Monday, October 6, 2008

चाँद की बातें करो



(प्रणाम गुरुदेव पंकज जी को इस ग़ज़ल को पढने लायक बनाने के लिए )

जब कुरेदोगे उसे तुम, फिर हरा हो जाएगा
ज़ख्म अपनों का दिया,मुमकिन नहीं भर पायेगा

वक्‍त को पहचान कर जो शख्‍स चलता है नहीं
वक्‍त ठोकर की जुबां में ही उसे समझायेगा

शहर अंधों का अगर हो तो भला बतलाइये
चाँद की बातें करो तो, कौन सुनने आयेगा

जिस्म की पुरपेच गलियों में, भटकना छोड़ दो
प्यार की मंजिल को रस्ता, यार दिल से जायेगा

बन गया इंसान वहशी, साथ में जो भीड़ के
जब कभी होगा अकेला, देखना पछतायेगा

बैठ कर आंसू बहाने में, बड़ी क्या बात है
बात होगी तब अगर तकलीफ में मुस्‍कायेगा

फूल हो या खार अपने वास्ते है एक सा
जो अता कर दे खुदा हमको सदा वो भायेगा

नाखुदा ही खौफ लहरों से अगर खाने लगा
कौन तूफानों से फिर कश्‍ती बचा कर लायेगा

ये तुम्‍हारे भोग छप्‍पन सब धरे रह जायेंगें
वो तो झूठे बेर शबरी के ही केवल खायेगा

दिल से निकली है ग़ज़ल "नीरज" कभी तो देखना
झूम कर सारा ज़माना दिल से इसको गायेगा


{दोस्तों इस ग़ज़ल का "बोल्ड शेर" जिसे हासिले ग़ज़ल भी कह सकते हैं भेंट स्वरुप प्राप्त हुआ है, किसने किया ये बताने की अनुमति मुझे नहीं है.}

42 comments:

  1. ज़ख्म अपनों ने दिया जो, वो नहीं भर पायेगा
    जब कुरेदोगे उसे, तो फ़िर हरा हो जाएगा

    वक्‍त को पहचान कर जो शख्‍स चलता है नहीं
    वक्‍त ठोकर की जुबां में ही उसे समझायेगा

    शहर अंधों का अगर हो तो भला बतलाइये
    चाँद की बातें करो तो, कौन सुनने आयेगा

    बेहतरीन...

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  2. गीत गर दिल से लिखा "नीरज" कभी तो देखना
    फ़िर उसे सारा जमाना, झूम कर के गायेगा
    " आपकी इन अन्तिम पंक्तियों को आपके इस गीत ने सच मे ही सर्तक कर दिया है "
    regards

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  3. ये तुम्‍हारे भोग छप्‍पन सब धरे रह जायेंगें
    वो तो झूठे बेर शबरी के ही केवल खायेगा

    बहू थी धार धार शेर नेराज जी.. कमाल का शेर छांट लाए हो आप इस बार.. भेंट करने वाले को हमारा आभार


    शहर अंधों का अगर हो तो भला बतलाइये
    चाँद की बातें करो तो, कौन सुनने आयेगा

    आपका ये शेर भी बहुत खूब है..

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  4. बहुत शानदार!

    सारे शेर बहुत पसंद आए....अब ढेर सारे और शब्द खोजने पड़ेंगे आपकी गजलों की तारीफ करने के लिए.

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  5. फूल हों या खार हों हमने फरक समझा नहीं
    जो अता कर दे खुदा, हमको हमेशा भायेगा
    बहुत बढिया ! शुभकामनाएं !

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  6. नीरज जी एक कविता उस पर भी कर दीजिएगा कि जब को शब्द तारीफ के लिए नहीं मिले तो तब हम क्या करें। वाह बहुत खूब सभी शेर पसंद लेकिन
    वक्‍त को पहचान कर जो शख्‍स चलता है नहीं
    वक्‍त ठोकर की जुबां में ही उसे समझायेगा
    ये सब से ज्यादा भाया।

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  7. नाखुदा ही खौफ लहरों से अगर खाने लगा
    कौन तूफानों से फिर कश्‍ती बचा कर लायेगा

    ये तुम्‍हारे भोग छप्‍पन सब धरे रह जायेंगें
    वो तो झूठे बेर शबरी के ही केवल खायेगा

    गीत गर दिल से लिखा "नीरज" कभी तो देखना
    फ़िर उसे सारा जमाना, झूम कर के गायेगा

    bahut khub .... !

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  8. बन गया इंसान वहशी, साथ में जो भीड़ के
    जब कभी होगा अकेला, देखना पछतायेगा

    बैठ कर आंसू बहाने में, बड़ी क्या बात है
    बात होगी तब अगर तकलीफ में मुस्‍कायेगा

    फूल हों या खार हों हमने फरक समझा नहीं
    जो अता कर दे खुदा, हमको हमेशा भायेगा
    बहुत बढ़िया लिखा है.

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  9. वक्‍त को पहचान कर जो शख्‍स चलता है नहीं
    वक्‍त ठोकर की जुबां में ही उसे समझायेगा

    सुभान अल्लाह !

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  10. क्षमा कीजियेगा वो आखिरी लाइन मे शब्द 'सतर्क' नही 'सार्थक" है. (typing error ho gya hai)
    Regards

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  11. बन गया इंसान वहशी, साथ में जो भीड़ के
    जब कभी होगा अकेला, देखना पछतायेगा
    बहुत ही बढ़िया .

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  12. शहर अंधों का अगर हो तो भला बतलाइये
    चाँद की बातें करो तो, कौन सुनने आयेगा
    बहुत लाजवाब ! बधाई !

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  13. नीरज जी आप और राकेश खण्‍डेलवाल जी ने मिलकर दो गलियां बंद कर दी हैं अगर हम गीत लिखते हैं तो राकेश जी के गीतों से अच्‍छा नहीं लिख पाते और अगर ग़ज़ल लिखते हैं तो आपसे अच्‍छा नहीं लिख पाते । हम कहां जाये बताइये ऐसा न हो कि हम सब मिलकर आप दोनों के खिलाफ मोर्चा खोल लैं । बधाई एक अच्‍छी रचना के लिये । राकेश जी तो ब्‍लागिंग की दुनिया से बाहर आकर पाठकों की दुनिया में पहुंच रहे हैं अब आप भी मन बनाइये ।

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  14. "वक्‍त को पहचान कर जो शख्‍स चलता है नहीं
    वक्‍त ठोकर की जुबां में ही उसे समझायेगा"
    बहुत बढ़िया!

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  15. बेहतरीन. बहुत खूब.

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  16. पंकज जी ..प्रशंशा के लिए शुक्रिया लेकिन याद रहे की ये गुब्बारा तब तक ही हवा में रहेगा जब तक इसमें आप जैसे गुरुओं के आशीर्वाद की हवा भरी हुई है....ब्लॉग्गिंग की दुनिया से पाठकों की दुनिया में आने का मन तो है लेकिन डर है की पाठक मिलेंगे कहाँ से? कभी इश्वर की कृपा हुई तो ये काम भी आप के हाथों ही संपन्न होगा. मानसिक और शारीरिक रूप से इस आघात को सहने के लिए तैयार रहिएगा.
    नीरज

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  17. इस गजल का हर एक शेर एक अलग कहानी कहता है। हर कहानी सच के कपडे पहने हुए है। बहुत खूब लिखा है।

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  18. ये तुम्‍हारे भोग छप्‍पन सब धरे रह जायेंगें
    वो तो झूठे बेर शबरी के ही केवल खायेगा
    बहुत खूब........नीरज जी इस शेर को लिए जा रहा हूँ......

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  19. Hi sir ,
    U r superb....
    Nice work and nice thought..
    U ve real sence to live the life...
    really Great...
    http://dev-poetry.blogspot.com/

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  20. नीरज जी अब तो जान ही लेलें आप हमारी.शब्द सारे शब्द-सब खो गये...क्या गज़ल कही है.वैसे भी आपकी कोई ऐसी गज़ल है जो ऐसी प्रतिक्रिया ना उत्पन्न करे
    और हमारे पेज पे पधारे जो आप....हम मंत्र-मुग्ध

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  21. नाखुदा ही खौफ लहरों से अगर खाने लगा
    कौन तूफानों से फिर कश्‍ती बचा कर लायेगा...
    bahut hi sundar
    bhawnaaon ki tapish hai

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  22. आपकी गजल वाकई... दिल को छू जाती है...
    बहुत उम्दा किस्म के शेरों के लिये आपकी बधाई..
    बेहतरीन

    वीनस केसरी

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  23. नाखुदा ही खौफ लहरों से अगर खाने लगा
    कौन तूफानों से फिर कश्‍ती बचा कर लायेगा

    --वाह वाह!!

    बहुत खूब!!

    आनन्द आ गया.

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  24. जी नीरज भाई आपके शब्द गीत बनकर गूँजेँगेँ ~
    बहुत अच्छा लिखा है हरेक शेर !
    -लावण्या

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  25. अच्छे शेर निकाले भाई
    ज्यों सांचे में ढाले भाई
    पंकज द्विज औ कभी प्राण जी
    हैं तुम पर मतवाले भाई

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  26. वक्‍त को पहचान कर जो शख्‍स चलता है नहीं
    वक्‍त ठोकर की जुबां में ही उसे समझायेगा

    शहर अंधों का अगर हो तो भला बतलाइये
    चाँद की बातें करो तो, कौन सुनने आयेगा

    जिस्म की पुरपेच गलियों में, भटकना छोड़ दो
    प्यार की मंजिल को रस्ता, यार दिल से जायेगा
    क्या बात है नीरज जी, बिल्कुल सही कहा...जिस्म की पुरपेच गलियों में भटकना छोड़ दो, जब की आज का सच यही है...प्यार और मुहब्बत की ओकात कहाँ रह गई है, जिस्म की कशिश ही सब कुछ हो गई है...एक एक शेर तारीफ़ के काबिल है...
    ये तुम्‍हारे भोग छप्‍पन सब धरे रह जायेंगें
    वो तो झूठे बेर शबरी के ही केवल खायेगा

    गीत गर दिल से लिखा "नीरज" कभी तो देखना
    फ़िर उसे सारा जमाना, झूम कर के गायेगा
    बेहद शानदार...

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  27. ज़ख्म अपनों ने दिया जो, वो नहीं भर पायेगा
    जब कुरेदोगे उसे, तो फ़िर हरा हो जाएगा

    वक्‍त को पहचान कर जो शख्‍स चलता है नहीं
    वक्‍त ठोकर की जुबां में ही उसे समझायेगा

    फूल हों या खार हों हमने फरक समझा नहीं
    जो अता कर दे खुदा, हमको हमेशा भायेगा

    बहुत प्‍यारे शेर हैं। बधाई।

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  28. नीरज जी, इतनी बेहतरीन गजल है कि प्रशंसा को शब्द नहीं मिल रहे। आपका लेखन कौशल अदभुत है। पाठक तो बस हिप्नोटाईज्ड हो जाता है।

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  29. 'शहर अंधों का…'
    सुन्दर, बहुत ही सुन्दर।

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  30. लफ़्ज़ का हर फूल चुन कर रख लिया गुलदान में
    अब भला तारीफ़ कोई किस तरह कर पायेगा.??

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  31. गीत गर दिल से लिखा "नीरज" कभी तो देखना
    फ़िर उसे सारा जमाना, झूम कर के गायेगा

    बेहतरीन, आपने साड़ी ग़ज़ल का निचोड़ आखिरी शेर में रख के बहुत ही मासूमियत से अपनी बात कह दी है. आप का मार्गदर्शन मिलता रहे तो मैं यही कामना करता हूँ.

    अंकित "सफर"
    http://ankitsafar.blogspot.com/

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  32. बहुत ही प्रेरणा दायक रचना है!!!
    आपके इस रचना के बारे मे बस इतना ही कहना चाहूँगा

    हाथ रख लो दी पर, कोई रास्ता बन जाएगा |
    तुम चलोगे साथ तेरे कारवाँ बन जाएगा |

    मुस्किलों का क्या, वो आएँगी भी जाएँगी |
    फिर पतझड़ों के बाद सावन मुस्कुराएगा |

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  33. फूल हों या खार हों हमने फरक समझा नहीं
    जो अता कर दे खुदा, हमको हमेशा भायेगा

    बहुत खूब !!! दरअसल यह बात मुझे कुछ इस तरह ही लगी ......

    कहने से है अधिक सही सुनना |
    सुनने से है अधिक सही गुनना ||
    यह मिथक कुछ यहाँ ढहा जाए...
    और अधिक मौन न रहा जाये |
    बात हटकर कोई कहा जाये ||

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  34. फूल हों या खार हों हमने फरक समझा नहीं
    जो अता कर दे खुदा, हमको हमेशा भायेगा

    ज़िन्दगी का सच तो यही है ..बेहद खूबसूरत लिखा है आपने नीरज जी

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  35. अरे साहब ! हम तो झूमकर ही
    गाते हैं आपके गीतों को....गज़लों को !
    =================================
    सच बहुत...बहुत....बहुत खूब लिखा है आपने.
    बधाई और आभार
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  36. बहुत खूब , मज़ा आगया ! विनम्रता की तारीफ करनी पड़ेगी, बधाई !

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  37. शब्द सारे हो गय़े हैं स्तब्ध।

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  38. क्या बात है नीरज जी ! अहा ! ग़ज़ल तो खूब है ही और बोल्ड शेर कितना सुंदर है ये बयाँ के बाहेर है ! आप ग़ज़ब का संबल देते हो नीरज जी अपनी ग़ज़लों के माध्यम से !

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  39. Pehle to shukrguzaaree ataa farmaatee hun aapkee tippaneeke liye !
    "Zakhm apnone diya jo..."...apnehee zakhm de sakte hain !!
    "...soncha tha charagar hain wo, jaane pehchane,
    zakhmonpe marham karenge,
    Wo to hare zakhmonpe
    aur kharonche de gaye!"
    Ye kuchh meree panktiyan !Aakee rachnaayonpe kuchh tippanee karun, is qabil mai kahan ?

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  40. सभी ग़ज़ल उम्दा हैं पर यह बेहद खूबसूरत लगी

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  41. "बन गया इंसान वहशी, साथ में जो भीड़ के
    जब कभी होगा अकेला, देखना पछतायेगा"
    कौन सा शब्द लिखूं तारीफ में.........टक्कर का मेरे शब्दकोष में तो नहीं मिल रहा.
    बहुत ही बेहतरीन!

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे