दुश्मनी नींद से हुई तब से
आग पानी फलक ज़मीन हवा
और क्या चाहिए बता रब से
वो जो शामिल था भीड़ मैं पहले
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
जो न समझे नज़र की भाषा को
उससे कहना फिजूल है लब से
शाम होते ही पीने बैठ गए
होश में भी मिला करो शब से
शुभ मुहूर्त की बात बेमानी
मन में ठानी है तो करो अब से
वो ही बदलेंगे ये जहाँ "नीरज"
माना इन्साँ नहीं जिन्हे कब से
बहुत बढ़िया, नीरज भैया....बहुत बढ़िया है आपकी नई गजल.
ReplyDeleteबहुत बढिया रचना है नीरज जी,बधाई।
ReplyDeleteवो ही बदलेंगे ये जहाँ "नीरज"
माना इन्साँ नहीं जिन्हे कब से
शाम होते ही पीने बैठ गए
ReplyDeleteहोश में भी मिला करो शब से
शुभ मुहूर्त की बात बेमानी
मन में ठानी है तो करो अब से
वो ही बदलेंगे ये जहाँ "नीरज"
माना इन्साँ नहीं जिन्हे कब से
बहुत खूब, लेकिन जरा अपनी गजल की बहर सम्भालिये, कहीं कहीं गजल बे-बहर सी हो रही है । वैसे सीधी भाषा में सरलता से व्यक्त किये भाव अतिसुन्दर जान पड रहे हैं । साधुवाद स्वीकार करें ।
शाम होते ही पीने बैठ गए
ReplyDeleteहोश में भी मिला करो शब से
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जय हो वड्डे वापाजी की. गर्दा उडा दिए हैं.
मज़ा आ गया.
पढी है पहली गजल आपकी जब से
रोज़ ही इंतज़ार रहता है आपका तब से
आग पानी फलक ज़मीन हवा
ReplyDeleteऔर क्या चाहिए बता रब से,......बहुत खूब
वाह वाह!!!बहुत बढ़िया!!!
ReplyDeleteअगर ऐसे ही बसेंगे तो जल्द ही आँख की किरकिरी हो जाँगे....
ReplyDeleteबधाई
@ बोधिसत्व - आंख की किरकिरी होंगे लिखने वालों की। हमारी तो नूर बन रहे हैं!
ReplyDeleteBahut khoob.
ReplyDeleteवो जो शामिल था भीड़ मैं पहले
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
मैं भी पड़ता हूँ रोज़ो शब उसको
ReplyDeleteचेहरा उसका किताब जैसा है
मुझे जब से मिला है तू तब से
हंस के मिलता हूँ मैं भी अब सब से.
चाँद शुक्ला हदियाबादी डेनमार्क ,
आ कर हदियाबाद से हम
हो गये हैं बरबाद से हम
मैं भी पड़ता हूँ रोज़ो शब उसको
ReplyDeleteचेहरा उसका किताब जैसा है
मुझे जब से मिला है तू तब से
हंस के मिलता हूँ मैं भी अब सब से.
चाँद शुक्ला हदियाबादी डेनमार्क ,
आ कर हदियाबाद से हम
हो गये हैं बरबाद से हम
वो जो शामिल था भीड़ मैं पहले
ReplyDeleteदिल मिला तो लगा जुदा सब से
bahut hi sundar laga yah sher!