हम फकत अटकलें लगाते हैं
किसको पूरा सा समझ पाते हैं
आम की डाल सा है दिल मेरा
आप कोयल से गीत गाते हैं
ज़िंदगी ज्यूँ गुलाब की डाली
साथ काँटों के फूल आते हैं
वक्त खुशियाँ बटोरता देखो
संग बच्चों के जब बिताते हैं
माँ ही आती जबान पर पहले
दर्द से जब भी बिलबिलाते हैं
आप खुश हैं मेरे बगैर अगर
सबसे चेहरे को क्यों छुपाते हैं
कर अमावस में चाँद की बातें
हम अंधेरों को मुंह चिढ़ाते हैं
जिनकी होती ना हसरतें पूरी
वो ही सपनो में कसमसाते हैं
हुस्न निखरे कई गुना नीरज
ओस में फूल जब नहाते हैं
"माँ ही आती जबान पर पहले
ReplyDeleteदर्द से जब भी बिलबिलाते हैं"
बहुत अच्छे. बहुत सुंदर. मुझे अभीव्यक्ति के लिए शब्द नही मिल रहे है.
गमो-खुशी के रंग मे डूब जाता हूँ मैं
गजल जब भी आप नई लाते हैं.
अब इसी तर्ज़ पे लिखा ये नए मिजाज़ का शेर जरा देखिये.
"हम तो भर-भर के देते हैं टिप्पणियां
आप पता नही क्यों इतना सकुचाते हैं."
जिनकी होती ना हसरतें पूरी
ReplyDeleteवो ही सपनो में कसमसाते हैं
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सही कह रहे हैं आप। यह कसमसाहट उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है।
वक्त खुशियाँ बटोरता देखो
ReplyDeleteसंग बच्चों के जब बिताते हैं
बहुत बढ़िया गजल है भैया...
ज्ञान जी ने सही कहा.. कसमसाहट बेचैन कर देती है.
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन गज़ल नीरज जी……्बहुत शुक्रिया ।
ReplyDeleteमाफ़ी चाहता हूँ और अपने शब्द वापस भी ले रहा हूँ. (टिपण्णी छोड़ दी है)
ReplyDeleteगलतियों को आप माफ़ कर ही दोगे ये जनता हूँ शायद
इसलिए बार-बार गुस्ताखिया गलती करने की हम दोहरातें है.
देखिये ना, हमारे पास तो प्रशंशा के सभी शब्द बार बार प्रयुक्त हो एकदम बासी पड़ गए हैं और अब लाख दिमाग लगाओ पर नया कुछ प्रशंशा के लिए नही मिलता .हम अपनी इस बेचारेपन और गरीबी पर झुंझला ही रहे थे कि अचानक ख्याल पड़ा कि शब्दों और भावों के खजाने पर तो आपने कब्जा कर रखा है तो हमारी तो ये हालत होगी ही.तो अब तो तरकीब इसकी निकलनी पड़ेगी कि कभी उस खजाने को भेद उसमे से कुछ कैसे लूटा जाए.खैर तबतक के लिए हमारे पास यह तरकीब है कि खजाने से जो रत्न निकाल आप पन्नों पर रखते हैं उन्हें ही यत्न पूर्वक सहेजा जाए और उसमे डूबा जाए तो क्या पता कुछ अमीर हम भी हो जायें.
ReplyDeleteसरल भाव ,सरल भाषा प्रवाह के साथ मनमोहक अदभुद रचना के लिए साधुवाद.
सहज,सरल और बांध लेने वाली रचना।
ReplyDeleteमाँ ही आती जबान पर पहले
ReplyDeleteदर्द से जब भी बिलबिलाते हैं
आप खुश हैं मेरे बगैर अगर
सबसे चेहरे को क्यों छुपाते हैं
बहुत बहुत सुंदर नीरज जी मज़ा आ गया... बहुत बढ़िया