कभी वो देवता या फिर,कभी शैतान होता है
बदलता रंग गिरगट सा ,अज़ब इंसान होता है
भले हो शान से बिकता, बड़े होटल या ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
गुजारो साथ जिसके जिंदगी,वो भी हकीकत में
हमारे वास्ते अक्सर बड़ा अनजान होता है
जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है
उमंगें ही उमंगें हों, अगरचे लक्ष्य पाने की
सफर जीवन का तब यारो बड़ा आसान होता है
न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
बुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है
कहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
मेरी गज़लों में बस "नीरज", यही सामान होता है
(आदरणीय प्राण साहेब की रहनुमाई में लिखी ग़ज़ल)
नीरज जी, पुनः एक लाजवाब प्रस्तुति के लिए बधाई. [एक गुस्ताखी कर रहा हूँ - मुझे लगता है कि "बदलता रंग गिरगट से" की जगह "बदलता रंग गिरगट सा" ज़्यादा व्याकरण-सम्मत है - देख लीजिये]
ReplyDelete"उमंगें ही उमंगें हों, अगरचे लक्ष्य पाने की
ReplyDeleteसफर जीवन का तब यारो बड़ा आसान होता है"
बस यही फ़लसफ़ा है हमारी ज़िंदगी का भी...पीछे मुड़ के कभी नहीं देखा है...आगे देखने के लिये इतना कुछ है...
भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
ReplyDeleteमगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
बहुत बढिया नीरज जी,आपकी गज़ल मे तो पूरी ज़िंदगी का सामान है।
कहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
ReplyDeleteमेरी गज़लों में बस "नीरज", यही सामान होता है
wah Neeraj ji bahut dino baad aap ko padha.[link kho gaya tha]..har sher daad ke qabil hai..sheron mein saralta aur sahjta se kah di gayi baaten dil ko chuu gayeen---dhnywaad.
गुजारो साथ जिसके जिंदगी,वो भी हकीकत में
ReplyDeleteहमारे वास्ते अक्सर बड़ा अनजान होता है
bahut khub ........
kya baat likhi hai aapne......
sach mai aisa hota hai.....
zindagi jiske sath kaat di wo abhi ajnabi sa hai....
maut ke baad bhi nahi pata ki wo aansu bahayega k bhi nahi..akshay-mann
aapka swagat hai....
"बदले-बदले से कुछ पहलू"
http://akshaya-mann-vijay.blogspot.com/
भाई नीरज जी,
ReplyDeleteआपने आज के अर्थ तंत्र में उन्नति के मार्ग पर चल रहे प्रगति शील इन्सान की जो तस्वीर निम्न शेर में पेश की है ..............
कभी वो देवता या फिर, कभी शैतान होता है
बदलता रंग गिरगट से, अज़ब इंसान होता है
एवं जो अजब पण पेश किया है , उसी का जवाब भी अपने अपने निम्न शेर .........
जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है
में पलक जपकते ही पेश कर दिया है.
यही तो खास बात है आज की दुनिया में कि सब अविश्वासी हैं पर फिर भी सब पर यकीन करना पड़ता है तथा जो विश्वासी हैं उन पर अविश्वास करना पड़ता है.
चन्द्र मोहन गुप्त
'जहां दो वक़्त की रोटी…'
ReplyDeleteशानदार अभिव्यक्ति। अदम गोंडवी की याद आ गई।
'चोरी न करें झूठ न बोलें तो क्या करें
चूल्हे पे क्या उसूल पकाएंगे शाम को।'
बधाई।
मुझे तो बस यह कहना है के नीरज की
ReplyDeleteगज़लें जलते हुए चिराग की मानिंद हैं
जो अपनी सोंधी सोंधी आंच से पाठकों के
के दिल में उतर कर हरारत पैदा कर जातीं हैं
और उसकी सोचें चांदनी की पाज़ेब पहन कर
जब वीराने में पांव रखती हैं तो गुले गुलज़ार हो जाता है
नीरज के नाम मेरा यह कहना है के
तेरी बला को मैं अपनी बला समझता हूँ
तू क्या समझता है तुझको में क्या समझता हूँ
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
ReplyDeleteमगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
गुजारो साथ जिसके जिंदगी,वो भी हकीकत में
हमारे वास्ते अक्सर बड़ा अनजान होता है
जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है
विशेष भाईं...!
कहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
ReplyDeleteमेरी गज़लों में बस "नीरज", यही सामान होता है--
दुआयें/बना रहे ये साजो सामान सदा …
जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
ReplyDeleteवहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है
" again words and great thought to decsribe various phases of real life..."
Regards
पहला ही शेर जानलेवा है.. धांसु ग़ज़ल
ReplyDeleteभले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
ReplyDeleteमगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
-----
वाह, वाह, वाह!!!
भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
ReplyDeleteमगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
गुजारो साथ जिसके जिंदगी,वो भी हकीकत में
हमारे वास्ते अक्सर बड़ा अनजान होता है
जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है
waah waah...ek aur umda peshkash.
गुजारो साथ जिसके जिंदगी,वो भी हकीकत में
ReplyDeleteहमारे वास्ते अक्सर बड़ा अनजान होता है
जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है
न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
बुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है।
दिल को छू लेने वाले शेर हैं, बधाई।
भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
ReplyDeleteमगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
बुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है
नीरज जी
एक और बेहतरीन ग़ज़ल
आपकी कलम मैं जादू है
फूल की पंखुडी की तरह खिलती हुई है आपकी ग़ज़ल
बहुत-बहुत खूब!
ReplyDeleteहमेशा की तरह.
"....eemaan ka bachna, samajh vardaan hotaa hai!"
ReplyDeleteKya khoob kaha ! Bhare pet eemanki baten karna aur hota hai aur mushkil halaat, tangee inse vabasta ho, apne eemanko sambhalke rakhna kuchh aur....ye maine jiya hai, bade faqrke saath kahungee...aur apne dada daadee ko jeete hue dekha hai !
Aap behad vinamr wyakti hain....jis tarahse aapne "rehnumaee" ka zikr kiya, mujhe aapse rubaru hote hue ek aseem khushee mil rahee hai !
Aur ek baat kahun ? Jo bhee likh rahee hun, wo aaplogonkee hausal afzaaeeke karan hai...likhneke peechhe ek vishishth hetu tha..jo mai bhoolee nahee hun ! Apna dard ujagar karna, ya usme beh nikalnaa, mankaa gubaar nikalna ye uddisht bilkul nahee hai. Ye jatana chahtee hun ki apne maa baapke bartaaw asar aanewaalee nslpe kistarah door door tak hota hai...aur kayee baar parinaam us wyaktiko bhugatne padte hain jo nishaap ho !
Aap himmat bandhaye rakhen...apne maqsadme shayad safal ho jaun !Zyada se zyada logontak pohonch paaun....do logon ne to padhkar apne aapko gunahgaar bata diya hai, aur mere samne qubool kiya hai...mai iseeme apne lekhanki safalta mantee hun ! Do hee sahee...dersehee sahee par ehsaas to hua...!
हाय मधुबाला गज़ब कर डाला :)
ReplyDeleteभले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
ReplyDeleteमगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
क्या बात कही है नीरज जी.....आप इतने दिन गायब न रहा करिए ...मुस्कान जैसे गायब सी हो जाती है.......कभी मुनव्वर राणा जी को पढिये .....मां पर उन्होंने बहुत खूब लिखा है
कहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
ReplyDeleteमेरी गज़लों में बस "नीरज", यही सामान होता है
एकदम बजा फ़रमाते है भाई आप .... अनोखी होती है आप की ग़ज़लें.
भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
ReplyDeleteमगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
...........
सच को कितने सरल ढंग से कहा,अच्छा लगा
जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
ReplyDeleteवहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है
बहुत ही खुब बहुत ही गहरी बात कह दी आप ने, आप का यह शेर पढ कर मुझे फ़िल्म *मदर इन्डिया* का एक सीन याद आ गया.
धन्यवाद
भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
ReplyDeleteमगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है
न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
बुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है
कहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
मेरी गज़लों में बस "नीरज", यही सामान होता है
वाह-वाह
कितने खूबसूरत शेर कहे है आपने, हर शेर अपने अपने आप हर एक से बड़कर मगर कोई भी कमतर नही. इतनी आसन लफ्जों में इतनी गहरी बात कहने का हुनर आपका लाजवाब है.
नीरज जी,
ReplyDeleteआप सचमुच डूबकर लिखते हैं
और
बहा ले जाते हैं हम सब को
ज़ज्बातों की लहरों पर बिठाकर
सोच-समझ के सुलझे हुए ठिकानों तक.
ग़ज़ल को जिंदगी के बहुत करीब लाने
फनकारों में मुझे आप बहुत ऊंचाई पर नज़र आते हैं
प्राण साहब और वे सब जिनसे जुड़कर
आप सधी हुई रचनाओं का ऐसा संसार साझा करते हैं
बेशक साधुवाद के पात्र हैं...परन्तु आपकी विनम्रता
और कृतज्ञता के गुणों से ही ऐसी रचनाओं का जन्म सम्भव है....
यह मेरी सहज
तथा सच्ची अभिव्यक्ति है =============================
साभार....
आपका...चन्द्रकुमार जैन
साड़ी लेने कमाल हैं लेकिन ये रोज महसूस होता है :
ReplyDeleteभले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
No. 1
ReplyDeleteभले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है....
No. 2
न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
बुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है...
Uncle, I think this can easily be converted into a song, It is rhyming so well.
Mera to manana hai ki aapko sach mein koshish karni chahiye aapni kala ko filmo aur sangeet ke jariya jyada se jyada logon tak pahuchane ki..
Regards,
Ratan
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteभले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
ReplyDeleteमगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है......
इन लाइनों में जो बात है उसे कहा नहीं जा सकता .आप इसी तरह से लिखते रहें और हम इसी तरह पढ़ते रहें .
भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
ReplyDeleteमगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
हर्फ़-हर्फ़ हम कायल हुए जाते हैं...
बेहद प्यारी ग़ज़ल लिखी है आपने...
ReplyDeleteकहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
ReplyDeleteमेरी गज़लों में बस "नीरज" यही सामान होता है
नीरज भाई साहब
बहुत ख़ूब.
अल्लाह करे ज़ोरे-कलम और ज़ियादा.
सादर
द्विज
नीरज जी,बधाई...आपको इस ग़ज़ल पर ९७.४५ नंबर मिल गए हैं....अब मिठाई भी खिलाईये ना...प्लीज़....
ReplyDeleteबहुत सुंदर!
ReplyDeleteजहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है
निरजभाई
ReplyDeleteपढ़ी कितनी ग़ज़लें कईयों के ब्लॉग्गिंग में
"नीरज" की गज़लोमे फ़िर भी जी जान होता है |
धन्यवाद |
-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए
इतनी तारिफ़ों के बाद कुछ कहना शेष रह गया है क्या?
ReplyDeleteतेरे शेरों को सुन-सुन कर अजब ये हाल है अपना
कहूँ जो मैं जरा कुछ भी,कहाँ आसान होता है
नीरज भाईजी,
ReplyDeleteक्या उम्दा शब्दोँ मेँ
पिरोया है
गज़ल के मुक्ताहार को आपने....
एक एक शेर पर
वाह वाह कहने को
जी चाहता है
स्नेह,
- लावण्या
Neeraj ji
ReplyDeleteबेहतरीन........
ईमान,बच्चे की किलकारी,मॉ,दुआऍ य़ॆ सब कितने छोटे-छोटे शब्द हैं लेकिन कितना सुकून देता है.संवेदना की सुन्दर लडी के लिए धन्यवाद....
ReplyDeleteसंवेदना की सुन्दर लडी के लिए धन्यवाद.सचमुच ये छोटे-छोटे शब्द मॉ,ईमान,दुआऍ,बच्चों की किलकारी कितने बडे अर्थ संम्प्रेषित करते हैं....
ReplyDeleteन सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
ReplyDeleteबुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है
कहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
मेरी गज़लों में बस "नीरज", यही सामान होता है
इसीलिए आपकी ग़ज़लों का सम्मान होता है
भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
ReplyDeleteमगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है गुजारो साथ जिसके जिंदगी,वो भी हकीकत में
हमारे वास्ते अक्सर बड़ा अनजान होता है
wah wah neeraj jee, mahsoos to sabhi karte hai par ese likhne aur pathko ke dil ko chhoo lene ka hunar sirf aapke hi pas hai.
jeevant lekhni!!
ReplyDeleteबहुत बढिया गजल है।बधाई।
ReplyDeleteजहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है
जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
ReplyDeleteवहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है
बहुत ही सच्ची रचना है |
कभी वो देवता या फिर,कभी शैतान होता है
ReplyDeleteबदलता रंग गिरगट सा ,अज़ब इंसान होता है
बेहतरीन
भले हो शान से बिकता, बड़े होटल या ढाबों में
ReplyDeleteमगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
नीरज जी बहुत सुन्दर रचना।
बहुत बढ़िया मज़ा आगया !
ReplyDeleteआपकी लेखनी के सम्मोहन से बचना कठिन है। सारे शेर पसंद आए।
ReplyDeleteक्या बात है नीरज जी अहा. मज़ा आ गया. एक बहुत लाजवाब ख़याल आईने की शक्ल लेकर सामने आया. और ग़ज़ल के मक्ते ने तो दिल ही जीत लिया सरजी. सुबह राकेश जी रचना और शाम आपकी ग़ज़ल पढ़कर आनंद की सीमा नहीं रही मेरी. वाह वाह !
ReplyDeleteभले हो शान से बिकता, बड़े होटल या ढाबों में
ReplyDeleteमगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
ये शे'र सबसे बढिया लगा नीरज जी...
न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
ReplyDeleteबुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है
हमारे सर पर बुजुर्गों का हाथ ना हो तो सब बेकार है
बहुत अछि लगी आपकी रचना
दाद कबूल फरमायें
शैतान इंसान पकवान अनजान वरदान आसान धनवान और इन शब्दों का औचित्य अति सुंदर
ReplyDeleteन सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
ReplyDeleteबुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है
बहोत खूब लिखा है आपने वाह आनंद आगया .. आप मेरे ब्लॉग पे आए इसका शुक्रिया तो शब्दों में नही कर सकता यही उम्मीद करता हूँ आपका स्नेह निरंतर बना रहे...
अर्श
baya ke is anuthe andaz ko salam.
ReplyDeletebahut khoob
ranjit