(भाईपंकज जी ने इस ग़ज़ल पर कृपा दृष्टि डाल दी थी ,मैं उनके स्नेह से अभिभूत हूँ )
सीधी बातें सच्ची बातें
भूले सारी अच्छी बातें
ठंडे मन से गर कर लो तो
हो जाती सब नक्की बातें
जीवन में लज्जत ले आती
उसकी मीठी खट्टी बातें
बढ़ जाती है उसकी पीड़ा
दिल में जिसने रख्खी बातें
मत ले लेना दिल पर अपने
उसकी पक्की कच्ची बातें
हासिल क्या होता है करके
बे मतलब की रद्दी बातें
जीवन जीना सिखलाती है
माँ की लोरी,पप्पी,बातें
सीखी हमने जो पुरखों से
अब लगती हैं झक्की बातें
उलझें तो ना सुलझें नीरज
ज्यूँ धागे की लच्छी बातें
बहुत खूब...
ReplyDeleteहम सब पढने को आ जाते
आपकी सीधी-सच्ची बातें
बढ़ जाती है उसकी पीड़ा
ReplyDeleteदिल में जिसने रख्खी बातें
मत ले लेना दिल पर अपने
उसकी पक्की कच्ची बातें
hmmm
सही है जी, सम्प्रेषण खुला रहे तो सभी धागे सुलझ जाते हैं।
ReplyDeleteबहुत साफ-सही लिखा।
जरा गा कर पॉडकास्ट करिये भाई!!
ReplyDeleteबच्चा ही समझे है अपनी
ReplyDeleteमाँ की लोरी,पप्पी,बातें ---- एक साँस में पूरी रचना पढ़ गए. दो तीन दिन में हम भी अपनी माँ का यही स्नेह ममता पाने के लिए दिल्ली रवाना होगें ...
गजल गजब की है और मधुबाला की फ़ोटो भी.
ReplyDeleteखूब कही !........बधाई !
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भीड़-तंत्र में बोल रही हैं
देखो धक्का-मुक्की बातें
रोज़ नशे में झूम रहे हैं
करते सट्टा-पट्टी बातें
कर्महीन को नहीं शोभतीं
महज़ खोखली लक्की बातें
दिल के साफ़ नहीं करते हैं
कभी,कहीं भी शक्की बातें
नीरज बोलें तो पक्का है
बोल रहे वे पक्की बातें !
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शुभकामनाएँ
डा.चंद्रकुमार जैन
खूबसूरत पंक्तियां है हुज़ूर.. पढ़कर मज़ा आ गया
ReplyDeleteइसी मीटर में कुछ लिखने की गुस्ताख़ी कर रहा हूँ, निहित sarcasm को समझियेगा..
नीरज वाह क्या खूब सुना दीं
जीवन की बड़ी सी बच्ची बातें
भाई नीरज जी,
ReplyDeleteक्लास १० में मैंने पंडित बाल कृष्ण भट्ट का एक निबंध " बात" के ऊपर पढ़ा था, आज उसकी याद एक बार फिर से ताज़ा हो गई आपकी " बात " पर ग़ज़ल पढ़ कर.
जिस खूबसूरत अंदाज़ में आप महत्वपूर्ण बातें सहज ढंग से चंद शब्दों में कह गए उसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है.
मेरे निम्नलिखित विचार पर अपनी समालोचना प्रस्तुत करें :
"नासमझ के आगे बातें कहना भैंस के आगे बीन बजाने के बराबर है
और
समझदार को बातें कहना उसका अनादर करना है
फिर
बात करें तो किससे ?"
अभी के लिए इतना ही दुसाहस काफी है , बाकि फिर कभी.
आपका अनुज,
चंद्र मोहन गुप्ता " मुमुक्षु"
बढ़ जाती है उसकी पीड़ा
ReplyDeleteदिल में जिसने रख्खी बातें
मत ले लेना दिल पर अपने
उसकी पक्की कच्ची बातें
हासिल क्या होता है करके
बे मतलब की रद्दी बातें
vah neeraj ji ,aapka blog is light ki aavajahi ke karan der me khula....lekin padh kar dil prafullit ho gaya..sare sher khoob hai.....aor ye vala bahut achha laga...
सीखी हमने जो पुरखों से
अब लगती हैं झक्की बातें
जीवन जीना सिखलाती है
ReplyDeleteमाँ की लोरी,पप्पी,बातें
बधाई नीरज जी सिलसिला बना रहेगा अब तो
----योगेन्द्र मौदगिल
देर फिर हो गई - भईया जी
ReplyDelete"चश्मा भूले, भटके बाहर/ कहाँ कहाँ न ढूंढी बातें
ये मेरा ब्राउज़र है कंडम / बड़ी देर से दिक्खी बातें" [ :-)]
बढ़ जाती है उसकी पीड़ा
ReplyDeleteदिल में जिसने रख्खी बातें
मत ले लेना दिल पर अपने
उसकी पक्की कच्ची बातें
वाह बहुत बहुत अच्छी लगी यह गजल आपकी