( नमन छोटे भाई समान द्विज जी को जिन्होंने इस ग़ज़ल को कहने लायक बनाया )
कब किसी के मन मुताबिक़ ही चली है जिन्दगी
राह तयकर इक नदी —सी ख़ुद बही है जिन्दगी
ये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा
तेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी
मौत से बदत्तर समझ कर छोड़ देना ठीक है
ग़ैर के टुकड़ों पे तेरी गर पली है ज़िन्दगी
बस जरा सी सोच बदली तो मुझे ऐसा लगा
ये नहीं दुश्मन कोई सच्ची सखी है ज़िन्दगी
जंग का हिस्सा है यारो, जीतना या हारना
ख़ुश रहो गर आख़िरी दम तक लड़ी है जिन्दगी
मोल ही जाना नहीं इसका, लुटा देने लगे
क्या तुम्हें ख़ैरात में यारो ! मिली है जिन्दगी
जब तलक जीना है "नीरज" मुस्कुराते ही रहो
क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी
कब किसी के मन मुताबिक़ ही चली है जिन्दगी
राह तयकर इक नदी —सी ख़ुद बही है जिन्दगी
ये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा
तेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी
मौत से बदत्तर समझ कर छोड़ देना ठीक है
ग़ैर के टुकड़ों पे तेरी गर पली है ज़िन्दगी
बस जरा सी सोच बदली तो मुझे ऐसा लगा
ये नहीं दुश्मन कोई सच्ची सखी है ज़िन्दगी
जंग का हिस्सा है यारो, जीतना या हारना
ख़ुश रहो गर आख़िरी दम तक लड़ी है जिन्दगी
मोल ही जाना नहीं इसका, लुटा देने लगे
क्या तुम्हें ख़ैरात में यारो ! मिली है जिन्दगी
जब तलक जीना है "नीरज" मुस्कुराते ही रहो
क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी
जब तलक जीना है "नीरज" मुस्कुराते ही रहो
ReplyDeleteक्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी
"behtreen , koee muskurana aapse seekhe, dukh ho khushee ho muskurane ka naam hai jindgee, very inspiring"
regards
ये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा
ReplyDeleteतेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी
वाह बहुत खूब ...
जंग का हिस्सा है यारो, जीतना या हारना
ख़ुश रहो गर आख़िरी दम तक लड़ी है जिन्दगी
सच में यही है ज़िन्दगी ..
क्या कहूँ इस गजल के बारें में। शब्द ही नही मिल रहे। बहुत ही अच्छी हैं। हर बार की तरह दो लाईन पसंद की नही निकाल पाया। यहाँ हर लाईन दिल को छू रही है। जो चीज जिदंगी को छूती वो दिल को भी छूती है। वाह वाह वाह.......वाह।
ReplyDeleteये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा
ReplyDeleteतेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी
अति सुंदर ।
नीरज जी आप तो कवि बन गए ।
भाई नीरज जी,
ReplyDeleteआजकल तो लगता है कि जिंदगी लफ्फेबाज़ी का दूसरा नाम है. जिसको देखो कम न कर बात की लडाई लड़ता है.
अक्सर कुछ क्या बहुत से लोग कहते मिल जाते हैं कि
"जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है"
कुछ समझदार लोग ऐसे भी होते हैं जो जिन्दगी के अन्बवों के बाद आप ही की तरह गजला उठाते हैं कि
" कब किसी के मन मुताबिक़ ही चली है जिन्दगी
राह तयकर इक नदी —सी ख़ुद बही है जिन्दगी"
खैर सच-झूंट की लडाई तो समझ के फेर के कारण है. पर गजल के सारे शेर एक से बढ़ कर एक है.
keep it up.
चन्द्र मोहन गुप्त
बढ़िया है नीरज जी!
ReplyDeleteवाह...इतनी अच्छी ग़ज़ल कही है आपने की कोई एक या दो शेर चुनकर नहीं निकाले जा सकते हैं!
ReplyDeleteजिंदगी पर इससे अच्छी ग़ज़ल मैंने नहीं देखी.....शब्द नहीं हैं तारीफ के लिए...
ख़ुश रहो गर आख़िरी दम तक लड़ी है जिन्दगी
ReplyDelete-----
प्रेरक है यह। एक बार सांस भर कर जद्दोजहद का यत्न किया जाय!
ये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा
ReplyDeleteतेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी
बहुत सुंदर ! शुभकामनाएं !
ये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा
ReplyDeleteतेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी
वाह बहुत खूब ...
'ये नहीं दुश्मन कोई सच्ची सखी है ज़िन्दगी'
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
एक अज्ञात कवि की ये पँक्तियां याद आ गईं।:-
'तमाम उम्र किया हमने ज़िन्दगी से गिला
तमाम उम्र हमें ज़िन्दगी ने प्यार किया।'
बधाई।
जंग का हिस्सा है यारो, जीतना या हारना
ReplyDeleteख़ुश रहो गर आख़िरी दम तक लड़ी है जिन्दगी।
बहुत प्यारा शेर है, बधाई।
Aap ka kavya prem sarahaniya hai..
ReplyDeleteThanks for your visit to Anushakti Nagar kavi sammelan on 28th September.
with love
K singh
http://kavikulwant.blogspot.com
कब किसी के मन मुताबिक़ ही चली है जिन्दगी
ReplyDeleteराह तयकर इक नदी —सी ख़ुद बही है जिन्दगी
bahut umadaa rachana
regards
मौत से बदत्तर समझ कर छोड़ देना ठीक है
ReplyDeleteग़ैर के टुकड़ों पे तेरी गर पली है ज़िन्दगी
नीरज जी बेहतरीन रचना के लिए आपको बारंबार बधाई
क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी
ReplyDeletebahut khoob ji.. bahut hi badhiya..
नीरजजी
ReplyDeleteआप ऐसे ही सुँदर
व सच्ची बातेँ लिखते रहेँ ,
शुभकामनाएँ!
जब तलक जीना है "नीरज" मुस्कुराते ही रहो
ReplyDeleteक्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी
--छा गये महाराज!! बहुत उम्दा गज़ल!! आनन्द आ गया. दाद कबूलें.
मौत से बदत्तर समझ कर छोड़ देना ठीक है
ReplyDeleteग़ैर के टुकड़ों पे तेरी गर पली है ज़िन्दगी
wah kya baat kahe di hai
जब तलक जीना है "नीरज" मुस्कुराते ही रहो
क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी
bhaut achha msg
bhaut bhaut achha
मौत से बदत्तर समझ कर छोड़ देना ठीक है
ReplyDeleteग़ैर के टुकड़ों पे तेरी गर पली है ज़िन्दगी
Wah Wah...
मजा आ गया नीरज जी
बहुत बेहतरीन गजल है
ReplyDeleteपढ़वाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
वीनस केसरी
जब तलक जीना है "नीरज" मुस्कुराते ही रहो
ReplyDeleteक्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी
नीरज जी ये हासिले ग़ज़ल शेर है इसे संभाल कर रखियेगा । ये आपने नहीं लिखा ये सरस्वती ने प्रसन्न होकर स्वयं ही आपको उपहार दिया है और आपसे लिखवाया है । जिसके बारे में कहा जाता है कि ऊपर से उतरा हुआ शेर है ।
मौत से बदत्तर समझ कर छोड़ देना ठीक है
ReplyDeleteग़ैर के टुकड़ों पे तेरी गर पली है ज़िन्दगी
बेहद खुद्दार शेर कह दिया भाई.
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बधाई
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
जंग का हिस्सा है यारो, जीतना या हारना
ReplyDeleteख़ुश रहो गर आख़िरी दम तक लड़ी है जिन्दगी
behad sundar panktiyan dil ko choo gayin.
जंग का हिस्सा है यारो, जीतना या हारना
ReplyDeleteख़ुश रहो गर आख़िरी दम तक लड़ी है जिन्दगी
sachayi se khoob sunder andaaz mein parichit karwaya hai Neeraj
Zindagi junG choti si to nahin
Maine jaana hai par ladi to nahin.
Daad ke saath
Devi Nangrani
शानदार!
ReplyDeleteएक-एक शेर बहुत बढ़िया.....पता नहीं कब तलक रहेगी ज़िन्दगी लेकिन जब तक आपकी गजलें पढने को मिलें, इस जीने का तरीका सीखते रहेंगे.
बहुत बढ़िया / तूने रंजो अलम के सिवा क्या दिया , आँख हमसे मिला बात कर जिंदगी /
ReplyDeleteकिस किस शेर पर दाद दें नीरज जी हम.कैसे इतने सुंदर शब्दों में इतने अद्भुत विचारों को इतने मनोरम और आसान तरिके से आप बाँध लेते हैं शेरों में और वो भी एकदम नपा-तुला.मजाल है कि एक बिन्दु तक इधर से उधर हो जाये...
ReplyDeleteक्या बात है नीरज जी ! बहुत क़ामयाब लिक्खा है जी आपने. क्या कहना !
ReplyDeleteये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा
ReplyDeleteतेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी
बहुत सुंदर, नीरज जी!
wah....
ReplyDeleteek ek sher bahut sachha... lajawab... kya kahene....!
badhi....
regards
mamta kiran
निरजभाई
ReplyDeleteहम भी तकलीफ में मुस्कुराने लगे |
बहोत खूब लिखा है |
धन्यवाद
-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए
मौत से बदत्तर समझ कर छोड़ देना ठीक है
ReplyDeleteग़ैर के टुकड़ों पे तेरी गर पली है ज़िन्दगी
जब तलक जीना है "नीरज" मुस्कुराते ही रहो
क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी
is rftar bhari zindagi ka bahut hi sahi chitran kiya hai aapne..
Nayab rachna hai.....
Neeraj ji,
ReplyDeleteBohot dertak padhtee rahee aapka blog...kkya kahun...kuchhbhee kehna soorajko raushanee dikhane walee baat hogee...mai din b din aapkee rachnayonkee kayal hotee ja rahee hun. Aur aap jistarahse, itnee vinamrtake saath jisbhee kisee se seekha uska ullekh karte hain, ye baat badeehee achhe lagee..!
"Kab kiske man mutabiq hee chalee hai zindagee,
Raah tay kar ik nadee-see khud bahee hai zindagee"...laga jaise mere jeevanka saransh in panktiyonme aa gaya..!