Monday, September 24, 2007

काश बरसात बन बिखर जाये



कब अंधेरों से खौफ खाता है
वो जो तन्हाईयों में गाता है

गम तो अक्सर ये देखा है मैंने
उसका बढ़ता है जो दबाता है

जिसके हिस्से में खार आए हों
देख कर फूल सहम जाता है

कहना मुश्किल है प्यार में यारों
कौन देता है कौन पाता है

काश बरसात बन बिखर जाये
जो घटाओं सा मुझपे छाता है

आप इस को मेरी कमी कह लें
मुझको हरकोई दिल से भाता है

हर बशर को उठाके हाथों में
वक्त कठपुतलियों सा नचाता है

नींद बस में नहीं मेरे "नीरज"
जो चुराता है वो ही लाता है





6 comments:

  1. "कहना मुश्किल है प्यार में यारों
    कौन देता है कौन पाता है"

    **************
    वो जो ब्लॉग का ढांचा बनाता है
    चमचमाता ब्लॉग देख मुस्कराता है! :-)

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  2. वाह वाह
    हमरी भी सुनिये
    कौन समझाये हमरे नेता को
    खाऊ मोटे तू बहुत खाता है

    देना लेना है सब यहीं प्यारे
    कौन सब साथ लेकर जाता है

    ये दुनिया है एक्सचेंज आफर
    जो जितना दे,वो उतना पाता है

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  3. बहुत खूब!!

    जिसके हिस्से में खार आए हों,
    देख कर फूल सहम जाता है।

    बहुत सही!!

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  4. बहुत बढ़िया.

    फोन्ट कलर पढ़ने में परेशान कर रहा है. इसे लाईट कर सकें तो बेहतर.

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  5. अगर ये दिल कभी भी घबराए
    गजल पढने से बहल जाता है

    नीरज भैया,

    बहुत बढ़िया....खुश हो गए..

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  6. "आप इस को मेरी कमी कह लें
    मुझको हरकोई दिल से भाता है।"

    क्या बात है! बहुत अच्छी गज़ल . बधाई!

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे