Monday, July 22, 2024

किताब मिली - शुक्रिया - 10


तुम्हीं ने बनाया तुम्हीं ने मिटाया
मैं जो कुछ भी हूं बस इसी दरमियां हूं
*
उंगली तो उठाना है आसां
पर कौन यहां कब कामिल है
कामिल: पूर्ण, पूरा
*
गुमराह हो गया तू भटक कर इधर-उधर
इक राह ए इश्क़ भी है कभी इख़्तियार कर
*
ऐ शेख! सब्र कर तू नसीहत न कर अभी
आता हूं मैकदे से जरा इंतज़ार कर
*
जब से तुम हमराह हुए हो 
साथ हमारे खुद ही मंज़िल

सबसे पहले रुबरु होते हैं हमारे आज के शाइर जनाब *आनन्द पाठक'आनन* साहब के इन विचारों से जिन्हें उन्होंने अपनी ग़ज़लों की किताब *मौसम बदलेगा* के फ्लैप पर प्रकाशित किया है :-

प्रकृति का यही नियम है और यही जीवन दर्शन भी कि मौसम एक सा नहीं रहता। वक्त भी एक सा नहीं रहता।
पतझड़ है तो बहार भी, उम्र भर किसी का इंतज़ार भी, मिलन के लिए बेकरार भी। जीवन में सुख-दुख आशा-निराशा विरह-मिलन का होना, नई आशाओं के साथ सुबह का होना, शाम का ढलना, एक सामान्य क्रम और एक शाश्वत प्रक्रिया है, फिर विचार करना कि जीवन में क्या खोया क्या पाया। दिन भर की भाग दौड़ का क्या हासिल रहा और यही सब हिसाब किताब करते-करते एक दिन आदमी सो जाता है। यही जीवन का क्रम है यही शाश्वत नियम है। बहुत सी बातों पर हमारा आपका अधिकार नहीं होता। सब नियति का खेल है। कोई एक अदृश्य शक्ति है जो हम सबको संचालित करती है।

सुख का मौसम दुख का मौसम, आंधी पानी का हो मौसम
मौसम का आना-जाना है, मौसम है मौसम बदलेगा

दांव पर दांव चलती रही ज़िंदगी
शर्त हारे कभी हम, कभी ज़िंदगी
*
मिलेगी जब कभी फुर्सत तुम्हें रोटी भी दे देंगे
अभी मसरूफ़ हूं तुमको नए सपने दिखाने में
*
'आनन' तू खुशनसीब है दस्तार सर पे है 
वरना तो लोग बेच कमाई में आ गए
*
पूछ लेना जमीर ओ ग़ैरत से 
पांव पर जब किसी के सर रखना
*
आप जो मिल गए मुझको
आप से और क्या मॉंगू

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में 31 जुलाई 1955 को जन्मे आनंद पाठक ने सिविल इंजीनियरिंग क्षेत्र में देश के सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरिंग कॉलेजों में से एक आई.आई.टी. रुड़की से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 

सन 1978 में ऑल इंडिया इंजीनियरिंग सर्विस में चयनित होने के बाद बिहार, बंगाल, असम, झारखंड, गुजरात एवं राजस्थान राज्यों में योगदान दिया और अंततः जयपुर से मुख्य अभियंता (सिविल) भारत संचार निगम लिमिटेड के पद से रिटायर हुए। 

सिविल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में दक्षता के साथ-साथ उनकी अभिरुचि कविता, गीत, ग़ज़ल, माहिया, व्यंग, अरूज तथा अन्य विविध लेखन में भी रही। एक ही व्यक्ति में इतने गुण होना साधारण बात नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं कि वो विलक्षण प्रतिभा वान हैं। सबसे बड़ी बात तो ये है कि इतनी उपलब्धियां प्राप्त करने के बाद भी वो बेहद सरल सहज सच्चे इंसान हैं। उनसे बात करके आपको लगेगा जैसे आप अपने किसी परिवार जन से ही बात कर रहे हैं। उनका ये गुण उन्हें सबसे अलग करता है। 

इश्क़ भी क्या अजब शै है 
रोज़ लगता नया क्यों है
*
ज़ाहिरी तौर पर हों भले हमसुखन 
आदमी आदमी से डरा उम्र भर 
हमसुखन: आपस में बात करने वाला
*
जादूगरी थी उसकी दलाइल भी बाकमाल
उसके फ़रेब को भी ज़हानत समझ लिया 
दलाइल: दलीलें, ज़हानत: प्रतिभा
*
जब सामने खड़ा था भूखा गरीब कोई 
फिर ढूंढता है किसको दैर ओ हरम में जाकर
*
जहां सर झुक गया आनन वहीं काबा वहीं काशी 
वो चलकर खुद ही आएंगे, बड़ी ताकत मुहब्बत में

*आनन्द पाठक* जी का गीत- ग़ज़ल संग्रह, *मौसम बदलेगा* जिसमें उनकी 99 ग़ज़लें और 9 गीत हैं सन 2022 में 'अयन प्रकाशन' नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ था। इससे पूर्व आनंद पाठक जी की 9 किताबें मंजर ए आम पर आ चुकी हैं जिन में चार 'व्यंग्य संग्रह' तीन 'गीत-ग़ज़ल संग्रह एक गीति काव्य संग्रह और एक माहिया संग्रह है। इससे पता चलता है कि उनके लेखन का कैनवास कितना विशाल है।

यूं तो मैं उनकी प्रतिभा का कायल उनके ब्लॉग लेखन के दौर से ही रहा हूं ।सन 2018 के विश्व पुस्तक मेले में उनसे पहली मुलाकात हुई जब उन्होंने रोष जताते हुए कहा था कि क्या भाईसाहब जयपुर रहते हुए भी नहीं मिलते हो।जयपुर में उनसे जब जब बात हुई तो ठहाकों से शुरू हो कर ठहाकों पर ही रुकी। उनके बार बार "घर पर आइए" के निमंत्रण को मूर्त रूप देने से पहले ही वो रिटायरमेंट के बाद जयपुर छोड़ कर गुरुग्राम बस गये। देखिए अब कब उनसे मुलाक़ात होती है। खैर!! हमारा उनसे दुबारा मिलना तो जरूर होगा , लेकिन हां आप चाहें तो उनसे उनके मोबाइल नं 8800927181 पर फोन कर उन्हें बधाई दे सकते हैं।


1 comment:

तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे