Thursday, December 6, 2007

ज़िंदगी ज्यूँ गुलाब की डाली




हम फकत अटकलें लगाते हैं
किसको पूरा सा समझ पाते हैं

आम की डाल सा है दिल मेरा
आप कोयल से गीत गाते हैं

ज़िंदगी ज्यूँ गुलाब की डाली
साथ काँटों के फूल आते हैं

वक्त खुशियाँ बटोरता देखो
संग बच्चों के जब बिताते हैं

माँ ही आती जबान पर पहले
दर्द से जब भी बिलबिलाते हैं

आप खुश हैं मेरे बगैर अगर
सबसे चेहरे को क्यों छुपाते हैं

कर अमावस में चाँद की बातें
हम अंधेरों को मुंह चिढ़ाते हैं

जिनकी होती ना हसरतें पूरी
वो ही सपनो में कसमसाते हैं

हुस्न निखरे कई गुना नीरज
ओस में फूल जब नहाते हैं

9 comments:

  1. "माँ ही आती जबान पर पहले
    दर्द से जब भी बिलबिलाते हैं"
    बहुत अच्छे. बहुत सुंदर. मुझे अभीव्यक्ति के लिए शब्द नही मिल रहे है.
    गमो-खुशी के रंग मे डूब जाता हूँ मैं
    गजल जब भी आप नई लाते हैं.

    अब इसी तर्ज़ पे लिखा ये नए मिजाज़ का शेर जरा देखिये.
    "हम तो भर-भर के देते हैं टिप्पणियां
    आप पता नही क्यों इतना सकुचाते हैं."

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  2. जिनकी होती ना हसरतें पूरी
    वो ही सपनो में कसमसाते हैं
    ***********************
    सही कह रहे हैं आप। यह कसमसाहट उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है।

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  3. वक्त खुशियाँ बटोरता देखो
    संग बच्चों के जब बिताते हैं

    बहुत बढ़िया गजल है भैया...

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  4. ज्ञान जी ने सही कहा.. कसमसाहट बेचैन कर देती है.

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  5. बहुत बेहतरीन गज़ल नीरज जी……्बहुत शुक्रिया ।

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  6. माफ़ी चाहता हूँ और अपने शब्द वापस भी ले रहा हूँ. (टिपण्णी छोड़ दी है)
    गलतियों को आप माफ़ कर ही दोगे ये जनता हूँ शायद
    इसलिए बार-बार गुस्ताखिया गलती करने की हम दोहरातें है.

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  7. देखिये ना, हमारे पास तो प्रशंशा के सभी शब्द बार बार प्रयुक्त हो एकदम बासी पड़ गए हैं और अब लाख दिमाग लगाओ पर नया कुछ प्रशंशा के लिए नही मिलता .हम अपनी इस बेचारेपन और गरीबी पर झुंझला ही रहे थे कि अचानक ख्याल पड़ा कि शब्दों और भावों के खजाने पर तो आपने कब्जा कर रखा है तो हमारी तो ये हालत होगी ही.तो अब तो तरकीब इसकी निकलनी पड़ेगी कि कभी उस खजाने को भेद उसमे से कुछ कैसे लूटा जाए.खैर तबतक के लिए हमारे पास यह तरकीब है कि खजाने से जो रत्न निकाल आप पन्नों पर रखते हैं उन्हें ही यत्न पूर्वक सहेजा जाए और उसमे डूबा जाए तो क्या पता कुछ अमीर हम भी हो जायें.
    सरल भाव ,सरल भाषा प्रवाह के साथ मनमोहक अदभुद रचना के लिए साधुवाद.

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  8. सहज,सरल और बांध लेने वाली रचना।

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  9. माँ ही आती जबान पर पहले
    दर्द से जब भी बिलबिलाते हैं

    आप खुश हैं मेरे बगैर अगर
    सबसे चेहरे को क्यों छुपाते हैं
    बहुत बहुत सुंदर नीरज जी मज़ा आ गया... बहुत बढ़िया

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
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