काव्य संध्या का संचालन जितनी दक्षता से मित्र देव मणि पांडे ने किया था अगर उसका शतांश भी मैं कर पाया तो अपने आप को धन्य समझूंगा. घटी हुई बात को लिखना एक बात है और उसे अपने अनुसार घटित करना दूसरी. हमारी काव्य संध्या के आरम्भ में बुला रहे हैं "अनामिका साहनी जी" को.
परिचय: अनामिका साहनी, एम्.ऐ.(हिन्दी), भूतपूर्व लेक्चरार, आज कल स्वतंत्र लेखन, टेली फिल्मो की पट कथा लिखने में व्यस्त.
अनामिका जी ने अपने सधे हुए गले से गणपति जी की वंदना से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया:
"जय गणेश गण नायक दया निधि
सकल विघन कर दूर हमारे
प्रथम करे जो ध्यान तुम्हारो
उनके पूरण कारज सारे "
इतनी सुरीली शुरुआत से यकीन हो गया की कार्यक्रम सफल ही होगा. वंदना के बाद अनामिका जी ने अपनी ग़ज़लें सुनाई . श्रोता उनके इन शेरों पर मुकरर मुकरर कहते रहे...
ख्वाब जितने सुहाने लगे
वो मेरा दिल दुखाने लगे
फ़िर कोई गुल खिलेगा जरूर
जख्म फ़िर मुस्कुराने लगे
उनके दमन में पाई जगह
अपने आंसू ठिकाने लगे
परिचय: वि.के.सिंह, पेशे से इंजिनियर, अभी भूषण स्टील में असी.जनरल मेनेजर के पद पर कार्य रत, बचपन से ही साहित्य से लगाव, जब मन किया लिखते हैं और अक्सर लिख कर भूल जाते हैं.
वि.के. सिंह आशु कवि हैं...किसी परिस्तिथि विशेष में कविता इनमें जन्म लेती है ये तुंरत किसी फटे पुराने कागज पर, रुमाल पर, अखबार पर या टिशु पेपर पर उसे तुंरत लिखते हैं और फ़िर कहीं रख कर भूल जाते हैं. अपनी इस विलक्षण प्रतिभा के प्रति उदासीन व्यक्ति ने पहली बार काव्य प्रेमियों के बीच अपनी रचनाओं का पाठ किया और सभी को प्रभावित किया. आप भी देखें उनकी प्रतिभा की एक बानगी.
एक महल और उसके चारों तरफ़ मजबूत चार दीवारी
अन्दर राजा ऐश कर रहा, बाहर बिलखती प्रजा सारी
समाजवाद ऐसा भी देखा है इस देश में यारों
की आदमी ही देवता बना है आदमी ही पुजारी
2.
वाणी की टंकार सुना सुसुप्त चेतना जागृत कर दूँ
ऐसा मुझ में ओज कहाँ....मैं कवि नहीं हूँ
तम् मिटा धरा आलोकित कर दूँ
ऐसा मुझ में तेज कहाँ....मैं रवि नहीं हूँ
मेरे पथ के अनुगामी हों ये दुराग्रह ठीक नहीं
इंसान बनू ये काफ़ी है.....मैं नबी नहीं हूँ.
3.
पीछे बैठे नौजवानों को देख कर उन्होंने अपनी वो रचना सुनाई जो कभी एक बस यात्रा के दौरान किसी दूसरी सीट पर बैठी लड़की को देख कर लिख डाली थी:
स्थान रिक्त था पास यहीं, फ़िर जा बैठीं क्यूँ दूर कहीं
मन बार बार ये कहता है तुम आ जाती तो अच्छा था
मन क्या चाहे, ये क्यूँ बहके, क्यूँ ऐसी उम्मीद करे
एक तिरछी चितवन देकर ही मुस्का जाती तो अच्छा था.
परिचय: महिमा बोकाडिया, सूरत से हैं और अभी नवी मुंबई में रिलाएंस कम्पनी में कार्यरत हैं. साहित्य में गहरी रूचि है और मुंबई के मंचों से अकसर अपनी रचनाएँ सुनाती हैं.
उनके जीवन का सूत्र है
जीवन नहीं नहीं निज हाथ, मरण नहीं निज हाथ
जीवन अपने हाथ है लिखदे उज्जवल बात
ख्वाबों में आशाओं के रंग बिखरने दो
खुले नैनो में आकाश सिमटने दो
बनाली बहुत सीमायें चारों और
कल्पनाओं को उन्मुक्त उड़ान अब भरने दो
निराशा हताशा की चिता सजने दो
तन्हाईयों को मौन संगीत से भरने दो
अद्भुत सौन्दर्य दिखेगा हर तरफ़
एक बार अन्दर का गागर तो छलकने दो
तीन कवियों की गहरी भारी कविता पाठ से दबे श्रोताओं के लिए राहत की साँस लेकर आए मंच संचालक देव मणि पांडे जी. देखा पीछे बैठे युवा सर खुजला रहे हैं तो बोले की आज के युवा जो रिअलिटी शो के लिए लम्बी लाइन लगाते हैं कविता में रूचि भी लेते हैं "महिमा जी" जैसे युवा से बहुत आशाएं हैं. ये युवा लोग बात बात में रोचक कविता लिख डालते हैं... प्रेम प्रदर्शन का एक नमूना उन्होंने पेश किया. बोले एक लड़की ने एक लड़के को एस एम् एस डाला..लिखा:
क्या लेकर आया जालिम
क्या लेकर तू जाएगा
मुझको एस एम् एस ना करके
कितने पैसे बचायेगा ???
लड़के लिखा:
काश हम एस एम् एस होते
एक ही क्लिक में आपके पास होते
भले ही आप हमको डिलीट कर देते
मगर कुछ पल के लिए तो आप के पास होते
परिचय: घुमक्कड़ प्रवर्ती के श्री सत्य वीर शर्मा, सेना में रहे उसके बाद रिटायर होकर ओ एन जी सी में आफिसर बने, अब साहित्य साधना में लीन हैं.
कविता सुनाने से पहले बोले की मैं कवि नहीं हूँ इसलिए आप को एक चूं चूं का मुरब्बा टाइप कविता सुनाता हूँ...जिसका जो चाहे अर्थ आप निकल लें गहरे भी और मजाक में भी.
तुम कौन हो
तुम्हारे कौन हैं
कौन जाने?
अफसाना ऐ दिल क्यूँ हुआ
कौन माने?
आँखें कब खुलीं?
कब नजर बदले?
क़यामत भारी जवानी आई और ढल गयी
मुसाफिर तो सफर में मिल ही जाते हैं
समय आने पर वो बिछुड़ भी जाते हैं
श्रोता वास्तव में ग़मगीन हो गए. समझ नहीं पाए की क्या कहें तभी देव मणि जी ने कहा की की आप को आम पसंद है? सबने कहा हाँ...बोले कौनसा ? सबने कहा लंगडा...वो बोले मैंने मैंने एक बार एक लंगडे आम को ये कविता सुनाई...आप भी सुने
दिल हसीनो से प्यार करता है
जो कहें बस सदा वो करता है
आपके लिए खुशनसीबी है
वरना लंगडे पे कौन मरता है
तभी ठहाकों की वर्षा हुई और उदासी के बादल छट गए. देवमणि जी ने श्रोता और कवि समुदाय पर नजर डाली और कहा की अब बुलाते हैं उस कवि को जिसने अपनी मौलिक रचनाओं से पूरे भारत में एक विशेष स्थान पाया है, हिन्दी भाषा को नए आयाम दिए हैं और कविता की एक ऐसी विधा को जो मंचों पर अपना दम तोड़ चुकी है जिन्दा रखने में कामयाब रहे हैं..मैं आवाज दे रहा हूँ....
दोस्तों मिलते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद...कहीं जाईयेगा नहीं...हम आते हैं...चुटकी में... " सिर्फ़ एक सेरिडोन और सरदर्द से आराम...उसके बाद काव्य संध्या में बैठिये और मुस्कुरईये...टें ट टें...")
वाह वाह वाह !!:) शानदार रहा यह आयोजन :) अच्छी लगी सभी की रचनाये ..
ReplyDelete"very interesting post to read about this poetic ocassion, congrates to every one involved in organising and participating"
ReplyDeleteRegards
arey waah ji waah.. bahut badhiya aayojan raha..
ReplyDeleteअच्छे कवियों की अच्छी कविता पढने को मिली . बहुत धन्यवाद .
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद नीरज जी ! आपने जो रसास्वादन किया
ReplyDeleteउसको हम लोगो के साथ शेयर करने के लिए ! उत्तम दर्जे का
काव्य कम ही दिखाई देता है इस दुनिया में ! आपने आज वह
कमी भी पूरी करदी ! आपको बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं !
वाह वाह वाह। पढ़कर अच्छा लगा सभी रचनाओं को। सब कुछ ना कुछ नया सा कह रही थी। पर एक दिल को गुदगुदा गई।
ReplyDeleteस्थान रिक्त था पास यहीं, फ़िर जा बैठीं क्यूँ दूर कहीं
मन बार बार ये कहता है तुम आ जाती तो अच्छा था
मन क्या चाहे, ये क्यूँ बहके, क्यूँ ऐसी उम्मीद करे
एक तिरछी चितवन देकर ही मुस्का जाती तो अच्छा था.
यह तो आपने अद्भुत तरीके से काव्य संध्या का विवरण दिया। ब्लॉग का प्रयोग इस तरह से भी हो सकता है - हमारी ट्यूबलाइट जली। इसके साथ गीत गाने का पॉडकास्ट भी लग जाये तो पूरा कवि सम्मेलन पोस्ट में आ जाये!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नीरज जी।
अच्छा कवि सम्मेलन हुआ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया वर्णन रहा. कवियों का परिचय से लेकर मंच संचालक के मंतव्य तक, सबकुछ शानदार. हमें तो बस इस कवि सम्मलेन में कुर्ता धारण किए हुए एक मात्र कवि की रचना का इंतजार है.
ReplyDeleteकलकत्ते से कवि नहीं बुलवाते क्या?
मैंने पहली बार ब्लॉग पर इस तरह की काव्य गोष्ठी का लिखित संस्करण देखा और पाठ्य में ही श्रव्य की अनुभूति हुई। आपने इसके लिए काफी मेहनत की है। शुक्रिया।
ReplyDeleteखूब मेहनत की है नीरज जी.....नेट पर जरा हाथ रखे रखियेगा ....फ़िर न भागे.....
ReplyDeleteबहुत बढिया प्रस्तुति रही आपकी
ReplyDeleteनीरज भाई !
"काव्य सँध्या " का आनँद मिला - आभार !
- लावण्या
पहली खुराक में ही
ReplyDeleteतबीयत दुरुस्त हो गयी नीरज जी !
...लेकिन कोर्स पूरा होना चाहिए
इंतजार रहेगा.
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शुभकामनाओं सहित
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बस लगा की कवि सम्मलेन में बैठे हैं... सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteतारीफ़ है! ज्ञानजी की बात पर गौर किया जाये। पाडकास्ट!
ReplyDeletemeri or se saadar abhivaadan aapka bhi....
ReplyDeleteजारी रखें
ReplyDeleteदोनो
कविसम्मेलन भी
और रिपोर्ट भी
सेरिडोन वाला जोर का झटका ठीक समय पे दिये रहे हैं आप ऊ का कहते हैं ना कि खाओ तो ख्चिड़ी और ना खाओ तो भी खिचड़ी । हा हा हा
ReplyDeleteNeerajbhai
ReplyDeleteVery nice presentation.
Podcast ke liye koi prabandh karen!
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
भाई नीरज जी,
ReplyDeleteहम बीमार मानसिकता वाले लोगों के लिए आप जैसे कुशल बैद्य, हकीम, डाक्टर की जो पहली खुराक मिली, काफी असर कर गई, लिहाज़ा आपसे प्रार्थना है कि दूसरी खुराक शीघ्र प्रेषित करें.
चन्द्र मोहन गुप्त
aari ki sari rachnaayen man moh gayi...tasveeron ki vajah se mahoul ekdam vahi ban gaya ...bahut shukriya itni achhi post ke liye
ReplyDeleteare waah...poora kavi sammelan is post mein sama gaya. bahut sundar aayojan laga...
ReplyDeleteओह्ह!!! आनन्दम आनन्दम!! डूब गये महाराज!! किसको अच्छा कहें..सबसे एक से एक धांसू!!! वाह!! क्या प्रस्तुति है.
ReplyDeletebhaut achhi parstuti
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