कौन उस सा फकीर होता है
जो भी दिल का अमीर होता है
उस को क्या खौफ है ज़माने का
साफ जिसका ज़मीर होता है
ताना हर बात पर नहीं देते
पार दिल के ये तीर होता है
काश, कौधे नहीं कभी बिजली
फूल सा मन अधीर होता है
वैसा ही होता है मिजाज़ उस का
जिसका जैसा ज़मीर होता है
लोग पत्थर से ही नहीं होते
सबकी आंखों में नीर होता है
"प्राण" सदियाँ ही बीत जाती हैं
पैदा कब नित कबीर होता है.
(प्राण शर्मा जी की ये ग़ज़ल उनकी किताब " ग़ज़ल कहता हूँ " से साभार ली गयी है. ज़बान की सादगी और कलाम का बांकपन देखिये और उनको मुबारकबाद दीजिये)
बहुत बढ़िया गजल है..प्राण साहब की गजलें सरल होती हैं, अच्छी होती हैं और मानवीय संवेदनाओं को बखूबी बयान करती हैं.
ReplyDeleteप्राण साहब को धन्यवाद लिखने के लिए और भइया आपको धन्यवाद इसे प्रस्तुत करने के लिए.
बहुत दिनों से नदारद था.
ReplyDeleteमाफ़ी चाहता हूँ.
एक बार फ़िर प्राण साहब कि जबरदस्त और मस्त गजल पढाने के लिए धन्यवाद.
उम्मीद है माफ़ी मिल जायेगी.
लोग पत्थर से नहीं होते
ReplyDeleteसबकी आंखों में नीर होता है.
क्या बात है !
जो भी दिल का अमीर होता है
ReplyDeleteसिर्फ़ उसका ज़मीर होता है
===================
न वो भाला, न तीर होता है
आदमी हो के वो पीर होता है
===================
वह किसी नीड़ को न छेड़ेगा
जिसकी आँखों में नीर होता है
===================
प्राण सा दर्द जिसमें ज़िंदा हो
प्रेम का वह कबीर होता है .
===================
शुभकामनाएँ प्राण साहब को
दिल को छूने वाली ग़ज़ल के लिए
शुक्रिया आपका नीरज जी दिल से
चुनी गई इस सौगात की खातिर.
आपका
डा.चंद्रकुमार जैन
ताना हर बात पर नहीं देते
ReplyDeleteपार दिल के ये तीर होता है
काश, कौधे नहीं कभी बिजली
फूल सा मन अधीर होता है
नीरज जी, इतनी बेहतरीन गज़ल से परिचित कराने का आभार...
***राजीव रंजन प्रसाद
बहुत बहुत शुक्रिया नीरज जी, इतनी बढ़िया ग़ज़ल पढ़वाने के लिए. बहुत अच्छे शेर, वाह !
ReplyDelete"काश, कौधे नहीं कभी बिजली
फूल सा मन अधीर होता है"
हर शेर बहुत अच्छा है लेकिन ये शेर तो बस ... लाजवाब है.
वैसा ही होता है मिजाज़ उस का
ReplyDeleteजिसका जैसा ज़मीर होता है
bahut khuub...neeraj ji..hum tak pahunchaaney ka aabhaar...
behad sundar rachna padhwane ka shukriya!
ReplyDeleteअच्छी लगी प्राण साहब की गजल की यह प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल है. शुक्रिया.
ReplyDeleteवैसा ही होता है मिजाज़ उस का
ReplyDeleteजिसका जैसा ज़मीर होता है
सुभान अल्लाह क्या सादगी से सारी बात कह दी .......
नीरज जी मजा आ गया बढिया रचना थी प्राण जी ने कलमदंश के लिये भी रचनाएं भेजी जिन्हें हमने सादर प्रकाशित किया और अंक भेजा था इस गजल के बहाने वो याद भी ताजा हो गयी उनका नेट संपर्क भेजें
ReplyDeleteलोग पत्थर से ही नहीं होते
ReplyDeleteसबकी आंखों में नीर होता है
bahut manabhavan neeraj ji bahut abhari hun jo apne rachana sabhi ke liye prastut ki hai .dhanyawaad