नहीं मिलना तो भला याद भी आते क्यों हो
इस कमी का मुझे एहसास दिलाते क्यों हो
डर तुम्हे इतना भी क्या है कहो ज़माने का
रेत पे लिख के मेरा नाम मिटाते क्यों हो
दिल में चाहत है तो काँटों पे चला आएगा
आप पलकों को गलीचे सा बिछाते क्यों हो
हम पर इतने किए उपकार सदा है माना
हम को हर बार मगर आप गिनाते क्यों हो
जाने किस वक्त तुम्हे इनकी ज़रूरत होगी
आप बे वक्त ही अश्कों को गिराते क्यों हो
यारी पिंजरे से ही कर ली है जब परिंदे ने
आसमां उसको खुला आप दिखाते क्यों हो
ज़िंदगी फूस का इक ढेर है इसमें आकर
आग तुम इश्क की सरकार लगाते क्यों हो
मुझको मालूम है दुश्मन नहीं हो दोस्त मेरे
मुझसे खंजर को बिना बात छुपाते क्यों हो
इश्क मरता नहीं नीरज है पता सदियों से
फ़िर भी मीरा को ज़हर आप पिलाते क्यों हो
ज़िंदगी फूस का इक ढेर है इसमें आकर।
ReplyDeleteआग तुम इश्क की सरकार लगाते क्यों हो।।
क्या बात है नीरज भाई। सुंदर गज़ल है।
मुझको मालूम है दुश्मन नहीं हो दोस्त मेरे
ReplyDeleteमुझसे खंजर को बिना बात छुपाते क्यों हो
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लो आ गये नीरज जी! और आपसे क्या छिपायेंगे?
और हर युग में लोग मीराँ को जहर पिलाते रहेंगे पर मार न पायेंगे।
bahut khuub neeraj ji
ReplyDeleteनहीं मिलना तो भला याद भी आते क्यों हो
इस कमी का मुझे एहसास दिलाते क्यों हो
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हम पर इतने किए उपकार सदा है माना
हम को हर बार मगर आप गिनाते क्यों हो
really beautifull lines
इश्क मरता नहीं नीरज है पता सदियों से
ReplyDeleteफ़िर भी मीरा को ज़हर आप पिलाते क्यों हो
वाह आपका लिखा पढ़ना तो दिली सकून दे जाता है ..बहुत खूब नीरज जी
मीरा बन पाने का तो जाने दीजिये, बस उसको समझ भर पाने का सामर्थ्य कितने लोगों के पास हुआ करता है.और यह सामर्थ्य यदि रंचमात्र भी अपने पास आ जाए तो फ़िर जीवन मे और कुछ भी पाने को नही बच जाता.आप उन विरले भाग्यशाली लोगों मे से हैं जिन्होंने वह संवेदनशील ह्रदय पाया है.इश्वर आपकी ह्रदय भूमि को निरंतर अपने स्नेह से सिंचित कर इसे और उर्वर बनायें,यही हमारी शुभकामना है.
ReplyDeleteमुझको मालूम है दुश्मन नहीं हो दोस्त मेरे
ReplyDeleteमुझसे खंजर को बिना बात छुपाते क्यों हो
वाह, बहुत खूब नीरज जी!
इश्क मरता नहीं नीरज है पता सदियों से
ReplyDeleteफ़िर भी मीरा को ज़हर आप पिलाते क्यों हो
वाह क्या बात है ...
अद्भुत लिखा है आपने. वड्डे पापाजी, हम आपकी गजलों का इंतजार ऐसे ही नहीं करते..
ReplyDeleteक्षमा करें दो दिनों बाद कमेंट लिख रहा हूँ. कल से ब्लॉगवाणी पर फिर से मेरी ही टिप्पणियां दिखाई देंगी.
बहुत बढिया लिखा है भैया आपने..अब मेरा ये वाक्य मुझे ही बोर करता है...
ReplyDeleteदिल को छू गई रचना...
ReplyDeleteफ़िर भी मीरा को ज़हर आप पिलाते क्यों हो
अद्भुद.. बहुत खूब
....इस कमी का मुझे एहसास दिलाते क्यों हो
ReplyDeleteछा गए हुज़ूर.
किस शेर कि तारीफ़ करूं ? ख़ैर, ये तय है कि आप का क़ायल होता जा रहा हूँ. लत लग रही है सो अलग. कमाल है सर, कमाल है बस.
बहुत सुन्दर लिखा है ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
नीरज जी
ReplyDeleteआपकी यह रचना बहुत ही पसंद आई
बधाई हो आपको
अजय
दिल में चाहत है तो काँटों पे चला आएगा
ReplyDeleteआप पलकों को गलीचे सा बिछाते क्यों हो
मैंने ये शेर लिखा और अपनी ग़ज़ल को गलीचे सा बिछा दिया. देखिये न कितने चाहने वाले चले आए हैं. मैं इन सबका तहे दिल से शुक्र गुज़र हूँ. आप सब की हौसला अफ्जाही का नतीजा है की जेहन में आए ख्याल ख़ुद बा ख़ुद ग़ज़ल की शक्ल इख्तियार कर लेते हैं. ग़ज़लों में तकनिकी खराबी हो सकती है याने व्याकरण या मीटर अशुद्ध हो सकते हैं लेकिन भाव शुद्ध हैं.
नीरज
हम पर इतने किए उपकार सदा है माना
ReplyDeleteहम को हर बार मगर आप गिनाते क्यों हो... waah kya khoob likha hai
Adaerniye neeraj jee..
aaj aapki kai rachnaye padi, sabhi achi lagi par pratikriya aaj nhi kar paungi
par jaldi jarungi,
bahut sundar likhete hain aap
aur aapki pratikriya aaj aapne di thi use AneyTha lene ka koi swal hi nhi uthata mujhe to acha lagta hai jab koi meri kami batata hai.
koshish jaariye, abhi bahut sikhna baki hai
http://hemjyotsana.wordpress.com
Danyewaad