Wednesday, February 25, 2009

धमाकेदार खुश खबरी

जी हाँ ये धमाकेदार खुश खबरी मेरे लिए तो है ही बल्कि सच कहूँ तो सारे ब्लॉग जगत के लिए है. आप पूछे बिना मानेगे थोडी की क्या खुश खबरी है? आप न भी पूछे तो भी मैं कहाँ बताये बिना छोड़ने वाला हूँ. ये खबर ऐसी है जिसे सुन कर कुछ लोग कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगे, कुछ मुहं बिचका देंगे, कुछ हलके से मुस्कुराएंगे, कुछ इसे पढ़ कर ऐसे दिखायेंगे जैसे पढ़ा ही न हो, कुछ आश्चर्य व्यक्त करेंगे और कुछ मेरे जैसे तालियाँ बजायेंगे. अब आप किस श्रेणी में हैं ये तो मैं नहीं कह सकता लेकिन मैं आपको, अगर आप अब तक नहीं हैं तो, अंतिम श्रेणी में आने का आग्रह करता हूँ. याने मेरे साथ तालियाँ बजाने का आग्रह.

आप की उत्सुकुता खीज में बदल जाये इस से पूर्व ही मैं सीधे ही मुद्दे पर आता हूँ. कुछ दिनों पहले मेरे पास सूचना आयी की मेरे गुरु और ब्लॉग जगत के सुपरिचित रचनाकार श्री "पंकज सुबीर जी" को देश की सबसे बड़ी साहित्यिक संस्था "भारतीय ज्ञानपीठ" ने अपनी नवलेखन पुरुस्कार योजना के तहत वर्ष 2008 के तीन श्रेष्ठ युवा कथाकारों में सम्मिलित किया है बल्कि उनका कहानी संग्रह "ईस्ट इंडिया कम्पनी" भी "भारतीय ज्ञानपीठ" से प्रकाशित होकर आ गया है । "भारतीय ज्ञान पीठ" ने तीन कहानी संग्रह प्रकाशित करने हेतु देश भर के युवा कहानीकारों से पांडुलिपियां आमंत्रित कीं थीं । इनमें से जिन तीन कहानीकारों की पांडुलिपियों का चयन प्रकाशन के लिये किया गया उनमें से एक मध्यप्रदेश के सीहोर के लेखक पंकज सुबीर हैं.




सुधि पाठको आप तो जानते ही हैं "भारतीय ज्ञान पीठ " का स्थान हमारे देश में नोबल पुरुस्कारों के समकक्ष रखा जाता है. इसी सर्वोच्च साहित्यिक संस्था भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा युवा साहित्यकारों को बढ़ावा देने हेतु पिछले वर्ष से ही ये नवलेखन पुरुस्कार योजना प्रारंभ की गई है जिसके तहत देश भर के युवा कहानीकारों तथा कवियों से पांडुलिपियां आमंत्रित की जाती हैं तथा उसमें से श्रेष्ठ कहानीकारों तथा कवियों की पांडुलिपियों का चयन वरिष्ठ साहित्यकारों की समिति करती है जिसमें देश के शीर्षस्थ कथाकार श्री रविन्द्र कालिया सहित अन्य वरिष्ठ साहित्यकार हैं । इस वर्ष जिन तीन कथाकारों का चयन किया गया है उनमें श्री "पंकज सुबीर" शामिल हैं

सब से अधिक ख़ुशी की बात ये है की "पंकज जी" हमारे ब्लॉग परिवार के सदस्य हैं. अब हम ताल ठोक कर के कह सकते हैं की ब्लॉग जगत के लेखक भी दमदार लेखन कर सकते हैं. याने ब्लोगर सिर्फ समय बिताने के लिए ही लेखन नहीं करता बल्कि अपने लेखन से समाज को एक नई और सही दिशा देने में भी प्रयास रत है. इस खबर को अधिक से अधिक प्रसारित करें ताकि ब्लोगर्स को समाज इज्ज़त की नज़र से देखे. समाज को हर ब्लोगर में विशेषता नजर आये.

सुधि पाठको मैं देख रहा हूँ की अधिकांश अब मेरे साथ तालियाँ बजाने में शामिल हो गए हैं, मुझे आप से येही आशा थी, जो अब तक संकोच वश या किसी और कारण से दोनों हाथों को एक दूसरे से जोर से जोड़ कर ध्वनि निकालने में समर्थ नहीं हो पाए हैं उनके लिए मुझे और समय देने में कोई आपत्ति नहीं है, क्यूँ की मुझे यकीन है की वो ही अभी नहीं तो कुछ समय बाद सबसे जोरदार तालियाँ बजायेंगे....

अब एक छोटी सी जानकारी किताब के विषय में:

इस कहानी संग्रह में अलग अलग रंगों की पन्द्रह कहानियां शामिल की गईं हैं । तथा संग्रह में ही शामिल एक कहानी के आधार पर इस कथा संग्रह का नाम ईस्ट इंडिया कम्पनी रखा गया है । संग्रह में शामिल अन्य कहानियां कुफ्र, अंधेरे का गणित, घेराव, ऑंसरिंग मशीन, हीरामन, घुग्घू, तस्वीर में अवांछित, एक सीप में, ये कहानी नहीं है, रामभरोस हाली का मरना, तमाशा, शायद जोशी, छोटा नटवरलाल, तथा और कहानी मरती है.

ये सारी ही कहानियां वर्तमान पर केन्द्रित हैं । शीर्षक कहानी ईस्‍ट इंडिया कम्‍पनी उस मानसिकता की कहानी है जिसमें उंगली पकड़ते ही पहुंचा पकड़ने का प्रयास किया जाता है ।

कुफ्र कहानी में धर्म और भूख के बीच के संघर्ष का चित्रण किया गया है । अंधेर का गणित में समलैंगिकता को कथावस्‍तु बनाया गया है तो घेराव और रामभरोस हाली का मरना में सांप्रदायिक दंगे होने के पीछे की कहानी का ताना बाना है । आंसरिंग मशीन व्‍यवस्‍था द्वारा प्रतिभा को अपनी आंसरिंग मशीन बना लेने की कहानी है । हीरामन ग्रामीण परिवेश में लिखी गई एक बिल्‍कुल ही अलग विषय पर लिखी कहानी है । घुग्‍घू कहानी में देह विमर्श कथा के केन्‍द्र में है जहां गांव से आई एक युवती के सामन कदम कदम पर दैहिक आमंत्रण हैं । तस्‍वीर में अवांछित कहानी एक ऐसे पुरुष की कहानी है जो कि अपनी व्‍यस्‍तता के चलते अपने ही परिवार में अवांछित होता चला जाता है । एक सीप में तीन लड़कियां रहती थीं मनोवैज्ञानिक कहानी है जिसमें एक ही घर में रहने वाली तीन बहनों की कहानी है जो एक एक करके हालात का शिकार होती हैं । ये कहानी नहीं है साहित्‍य के क्षेत्र में चल रही गुटबंदी और अन्‍य गंदगियों पर प्रकाश डालती है । तमाशा एक लड़की के अपने उस पिता के विद्रोह की कथा है जो उसके जन्‍म के समय उसे छोड़कर चला गया था । शायद जोशी मनोवैज्ञानिक कहानी है । छोटा नटवरलाल में समाचार चैनलों द्वारा समाचारों को लेकर जो घिनौना खेल खेला जाता है उसे उजागर करती है । और कहानी मरती है लेखक की हंस में प्रकाशित हो चुकी वो कहानी है जिसमें कहानी के पात्र कहानी से बाहर निकल निकल कर उससे लड़तें हैं और उसे कटघरे में खड़ा करते हैं । ये पंद्रह कहानियां अलग अलग स्‍वर में वर्तमान के किसी एक विषय को उठाकर उसकी पड़ताल करती हैं और उसके सभी पहलुओं को पाठकों के सामने लाती हैं ।

पुस्‍तक की कीमत 130 रुपये है जिसे भारतीय ज्ञानपीठ, 18 इन्‍स्‍टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड, नयी दिल्‍ली 110003, Email : sales@jnanpith.net से प्राप्‍त किया जा सकता है । पुस्‍तक का ISBN नंबर 978-81-263-1691-5 है.



जो पाठक मेरी इस जानकारी से हर्षित हुए हैं उनसे अनुरोध है की अगर वो श्री "पंकज सुबीर जी" को बधाई देने में, यहाँ मेरे ब्लॉग पर, संकोच कर रहे हैं तो वो उन्हें उनके ब्लॉग http://subeerin.blogspot.com पर बधाई दे सकते हैं.

उन पाठकों से जो सार्वजनिक बधाई देने में संकोच करते हैं, अनुरोध है की वे उन्हें उनके ई-मेल subeerin@gmail.com पर अथवा उनके मोबाईल 09977855399 पर नितांत गोपनीय रूप से संपर्क कर सकते हैं.

Monday, February 23, 2009

किताबों की दुनिया - 6

कुछ एक दिन में ग़ज़ल से लड़ा ही ली आँखें
तमाम उम्र तेरा इन्तज़ार क्या करते

मुझे युवा रचनाकारों की रचनाएँ पढने में विशेष आनंद आता है. युवा लेखक ज़िन्दगी की हमारी परंपरागत सोच को नए आयाम देते हैं. येही कारण था जिसने मुझे जयपुर के पुस्तक मेले में प्रदर्शित "तुफैल चतुर्वेदी" जी की पुस्तक "सारे वरक तुम्हारे" को खरीदने के लिए प्रेरित किया.



'तुफैल चतुर्वेदी' मेरे पसंदीदा शायर जनाब "कृष्ण बिहारी नूर" साहेब के चहेते शागिर्द रहे हैं. 'नूर' साहेब उनके बारे में फरमाते हैं की " शायरी की डगर पर जिस कदर तेज रफ्तारी से 'तुफैल' चलें हैं दूसरा चलता तो या तो लड़खड़ा कर गिर जाता या संभालना मुहाल होता. 'तुफैल' को मैंने अपने तमाम शागिर्दों से जियादा वक्त दिया, सबसे जियादा कलाम दुरुस्त किया और सबसे जियादा चाहा भी"

नूर साहेब की इस बात से आप भी 'तुफैल' साहेब का कलाम पढ़ कर सहमत हो जायेंगे. अब आप ही बताईये की किसी का कोई चहेता अगर इस तरह के लाजवाब शेर कहे तो क्या उसका सर फक्र से ऊंचा नहीं हो जाएगा ?

आईने में अपनी सूरत भी न पहचानी गयी
आंसुओं ने आँख का हर अक्स धुंधला कर दिया

उसके वादे के इवज़* दे डाली अपनी ज़िन्दगी
एक सस्ती शय का ऊंचे भाव सौदा कर दिया
इवज़* = बदले में

था तो नामुमकिन तेरे बिन मेरी साँसों का सफर
फ़िर भी जिंदा हूँ मैंने तेरा कहना कर दिया

विनय कृष्ण चतुर्वेदी उर्फ़ 'तुफैल चतुर्वेदी' अपने बारे में कहते हैं की उनका वतन पहले काशीपुर था अब सारी दुनिया है और निवास किला-काशीपुर जिला नैनी ताल में है. आप सिर्फ़ और सिर्फ़ शायरी करते हैं. नैनीताल की हवा सी ताजगी आप उनकी हर ग़ज़ल में महसूस कर सकते हैं, जैसे मिसाल के तौर पर उनकी एक छोटी बहर की ग़ज़ल के ये शेर देखें:

कोई वादा न देंगे दान में क्या
झूठ तक अब नहीं ज़बान में क्या

क्यों झिझकता है बात कहने में
झूठ है कुछ तेरे बयान में क्या

रात दिन सुनता हूँ तेरी आहट
नक्स* पैदा हुआ है कान में क्या 
नक्स*= दोष

शायर की खूबी ये होती है की वो रोजमर्रा के हालात को अपनी नज़र से आंक कर उसे अपने शेरों में ढालता है.अब बरसों से हम सब की ज़िन्दगी में, दुनिया में, वोही सब कुछ होता आया है जो अब हो रहा है, लेकिन उसी होने को एक नए अंदाज़ से पेश करने का ढंग ही हर शायर को दूसरे से अलग करता है. मैं अपनी बात की सच्चाई 'तुफैल' साहेब की ग़ज़ल के इन शेरों से सिद्ध करना चाहूँगा:

इसी लिए तो कुचलती है रात दिन दुनिया
हम अपना हक भी बड़ी आजिजी* से मांगते हैं
आजिजी*= विनम्र भाव

बहुत संभल के फकीरों से तव्सरा* करना
ये लोग पानी भी सूखी नदी से मांगते हैं
तव्सरा*= चर्चा

कभी ज़माना था उसकी तलब में रहते थे
और अब ये हाल है ख़ुद को उसी से मांगते हैं 

युवाओं वाले तेवर आपको उनकी इस किताब में एक जगह नहीं हर पन्ने पर बिखरे नजर आ जायेंगे. मुझे लगता है जब वो मुशायरों में अपने ये शेर सुनाते होंगे तो सुनने वाले ख़ुद बा ख़ुद ताली बजाने को मजबूर हो जाते होंगे:

बाज़ारे-फ़न में फ़न की न थी कद्र कुछ मगर 
लफ्जों की धूप छाँव का धंधा नहीं किया

शोहरत के बावजूद रहे हम ज़मीन पर
हम हैं, हमें उजालों ने अँधा नहीं किया

अब भी उसी की याद थपकती है मेरे ख्वाब
उसने बिछुड़ के भी मुझे तन्हा नहीं किया 

यूँ तो इस किताब में प्रकाशित सब ग़ज़लें एक से बढ़ कर एक हैं लेकिन मुझे एक ग़ज़ल के ये दो शेर बहुत पसंद आए, सोचता हूँ आपको भी सुनाता चलूँ:

हम बुजुर्गों की रिवायत से जुड़े हैं भाई
नेकियाँ करके कभी फल नहीं माँगा करते

आज के दौर से उम्मीदे-वफ़ा, होश में हो
यार अंधों से तो काजल नहीं माँगा करते

'तुफैल' साहेब ने इस किताब को 'उन आसुओं के नाम जो इस किताब में आने से रह गए' किया है, आप इस किताब को ' नेशनल पब्लिशिंग हाउस, २३ दरियागंज, नई दिल्ली -११०००२ से ' प्राप्त कर सकते हैं. किताब का मूल्य है पचास रुपए मात्र. इस से पहले की आप से अगली पुस्तक की जानकारी देने तक नमस्कार किया जाए, छोटी बहर की एक ग़ज़ल के ये बेहतरीन शेर पढिये और तुफैल साहेब को दिल ही दिल में दाद दीजिये....

फकीरी में भी खुद्दारी बचा ली
हमारा नाम सुल्तानों में रखना

मिरे जख्मों की आराइश* से सीखो
सजा कर फूल गुलदानों में रखना
आराइश*= सज्जा, सजाना

सहेली पढ़ ही लेगी नाम मेरा
तुम अपने हाथ दस्तानों में रखना

अगली पोस्ट में एक धमाके दार खुशखबरी की सूचना आप सब को मिलने वाली है.....थोड़ा सा इंतज़ार करें....बस.

Monday, February 16, 2009

घटाओं की तरह छाये



भला करता है जो सबका, नहीं बदले में कुछ पाये,
कहां पेड़ों को मिलते हैं, कभी ठंडे घने साये

रखा महफूज़ अपने ही, लिये तो खाक है जीवन
बहुत अनमोल है मिट कर, किसी के काम गर आये

करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
हुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये

जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये

खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक से कोई दुश्‍मन,गले जिसको लगा जाये

तुझे दूँगा सभी कुछ आज, बोला कृष्ण ने हमसे
सुदामा की तरह चावल, अगर तू प्रेम से लाये

किया जब याद दिल से तब, यही चाहा कि वो "नीरज"
बहारों की तरह आये, घटाओं की तरह छाये

( गुरुदेव पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से सुधारी गई ग़ज़ल )

Monday, February 9, 2009

किताबों की दुनिया - 5

दोस्तों कभी कभी कोई ऐसी किताब अचानक हाथ लग जाती है जिसे जितनी बार पढो एक अलग सा ही मजा देती है...खास तौर एक ऐसे शाइर की किताब जिसे पहली कभी पढ़ा न हो. वाणी प्रकाशन ने सचमुच बहुत अद्भुत काम किया है ऐसी किताबें छाप कर.

इस बार मैं जिस किताब का जिक्र कर रहा हूँ उसका नाम है "आवाज" और इसके शाइर हैं जनाब "अशोक मिजाज़" साहेब. 'अशोक मिजाज़' साहेब 'सागर', मध्यप्रदेश के निवासी हैं. इस किताब के बारे में मशहूर शाइर बशीर बद्र साहेब ने फरमाया है की:

"चमकती है कहीं सदियों में आसुओं से ज़मीं 
ग़ज़ल के शेर कहाँ रोज़ रोज़ होते हैं "

हिंदुस्तान और पाकिस्तान के अदबी रिसालों में हजारों शाइर छप रहे हैं लेकिन ग़ज़ल इतनी आसान नहीं है जितनी नज़र आती है यही वजह है की हिंदुस्तान और पाकिस्तान में चंद नौजवान शाइर ही ऐसे हैं जो ग़ज़ल के बदलते हुए मिजाज़ का साथ देने में कामयाब हैं. पिछले दस सालों में जो शाइर उभरे हैं उनमें 'अशोक मिजाज़ ' सरे फेहरिश्त हैं

.

बद्र साहेब की ये बात एक दम साबित हो जाती हैं जब हम "आवाज" के पन्ने पलटते हैं. सलीके से छपी ये किताब अपने पहले चंद पन्नो पर बिखरे शेर से ही पढने वाले का मन मोह लेती है:

ज़ुल्म के सामने तलवार हूँ, खंज़र हूँ मैं 
आज के दौर का बेबाक सुखनवर* हूँ मैं 
*सुखनवर: लेखक 

तुम जिसे पूजने आए हो ख़बर है तुमको 
जिसको ठुकराया था तुमने वोही पत्थर हूँ मैं 

कोई कुछ पल के लिए मेरे करीब आया था 
आज तक उसकी ही खुशबू से मुअत्तर* हूँ मैं 
मुअत्तर: महकता हुआ 

मिजाज़ साहेब अपने लफ्जों से वो जादू बिखरते हैं जिसे पहले कभी पढ़ा सुना नहीं लगता, आपको यकीन न आए तो उनकी एक ग़ज़ल के ये शेर बतौर नमूना देखें:

मुहब्बतों में भी दुश्वारियां* निकलती है 
वफ़ा के नाम पे लाचारियाँ निकलती हैं 
दुश्वारिया: मुश्किलें 

हमारे दिल का हर इक ज़ख्म भर गया लेकिन
कुरेदा जाए तो पिचकारियाँ निकलती हैं 

मेरा मिजाज़ भी पत्थर सा हो गया है 'मिजाज़'
जो चोट खाऊं तो चिंगारियां निकलती हैं 

अगर इन शेरों को पढ़ कर भी आप के मन में शंका रह गई है तो कोई बात नहीं एक सो पैतीस सफों की इस किताब में बेजोड़ शेरों की कमी थोडी ही है:

नींदें तो टूटती हैं कई बार रात में 
इक ख्वाब है जो फ़िर भी कभी टूटता नहीं 

चाहत पहन के बारिशों में घूमता हूँ मैं 
ये वो लिबास है जो कभी भीगता नहीं 

दोनों के दरमियाँ अना हो गई 'मिजाज़'
मुझको  यकीं है कोई किसी से खफा नहीं 

आज के बदलते माहौल पर मिजाज़ साहेब ने बखूबी अपनी कलम चलाई है और क्या खूब चलाई है...हालात चाहे देश के हों या इंसानी रिश्तों के उनकी नज़र सब पर है...अपने शेरों में वो बहुत शिद्दत से उसे बयां भी करते हैं:

इक्कीसवीं सदी की अदा कह सकें जिसे 
ऐसा भी कुछ लिखो कि नया कह सकें जिसे

आधी सदी के बाद भी औरत को क्या मिला 
आज़दिये-वतन का सिला कह सकें जिसे 

घुलने लगा है ज़हरे-सियासत फजाओं में 
अब वो हवा नहीं है, हवा कह सकें जिसे 

अपनी ऊपर कही बात को और अधिक जोरदार तरीके से मैं उनके इन शेरों के माध्यम से आप तक पहूंचना चाहता हूँ :

खुशियाँ हमें तो सिर्फ़ ख्याली पुलाव हैं 
मुफलिस के घर में ईद के त्योंहार की तरह 

यूँ सरसरी निगाह से देखा न कीजिये 
पढिये न मुझको मांग के अखबार की तरह 

चट्टान बन के सामने आए थे जो कभी
गिरने लगे वो रेत की दीवार की तरह 

मात्र पचासी रुपये की ये किताब शेरो सुखन के दीवानों के लिए किसी खजाने से कम नहीं. आप वाणी प्रकाशन से संपर्क करें या फ़िर पास के किसी किताब वाले की दूकान में इसे ढूँढ लें (हालाँकि ये इनता आसान नहीं है) लेकिन जो भी करें इस किताब को जरूर मंगवा कर पढ़ें. चलते चलते आप की नज़र मोहब्बत के ज़ज्बात से लबरेज़ ये दो बहुत खूबसूरत शेर पेश हैं जिन्हें आप अक्सर गुनगुना कर खुश होते रहें...तब तक मैं किसी और किताब से आप का परिचय करवाने की सोचता हूँ....खुदा हाफिज़.

कभी चाँद तारों के रूप में, कभी जुगनुओं की कतार में
वो तमाम भेष बदल बदल के तमाम रात मिला मुझे 

सरे-आम तुझ पे बरस पढ़ें ये महकते फूलों की बारिशें
मैं मुहब्बतों का दरख्त हूँ तू बढ़ा के हाथ हिला मुझे

Wednesday, February 4, 2009

अपनी मिष्टी



मेरे मित्र विजय जी ने मिष्टी की फोटो देख कर ही उसपर इक रचना लिख कर मुझे भेजी है जिसे मैं ज्यूँ की त्यूँ आप सब को पढ़वा रहा हूँ. उनकी रचना कैसी लगी ये आप उन्हें जरूर बताएं

है प्यारी सी अपनी मिष्टी
जिसमें सारी अपनी सृष्टि

सपनो को साकार किया है
हमसब को उपहार दिया है
बिखरे बिखरे से जीवन को
इक सुंदर आकार दिया है
सारे घर की शान है मिष्टी
घर वालों की जान है मिष्टी

ठुमक ठुमक कर नाच दिखाए
तितली की जैसे मंडराए
छोटे छोटे से पावों से
लम्बी लम्बी दौड़ लगाये
लगती तो नादान है मिष्टी
पर बेहद शैतान है मिष्टी

बड़ी बड़ी हैं आँखें चंचल
जिनमें हरपल देखूं हलचल
मीठे मीठे गीत सुनाती
जैसे घर में गाती कोयल
सब का दिल बहलाए मिष्टी
ये सबकी कहलाये मिष्टी