भला करता है जो सबका, नहीं बदले में कुछ पाये,
कहां पेड़ों को मिलते हैं, कभी ठंडे घने साये
रखा महफूज़ अपने ही, लिये तो खाक है जीवन
बहुत अनमोल है मिट कर, किसी के काम गर आये
करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
हुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये
जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक से कोई दुश्मन,गले जिसको लगा जाये
तुझे दूँगा सभी कुछ आज, बोला कृष्ण ने हमसे
सुदामा की तरह चावल, अगर तू प्रेम से लाये
किया जब याद दिल से तब, यही चाहा कि वो "नीरज"
बहारों की तरह आये, घटाओं की तरह छाये
( गुरुदेव पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से सुधारी गई ग़ज़ल )
तुझे दूँगा सभी कुछ आज, बोला कृष्ण ने हमसे
ReplyDeleteसुदामा की तरह चावल, अगर तू प्रेम से लाये
" अति सुंदर.....आज की ग़ज़ल और इस मनमोहक चित्र ने तो मन ही मोह लिया.....जिन्दगी के नेक कर्मो की तरफत इशारा करती ये ग़ज़ल बेजुबान कर गयी..."
Regards
रखा महफूज़ अपने ही, लिये तो खाक है जीवन
ReplyDeleteबहुत अनमोल है मिट कर, किसी के काम गर आये
नीरज जी आप के लिखे में जीवन का मर्म होता है ..बेहद खूबसूरत लिखा है आपने
नीरज जी, कमाल कर दिया आपने! बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल, बधाई!
ReplyDeleteनमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteबहुत उम्दा ग़ज़ल कही है अपने, मतला और मक्ता तो गज़ब ढा रहे हैं.
और ये दो शेर मुझे बहुत पसंद आए.......
"करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
हुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये"
"जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये"
क्या बढ़िया ग़ज़ल कही है! वाह!
ReplyDeletebahut hi acchi kavita likhi hai aapne!
ReplyDeleteकर्म जिसने किया मुझ पर यकीनन गैर ही होगा
ReplyDeleteहुयी ये सोछ तब पुख्ता सितम अपनों ने जब ढाये
बहुत हे खूब सुरत अभिव्यक्ति है बधै
गजल का हर एक शेर कितना कुछ कहता है. बहुत खूबसूरत गजल है.
ReplyDeleteखुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक से कोई दुश्मन,गले जिसको लगा जाये
शानदार!
"खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
ReplyDeleteअचानक से कोई दुश्मन,गले जिसको लगा जाये"
बहुत सुन्दर..
क्या खूब लिखा है.........
ReplyDeleteतुझे दूँगा सभी कुछ आज, बोला कृष्ण ने हमसे
सुदामा की तरह चावल, अगर तू प्रेम से लाये
भाई आज इन्टरनेट का जमाना है, सो व्यक्तिगत रूप से न पंहुच पाने के कारण प्रेम से चावल के स्थान पर सप्रेम टिप्पणी पेश कर रहे हैं, कबूल फरमायें और यदि अधिक कुछ न हो सके तो कम से कम अपनी टिप्पणियों से तो नवाजें.
चन्द्र मोहन गुप्त
जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
ReplyDeleteपड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
wah bahut hi badhiya,lajawaab.
तुझे दूँगा सभी कुछ आज, बोला कृष्ण ने हमसे
ReplyDeleteसुदामा की तरह चावल, अगर तू प्रेम से लाये
किया जब याद दिल से तब, यही चाहा कि वो "नीरज"
बहारों की तरह आये, घटाओं की तरह छाये..
हमेशा की बहुत अच्छी रचना है..वैसे तो मैं कविता के शब्द कम ही समझ पता हूँ.लेकिन इस रचना मे वाकई कुछ है..बधाई..
bahut sundar neeraj jee....
ReplyDeletegazal ke har sher ne rongte khade kar diye..............aisi sundar gazal jaise mala mein moti piro diye hon kisi ne.
ReplyDeletewaah ...........kya kahne.
जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
ReplyDeleteपड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
बहुत शानदार और साथ ही शिक्षा प्रद भी.
रामराम.
वाह वाह वाह वाह वाह वाह...! हर शेर मुकम्मल...! बहुत खूब ....
ReplyDeleteखुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
ReplyDeleteअचानक से कोई दुश्मन,गले जिसको लगा जाये
......kya baat kahi hai,waakai ise bayan karna mumkin nahi......
"रखा महफूज़ अपने ही, लिये तो खाक है जीवन
ReplyDeleteबहुत अनमोल है मिट कर, किसी के काम गर आये"
सुंदर भाव, श्रेष्ठ अभिव्यक्ति !
जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
ReplyDeleteपड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
bahut achhe .neeraj ji.
करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
ReplyDeleteहुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये
किया जब याद दिल से तब, यही चाहा कि वो "नीरज"
बहारों की तरह आये, घटाओं की तरह छाये
Bahot khub Niraj ji....
खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
ReplyDeleteअचानक ही कोई दुश्मन,गले जिसको लगा जाये
बहुत उम्दा ग़ज़ल नीरज जी.
'जिधर देखे उधर…'
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
चित्र तो बहुत खुबसूरत लाये हैं आप..यह तो एक कविता ख़ुद में समाये हुए है..
ReplyDeleteतुझे दूँगा सभी कुछ आज, बोला कृष्ण ने हमसे
सुदामा की तरह चावल, अगर तू प्रेम से लाये
bahut hi sundar!
ग़ज़ल उम्दा लगी.
और हम भी एक कोने में बैठे तालियां ठोंक रहे हैं -तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़
ReplyDeleteनीरज जी मुझे तो ऐसा लगता है कि आप इतनी अच्छी ग़ज़लें बाबा रामदेव के साथ कोई सांठ गांठ के कारण लिखते हैं क्योंकि उनका भी ये ही कहना है कि तालियां बजाने से आदमी निरोगी रहता है और आप भी सभी ब्लागरों को निरोगी रखना चाहते हैं ताकि वे ताली बजायं खूब बजायें और निरोगी रहें ।
"रखा महफूज़ अपने ही लिये, तो खाक है जीवन
ReplyDeleteबहुत अनमोल है मिट कर, किसी के काम गर आये"
उम्दा ग़ज़ल ...
करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
ReplyDeleteहुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये
bahut khub
'जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
ReplyDeleteपड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये'
कुछ ऐसा ही ख्याल आता है... अपने ऑफिस के आस-पास देखकर. शानदार !
मर्मस्पर्शी, भावनाओं से भरपूर!!
ReplyDeleteसस्नेह -- शास्त्री
नीरज जी आप सच्ची बहुत सुन्दर लिखतें हैं। आप अपने अनुभवों को बडे ही सुन्दर और साधाहरण शब्दों से लिखते है जो मेरे दिल के करीब हो जाते हैं।
ReplyDeleteकरम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
हुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये
जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
वाह।
सदा की तरह बहुत उम्दा। मुझे तो यह पंक्तियां बहुत भाईं -
ReplyDeleteजिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
अब नये शब्द-कोश कहाँ से लायें हम नीरज जी इस नायाब गज़ल की तारीफ़ में.....इससे पहले तो मैंने बगैर रदीफ़ वाली इतनी सुंदर गज़ल नहीं पढ़ी है
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब
काश कि मैं नये तरीके से कुछ कह पाता
करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
ReplyDeleteहुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये
गज़ब के शेर...कमाल की गज़ल....
अब और क्या कहें?
जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
ReplyDeleteपड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
क्या बात है नीरज जी मान गए आपको भी और उस्ताद सुबीर जी को भी। बहुत बहुत बहुत आला लहजा ग़ज़ल पढ़ गए हैं आज आप। जिस दिन मुलाक़ात होगी, इस ग़ज़ल के लिए मिठाई आपसे छीन कर खाई जावेगी। हा हा। बहुत बधाई और आभार आपका इस ग़ज़ल के लिए।
नीरज जी आप ने तो इस कविता मै भावनायो को हवा दे दी, बहुत सुंदर, यह चित्र भी बहुत सुंदर है,यह नोर्ध पोल के आसपास का चित्र है.
ReplyDeleteधन्यवाद
जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
ReplyDeleteपड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
-दिल में उतर गई पूरी ये गज़ल...बहुत खूब!!!
aadarniya neeraj ji
ReplyDeletenamaskar
तुझे दूँगा सभी कुछ आज, बोला कृष्ण ने हमसे
सुदामा की तरह चावल, अगर तू प्रेम से लाये
ab aapne itna accha likha hai ki taarif ke liye koi shabd nahi hai ..
maine bade dil se teen baar padh liya hai .. aur abhi bhi man ke honthon par aapki gazal ka swaad ahi .. wah ji wah
aapko dil se badhai
insaan ki ichchhaonki koi sima nahin hoti hai isi liye nadike kinare vah pyaasa hi rah jaata hai..
ReplyDeleteati sundar bhav
छा गए आप भाईजान।
ReplyDeleteभला करता है जो सबका, नहीं बदले में कुछ पाये,
ReplyDeleteकहां पेड़ों को मिलते हैं, कभी ठंडे घने साये
करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
हुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये
जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक से कोई दुश्मन,गले जिसको लगा जाये
बहुत ही दिलकश शेर कहे हैं आपने, मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ।
NEERAJ BHYEE,
ReplyDeleteINTEZAR TO KARWATE HAIN.......PAR KITANEE SAADGEE SE .......KOYAL KAHAAN GAYE ! KITNAA KAH JATE HAIN.
PANKAJ JEE SE THODA SA ASAHMAT.
AAPKO TO PADH YEK HAANTH TO DIL PE HEE DHARA RAH JATA HAI, AUR SIRF EK HAANTH SE MAIN TO TALEE NAHEEN BAJA PAATA........SIRF AAPKEE SHAAN ME ,SALAAM HEE KAR PATA HOON !
BAS AISE HEE MAUKE DETE RAHIYE !
NAMASKAR !
रखा महफूज़ अपने ही, लिये तो खाक है जीवन
ReplyDeleteबहुत अनमोल है मिट कर, किसी के काम गर आये
जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक से कोई दुश्मन,गले जिसको लगा जाये
बहुत दिलकश शेर कहे हैं आपने, मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ।
नीरज जी,
ReplyDeleteकिसकी तारीफ करुँ और किसकी न करूँ...? कहाँ से लाते हैं ये खजाना ?
रखा महफूज़ अपने ही, लिये तो खाक है जीवन
बहुत अनमोल है मिट कर, किसी के काम गर आये
कमाल.....!!
खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक से कोई दुश्मन,गले जिसको लगा जाये
गज़ब के शेर......!!
करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
ReplyDeleteहुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये
bahut sundar ,shrman.
aaj bahut dinon baad aapke blog par aana hua or ghazal padh kar aisa laga ki aana saarthak ho gaya.
har sher apne men dohraane yogya.
dhanyvaad.
खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
ReplyDeleteअचानक से कोई दुश्मन,गले जिसको लगा जाये
मुबारकबाद,धन्यवाद.
किया जब याद दिल से तब, यही चाहा कि वो "नीरज"
ReplyDeleteबहारों की तरह आये, घटाओं की तरह छाये
तुम जब भी याद आये ,हुआ ये कि वो ''नीरज''
लिखा था जो तुमने दिल से, वो दिल पे गज़ब ढाये
एक एक शेर शानदार है
ReplyDeleteबहुत खूब
बढ़िया जनाब हर शेर पसंद आया...
ReplyDeleteदिल से निकली,
ReplyDeleteदिल को छूने वाली
भाव पूर्ण ग़ज़ल.
नीरज जी,
हम तो हर बार सुदामा का
चावल ही लेकर आते हैं आपके ब्लाग पर
और आप भी कभी निराश नहीं करते.
आप सचमुच मन से, मन मोह लेने वाली रचना करते हैं.
==================================
शुभकामनाएँ
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
Wah! bhai Neera, aapto....
ReplyDeleteबहारों की तरह आये, घटाओं की तरह छाये
m.hashmi
dear neeraj ji
ReplyDeletenamastey,
Thanks forsending this beautiful poem giving credit to GURU DEV pankaj subbeer ji for its best possible format and shape.
Particularly following lines are more impressive and really most beautiful. again thanks and congratulations for the same:-
खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक से कोई दुश्मन,गले जिसको लगा जाये
with regards
-Om Sapra,
N-22, Dr. Mukherji Nagar, delhi-9
981818 0932
बहुत बेहतरीन गज़ल है।बधाई।
ReplyDeleteरखा महफूज़ अपने ही, लिये तो खाक है जीवन
ReplyDeleteबहुत अनमोल है मिट कर, किसी के काम गर आये
भावों की सुंदर अभिव्यक्ति.
Gazab rachnaa hai aapki...iski ekhi pankti kafee hai...jiskaa matitarth hai," pedonko kab ghanee chhanv miltee hai..!"
ReplyDeleteKitnaa sahee hai...jo auronko thandak, aaram yaa chhanv dete hain, wo khud kitnee takleef paate hain..kisne jaana??
Meree postpe tipaneeke leye shukrguzaar hun.
Uspe aadharit kahanee post karni shuru kee hai,"kahanee" blogpe....transliteration aur conection itnaa slow hai yahanpe( mai out of stn hun), warna shayad aaj likhke pooree kar detee.
बहुत बढिया लगी आपकी कविता नीरज भाई
ReplyDeleteजिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
ReplyDeleteपड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
तुझे दूँगा सभी कुछ आज, बोला कृष्ण ने हमसे
सुदामा की तरह चावल, अगर तू प्रेम से लाये
नीरज जी
बहुत ही अनोखे अंदाज़ की ग़ज़ल, नए विचार, नए शब्दों को संजो कर बेहतरीन लिखा है.
गुरु जी का आशीष तो हमेशा है ही आपके साथ.
ये दोनों शेर मुझे बहुत ही अच्छे लगे.
आप पिछले कुछ दिनों से मेरे ब्लॉग पर नही आ रहे, कुछ गलती हो तो माफ़ करें. आपकी चर्चा बहुत मायने रखती है मेरे लिए
जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
ReplyDeleteपड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक से कोई दुश्मन,गले जिसको लगा जाये
bahut sundar ghazal likhi hai aapne....bahut din baad aaj blogjagat mein aana ho paya. aate hi badhiya ghazal padhne ko mil gayi.
LAA-JAWAAB.
ReplyDeleteजिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
ReplyDeleteपड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
नीरज जी आपकी ग़ज़ल में गोपाल दस नीरज जी जैसी रवानी है .. आप वास्तव में साहित्य सरोवर के महकते नीरज हैं
समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : चिठ्ठी लेकर आया हूँ कोई देख तो नही रहा है .
ReplyDeleteअति सुंदर रचना. हर एक पद उत्कृष्ट है. साधुवाद.
ReplyDeleteनीरज भाई, आपकी लेखनी और व्यक्तित्व दोनो का कायल हो गया हूँ। इतनी शानदार ग़ज़ल के सामने भला अब क्या कहूँ। वाह!!!!!!!!!वाह!!!!बहुत अच्छे एक- एक शेर सलीके से कहा गया । बधाई!
ReplyDeleteजनाबे नीरज साहिब
ReplyDeleteआपकी यह ग़ज़ल दिलो दिमाग़ पे छा गई है
ऐसा एहसास होता है के कलम बोल रही हो जैसे
कुछ न कुछ जलाया ही होगा आपने वर्ना रौशनी
कैसे हो गई . मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है के मंदी के
इस दौर में खुशबूओं के इस कारोबार में आप कामयाब हैं
और माशा अल्लाह हाथों हाथ मकबूल हो रहे हो हिंदी
ग़ज़ल की जुल्फें संवार रहे हो आप मुबारिकबाद के मुस्तहिक हैं
आपका यह ज़ज्बाये अफ़कार बुलुंद रहे यह मेरी दुआ है
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
Fantastic as usual!
ReplyDelete"करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
ReplyDeleteहुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये"
kya khoobsurat gazal pesh ki hai neeraj jii
bandhai ho aapko bhi or aapke guruji ko bhii
be:shaq rang roop or gun ka ek bejod sangam..subiir ji ne yakinan aapki gazal ko dulhan ki tarah sazaya hai.
ek saar garbhit utkrisht rachna