आज आठ अगस्त दो हज़ार आठ ( 08-08-08 ) के विशेष दिन आप को आदरणीय प्राण शर्मा साहेब की एक कविता पढ़वाता हूँ जो उन्होंने देशवासियों के लिए लिखी है और वो चाहते हैं की हम सब इसे पढ़ कर इसमें लिखी नसीहत का अनुसरण करें:
मेरे वतन के लोगों मुखातिब मैं तुमसे हूँ
क्यूँ कर रहे हो आज तुम उल्टे तमाम काम
अपने दिलों की तख्तियों पे लिख लो ये कलाम
तुम बोवोगे बबूल तो होंगे कहाँ से आम
सोचो जरा विचारो कि तुम से ही देश है
हर गन्दगी बुहारों कि तुमसे ही देश है
तुम देश को संवारों कि तुमसे ही देश है
कहलाओगे जहान में तब तक फ़कीर तुम
बन पाओगे कभी नहीं जग में अमीर तुम
जब तक करोगे साफ़ न अपने जमीर तुम
देखो तुम्हारे जीने का कुछ ऐसा ढंग हो
अपने वतन के वास्ते सच्ची उमंग हो
मकसद तुम्हारा सिर्फ़ बुराई से जंग हो
उनसे बचो सदा कि जो भटकाते हैं तुम्हें
जो उलटी सीधी चाल से फुसलाते हैं तुम्हें
नागिन की तरह चुपके से डस जाते हैं तुम्हें
जो कौमें एक देश की आपस में लड़ती है
कुछ स्वार्थों के वास्ते नित ही झगड़ती है
वे कौमें घास फूस के मानिंद सड़ती हैं
चलने न पायें देश में नफरत की गोलियां
फिरका परस्ती की बनें हरगिज न टोलियाँ
सब शख्स बोलें प्यार की आपस में बोलियाँ
मिल कर बजें तुम्हारी यूँ हाथों की तालियाँ
जैसे कि झूमती हैं हवाओं में डालियाँ
जैसे कि लहलहाती हैं खेतों में बालियाँ
जग में गंवार कौन बना सकता है तुम्हे
बन्दर का नाच कौन नचा सकता है तुम्हे
तुम एक हो तो कौन मिटा सकता है तुम्हे
मेरे वतन के लोगों मुखातिब मैं तुमसे हूँ
"मेरे वतन के लोगों"
ReplyDeletebehatarin ........
bahut achchi kavita
जो कौम एक देश की आपस में लड़ती है
ReplyDeleteकुछ स्वार्थों के वास्ते नित ही झगड़ती है
वे कौमें घास फूस के मानिंद सड़ती हैं
बहुत खूब ....
Wah Wah
ReplyDeleteप्राण साहब को नज्म के लिये और आपको प्रस्तुति के लिये बहुत बधाई...
मिल कर बजें तुम्हारी यूँ हाथों की तालियाँ
ReplyDeleteजैसे की झूमती हैं हवाओं में डालियाँ
जैसे की लहलहाती हैं खेतों में बालियाँ
" bhut achee desh prem se bhree kaveeta, kash aapke likhe ye lines sbake dilon mey pyar aman shantee ka deepak jla sken, or inko sarthk kr sken."
ye maire vatan ke logon, jra yada kro kurbanee...............
Regards
बहुत ही सुंदर और प्रेरक गीत.
ReplyDeleteप्राण साहब की ये रचना पढ़वाने के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद.
इन नसीहतों पर अमल करने का प्रयास सबके द्वरा होना चाहिए.
देश का काया कल्प हो जायेगा.
बहुत सुंदर.
नीरज जी,
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की 61वी वर्षगाँठ आ रही है इस पर आपकी इस प्रस्तुति नें सोच को दस्तक दे दी है..
***राजीव रंजन प्रसाद
नीरज जी हमेशा की तरह बहुत ही सुन्दर रचना, कई बार पढने को मन करता हे,धन्यवाद
ReplyDeleteउनसे बचो सदा के जो भटकाते हैं तुम्हें
जो उलटी सीधी चाल से फुसलाते हैं तुम्हें
नागिन की तरह चुपके से डस जाते हैं तुम्हें
तुम एक हो तो कौन मिटा सकता है तुम्हें।
ReplyDeleteसही बात कही है आपने। काशा यह बात हम सबकी समझ में आए। आमीन।
जग में गंवार कौन बना सकता है तुम्हे
ReplyDeleteबन्दर का नाच कौन नचा सकता है तुम्हे
तुम एक हो तो कौन मिटा सकता है तुम्हे
बहुत सुन्दर और विचारोत्तेजक कविता है। पढ़वाने के लिए आभार।
रचना तो बहुत बढ़िया है ही, प्रेरक व विचार करने को बाध्य करती है. प्राण जी को व आप को बधाई.
ReplyDeleteबस टाईपिंग की कई जगह बाधा रह गयी है.
प्राण साहब का ये आह्वान बहुत ही प्रासंगिक है. बहुत सुंदर रचना है. प्राण साहब का लिखा हुआ हमेशा ही बढ़िया रहता है. इस बार भी बहुत बढ़िया है.
ReplyDeleteवाह नीरज जी बहुत ही अच्छी और देशभक्ति कविता पढवाने के लिए शुक्रिया आपने 08;08;08 और 15;08;08 दोनों ही उपलक्ष्य में बेहतरीन प्रस्तुति दी है बधाई हो
ReplyDeleteमिल कर बजें तुम्हारी यूँ हाथों की तालियाँ
ReplyDeleteजैसे की झूमती हैं हवाओं में डालियाँ
जैसे की लहलहाती हैं खेतों में बालियाँ
अजी बस वाह वाह कहने का मन है।
शुक्रिया बहुत सही बात कही है प्राण साहब ने इस कविता में।
ReplyDeleteप्राण साहब को रचना के लिये और आपको पढ़वाने के लिए आभार.
ReplyDeleteज़मीर जगाती
ReplyDeleteप्यार की बोली सिखाती
सामयिक प्रस्तुति.
नीरज जी,
८ अगस्त का ताल्लुक
भारत छोड़ो आन्दोलन से भी है.
लिहाज़ा देश के लिए अपना सब कुछ
लुटा देने वालों के त्याग का सम्मान भी
प्राण साहब के अंदाजे बयां को जीने में ही है.
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शुक्रिया
डा.चन्द्रकुमार जैन
waah...aisi kavitaayen padhkar sachmuch deshbhakti ki bhaavna bhar deti hai dil mein....dhanyvaad.
ReplyDeleteप्राण भाई तथा आप को भी बहुत आभार और शुभकामनाएँ नीरज जी
ReplyDeleteकविता देश प्रेम का जज्बा लिये आशा का पैगाम लेकर आयी है ~~
- लावण्या
देखो तुम्हारे जीने का कुछ ऐसा ढंग हो
ReplyDeleteअपने वतन के वास्ते सच्ची उमंग हो
मकसद तुम्हारा सिर्फ़ बुराई से जंग हो
respected sharma ji,
neeraj ji ke blog par apaki rachna padhkar bahut khushi hui.
kavita me itne sundar vichar lana sirf aapke hi vash ki bat hai.
har band bahut sundar hai. badhai.
is achchhi kavita ke bahane khopoli ke bhi darshan ho gaye.
nature ne is jagah ko bharpoor sundarta di hai.
--
Devmani Pandey (Poet)
A-2, Hyderabad Estate
Nepean Sea Road, Malabar Hill
Mumbai - 400 036
M : 98210-82126 / R : 022 - 2363-2727
Email : devmanipandey@gmail.com
bas sar jhuka diya hai....mera saalm...
ReplyDeleteश्री प्राण शर्मा जी की हर रचना एक पैग़ाम लिए होती है जिसे सहज भाव, सरल,स्पष्ट भाषा और कर्णप्रिय शब्दों में पढ़ कर पाठक अनायास ही कह उठता है 'वाह!'
ReplyDelete'मेरे वतन के लोगों मुख़ातिब मैं तुमसे हूँ' पढ़ते हुए ऐसा अहसास सा होता है कि शर्मा जी साक्षात हमारे सामने बातें कर रहे हैं। बहुत ही प्रभावशाली नज़्म है।
काश कि ये रचना ऑल इंडिया रेडियो और 'दूर दर्शन' पर भी प्रसारित हो तो इन फ़िरका परस्तों के कानों में भी कुछ असर हो जाए जो फ़िरका परस्ती की आड़ में देश की जड़ों को उखाड़ने में तत्पर हैं। प्राण जी को अनेक बधाईयां!
नीरज जी को प्राण जी की ऐसी प्रभावशाली रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद।
महावीर
बहुत सुंदर! आपको और प्राण शर्मा जी को हमारा प्रणाम!
ReplyDeleteप्राण जी
ReplyDeleteएक अच्छी कविता पढवाने के लिये धन्यवाद।
Tejinder Sharma
General Secretary - Katha (UK)
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Middlesex, HA3 7RW
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Pran ji
ReplyDeleteAapkee kavitaa parrhi. Barri udbodhak aur prerak hai aur aap ne desh
kee dashaa sudhaarne ke liye, barre achchhe sujhaav diye hain, lekin
mussebat yah hai, ki aaj netaa se le kar chhote-se-chhote aadmi tak
sabko apnee-apnee parree hai. Kisee ko fursat naheeN ki desh kee
chintaa bhee karey:
KyoN desh kar ke rakh diyaa jyoN gaay yaa goroo?
KyoN ho gayee bhaabhi sabhee kee gaaoN kee joroo?
KyoN swaarthoN kee lag gayee deemak swadesh ko?
SamjheN sabhee kyoN devtaa bhogee dhanesh ko?
Maalik baney haiN chor kyoN sab muftkhor ye?
Koyee savaal hal naheeN kartaa kathor ye.
Yeh hai meri pratikriyaa.
Saprem aapkaa
Gautam