुल नहीं हूँ. पहले मिसरा देख लें:
सब दिया रब ने मगर हम कब झुके आभार से
मुझे लगा कि शायद मैं कहता तो ऐसे ही कहता. अगर आप इस मशविरे से दुखी हुए हों, आहत हो, नाराज़ हों तो साफ़ कह दीजियेगा. मुझे आपके टैलेंट, अनुभव, ज्ञान पर किसी भी तरह का शक नहीं है और न ही मैं अपनी विद्वता-ज्ञान का प्रदर्शन कर रहा हूँ.
एक चीज़ मेरी निगाह में खटकी वो मैं ने बता दी. आगे आपका मन और इन्साफ. अनाधिकार चेष्टा की है, इसकी सजा के लिए भी तैयार हूँ.
क्षमा प्रार्थी
सर्वत एम. जमाल
क्या खूब नीरज जी। एक बार तो सस्वर पढ़ गया हैं!
ReplyDeleteवहुत धन्यवाद।
नाम तो लेता नहीं मेरा मगर लगता है ये
ReplyDeleteरात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से
ज़िन्दगी में यूँ सभी से ही मिली खुशियाँ मगर
जो बिताये साथ तेरे दिन थे वो त्यौहार से...:)
आप ने बड़ी कुशलता से ठेठ हिंदी शब्दों का इस ग़ज़ल में प्रयोग किया है।
ReplyDeleteघरवालों की जरूरतों का ध्यान रखते रखते अपनी जरूरतें कब गायब हो जाती हैं या यूँ कहें बेमायनी हो जाती हैं इसका पता ही नहीं चलता।
ReplyDeleteजब तलक है पास कीमत का पता चलता नहीं
ReplyDeleteआप उनसे पूछिए जो दूर हैं परिवार से
-गज़ब एवं अद्भुत!!
यूँ पूरी गज़ल ही बेजोड़ है..लाजबाब!!
बहुत बधाई!
हर शेर शानदार नीरज जी।
ReplyDeleteज़िन्दगी में यूँ सभी से ही मिली खुशियाँ मगर
जो बिताये साथ तेरे दिन थे वो त्यौहार से
वाह जी वाह क्या बात है।
ज़िन्दगी में यूँ सभी से ही मिली खुशियाँ मगर
ReplyDeleteजो बिताये साथ तेरे दिन थे वो त्यौहार से
नीरज भाई,
बहुत कुछ कह दिया आपने.ग़ज़ल बहुत ही रोचक है.मुझे बहुत अच्छी लगी .बधाई!!
नीरज जी,
ReplyDeleteसही कहा आपने...
मतला मन को छू गया....
सच है की सच के हिस्से सहरा आता है
अक्सर...लेकिन झूठ के गुलज़ार से हर हाल में
बेहतर है वह.........शुक्रिया....इस अनोखी प्रस्तुति के लिए.
===================================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बहुत ही अच्छी लगी ये रचना...
ReplyDeleteबहूत बढ़िया!
ReplyDeleteजब तलक है पास कीमत का पता चलता नहीं
आप उनसे पूछिए जो दूर हैं परिवार से
पीठ से मासूम की, लादा हुआ बस्ता हटा
दब रहीं किलकारियां हैं देख उसके भार से
bahut achchi rachna
ReplyDeleteभैया प्रणाम
ReplyDeleteआपकी सभी गजलें मुझे बहुत अच्छा लगा.
आपकी यह गजल बहुत सामायिक है.
" पीठ से मासूम की, लादा हुआ बस्ता हटा
दब रहीं किलकारियां हैं देख उसके भार से"
bhai ji,ghazal hai ya jeevan darshan,aankhe num ho gai aapke andaz se,behad umda ,tareef ke paar ki ghazal,lafz nahi hai prashansha ke.
ReplyDeleteBahut dino baad koi umda baat haath lagi.
Dhanyavaad aapka,
sadar,
dr.bhoopendra
Kahan hai vo maasoomiyat bachpanon mein
ReplyDeletejo kal tak pali mere ghar aanganon mein
पीठ से मासूम की, लादा हुआ बस्ता हटा
दब रहीं किलकारियां हैं देख उसके भार से
daad ke saath balfaaz meri nishabd soch
Devi