(ये तो मजाक की बात है, गुरुदेव जरूर व्यस्त होंगे, उनमें नेताओं वाले गुण आ ही नहीं सकते...किसी भले इंसान में आपने नेताओं वाले गुण देखें हैं क्या???? ...खास कर आज के दौर में)
जिस मुम्बईया ग़ज़ल का जिक्र गुरुदेव ने मेरी पिछली पोस्ट में किया था वो करीब साल भर पहले लिखी थी और उस पर मिश्रित प्रतिक्रिया भी हुई थी. आज अपनी उसी ग़ज़ल को फिर प्रस्तुत कर रहा हूँ. आप देखें की सिर्फ काफिये ही मुम्बईया भाषा के हैं लेकिन भाव और नियम असल ग़ज़ल के. जिन्होंने पहले नहीं पढ़ी वे इसका आनंद लें और जिन्होंने पहले पढ़ी थी वो दुबारा इसका आनंद लें ,क्यूंकि आनंद ही जीवन है.
गर जवानी में तू थकेला है
सांस लेकर भी फिर मरेला है
सच बयानी की ठान ली जब से
हाल तब से ही ये फटेला है
ताजगी मन में आ न पायेगी
गर विचारों से तू सड़ेला है
हो जरुरत तो ठीक है प्यारे
बे-जरुरत ही क्यूँ खटेला है
रात काली हो बे-असर गम की
चाँद आशा का गर उगेला है
लोग सीढ़ी है काम में लेलो
पाठ बचपन से ये रटेला है
रोक पाओगे तुम नहीं 'नीरज'
वो गिरेगा जो फल पकेला है
सांस लेकर भी फिर मरेला है
सच बयानी की ठान ली जब से
हाल तब से ही ये फटेला है
ताजगी मन में आ न पायेगी
गर विचारों से तू सड़ेला है
हो जरुरत तो ठीक है प्यारे
बे-जरुरत ही क्यूँ खटेला है
रात काली हो बे-असर गम की
चाँद आशा का गर उगेला है
लोग सीढ़ी है काम में लेलो
पाठ बचपन से ये रटेला है
रोक पाओगे तुम नहीं 'नीरज'
वो गिरेगा जो फल पकेला है
बहुत बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteरामराम.
पहले तो नही पढ़ी थी पर आज पढ़ ली ।
ReplyDeleteऔर आनंद आया ।
जै हो,
ReplyDeleteइस रचना में मुंबई का सम्मान बढ़ गया है..
आनंद आया..
नीरज जी
ReplyDeleteमुम्बईया अंदाज बहुत जोरदार है..........
इतना ही कहूँगा बस
नीरज का अंदाज़ नवेला है
सबके दिलों में वो बसेला है
इतनी अच्छी ग़ज़ल पढ़ कर
ख़ुशी से मेरा दिल पगेला है
भाई नीरज जी,
ReplyDeleteजैसा कि मैंने आपकी पिछली पोस्ट "गज़ले-इंग्लिश" में प्रतिक्रिया देते हुए यह कामना कि थी कि इस बार भी आप प्रथम अप्रैल को मूरखता के दोहे की दूसरी कड़ी से जरूर अवगत करायेंगे , पर जैसा कि अमूमन मूरख दिवस पर होता है, कोई नया आइडिया ही चलता है और आपका यह नया आइडिया भी काबिले तारीफ है कि आपने "गजले-मुम्बईया" ही ठेल दी.............., आखिर बना कर ही छोडा न ........................
आस , अरदास की सब ऐसी -तैसी कर के ही छोडी,
अब तो आप बासी माल पर बासी कमेन्ट से ही काम चला ले.....................
वैसे आपकी जानकारी के लिए मूरख दिवस की पूर्व संध्या पर भाई मौदगिल जी मज़ेदार, लक्षेदार, कटीले, चुटकीले, भड़कीले दोहे परोस चुके हैं. नज़ारे इनायत करें.
मैनें भी कुछ दोहे आज ही सुबह अपने ब्लॉग पर ठेला है, चुटीली प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है.............
चन्द्र मोहन गुप्त
रात काली हो बे-असर गम की
ReplyDeleteचाँद आशा का गर उगेला है
लोग सीढ़ी है काम में लेलो
पाठ बचपन से ये रटेला है
jabardast:)bahut hi achhi
neeraj bhayee ,
ReplyDeletemaan gaya baap ! lajabab ho aap !
is me samaya falsafa, ummeed hai log hansee me na len. jhank kar dekhenge to 'mumbaikar' ka dard isme 'chipela' hai . varna kahe koyee mumbaikar 'khatela' hai . mumbai me 1 %
se jiyada bharat basta hai. uska dard bhee, uskee ummeeden bhee, uskee uplabdhi bhee .
aur apne pagalpan me koyee mumbai kee bhasa kuch aur kahe ya batana chahe ya banana chahe ........kar le koshis , lekin mumbai kee bhasa yahee hai .
chaliye ek man ho aaya hai !
MUMBAI KE GHAM, DARD , SANGHARSH , AANAND, UPLABDHI AUR PEEDA KO SAMARPIT AISEE HEE KUCH 'SHAIREE' HO , MUMBAIKAR KEE JUBAN ME , AUR USE GA BAJAKE KAHA JAYE . MUMBAIKAR ,ISHTAYIL' ME.
JAB BHEE BOLO APUN CHALOO HO JAYENGA BOSS, APUN BHEE PAIDAISHEE MUMBAIKAR HAI !
AUR AAJ KAL AAPUN ISEE DHANDHE ME HAI TO BINDHAST BHEE HAI .HO JAYENGA .
सरल मुंबया शब्दो मॆं गहरी बात कह दी.. अच्छा है..
ReplyDeleteCHALO TRY KARTE HAIN BANDHU . SAB KO INVITE KARTE HAIN ! ( PUNE VAALON KO CHOD KAR . UNKA, AUR MUMBAI KA 36 KA AANKDA HAI ! )
ReplyDeleteवाह! वाह!
ReplyDeleteमुंबई की हिंदी और मुम्बईया हिंदी में गजल. गजल तो क्या, 'गजेला' है.
बहुत शानदार!
Ye "bambaiyya bhashame kavita padh, aanand aa gayaa...
ReplyDeleteMere blogse aapka blog nahee khul paya...any blogse aapka lnk leke ayee hun.
Aap jaise rachnakaarpe tippanee likhun, itnaa ikhtiyaar nahee, naahi qabiliyat..
Ek to meree e-mail ID hack ho gayi thee aur mere e-mails ajeeb, ajeeb e-mails anytr jaa raheen thee...Irshad ji kaa," Apnehee Hathiyaarse Mara Gaya". Is karan any blogger doston ke saath kaafee galatfehmiyaan bhi ho gayeen...aashaa hai, aapbhi hame maaf kar denge....dilki gehrayeese sabki kshama prarthi hun...
Hackingka source to koyi ajeeb-si website hai...jaise Irshadka "orkut" ke thru ho gaya tha...pata naheen, shayad mainehee kaheen koyi galat jageh "click"kar diya ho...
Mera apna blog, "The light by a lonely path" jo "chittha jagat" se juda hai,indexme 106 post dikh raheen hain...asalme kewal 19 reh gayeen hain...samajh nahee pa rahee ki, maine kahan kya click kar diya jo ye gadbadi ho gayi...
Maafeeka namr nivedan hai.
Meree orse kewal aparipakwtahee nahee thee, hacking bhee ek karan ban gaya tha,mis understanding ka.. ..dua karti hun, aap sabhee maaf kar denge...aaplog mere karan aahat hue,iskee behad sharmindagee bhee mehsoos kar rahee hun.
shama
"rang bilkul naya mila mujhko ,
ReplyDeleteghaur se jb ise parhelaa hai.."
waah !! Neeraj bhai....
ek-dm alag lehjaa aur
ghazal ka poora waqaar qaayam hai.
badhaaee . . . .
---MUFLIS---
waakai aanand aaya........
ReplyDeleteइसे कहते हैं प्रयोगवादी ग़ज़ल किसी ने कहा है न
ReplyDeleteग़ज़ल को ले चलो अब गांव के दिलकश नज़ारों में
मुसलसल फन का दम घुटता है इन अदबी इदारों में
प्रयोग करना ही बढ़ते रहने का प्रतीक है । आपकी ये ग़ज़ल इसके बारे में क्या कहूं । आनंद या कहें कि निर्मल आनंद का विषय है । जो निर्मल आनंद चुपके चुपके जैसी फिल्मों को देखने में आता है वही आपकी इस ग़ज़ल में है ।
मुम्बईया ग़ज़ल...पहली बार! मज़ा आ गया!
ReplyDeleteआजकल क्या ये कर रहेला है?
ReplyDeleteआइटम खूब मगर ठेला है !!
badhya hai...... our kahane ki jarurat nahi lagarahi kyoki baki ka aapne apane shayari me kah di hai........
ReplyDeleteबहुत बढिया रचना है।
ReplyDeleteगज़ब...रोचक...सरल किन्तु
ReplyDeleteसन्देश से परिपक्व....आशा के चाँद और
बचपन के रटंत की बात खास तौर पर
कारगर लगीं....शुक्रिया नीरज जी.
==============================
आपका
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
वो गिरेगा, जो फल पकेला है!
ReplyDelete---------
वाह! महामृत्युंजय मंत्र का गजलानुवाद है - उर्वारुकमिवबंधनात!
वो गिरेगा, जो फल पकेला है! ..वाह वाह इस से अच्छा ज्ञान तो कोई और हो ही नहीं सकता है ...बहुत बढ़िया प्रयोग लगा आपका यह ..शुक्रिया
ReplyDeleteयह वाकई मजेदार है .
ReplyDeleteइसे पढ़ कर वो मज़ा तो नहीं आता जो सामान्यतः आपकी ग़ज़लों को पढ़ने से आता है। चलिए जायका बदलने में भी कोई हर्ज नहीं है।
ReplyDeleteझकास धकेली है बीडू !झकास बोले तो.....
ReplyDeleteअरे नीरज जी,
ReplyDeleteमुन्ना भाई की अगली फिलिम के लिये ये गज़ल लिखेला है क्या ? :)
जानदार च शानदार भी ..
- लावण्या
मार डाला ...इस नए अंदाज के क्या कहने नीरज जी गुरु जी ने सही कहा या वो शेर.. सौ प्रतिशत सच्ची बात है ले चलो अब ग़ज़ल को गावों के और... आप तो माहिर है गज़ल्गोई में सरकार... ये चेहरा कहाँ आपने छुपा रखा था... बहोत खूब लिखा या आपने.. सच्ची भावनाप्रद ग़ज़ल...ढेरो बधाई आपको..
ReplyDeleteअर्श
हम तो समझे थे नीम ,ये तो करेला है
ReplyDeleteजो भी हो बहुत मस्त लिखेला है
आनंद आ गया उसमें डूब कर...
ReplyDeleteजो आपने शब्दों का सागर उडेला है..
नीरज जी क्या खूब लिखेला है
ReplyDeleteदिल फुदक- फुदक हँसेला है
आप तो भाई बहुत ही गज़ब कर रहे हो....मतलब यह कि अच्छा कर रहे हो.....मजा आ गया....!!..........
ReplyDeleteआज अपन भी इक् ग़ज़ल कहेंगे गाफिल
आज अपन का भी माथा फिरेला है....
बहुत बढिया ... बधाई।
ReplyDeleteपहले भी पढ चुके है लेकिन दुबारा पढकर भी वही आनन्द आया है.... गज़ल को कहने का नया भाषा प्रयोग भी खूब सफल रहा ...
ReplyDeleteनीरज जी आप ने तो बल्ले बल्ले कर दी जी. बहुत सुंदर.
ReplyDeleteधन्यवाद
रात काली हो बे-असर गम की
ReplyDeleteचाँद आशा का गर उगेला है
वाकई मुन्नाभाई सीरीज़ में काफी काम आएगी! बधाई.
पुरानी शराब का तो नशा ही कुछ अलग होता है.. बोले तो एक दम ढी न चाक ग़ज़ल लिखेली है बाप!
ReplyDeleteब्लॉग की खिड़की में बैठी मिष्टी बिटिया बहुत प्यारी लग रही है
शायद यह गजल का बम्बइया अवतार है।
ReplyDelete-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
ghazal to jhakkas hai Neeraj ji!!
ReplyDeleteab ye kya style mein aap ne likhni shuru kar din...:)
ab is style ko permanant na kar dijeeyega..
बहुत बढिया प्रयोग है। आनंद आ गया। लगे हाथ इसी भाषा में कुछ और गजलें पढ़वाईये ना।
ReplyDeleteहा हा...सुंदर नीरज जी
ReplyDeleteऔर इस शेर पे "रात काली हो बे-असर गम की
चाँद आशा का गर उगेला है" अपून खूब वाह-वाह करेला है...
उधर थोड़ा विलंब क्या हुआ कि वो गंगाजल वाली गज़ल वाला पोस्ट नहीं मिल रहा,,...आपने हटा दिया क्या?
वाह वाह वाह वा ! नीरज दा। कोई जवबिच नहीं आपका बाप। क्या गजल मारेली है बाप। झ्क्कास! बोले तो किदर था तुम भिड़ू आज़ून तलक ?
ReplyDeleteमाला वाट्तं तुमि पण आप्ल्या माणूस झालेलाय।
हा हा !
बहुत बहुत बहुत लाजवाब रही नीरज दा ये बम्बैया ग़ज़ल आपकी। नज़र वज़र आजकल में ज़रूर उतरवा लीजिएगा। हा हा !
गज़ब का लिखेला है भाई-बहुत खूब!!
ReplyDelete... क्या टपकाईला है, झकास, झकास, झकास।
ReplyDeleteआपका स्टाईल बेजोड है, हँसी आ गई।
नीरज जी, मुझे हैरत है और पछतावा भी कि मैंने अभी तक आपको फॉलो क्यों नहीं किया था। दरअसल ग़ज़ल मेरे लिए एक दुरूह विधा रही है। लेकिन जब से गुरू पंकज सुबीर जी की ग़ज़ल की कक्षा पध़्अने का सौभाग्य मिला तबसे थोड़ी बहुत रुचि जाग गयी है।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर मुझे बहुत बड़ा खजाना हाथ लगा है। अब इसे समय देकर पढ़ता हूँ। हार्दिक धन्यवाद और बधाई इस ग़ज़ल के लिए।
LOL
ReplyDeleteneeraj ji
kuch nahi kahungaa ..aapka ye roop bhi hai pata nahi thaa.
bahut achchi ghajal hai.... mai to padkar ghaharayiyo me kho hi gaya....
ReplyDeleteबम्बइया लहजे में अच्छी प्रस्तुति है.साधुवाद.
ReplyDeleteनीरज भाई साहब
ReplyDeleteये तो कमाल हो रखा है.
झक्कास
.
एक एक शेर खल्लास करता जाता है.
i really impressed
ReplyDeleteपढ कर आनंद आ गया
ReplyDeleteगज़ल पसंद आई,देर से ही सही
ReplyDeleteमगर टिप्पणी तो करेला है!
बहुत लाजवाब अंदाज़ है आपका
हर शब्द मोती बनेला है
नाम रोशन हो दुनिया मे आपका
यही शुभकामना मेरी रहेला है
गज़ल पसंद आई,देर से ही सही
ReplyDeleteमगर टिप्पणी तो करेला है!
बहुत लाजवाब अंदाज़ है आपका
हर शब्द मोती बनेला है
नाम रोशन हो दुनिया मे आपका
यही शुभकामना मेरी रहेला है