वो ना महलों की ऊंची शान में है
जो सुकूं गांव के मकान में है
जब चढ़ा साथ तब ज़माना था
अब अकेला खडा ढलान में है
हम को बस हौसला परखना था
तू चला तीर जो कमान में है
लूटा उसने ही सारी फसलों को
हमने समझा जिसे मचान में है
बोल कर सच हुए हैं शर्मिंदा
क्या करें मर्ज़ खानदान में है
जिसको बाहर है खोजता फिरता
वो ही हीरा तेरी खदान में है
जिक्र तेरा ही हर कहीँ " नीरज"
जब तलक गुड तेरी ज़बान में है
बढ़िया!!!
ReplyDeleteआखिरकार आ ही गए आप ब्लॉगर जगत में, शुभकामनाओं के साथ स्वागत है आपका!
बहुत अच्छा लिखते हैं आप नीरज साहब, कहां छिपे बैठे थे? ब्लागवाणी पर तो आप आज पहली बार दिखे!
ReplyDeleteआपकी ज़ुबान में वकई गुड़ की मिठास तो है ही.
नीरज जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है, घहन अर्थ है इन पंक्तियों में
जब चढ़ा, साथ में ज़माना था
अब अकेला, बड़ा ढलान में है
हम को बस हौसला परखना था
तू चला तीर जो कमान में है
लूटा उसने ही सारी फसलों को
हमने समझा जिसे मचान में है
बोल कर सच हुए हैं शर्मिंदा
क्या करें मर्ज़ खानदान में है
बधाई
यही तो फायदा है इंटरनेट पर आने का। बहुत अच्छी रचना। यकीन मानिये अब जग आपको हाथो-हाथ लेगा। बधाई।
ReplyDeleteनीरजजी
ReplyDeleteबढि़या कहा है जी-
लूटा उसने ही सारी फसलों को
हमने समझा जिसे मचान में है
बोल कर सच हुए हैं शर्मिंदा
क्या करें मर्ज़ खानदान में है
ब्लागिंग की दुनिया में स्वागत है, पर कुछ हमरी भी सुनिये -
अच्छा हुआ कि शुरु कर दी आपने ब्लागिंग
समझिये कि अब कदरदानों की खदान में हैं
पर ये भी समझ लीजै ब्लागिंग के माने
बोले तो हर समय जान अपलोडिंग लदान में है
पहले मैं आपकी सरल शब्दों की बहुत ही प्यारी कविता/गज़ल पर टिप्पणी करने वाला था. पर तबतक यह पुराणिक जी डराते दीख गये. आप हास्य-व्यंगकार को ज्यादा सीरियसली न लीजियेगा!
ReplyDeleteये खुद ही कहते हैं कि अपने आप को सीरियसली नहीं लेते. :)
मैं "दर्द हिदुस्तानी" से इत्तेफाक-राय रखता हूं.
आप आए तो सज गई महफ़िल
ReplyDeleteपाँव मेरे अब आसमान में हैं
सोचकर खुश हुआ मैं जाता हूँ
कुछ असर मेरी भी जुबान में है
नीरज भैया,
बहुत खुशी हुई आपका ब्लॉग देखकर. आपकी रचनायें पढते हुए दिन गुजरेगा अब. शुक्रिया मेरी बात रखकर अपनी गजलें प्रस्तुत करने के लिए.
शिव
बहुत सहज, सरल और गहरी महफिल सजाई है, जनाब.
ReplyDeleteतभी तो हम ज्ञान जी की बताये रास्ते पर आँख बंद किये चले आते हैं. देखिये, क्या सही जगह भेजा है. एकाध बार शायद हमारा रास्ता भी वो लोगों को बतायें. :)
स्वागत है, जारी रहें.
बधाई इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए !
ReplyDeleteहिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है नीरज जी। उम्मीद है नियमित लेखन जारी रहेगा।
ReplyDeleteनीरज गोस्वामी के नाम मेरा यह कलाम
ReplyDeleteकिसी का चाँद सा चेहरा मेरे धयान में है
के जिसके जिस्म की खुशबु मेरे मकान में है
मैं जिसकी याद में खोया हुआ सा रहता हूँ
उसी का नाम ही हर दम मेरी ज़ुबान में है
में जिसकी याद में ख़ुद को भुलाये बैठा हूँ
उसी का ज़िक्र ही अब मेरी दास्तान में है
जो बात गीता में अन्जील और कुरान में है
उसी तरह की सदाकत तेरी मुस्कान में है
चाँद शुक्ला हदियाबादी डेनमार्क
तेरे आने से " चाँद " लगता है
ReplyDeleteअब मेरा ब्लॉग भी उठान मैं है
"जब चढ़ा साथ तब ज़माना था
ReplyDeleteअब अकेला खडा ढलान में है
बोल कर सच हुए हैं शर्मिंदा
क्या करें मर्ज़ खानदान में है।"
इस आभासी दुनिया में आपका स्वागत है . इन बेहतरीन गज़लों से आप जल्दी ही अनेक पाठक-मित्र पाएंगे .
जिसको बाहर है खोजता फिरता
ReplyDeleteवो ही हीरा तेरी खदान में है
बिलकुल सही बात कही है सर इन पंक्तियों में.
सादर
वो ना महलों की ऊंची शान में है
ReplyDeleteजो सुकूं गांव के मकान में है
जब चढ़ा साथ तब ज़माना था
अब अकेला खडा ढलान में है
जिंदगी की हकीकत को खूबसूरती से ग़ज़ल में ढाला है.
बेहद सुकून देने वाली
ReplyDeleteमनोहारी, भोली-सी रचना।
बधाई नीरज भाई.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन