अच्छा !!!आपने क्या समझा की "किताबों की दुनिया " श्रृंखला को विराम दे दिया तो आपको मुझसे छुट्टी मिल गयी? -वाह जी वाह -ऐसे कैसे ? कितने भोले हो आप ? लीजिये एक ग़ज़ल झेलिये - न न लाइक करने या कमेंट की ज़हमत मत उठायें -पढ़ लें ,यही बहुत है।
मुझको कोई अलम नहीं होता
जो तुम्हारा करम नहीं होता
अलम =दुःख, दर्द
ज़िस्म तक ही अगर रहे महदूद
तो सितम फिर सितम नहीं होता
महदूद=सीमित
तू नहीं याद भी नहीं तेरी
हादसा क्या ये कम नहीं होता
उसकी आँखों में झांक कर सोचा
क्या यही तो इरम नहीं होता
इरम =स्वर्ग
मेरी चाहत पे हो मुहर तेरी
प्यार में ये नियम नहीं होता
कहकहों को तरसने लगता हूँ
जब मेरे साथ ग़म नहीं होता
इश्क 'नीरज' वो रक़्स है जिसमें
पाँव उठने पे थम नहीं होता
वाहहह
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteग़ज़ब,,खतर,,बड़े भाई
ReplyDeleteShukriya Avenindra Ji
Deleteबहुत ही सुन्दर ! वाह नीरज जी !
ReplyDeleteShukriya Sadhna Ji
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-12-2018) को "गिरोहबाज गिरोहबाजी" (चर्चा अंक-3175) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लाजवाब ग़ज़ल और बहुत खूब क़वाफी
ReplyDelete"क्या यही तो इरम नहीं होता"
यह शेर् दिल ले गया
"जब मेरे साथ ग़म नहीं होता"
यह भी
सादर
Thanks a lot Nakul
DeleteBahut Shukriya Om Ji
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteडाली मोगरे की के बाद आज आपकी ग़ज़ल पढ़ी वो भी आपके ब्लॉग
ReplyDeleteबेहतरीन गजल
पूरी ग़ज़ल ही बेहतरीन है पर मुझे जो पसंद आया
कहकहों को तरसने लगता हूँ
जब मेरे साथ ग़म नहीं होता
जिस्म पे गर सितम हो तो वो सितम नहीं कहलाता है; सितम तो तब है जब इस दिल पे कोई जख्म हो
ज़िस्म तक ही अगर रहे महदूद
तो सितम फिर सितम नहीं होता
क्या करम है मेहरबानी है
मुझको कोई अलम नहीं होता
जो तुम्हारा करम नहीं होता
बहुत ही गज़ब लिखते है आप
बहुत बहुत शुक्रिया इस बेहतरीन गजल के लिए
Bahut shukriya Amit Bhai...Aap ke lafzon se likhne ka hausla paida hota hai...
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह
ReplyDeleteलाजवाब है..
ReplyDeleteनीरज भाई बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया आते ही मन खुश हो गया यह पढ़कर
ज़िस्म तक ही अगर रहे महदूद
तो सितम फिर सितम नहीं होता
बहुत खूब जनाब
Shukriya bhai 🙏🙏🙏
Deleteबहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteWaah ..Kya baat hai ☺️
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteplease mujhe follow kare https://www.fever.ooo/2018/11/how-to-make-backlinks.html?m=1
ReplyDeletewww.fever.ooo
ReplyDeleteJhakasss क्या खूब जवाब नहीं आपका
ReplyDeleteWah
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ReplyDeletebahot hi behtareen jankari haiभारतगैसमोबाइलनंबरचेंज
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ReplyDeleteये गजल और तस्वीर बहुत कुछ कह देती है
ReplyDeleteवाह
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