ख़ौफ़ का ख़ंज़र जिगर में जैसे हो उतरा हुआ
आजकल इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ
साथियो ! गर चाहते हैं आप ख़ुश रहना सदा
लीजिए फिर हाथ में जो काम है छूटा हुआ
दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
रोटियों में यार,जिसका ध्यान है अटका हुआ
फूल ही बिकता हैं यारो, हाट में बाजार में
क्या कभी तुमने सुना है, ख़ार का सौदा हुआ
झूठ सीना तान कर, चलता हुआ मिलता है अब
हाँ, यहाँ सच दिख रहा है काँपता-डरता हुआ
अपनी बद-हाली में भी,मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू नहीं है, फूल भी मसला हुआ
तजरिबों से जो मिला हमने लिखा ‘नीरज’ वही
आप की बातें कहाँ हैं, आप को धोखा हुआ
( शुक्रिया छोटे भाई द्विज जी का जिनकी मदद के बिना ये ग़ज़ल लिखनी सम्भव नहीं थी )
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
ReplyDeleteत्यागता ख़ुशबू नहीं है फूल भी मसला हुआ
" what a wonderful imaginary and thoughts......real words to decsribe facts of life"
Regards
विडम्बना है कि-
ReplyDeleteझूठ सीना तान कर चलता हुआ मिलता है अब
हाँ, यहाँ सच दिख रहा है काँपता-डरता हुआ
मौलिक बिम्ब-
त्यागता ख़ुशबू नहीं है फूल भी मसला हुआ
नीरज जी, माफ़ कीजियेगा दख़ल-अंदाजी के लिए. क्या आपकी यह ग़ज़ल कुछ इस तरह नहीं हो सकती ?
ReplyDeleteखौफ का खंजर जिगर में जैसे हो उतरा हुआ.
आजका इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ.
चाहते हैं आप खुश रहना अगर, तो लीजिये,
हाथ में वो काम जो मुद्दत से है छूटा हुआ.
दीनो-ईमाँ की नसीहत उस से है करना फुजूल,
जिसका दिल दो वक़्त की रोटी में है अटका हुआ.
फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ.
झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
सच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ.
तजरबों से जो मिला हमने लिखा नीरज वही,
हम-ज़बां हैं आप मेरे, ये बहुत अच्छा हुआ.
*************
motamulashbal.gmail.com
ख़ौफ़ का ख़ंज़र जिगर में जैसे हो उतरा हुआ
ReplyDeleteआजकल इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ
बहुत सही कहा आपने ! माहोल ही कुछ ऐसा है ! आपके खंजर को देख कर डर लग रहा है ! जब शायर खंजर उठा लेते हैं तो परिवर्तन अवश्य आयेगा ! उम्मीद करते हैं की सब ठीक हो जायेगा ! धन्यवाद !
आपतो बहुजत जिगर वाली बातें लिखी हैं।
ReplyDeleteबहुत शानदार गजल. हमेशा की तरह.
ReplyDeleteदीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
ReplyDeleteरोटियों में यारो ! जिसका ध्यान है अटका हुआ
काश समझदार लोग भी इस बात को समझे .....
'झूठ सीना तान कर…'
ReplyDeleteबहुत ख़ूब। फ़ैज़ की नज़्म 'निसार मैं तेरी गलियों पे ऐ वतन…' की याद ताज़ा हो गई।
हार्दिक बधाई।
अलफ़ाज...मेरे अल्फ़ाजों कहाँ हो तुम!!! मुझे इस गज़ल की जरा-सा हट के तारीफ़ करनी है!!!
ReplyDeleteनीरज जी मैं दंडवत हो चरण-स्पर्श करता हूँ
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू नहीं है फूल भी मसला हुआ
...शब्दों से परे हर शेर,भाव और इनकी बिनावट
फूल ही बिकता हैं यारो हाट में बाजार में
ReplyDeleteक्या कभी तुमने सुना है ख़ार का सौदा हुआ
bahut khobb... sach kaha...!
Vaah vaah Neeraj jee kya baat hai, oho badee khoob ghazal. dhoka hua aha!
ReplyDeleteझूठ सीना तान कर चलता हुआ मिलता है अब
ReplyDeleteहाँ, यहाँ सच दिख रहा है काँपता-डरता हुआ
-बेहतरीन!!
मौजूदा परिप्रेक्ष्य को खूबसूरती से उकारा है आपने..
ReplyDelete"दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
रोटियों में यारो ! जिसका ध्यान है अटका हुआ"
फूल ही बिकता हैं यारो हाट में बाजार में
ReplyDeleteक्या कभी तुमने सुना है ख़ार का सौदा हुआ
झूठ सीना तान कर चलता हुआ मिलता है अब
हाँ, यहाँ सच दिख रहा है काँपता-डरता हुआ
waah bahut khub
'दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
ReplyDeleteरोटियों में यारो ! जिसका ध्यान है अटका हुआ'
वाह ! वाह ! क्या बात है !
दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
ReplyDeleteरोटियों में यारो ! जिसका ध्यान है अटका हुआ
इस शेर की गहराई अगर सब समझले तो क्या बात है.. बेजोड़ ग़ज़ल
फूल ही बिकता हैं यारो हाट में बाजार में
ReplyDeleteक्या कभी तुमने सुना है ख़ार का सौदा हुआ
झूठ सीना तान कर चलता हुआ मिलता है अब
हाँ, यहाँ सच दिख रहा है काँपता-डरता हुआ
बहुत अच्छा लिखा है.
बहुत सुंदर, नीरज जी!
ReplyDeleteफूल ही बिकता हैं यारो हाट में बाजार में
ReplyDeleteक्या कभी तुमने सुना है ख़ार का सौदा हुआ
क्या बात है मीरज जी...
--मानोशी
Khauf kaa khanjar ! khaar ka sauda ! Kitnee behatareen baat Neeraj jee. Aaj to phir ghazab likha sir aapne. Aha !
ReplyDeleteसाथियो ! गर चाहते हैं आप ख़ुश रहना सदा
ReplyDeleteलीजिए फिर हाथ में जो काम है छूटा हुआ
क्या बात है नीरज भाई,
आपने आत्म प्रबंधन की सीख दे दी
इस लाज़वाब शेर में.
ग़ज़ल का हर शेर उपहार की तरह है.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बेहद सुँदर रचना के लिये बधाई नीरज जी ~~
ReplyDelete- लावण्या
भाई नीरज जी,
ReplyDeleteसुंदर ग़ज़ल प्रस्तुति पर एक बार फिर से आपको बधाई.
आदत से मजबूर सो कुछ और भी लिखने की जुर्रत कर रहा हूँ, क्योंकि ये जुर्रत है , सीना तान कर
है इसलिए झूंठ ही होगा.............झूंठा ही सही, पर बिना लिखे रहा नही जा रहा है , सो लिख रहा हूँ ......................
"जमाना आज दिखाने का है.
जो है नही उसे भी दिखाना पड़ता है.
जब दिखाते हैं तो पूरा मेक अप कर ही दिखाना पड़ता है.
अविश्वाश न हो , इसी लिए सीना तान कर बोलना पड़ता है.
सच को मेक अप की नही , किसी को बताने की जरूरत नही है,
वह तो कांपता इसलिए है कि सामने वाला नासमझ, कम अक्लमंद, सच और झूठ में फर्क करने में असमर्थ है. अब आप ही बताइए कि सामने वाले ऐसे बन्दर के हाथ जब उस्तरा हो तो कौन समझदार व्यक्ति है जो काँपेगा नही. "
हमारी टिप्पणी को अन्यथा न लें, यह मेरी अपनी समझ और नितांत अपने विचार हैं.
चन्द्र मोहन गुप्त
दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
ReplyDeleteरोटियों में यारो ! जिसका ध्यान है अटका हुआ
umda...bahut khoob
दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
ReplyDeleteरोटियों में यारो ! जिसका ध्यान है अटका हुआ
बहुत ही सुंदर कविता कहीआप ने, काश हम सब इसे मह्सुस करे.ओर इस से कुछ नसीहत लै.
धन्यवाद
is khanzar se dar bhi laga...magar usase jyaadaa to acchha hi laga....
ReplyDeleteफूल ही बिकता हैं यारो हाट में बाजार में
क्या कभी तुमने सुना है ख़ार का सौदा हुआ
khari-khari baat hai.....bhaai..
कमाल ! कमाल भाई. एक बार फिर वही असमंजस है .... किस - किस शेर की तारीफ़ हो.
ReplyDeleteत्यागता ख़ुशबू नहीं है फूल भी मसला हुआ...
ReplyDeleteAwesome...
Regards,
Ratan
हर शे'र में आवर्द सफल रहा है और रचना बहुत निखर आयी है!
ReplyDeletebahut umda ghazal kahi hai aapne, har sher me tazgi hai.
ReplyDeleteफूल ही बिकता हैं यारो हाट में बाजार में
ReplyDeleteक्या कभी तुमने सुना है ख़ार का सौदा हुआ
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू नहीं है फूल भी मसला हुआ
जीवन की सच्चाइयां ,
जीवन जीने की कला ,
सीख पायें हम कभी ,
इस कविता से भला |
पूरी गज़ल ही अपने आप में मुकम्मल और बेहद खूबसूरत है पर मुझे यह सेर बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteफूल ही बिकता हैं यारों हाट में बाजार में
क्या कभी तुमने सुना है ख़ार का सौदा हुआ
नीरजजी,
ReplyDeleteसुन्दर रचना है. मधु माहेश्वरी की पंक्तियां याद आ गईं
झूठ सीना तान कर चलता भरे बाज़ार में
कल यहां की रहगुजर में कत्ल सच का हो गया
दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
ReplyDeleteरोटियों में यारो ! जिसका ध्यान है अटका हुआ
हमेशा की तरह, अच्छी ग़ज़ल
कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं आपका शेर पड़ कर
एक भूखे की कला का रूप तो देखो
चाँद में भी उसने रोटी तलाशी है
अति सुंदर से भावः संग ,सहज शब्द प्रवाह
ReplyDeleteपढ़ हिय से निकला सहज वाह वाह अरु वाह
ख़ौफ़ का ख़ंज़र जिगर में जैसे हो उतरा हुआ
ReplyDeleteआजकल इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ
kya baat kahi hai neeraj jii
gahri or sacchi
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