Monday, November 24, 2008

लुटेरे यार सब मेरे




समझ में कुछ नहीं आता बता मैं यार क्या लिख्खूं
गमों की दासतां लिख्खूं खुशी की या कथा लिख्खूं

जहां जाता हूं मैं तुझको वहीं मौजूद पाता हूं
अगर लिखना तुझे हो खत तेरा मैं क्या पता लिख्खूं

गणित ये प्यार का यारो किसी के तो समझ आये
सिफर बचता अगर तुझको कभी खुद से घटा लिख्खूं

अगर मुजरिम बना हाकिम कहेगा वो यही सबसे
लुटेरे यार सब मेरे मैं अब किसको सजा लिख्खूं

किये तूने बहुत अहसां कहां इन्कार है मुझको
गवारा पर नहीं ऐ दोस्त तुझको मैं खुदा लिख्खूं

जिसे देखूं वही दिखता हमेशा दौड़ता पीछे
अजब ये चीज है दौलत न छूटे वो नशा लिख्खूं

नजर होती है बद ‘नीरज’ पता जब ये चला मुझको
जतन कर नाम मैं तेरा जमाने से छुपा लिख्खूं
( आदरणीय प्राण साहेब के आशीर्वाद से मुकम्मल ग़ज़ल )

50 comments:

  1. अगर मुजरिम बना हाकिम कहेगा वो यही सबसे
    लुटेरे यार सब मेरे मैं अब किसको सजा लिख्खूं
    जिसे देखूं वही दिखता हमेशा दौड़ता पीछे
    अजब ये चीज है दौलत न छूटे वो नशा लिख्खूं
    " bhut sunder gazal bn pdhee hai, ek ek sher lajvab hai..."

    Regards

    ReplyDelete
  2. भाई नीरज जी,
    "क्या लिक्खू", कह कर भी इतनी गहरी बातें लिख मारी.
    अपने अपने ग़ज़ल के निम्न शेर में प्रश्न किया ही.........

    जिसे देखूं वही दिखता हमेशा दौड़ता पीछे
    अजब ये चीज है दौलत न छूटे वो नशा लिख्खूं

    तो साब जी जवाब मैं दिए देता हूँ, कि ये साहित्य , ग़ज़ल की दीवानगी ही है जिसने दौलत तो छोड़ दी पर इसकी दीवानगी न छोडी.
    ऐसे अनेकानेक उदहारण
    मौजूद हैं "ग़ालिब" से लेकर " निराला" तक,
    मानों इस सफर का आगाज है प्याला तक
    जूनून चढ़ कर यूँ बोले, त्याग निवाला तक
    जब तलक सुना न लूँ पड़ा रहूँ मधुशाला तक

    सुंदर रचना प्रस्तुति पर हार्दिक शुभेक्षा

    चन्द्र मोहन गुप्त

    ReplyDelete
  3. किये तूने बहुत अहसां कहां इन्कार है मुझको
    गवारा पर नहीं ऐ दोस्त तुझको मैं खुदा लिख्खूं

    बहुत खूबसूरत नीरज जी ! शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  4. जहां जाता हूं मैं तुझको वहीं मौजूद पाता हूं
    अगर लिखना तुझे हो खत तेरा मैं क्या पता लिख्खूं


    जिधर देखूं फिजां में रंग मुझको दिखता तेरा है
    अंधेरी रात में किस चांदनी ने मुझको घेरा है।

    ReplyDelete
  5. वाह.क्या बात है.

    ReplyDelete
  6. बिलकुल नीरज जी, लिखते लिखते बहुत ही गहरी बात लिख दी.

    ReplyDelete
  7. हमें पूछ कर क्यों शर्मिन्दा करते हैं हमें पता हो हमीं न लिखदें ? फिर भी बेहतरीन लिखा आपने . किसीने बता दिया था या खुद ही डिसाइड कर लिया ?

    ReplyDelete
  8. सिफर बचता अगर तुझको कभी खुद से घटा लिख्खूं'
    -
    किये तूने बहुत अहसां कहां इन्कार है मुझको
    गवारा पर नहीं ऐ दोस्त तुझको मैं खुदा लिख्खूं
    --
    bahut Khuub Neeraj ji!
    bahut hi umda sher hain.

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर !
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  10. सच मानिये नीरज जी...हर शेर उम्दा...आप द्वारा लिखी गई बेहतरीन उच्च बेहतरीन गज़लों में एक। बहुत खूब ...बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  11. किये तूने बहुत अहसां कहां इन्कार है मुझको
    गवारा पर नहीं ऐ दोस्त तुझको मैं खुदा लिख्खूं

    बिल्कुल सही फ़रमाया
    कुछ पंक्तियाँ आपको समर्पित
    इतना झुकना भी नही कभी ख़ुद की नज़र में,कि ख़ुद को ज़मीन-ऐ-बंज़र लिख्खूं

    मैंने देखा है दोस्तों को मतलबी का नकाब चढाये हुए क्या अब दोस्ती को बेपर्दा लिख्खूं


    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आने के लिए
    आप
    ๑۩۞۩๑वन्दना
    शब्दों की๑۩۞۩๑
    सब कुछ हो गया और कुछ भी नही !!
    इस पर क्लिक कीजिए
    आभार...अक्षय-मन

    ReplyDelete
  12. नजर होती है बद ‘नीरज’ पता जब ये चला मुझको
    जतन कर नाम मैं तेरा जमाने से छुपा लिख्खूं ...........bahut-bahut achha likha hai

    ReplyDelete
  13. वाह ! वाह ! बहुत बढ़िया !

    ReplyDelete
  14. नमस्कार नीरज जी,
    बहुत ही सुंदर लिखा है,वाकई मुकम्मल ग़ज़ल है.

    ReplyDelete
  15. बहुत बढ़िया गजल. प्राण साहब का आशीर्वाद रहे और आपकी गजलें मुकम्मल होती रहे, यही कामना है.

    ReplyDelete
  16. बहुत सुन्दर, नीरज जी।

    ReplyDelete
  17. क्या बात है !...इस ग़ज़ल में भी है
    वही नीरज पन...वही दिल को
    छूने वाली...सच्चे दिल से निकली
    दीवाना बनाती....ख़बरदार करती...
    समझदार बातें....शुक्रिया नीरज जी !
    =============================
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

    ReplyDelete
  18. "गणित ये प्यार का यारो किसी के तो समझ आये
    सिफर बचता अगर तुझको कभी खुद से घटा लिख्खूं"
    बहुत हि सुन्दर रचना. बधाई स्वीकारे.

    ReplyDelete
  19. जहां जाता हूं मैं तुझको वहीं मौजूद पाता हूं
    अगर लिखना तुझे हो खत तेरा मैं क्या पता लिख्खूं

    बहोत खूब नीरज जी बहोत सुंदर रचना ... ढेरो बधाई ...

    ReplyDelete
  20. जिसे देखूं वही दिखता हमेशा दौड़ता पीछे
    अजब ये चीज है दौलत न छूटे वो नशा लिख्खूं
    नीरज जी बहुत खुब , बहुत सुंदर कविता ओर सुंदर भाव.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  21. बेहतरीन नीरज जी...एक-एक शेर बस लाजवाब हैं

    समझ में कुछ नहीं आता बता मैं यार क्या लिक्खूं
    कि कैसे "दाद" मैं अब अपनी शब्दों में जरा लिक्खूं

    ReplyDelete
  22. दिलफरेब कथ्य
    और कसा हुआ शिल्प
    इस बार
    बहुत असर कर गया नीरज जी :)
    इसी तरह लिखा कीजिये
    ..बहोत अच्छे ! वाह वाह ..
    स्नेह,
    - लावण्या

    ReplyDelete
  23. अति सुंदर
    तेरे जब ब्लॉग पर आया तो सब लिख डाला था लोगों ने
    तारीफ़ इतनी हो चुकी है कि अब ना कर पाने की व्यथा लिख्खूं

    ReplyDelete
  24. जिसे देखूं वही दिखता हमेशा दौड़ता पीछे
    अजब ये चीज है दौलत न छूटे वो नशा लिख्खूं.
    बहुत सुन्दर, नीरज जी, आपने सुंदर यथार्थ लिखा है .

    ReplyDelete
  25. क्या बात है नीरज जी,
    बेहतरीन रचना.....
    पढ़ कर सुबह सार्थक हो गयी,,

    ReplyDelete
  26. जहां जाता हूं मैं तुझको वहीं मौजूद पाता हूं
    अगर लिखना तुझे हो खत तेरा मैं क्या पता लिख्खूं


    किये तूने बहुत अहसां कहां इन्कार है मुझको
    गवारा पर नहीं ऐ दोस्त तुझको मैं खुदा लिख्खूं।

    बहुत शानदार शेर हैं, मुबारकबाद कुबूल फरमाएं।

    ReplyDelete
  27. गणित ये प्यार का यारो किसी के तो समझ आये
    सिफर बचता अगर तुझको कभी खुद से घटा लिख्खूं

    kya baat hai neeraj ji....bahut bahut umda sher hai.

    ReplyDelete
  28. pari jaisi hamari mishti ko bahut bahut prem aur aasheervaad ......itna achha likhne ke liye mera abhivaadan aur naman....

    ReplyDelete
  29. गणित ये प्यार का यारो किसी के तो समझ आये
    सिफर बचता अगर तुझको कभी खुद से घटा लिख्खूं

    kya baat hai kmaal ka sher

    ReplyDelete
  30. ख़त में तेरा क्या पता लिखूं / जिन बुजुर्गों का साया मेरे सर पे है पूछ लूँगा में उनसे पता /

    ReplyDelete
  31. जिसे देखूं वही दिखता हमेशा दौड़ता पीछे
    अजब ये चीज है दौलत न छूटे वो नशा लिख्खूं
    ...पढकर मन प्रफुल्लित हो गया, कुछ ऎसा ही प्रभावशाली लिखते रहें हम सभी के लिये।

    ReplyDelete
  32. जहां जाता हूं मैं तुझको वहीं मौजूद पाता हूं
    अगर लिखना तुझे हो खत तेरा मैं क्या पता लिख्खूं
    हमेशा की तरह सुंदर अद्भुत

    ReplyDelete
  33. वाह बहुत खूब लिखा है आपने.

    नमस्कार, उम्मीद है की आप स्वस्थ एवं कुशल होंगे.
    मैं कुछ दिनों के लिए गोवा गया हुआ था, इसलिए कुछ समय के लिए ब्लाग जगत से कट गया था. आब नियामत रूप से आता रहूँगा.

    ReplyDelete
  34. agar likhna ho tuje khat tera pata kya kikhu..........wah neeraj sb. kya baat kahi hai.... badhai

    ReplyDelete
  35. जिसे देखूं वही दिखता हमेशा दौड़ता पीछे
    अजब ये चीज है दौलत न छूटे वो नशा लिख्खूं

    नजर होती है बद ‘नीरज’ पता जब ये चला मुझको
    जतन कर नाम मैं तेरा जमाने से छुपा लिख्खूं


    देर से आने के लिए मुआफी ...लेकिन ये दो शेर ख़ास पसंद आये

    ReplyDelete
  36. बहुत-बहुत सुन्दर।

    ReplyDelete
  37. जनाबे नीरज साहिब
    आलम -ए- बेखुदी में लिखी आपकी यह ग़ज़ल सीधे
    दिल में उत्तर गई एक मुद्दत के बाद किसी खुबसूरत
    ग़ज़ल को देखने का इत्तेफ़ाक हुआ है ग़ज़ल की सोच में कहीं कहीं
    वेदान्त झलकता है तस्सवफ़ की चाशनी भी
    ईश्वर आपको बुरी नज़रों से दूर रखे और खुदा न करे
    के कामयाबी के यह पायेदान कहीं हमारे प्यारे "नीरज" का सर न फिरा दें

    मेरे यार मुझसे खफा न हो मैं जुदा नही तू जुदा न हो
    तू बुरा न माने तो यह कहूँ इन्सां हो कोई खुदा न हो

    चाँद शुक्ला हदियाबादी
    डेनमार्क

    ReplyDelete
  38. अगर मुजरिम बना हाकिम कहेगा वो यही सबसे
    लुटेरे यार सब मेरे मैं अब किसको सजा लिख्खूं

    किये तूने बहुत अहसां कहां इन्कार है मुझको
    गवारा पर नहीं ऐ दोस्त तुझको मैं खुदा लिख्खूं

    जिसे देखूं वही दिखता हमेशा दौड़ता पीछे
    अजब ये चीज है दौलत न छूटे वो नशा लिख्खूं

    वाह नीरज भाई बहुत सुंदर लिखा हे आपने, बेहतरीन गजल है। प्रणाम और आभार दोनों स्‍वीकार कीजिए।

    ReplyDelete
  39. वाह वाह नीरज जी, बिल्कुल मुकम्मल ग़ज़ल. अहा क्या कहना ! क्या लिक्खूँ ? बहुत बेहतर !
    आदरणीय नीरज जी,
    सच ! आप हमेशा ही दिल जीत लेते हैं. बार बार नया खरीद कर लाना पड़ता है भई. हा हा !

    ReplyDelete
  40. Aaj sirf aapko mera lekh, jise Mumbaike bam dhamakonse wyathit hoke likha hai, padhneke liye amantrit karne aayee hun.."Meree Aawaaz Suno"...chahtee hun ki adhikse adhik log ise padhen...khaaskar aap jaise samvedansheel wyakti...

    ReplyDelete
  41. अगर मुजरिम बना हाकिम कहेगा वो यही सबसे
    लुटेरे यार सब मेरे मैं अब किसको सजा लिख्खूं

    किये तूने बहुत अहसां कहां इन्कार है मुझको
    गवारा पर नहीं ऐ दोस्त तुझको मैं खुदा लिख्खूं


    ati sundar ni:sandeh kabil-e-tariiff

    ReplyDelete
  42. नीरज जी, ये क्या लिख दिया आपने?? मन ही नहीं भरता, कई बार पढ़ चुका।

    ReplyDelete
  43. किये तूने बहुत अहसां कहां इन्कार है मुझको
    गवारा पर नहीं ऐ दोस्त तुझको मैं खुदा लिख्खूं waah waah

    ReplyDelete
  44. जिसे देखूं वही दिखता हमेशा दौड़ता पीछे
    अजब ये चीज है दौलत न छूटे वो नशा लिख्खूं

    wah bahut badhiya bhavapoorn rachana...abhaar .

    ReplyDelete
  45. गणित ये प्यार का यारो किसी के तो समझ आये
    सिफर बचता अगर तुझको कभी खुद से घटा लिख्खूं
    बहुत खूब नीरज जी वाह..

    ReplyDelete
  46. अगर मुजरिम बना हाकिम कहेगा वो यही सबसे
    लुटेरे यार सब मेरे मैं अब किसको सजा लिख्खूं
    Too Good.

    ReplyDelete
  47. समझ में कुछ नहीं आता बता मैं यार क्या लिख्खूं
    गमों की दासतां लिख्खूं खुशी की या कथा लिख्खूं

    जहां जाता हूं मैं तुझको वहीं मौजूद पाता हूं
    अगर लिखना तुझे हो खत तेरा मैं क्या पता लिख्खूं

    बहुत खूबसूरत लफ्ज़
    खूबसूरत अंदाज़ , खूब सूरत ग़ज़ल

    ReplyDelete
  48. बिना शीर्षक...... !!
    टिप्पणी जोड़ें rajeev thepra द्वारा 5 दिसंबर, 2008 10:30:00 PM IST पर पोस्टेड #





    मैं तो बहुत छोटा हूँ...मैं इस पर क्या लिखूं....,
    हाँ मगर सोचता हूँ...मैं तुझे नगमा-ख्वा लिखूं....!!
    एक चिंगारी तो मेरे शब्दों के पल्ले पड़ती नहीं...
    जलते हुए सूरज को अब मैं फिर क्या लिखूं.....??
    इक महीन सी उदासी दिल के भीतर है तिरी हुई...
    नहीं जानता कि इस उदासी का सबब क्या लिखूं...!!
    सुबह को देखे हुए शाम तलक मुरझाये हुए देखे..
    सदाबहार काँटों की बाबत लिखूं तो क्या लिखूं...??
    चाँद ने अक्सर आकर मेरी पलकों को छुआ है..
    इस छुवन के अहसास को आख़िर क्या लिखूं...??
    कुछ लिखूं तो मुश्किल ना लिखूं तो और मुश्किल
    ना लिखूं तो क्या करूँ,अब लिखूं तो क्या लिखूं,
    अजीब सी गफलत में रहने लगा हूँ मैं "गाफिल"
    तमाम आदमियत के दर्द को आख़िर क्या लिखूं...??

    http://baatpuraanihai.blogspot.com

    ReplyDelete
  49. बहुत खूबसूरत रचना !

    ReplyDelete

तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे