दोस्तों ये मेरी सौवीं पोस्ट है...इसे उपलब्धि कहना ग़लत होगा...ये मुझे आपसे मिले प्यार का परिणाम है...धन्यवाद....नफरत, हिंसा, लोभ और तनाव ने मिल कर हमारी सोच को बंधक बना रखा है...ऐसे में शायरी या कविता हमें इस जकड से छूटने का एक खुशनुमा रास्ता दिखाती है...हमारी संवेदना और आशाओं को जगाये रखती है... इस अवसर पर अधिक कुछ कहने की बजाये पेश करता हूँ आदरणीय प्राण शर्मा साहेब की एक ताजा ग़ज़ल:
पेश ना आए कोई ऐ दोस्त, तुझ से बेदिली से
बात मत करना हमेशा, हर किसी से बेरुखी से
इतना भी कट कर रहो मत, दोस्तों से दोस्त मेरे
कुछ न कुछ होता है हासिल, हर किसी की दोस्ती से
दोस्त,अंधिआरा भी होना चाहिए, कुछ जिंदगी में
तंग पड़ जाओगे वरना, रौशनी ही रौशनी से
मुस्कराओगे तो सारा, मुस्कराएगा ज़माना
जगमगाती है की जैसे, सारी धरती चांदनी से
ये ज़रूरी तो नहीं कि, फूल ही महकें चमन में
आने लगती है महक भी, एक नन्ही सी कली से
आप खुश होते तो खुश, होता मेरा दिल हम खयालो
क्यों न हो मायूस अब, ये आपकी नाराजगी से
जी में आता है की कह दू, उस से तू है दिल का सूफी
जी रहा है इस ज़माने में, जो इतना सादगी से
घर में आई है खुशी तो, उस का स्वागत करना सीखो
शै नहीं है और कोई, दुनिया में बढ़ कर खुशी से
बाद मुद्दत के था आया, घर तुम्हारे एक मेहमां
क्या मिला गर तुम मिले, ऐ "प्राण"उस से अजनबी से
सुंदर रचना, धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया नीरज जी प्राण जी की इतनी खूबसूरत ग़ज़ल यहाँ पेश करने का। सारे शेर उम्दा हैं पर दिल को जो ख़ास कर भाये-
ReplyDeleteमुस्कराओगे तो सारा, मुस्कराएगा ज़माना
जगमगाती है की जैसे, सारी धरती चांदनी से
घर में आई है खुशी तो, उस का स्वागत करना सीखो
शै नहीं है और कोई, दुनिया में बढ़ कर खुशी से
इतना भी कट कर रहो मत, दोस्तों से दोस्त मेरे
कुछ न कुछ होता है हासिल, हर किसी की दोस्ती से
--मानोशी
दोस्त,अंधिआरा भी होना चाहिए, कुछ जिंदगी में
ReplyDeleteतंग पड़ जाओगे वरना, रौशनी ही रौशनी से
good lines but too depressing yet true
सौवीं पोस्ट की बधाई, आप हजारवीं भी लिखें।
ReplyDeleteरचना बहुत सुंदर है, बस थोड़ा माहौल से अलग है, अभी तो ताज में मेहमान बन कर ठहरे अजनबी सैंकड़ों की जान ले चुके हैं।
दोस्त, सौ पोस्ट करने की शुभकामनाएं. बहुत ही सुंदर रचना. लगे रहो.
ReplyDeleteबधाई !
ReplyDeleteदोस्त,अंधिआरा भी होना चाहिए, कुछ जिंदगी में
ReplyDeleteतंग पड़ जाओगे वरना, रौशनी ही रौशनी से
मुस्कराओगे तो सारा, मुस्कराएगा ज़माना
जगमगाती है की जैसे, सारी धरती चांदनी से
bahut badhiya,bahut badhai
सौंवीं पोस्ट पर बधाइयां... सुंदर रचना.. 101वीं पोस्ट का इंतजार है..
ReplyDeleteये ज़रूरी तो नहीं कि, फूल ही महकें चमन में
ReplyDeleteआने लगती है महक भी, एक नन्ही सी कली से
खुबसुरत शेर उम्मीद की किरण को दर्ज करता हुआ
सौवीं पोस्ट की हार्दिक बधाई
Regards
मुस्कराओगे तो सारा, मुस्कराएगा ज़माना
ReplyDeleteजगमगाती है की जैसे, सारी धरती चांदनी से
--वाह!! प्राण साहब की गज़ल के तो क्या कहने..बहुत ही उम्दा!!
क्या तुमको शतक वीर कहूँ
या ब्लॉगिंग का ही पीर कहूँ
हर तरफ विषै्ला आलम है
मैं तुमको अमृत नीर कहूँ....
--बहुत बहुत बधाई इस शतकीय पोस्ट की. ऐसे ही कई शतक लगाईये. शुभकामनाऐं.
नीरज भाई, सौवीं पोस्ट के लिए बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteक्या कहूँ नीरज जी ...बस इतना कहूँगा ..आपकी जमीन पर जो खून बहा है....उसके निशान दिल पर रहेंगे ....देश के जाबांजो को मेरा भी नमन
ReplyDeleteवाहवा
ReplyDeleteबधाई के योग्य प्रस्तुति
प्राण साहब को प्रणाम
साधुवाद
बहुत बधाई नीरज जी। आपके ब्लॉग पर आने में सदैव अपनापा लगता है। यह जीवन्तता सतत बनी रहे, सर्वदा।
ReplyDeleteघर में आई है खुशी तो, उस का स्वागत करना सीखो
ReplyDeleteशै नहीं है और कोई, दुनिया में बढ़ कर खुशी से
बाद मुद्दत के था आया, घर तुम्हारे एक मेहमां
क्या मिला गर तुम मिले, ऐ "प्राण"उस से अजनबी से
वाह बहुत सुन्दर लिखा है।
बहुत अच्छी रचना ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteNeeraj Ji,
ReplyDeleteCongrats on your 100th post. Wishing you luck for many thousands to come!
I am just checking my google account.If it works the will comment in Hindi.
हाँ नीरज जी, अब हिन्दी में । आपकी रचना अनुभूति पे पढीं । आपने जब से ब्लोग का लिन्क भेजा था, तब से सोच रही थी आने का । वाह! किस शुभ दिन आना हुआ है आपके आंगन में । बहुत अच्छा लगा कि आज आपने प्राण साहब की अत्यंत सुन्दर रचना पोस्ट की, ये आप की विनम्रता दर्शाता है । आप ऐसे ही बेहतरीन सोचें और लिखें । मंगल कमनाएं !
ReplyDeleteसादर, शार्दुला
बधाई
ReplyDeleteसौवें पोस्ट के लिए बधाई, बाकी क्या कहें... टीवी देख कर दिमाग ख़राब चल रहा है.
ReplyDeleteशत पग रख कर आये यहाँ तक, यह पहला पड़ाव है साथी
ReplyDeleteशत सहस्र पग आगे रखने को दीपित रखनी है बाती
रहे धैर्य औ’ साहस मन में कुछ भी नहीं असम्भव रहता
मिलें कदम दर कदम आपको, राहों में कलियाँ मुस्काती
नीरज जी,
ReplyDeleteप्राण जी की गज़ल,
बहुत अच्छी लगी
आपकी १०० वीँ पोस्ट के लिये
बधाई -
लिखते रहीये
इसी जज़्बे के साथ
बधाई पहली सेँचुरी की,आप ब्लॉग जगत के सचिन बने.सुँदर रचना के लिये प्राण साब को भी बधाई.
ReplyDeleteEk padav par pahunchane ke liye badhai.
ReplyDeleteसैकड़ा बनाने पर बधाई।
ReplyDeletebahut hi sundar khyaal ........
ReplyDeleteघर में आई है खुशी तो, उस का स्वागत करना सीखो
शै नहीं है और कोई, दुनिया में बढ़ कर खुशी से
नमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteमुंबई में जो हुआ वो बहुत ही शर्मनाक था हम सबके लिए, मगर शत शत नमन उन वीर शहीदों को जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी.
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है,
कुछ शेर जो मुझे बेहद पसंद आए.
जी में आता है की कह दू, उस से तू है दिल का सूफी
जी रहा है इस ज़माने में, जो इतना सादगी से
बाद मुद्दत के था आया, घर तुम्हारे एक मेहमां
क्या मिला गर तुम मिले, ऐ "प्राण"उस से अजनबी से
सौवीं पोस्ट की बधाई
ReplyDeleteshubh mangalkaamnayen is uplabdhi par ......aapke aashirwaad ki kamna me....
ReplyDeleteswati
प्राण जी की यह गज़ल बहुत बेहतरीन है नीरज जी। सौंवी पोस्ट की बधाई...
ReplyDeleteनीरज जी बहुत - बहुत शुक्रिया पहले तो प्राण साब की गज़ल के लिये और बधाई सौवीं पोस्ट के लिये
ReplyDeleteबस यूं ही गज़ल सुनाते रहिये
नीरज जी,
ReplyDeleteआपको इस सुंदर शतकीय
प्रस्तुति पर
अंतर्मन से बधाई.
और सच कहूँ
कोई सूफी मिजाज़ का
पाक-दिल शायर ही इतनी
खूबसूरत ग़ज़ल कह सकता है.
प्राण साहब का शुक्रिया.
यह पड़ाव हमेशा याद रहेगा.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
neeraj ji aapko 100 post ke liye dhero badhai upar se praan sahab ko itni achhi ghazal ke liye sadar abhar......
ReplyDeleteजब भी कभी दिल उदास होता है तो प्राण जी की ग़ज़ल पढ़ कर दिल में एक सुकून सा मिलता है। उनकी ग़ज़लों और दूसरी रचनाओं में भी सकारात्मक भावनाएं जीवन के हर पहलू में सहायक होती हैं।
ReplyDeleteमुस्कराओगे तो सारा, मुस्कराएगा ज़माना
जगमगाती है की जैसे, सारी धरती चांदनी से
ये ज़रूरी तो नहीं कि, फूल ही महकें चमन में
आने लगती है महक भी, एक नन्ही सी कली से
क्या बात है!
प्राण जी आपको बधाई हो और नीरज जी आपको
दोहरी बधाई - १००वीं पोस्ट के लिए और इस ख़ुबसूरत ग़ज़ल के पढ़वाने के लिए!
बहुत ही खूबसूरत गज़ल । इस अंधेरे माहौल में रोशनी की किरण सी । आपकी सौ वी पोस्ट पर बधाई ।
ReplyDeletebadhiya,shaandar racnaon ke liye hardik dhanyavad ,aabhar,aur aabhar us anand ke liye bhee jo inhe padhne se mila
ReplyDeletedr.bhoopendra
कवि नीरज साहिब को बधाई हो
ReplyDeleteप्राण साहिब ने अपनी नई ग़ज़ल का
एक एक बंद नगीने की तरह पिरो कर
हिन्दी ग़ज़ल हो अलंकृत कर दिया है
हर बंद में ख़याल की पुख्तगी है
रवानी है. मैं कवि नीरज साहिब को
शतक लगाने पर दिल की गहराईयों
से मुबारिक बाद देता हूँ और "प्राण साहिब"
के बिल्मुकाबिल कंदील रखने के लिए
नीरज साहिब की तारीफ भी करता हूँ
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
ये ज़रूरी तो नहीं कि, फूल ही महकें चमन में
ReplyDeleteआने लगती है महक भी, एक नन्ही सी कली से
वाह क्या अंदाज है, क्या बात है
बहुत खूब लिखा, सुंदर भावः सुंदर अभिव्यक्ति
आदरणीय प्राण शर्मा साहेब ने इ-मेल के जरिये ये संदेश भेजा है:
ReplyDeleteआपको आपकी सौवीं पोस्ट पर अनेकोनेक बधाईँ .आप में ऊर्जा है ,शक्ति है और क्षमता है .अग्रसर हों .शतक पर शतक बनाते रहें ,मेरी शुभ कामना है .सौवीं पोस्ट में आपने मेरी ग़ज़ल लगाई है ,ये आपका बड़प्पन है .मैं उन सभी टिप्पणीकारों का हृदय से आभारी ही नहीं बल्कि ऋणी भी हूँ जिन्होंने मेरी ग़ज़ल के बारे में बहुमूल्य शब्द लिख कर मेरा हौसला बढाया है .सब को नमन
प्राण शर्मा
[प्राण साहेब ये मेरा बड़प्पन नहीं बल्कि सौभाग्य है की आप की ग़ज़ल अपनी सौवीं पोस्ट के रूप में लगा पाया हूँ....:नीरज}
Neerajbhai
ReplyDeleteCongrats for this Century!!!
Wish you make more and more centuries in the days to come.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
ये ज़रूरी तो नहीं कि, फूल ही महकें चमन में
ReplyDeleteआने लगती है महक भी, एक नन्ही सी कली से
गज़ल बहुत बेहतरीन है.. सौ वी पोस्ट पर बधाई.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeletehar baree aur chhotee cheej kee apnee ahmiyat hai jindagee me.sundar gajl.
ReplyDeleteआदरणीय नीरज जी, क्या बात है, बहुत ही बेह्तरीन गज़ल प्राण साहब की, पढ्वाने के लिये बहुत बहुत आभार आपका.
ReplyDeleteNeeraj ji,
ReplyDeleteAapki rachnayon pe mai, ek adna-si wyakti tippanee karneme hamesha sakuchatee hun...Aur jab 44 tippaniyon ke baad mai alagse kya likhun ?
Mere blogpe commentke liye bohot shukrguzaar hun...aur aap kehte hain ki gar wo log padh len to kya pratikriya hogi....asliyat ye hai ki mera pateeke alawa (unke ek bhaee jo retired army afsar hain) aur koyi mujhe takleef denawala jeevit nahi. Haan, ishwar mere pateeko lambi umr de, ve abhi maujood hain....ham donoka aapasme jaisabhi rishta rahe ho, ve ek nihayat eemaandaar police afsar reh chuke hain...ab avkaash prapt hain.Kiseeko bhi takleef pohchana ye mera hetu nahi hai is shrinkhlaake peechhe...sirf ye kehna chahti hun ki maa pita tatha anya pariwaarke aapsi vyavhaar aanewaali naslpe behad doorgaami parinaam karta hai...aur kayi baar us nasl se aise logonko dukh pohochata hai, jinhone unhen( un bachho ko) sabse adhik pyar kiya tha...! Ye kaisi vidanbana hai...! Khata koyi aur karta hai aur bhugatna kisee aurko padta hai..
Aapki rachanayonke baareme sirf itnaa kahungi ki behad saraltaase aap zindageeki sachhaiyon se rubaru karate hain....
100vin post ke liye badhayee.
ReplyDeletePran sahab ki ghazalen hamesha hi dil ko bhaati hain.
ये ज़रूरी तो नहीं कि, फूल ही महकें चमन में
आने लगती है महक भी, एक नन्ही सी कली से
bahut si sakaratmak soch liye ek sundar rachna.
[aap ka chitra chayan bahut achcha hai--lagta hai prakriti ke bahut nazdeek hain aap]
ये ज़रूरी तो नहीं कि, फूल ही महकें चमन में
ReplyDeleteआने लगती है महक भी, एक नन्ही सी कली से
Wah!
bahot achha kaha hai,saahab!
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