खालिस होलियाना मूड में लिखी उसी ग़ज़ल को जिसे आप शायद पंकज जी के ब्लॉग पर पढ़ आये होंगे, आज मैं आप की प्रतिक्रिया जानने के लिए अपने ब्लॉग पर प्रस्तुत कर रहा हूँ.
पंकज सुबीर जी की नज़र में -" मैं "
पिलायी भाँग होली में,वो प्याले याद आते हैं
गटर, पी कर गिरे जिनमें, निराले याद आते हैं
दुलत्ती मारते देखूं, गधों को जब ख़ुशी से मैं
निकम्मे सब मेरे कमबख्त, साले याद आते हैं
गले लगती हो जब खाकर, कभी आचार लहसुन का
तुम्हारे शहर के गंदे, वो नाले याद आते हैं
भगा लाया तिरे घर से, बनाने को तुझे बीवी
पढ़े थे अक्ल पर मेरी, वो ताले याद आते हैं
नमूने देखता हूँ जब अजायब घर में तो यारों
न जाने क्यूँ मुझे ससुराल वाले याद आते हैं
कभी तो पैंट फाड़ी और कभी सड़कों पे दौड़ाया
तिरी अम्मी ने जो कुत्ते, थे पाले याद आते हैं
सफेदी देख जब गोरी कहे अंकल मुझे 'नीरज'
जवानी के दिनों के बाल काले याद आते हैं
us tarahi mushaayare ke kya kahane.. hasi se lot pot hote nahi thakte.. wakai guru ji ne bahot mehnat kari hogi sabhi ko choli aur ghaghara pahanaane me ... aap bhi khub bhaa rahe ho is poshaak me ... ufffff...kya haun... abhaar aapka aur aapko badhaee..
ReplyDeletearsh...
अब बार-बार क्या लिखूं?????????????????
ReplyDeleteसुबीर जी के ही ब्लॉग पर टिप्पणी पढ़ लें.
होली की हार्दिक बधाई.
पर क्या करुँ, होली के रंग ने किया विवश सो कह रहा हूँ...................
होली पर २-२ पोस्ट मैंने पेशियाई
एक पर भी टिप्पणी न आयी.
व्यस्त, अतिव्यस्त या और कुछ
नशे में याददास्त भी चरमराई.
कुछ ने कहे सुन्दर लगी हो
ड्रेस कहाँ से सिलवाई है
गधा भी ठिठका, पीछे क्यूं लगी
दुलत्ती इसे से है लगाई .
भई वाह्! नीरज जी, क्या खूब लिखा है.....पूरी तरह से होलीमय.........
ReplyDeleteबड़ी ही खतरनाक पोस्ट है नीरज जी... बीबी, सास , ससुर, ससुराल, साले किसी को भी नहीं छोडा.. खतरनाक इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकि अगर श्रीमती नीरज जी ने पढ़ लिया तो मुझे लगता है की अगली होली पर ये लाइन भी प्रकाशित करना पड़ेगा...
ReplyDeleteसोफे की कमर तोड़ रहा हूँ साल भर से मैं..
क्यूँ लिखा ससुराल पर, पीठ के छाले याद आते हैं....
आपको एवं समस्त परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें
ये भी होली मनाने का एक अंदाज़ है.. मज्ज़ेदार
ReplyDelete:);).mann lotpot hua jaa raha ,shabdaar:):)
ReplyDeleteगजब..गजब..गजब नीरज जी.
ReplyDeleteहोली की घणी रामराम.
खूब रँगे आप होली के रंग में ..बहुत बढ़िया
ReplyDeleteहोली में ससुराल तो सभी को अच्छी लगती है।
ReplyDeleteनीरज जी हमने देखा था । वैसे होली के रंग आप लोगों पर ही ज्यादा चढ़े । पंकज जी ने समा बांध दिया था ।
ReplyDeleteफिट है, हिट है...
ReplyDeleteneeraj ji , holi to bus yahin par man rahi hai , subeer ji ne jo sama baandha tha , usi ko jordaar extension ye post hai
ReplyDeletejai ho [ li ]
शानदार...गजब लिखा है...मस्त...बड़ा मज़ा आया पढ़ कर, हम तो हंसते हंसते लोटपोट हो गए. कमाल का लिखा है, दिल कर रहा है तारीफ़ कोई दो चार पन्नो की कर दूं :)
ReplyDeleteओए होए-नीरजा जी तो छा गई!!!!
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन!!! वहाँ भी सुने थे न महफिले मुशायरा में!!
नजर उतरवा लेना छन्नो से!!
भई वाह आन्म्द आ गया नीरज जी
ReplyDeleteआपकी रचना के लिये बधाई
और फ़िर असीम शुभकामनाओ सहित
तीन मुक्तक होली पर
लगें छलकने इतनी खुशियां , बरसें सबकी झोली मे
बीते वक्त सभी का जमकर , हंसने और ठिठोली मे
लगा रहे जो इस होली से , आने वाली होली तक
ऐसा कोई रंग लगाया , जाये अबके होली मे
नजरें उठाओ अपनी सब आस पास यारों
इस बार रह न जाये कोई उदास यारों
सच मायने मे होली ,तब जा के हो सकेगी
जब एक सा दिखेगा , हर आम-खास यारों
और
मौज मस्ती , ढेर सा हुडदंग होना चाहिये
नाच गाना , ढोल ताशे , चंग होन चाहिये
कोई ऊंचा ,कोई नीचा , और छोटा कुछ नही
हर किसी का एक जैसा रंग होना चाहिये
शुभकामनाओ सहित
डा. उदय मणि
http://mainsamayhun.blogspot.com
यह छवि देख मन कहता - आ जा!
ReplyDeleteओ नीरजा!!!
aap ka ruup rang badala badlaa dekha tha subeer ji ke blog par kal..
ReplyDeleteaap ne yahan bhi utaar diya nirajaa ko!hee hee hee! bahut khuub!
aur yah gazal bhi apne aap mein ek namoona hai!
holiyayee rachnaon ka nayab sample!
:D
waah waah niraj ji
ReplyDeleteaaj to bahut purani yaadein taaza kar din.kabhi mushayre suna karte the tab holi ke aise chand sunne ko milte the.
पढ़ते हैं जो यह कविता तो
ReplyDeleteवाह वाह शब्द याद आते हैं!
घुघूती बासूती
वाह जी भाई जी
ReplyDeleteहोलियाना ड्रैस खूब जंची
मजा आ गया
वाह मजा आ गया। फोटो में तो गजब के लग रहे है आप :-)
ReplyDeleteसच पंकज जी की लेखनी का जवाब नही।
हा हा हा……नीरजा जी से मिल कर बहुत खुशी हुई।
ReplyDeleteसुबीर जी के ब्लोग पर भी मिले थे इनसे, इन्हें देख होली के गुजरे जमाने याद आते हैं
शानदार! अब बचिये कहीं ससुराल वाले प्रेम प्रदर्शन के लिये आते न हों!
ReplyDeletewaah waah,, :)
ReplyDeleteएकदम सफ़ेद जवानी की
ReplyDeleteरंगीन-सी ग़ज़ल है भाई,
बुरा न मानें..ये है हमारी
होली की बधाई ===========
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
भाई जान
ReplyDeleteयहाँ तो आपने पाठकों को होली और हास्य के महाकुण्ड मे गोते लगवाने का महाप्रबन्ध
कर रखा है.
विलम्ब से यहाँ आने के लिए मुआफी दें.
अगले वर्ष की होली तक हँसाने के इस इंतज़ाम के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई.
आज तो हँसते-हँसते पेट में बल पड़ गये
.
आपको भाई सुबीर जी ने पोशाक भी सुन्दर पहनाई है और आप बहुत खूब भी लग रहे हैं.
बधाई.
आपको सपरिवार होली की मँगल कामनाएँ
ReplyDeleteनीरज जी ..
गीत तो वाकई,
बहुत ज़ोरदार लिखा है आपने !:)
- लावण्या
holi ke rang,bhaang ke sang....aur ye nazm........maza aa gaya
ReplyDeleteबढिया और बेबाक लेकिन थोडी सावधानी बरतनी चाहिए - भई घर में बवाल न हो जाय, यह सवाल न हो जाय कि म्रेरे भाई ने आप का क्या बिगाडा? है कि नै:)
ReplyDeleteनीरज जी आप की जुलफ़े बडी प्यारी लगी. बिलकुल आप की कविता की तरह से , बहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteधन्यवाद
जवानी के दिनों के बाल काले याद आते हैं.
ReplyDeleteवैसे नीरज भाई आप इतने उम्रदराज भी तो नहीं लगते. मैं प्रायः आपकी रचनाएं आपके चित्र की प्रिय-सहज मुखमुद्रा से जोड़कर पढ़ा करता हूं. और मन ही मन मान लेता हूं कि ऐसे लोग निजी जीवन में भी जरूर उतने ही अच्छे और सहज होते हैं. पंक्तियां जोरदार हैं. आपको पढ़ना बहुत अच्छा लगता है. रचना पर बधाई.
वाह फोड़ा सर आपने तो..
ReplyDeleteमाफ़ करियेगा ये बिट्सियन भाषा में कुछ ऐसे ही कहते हैं..
मज़ा आ गया..
होली की बहुत बहुत बधाईयाँ...
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ReplyDeleteबहुत खूब, ये मैं अपने ऑफिस में सब को पढ़ाऊंगा। बहुत ही उम्दा।
बहुत ख़ूब!:)
ReplyDeleteवैधानिक चेतावनी : इस प्रकार की गजल लिखना और प्रकाशित करना गृहस्थ जीवन के लिये हानिकारक हो सकता है । ये ग़ज़ल जिन मुख्य बीमारियों को जन्म दे सकती है वे निम्न हैं ।
ReplyDelete1 : माथे का गूमड़ : ये एक आम बीमारी है जो भारतीय पतियों में पाई जाती है । ऐसा माना जाता है कि ये रोटी बनाने के एक मुख्य यंत्र की चोट से उत्पन्न होती है । ये यंत्र माथे पर कैसे लगता है ये रहस्य है ।
2: पेट दर्द : ये बीमारी भी भारतीय पतियों में पाई जाती है । डाक्टरों क अनुसार ये बीमारी जली रोटियों को खाने से होती है । किन्तु ये ज्ञात नहीं हो पाया है कि भारतीय पति किन परिस्थितियों में जली रोटियां खाते हैं ।
ये कुछ बीमारियां हैं जो कि भारतीय पतियों को अक्सर तब होती हैं जब वे अपनी सुसुराल के बारे में कोई असंवैधानिक टिप्पणी को सार्वजनिक स्थल पर मौखिक या प्रकाशित रूप से उजागर कर देते हैं । भारतीय पतियों के मामले में चूंकि कोई भी प्रताड़ना से बचाने का कानून नहीं है इसलिये उनको सार्वजनिक रूप से ये ही कहना होता है कि कल बाथरूम में फिसल जाने से माथे पर गूमड़ हो गया है ।
आपका एक शुभचिंतक
होलीमय ग़ज़ल. शुभकामनायें.
ReplyDeleteAb kya kahun Niraj ji...holi par mai itani acchi gazal ka aanand n le payi.... aa ha ha ... gazal ki to dur yahan tippaniyan holi ke rang se lathpath hain...aur ye Subir ji ne acchi chetavani de rakhi hai...dhyan rakhiyega....!!
ReplyDeleteAapki gazal padhkar to holi n khel pane ka mlal bhi n rha...!!
कमाल कर दिया आप ने नीरज जी बहुत ही उम्दा, हंसते हंसते पेट में दर्द हो गया !
ReplyDeleteहोली की बहुत बहुत बधाईयाँ आप को.
बहुत दिनों तक अपन नेट पर नहीं आये...नीरज जी के रिसाले याद आते रहे.....पता चला कि नीरज जी हमारे ब्लॉग को आबाद करने आते रहे...सालियाँ तो जा बैठी अपने-अपने ससुराल में....और हमें साले याद आते रहे...!!.....घरवालों ने निकालकर कब्र में फेंका था हमें.....जिन्दगी के बाद भी वो घरवाले याद आते रहे....नीरज जी अच्छी रोमांचक कविता के लिए बधाई....क्या कहा...ग़ज़ल थी भाई.....!!अरे हमपर से उतरी नहीं है भांग की नशायी....!!
ReplyDeleteहमें आपने कुत्ता कहा...ये ठीक नहीं किया नीरज जी....हम तो उसके सगे भाई थे ....जिसे आप उस नुक्कड़ वाली दूकान के बाजू में छेडा करते थे........!!
ReplyDeleteग़ज़ल तो भाई हमने पूरी पढ़ लि है लेकिन
ReplyDelete"नीरज" के वो रंगीन और करतूत काले याद आते हैं |
बहुत खूब नीरजभाई |
-हर्षद जांगला
एटलांटा, युएसए
देर से आने के लिए मुआफी नीरज जी.....होलियाने बनारस गया था ....पर यहाँ लगता है आपने भी खूब मस्त रंग घोले है ..वाकई...आप ऐसे है ????नहीं हजूर इससे कही ज्यादा बिगडे हुए ....
ReplyDeletewowwwwwwwwwwwwwwwwwwww
ReplyDeletemaza aa gaya neeraj jii
holi ka khoob rang chadha hai
"भगा लाया तेरे घर से बनाने को तुझे बीवी,
ReplyDeleteपड़े थे अक्ल पे मेरी,वो ताले याद आते है..
नमूने देखता हूँ जब अजायबघर में तो यारों,
ना जाने क्यूँ ससुराल वाले मुझे याद आते हैं..."
वाह नीरज जी होली के बहाने कविता और गज़लों द्वारा अपने ससुराल पक्ष को लतारने का आपका अंदाज़ वाकई निराला है...और हां आज ये बात भी साबित हो गयी की हम सभी को जवानी की याद हमेशा आती है..
बधाई..
kya baat hae .mushayra to hmne live dekha .
ReplyDeleteगजल में रंग, गुलाल, भाँग, पान, इश्क-मोहव्वत, मौज-मस्ती सभी का सतरंगी मजा है, शुभकामनाएँ !!!!!
ReplyDeleteनमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteghazal तो अपने आप में bejod है.......
सुबीर जी ने सब को सजाने में बहुत मेहनत की. और उसपे इतनी jabardast टिप्पणी एक शुभचिंतक के रूप में.
maafi नीरज जी देर से आने की .......
ReplyDeleteलगता है rango की bahaar ने आप पर खूब asar dikhaaya है bahoot उम्दा, हंसते हंसते पेट में दर्द हो गया
लिखने को शब्द chode hain is baar,
kyaa baat hai sarkaar.....aapke haasy par vaari vaari
पंकज जी ने आपको सही पहिचाना
ReplyDeleteआपको भी होली की शुभकामनायें....
ReplyDeleteभई वाह! अद्भुत!
ReplyDeleteऔर क्या कहें?
देर के लिए माफी , इस रचना के लिये बधाई .
ReplyDeleteगोरी तेरा लहंगा बडा प्यारा
ReplyDeleteहोली का त्यौहारा
जाती कहाँ रे ।
Ati ati ati uttam. Bahut badia.
ReplyDelete