Monday, May 29, 2017

किताबों की दुनिया - 128/1

ये मत भूलो कि ये लम्हात हमको 
बिछुड़ने के लिए मिलवा रहे हैं 

तुम्हें चाहेंगे जब छिन जाओगी तुम 
अभी हम तुमको अरज़ाँ पा रहे हैं 
अरज़ाँ =सस्ता 

दलीलों से उसे क़ायल किया था 
दलीलें दे के अब पछता रहे हैं 

अजब कुछ रब्त है तुमसे कि तुमको 
हम अपना जानकर ठुकरा रहे हैं 
रब्त =सम्बन्ध 

मकबूलियत याने प्रसिद्धि भी अजीब शै है किसी को बिना कुछ किये मिल जाती है तो किसी को ता-उम्र खटने पर भी नहीं हासिल होती और किसी बदनसीब को मरने के सालों बाद इतनी मिलती है कि पूछो मत। अगर मैं इन सब के उदाहरण देने बैठूं तो सुबह से शाम हो जाएगी लेकिन मेरी फेहरिश्त मुकम्मल नहीं होगी।
हमारे आज के शायर अलग ही श्रेणी में आते हैं जिन्हें प्रसिद्धि उनके जीते जी मिली जरूर लेकिन इतनी नहीं जितनी कि दुनिया ऐ फ़ानी से रुख़सत होने के बाद।

अब तो तुम शहर के आदाब समझलो जानी 
जो मिला ही नहीं करते वो मिला करते हैं 

मैं, जो कुछ भी नहीं करता हूँ , ये है मेरा सवाल 
और सब लोग जो करते हैं वो क्या करते हैं 

अब ये हालते-अहवाल कि इक याद से हम 
शाम होती है तो बस रूठ लिया करते हैं 
हालते-अहवाल =स्थिति-परिस्थिति 

वो लोग जो सोशल मीडिया से जुड़े हैं अब तक बखूबी जान गए होंगे कि मैं किस शायर की बात कर रहा हूँ। दरअसल इस शायर का नाम एक दशक पहले तक हिंदी बेल्ट के लोगों ने बहुत कम सुन रखा था और अब आलम ये है कि इनकी ग़ज़लें, शेर और नज़्में ट्वीटर से फेसबुक से लेकर हर उस माध्यम पे छाई हुई हैं जो लोगों को आपस में जोड़े हुए है।

कौन से शौक़,किस हवस का नहीं 
दिल मेरी जान तेरे बस का नहीं 

मुझको ख़ुद से जुदा न होने दो 
बात ये है मैं अपने बस का नहीं 

क्या लड़ाई भला कि हममें से 
कोई भी सैकड़ों बरस का नहीं 

 " जॉन ईलिया " नाम है हमारे आज के शायर का जो खुद सैंकड़ों बरस तो नहीं जिए लेकिन जिनकी शायरी सैंकड़ों क्या हज़ारों साल तक ज़िंदा रहेगी, जिनकी हाल ही में तीन किताबें हिंदी लिपि में प्रकाशित हुई हैं। लगे हाथ आपको बताता चलूँ कि जॉन साहब की महज़ एक किताब " शायद " उनके जीते जी प्रकाशित हुई थी बाद में जनाब 'ख़ालिद अहमद अंसारी' ने उनकी शायरी को "यानी" (2003), "गुमान"(2004 ), "लेकिन"(2006) और "गोया" ( 2008 ) शीर्षक से संकलित कर प्रकाशित करवाया। ये सभी किताबें उर्दू में थीं ,भला हो ऐनीबुक पब्लिकेशन के पराग अग्रवाल और उनकी पूरी टीम का जिन्होंने अपनी अथक मेहनत से हम हिंदी पढ़ने बोलने वालों के लिए "गुमान" और "लेकिन" को हिंदी लिपि में प्रकाशित करवाया है।




क्या हमारा नहीं रहा सावन 
जुल्फ़ याँ भी कोई घटा भेजो 

हम न जीते हैं और न मरते हैं 
दर्द भेजो न तुम दवा भेजो 

कुछ तो रिश्ता है तुमसे कमबख़्तो 
कुछ नहीं, कोई बद्दुआ भेजो 

दरअसल जॉन साहब की शायरी का पूरा लुत्फ़ आपतक पहुँचाने के लिए मैंने सोचा है कि आपको उनकी हिंदी में शाया हुई तीनो किताबों में से कुछ शेर पढवाये जाएँ। ऊपर अब तक के पढ़े सारे शेर उनकी किताब "गुमान" से लिए गए हैं और आगे दिए सभी शेर भी 'गुमान" से ही हैं। उनकी बाकि दो किताबों की चर्चा हम अगली पोस्ट में जल्द ही करेंगे।

चुने हुए हैं लबों पर तेरे हज़ार जवाब 
शिकायतों का मज़ा भी नहीं रहा अब तो 

यक़ीन कर जो तेरी आरज़ू में था पहले 
वो लुत्फ़ तेरे सिवा भी नहीं रहा अब तो 

वो सुख वहाँ कि ख़ुदा की हैं बख़्शिशें क्या-क्या 
यहाँ ये दुःख कि ख़ुदा भी नहीं रहा अब तो 

जॉन साहब के बारे में जो खास जानकारी हमें नेट से मिलती है वो कुछ इस तरह की है " जॉन एलिया प्रसिद्द पत्रकार रईस अमरोही और पत्रकार और विश्व प्रसिद्द दार्शनिक सय्यद मुहम्मद तकी के भाई एवं प्रसिद्द कॉलम लिखने वाली जाहिदा हिना के पति थे| आपको कई भाषाए आती थी इनेम उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, हिब्रू, और पर्सियन शामिल थी | आपका जन्म 14 दिसंबर 1931 को उत्तरप्रदेश के अमरोहा में हुआ और मृत्यु 8 नवम्बर 2002 को कराची सिंध पाकिस्तान में | आप अपने भाइयो में सबसे छोटे थे | आपके पिता अल्लामा शफीक हसन एलिया कला और साहित्य के क्षेत्र में काफी कार्य करते थे और वह एक शायर और ज्योतिष (Astrologer) भी थे | उन्ही सब के चलते आपने ८ वर्ष की उम्र में ही अपना पहला शेर लिखा |"

दिल की तक्लीफ़ कम नहीं करते 
अब कोई शिकवा हम नहीं करते 

जाने-जां तुझको अब तेरी खातिर 
याद हम कोई दम नहीं करते 

वो भी पढता नहीं है अब दिल से 
हम भी नाले को नम नहीं करते 

जुर्म में हम नमी करें भी तो क्यों 
तुम सज़ा भी तो कम नहीं करते 

जॉन साहब पर प्रसिद्ध ब्लॉगर "सौरव कुमार सिन्हा " ने लिखा है कि " सोशल मीडिया पर जॉन एलिया सरीखी लोकप्रियता उर्दू और हिंदी अदब के किसी नाम ने अब तक हासिल नहीं की है. यहां पर एक बड़ा तबका ऐसा भी है जिसने जॉन एलिया का नाम भी नहीं सुना होगा लेकिन जाने-अनजाने उन्हें पढ़ा जरूर है. सैकड़ों फेसबुक पेज, हजारों स्टेटस अपडेट, यहां तक कि एसएमएस वाली शायरी में भी जॉन एलिया की दो लाइनों के सहारे जाने कितने इश्क आगे बढ़ते हैं उनकी छवि एक मनमौजी, सिरफिरे और शराबी शायर की रही है. सोशल मीडिया पर एक विशेष तबका जो खुद को क्रांतिकारी दिखाना चाहता है या वह जमात जो नए लिक्खाड़ों की है, उन्हें एलिया का यह रूप बहुत आकर्षित करता है!

कभी कभी तो बहुत याद आने लगते हो 
कि रूठते हो कभी याद आने लगते हो 

ये बात 'जौन' तुम्हारी मज़ाक है कि नहीं 
कि जो भी हो उसे तुम आज़माने लगते हो 

तुम्हारी शायरी क्या है भला, भला क्या है 
तुम अपने दिल की उदासी को गाने लगते हो 

जॉन साहब की शायरी की किताब "गुमान" ऐनीबुक पब्लिकेशन ने बहुत लम्बे इंतज़ार के बाद पाठकों के हाथों में पहुंचाई। किताब हाथ में लेते ही सारे गिले शिकवे दूर हो गए , पेपर बैक में छपी ये किताब पढ़ते वक्त एहसास होता है कि इसका हिंदी लिप्यांतर करते वक्त कितनी परेशानियां आयी होंगीं। मुश्किल उर्दू लफ़्ज़ों का सटीक अर्थ हिंदी में दिया गया है इसके लिए शायर इरशाद खान सिकंदर और खुद पराग बधाई के पात्र हैं। उर्दू शायरी की समझ और दीवाने हुए बिना किसी भी अनुवादक और प्रकाशक के लिए ये काम कतई आसान नहीं है।

ये है तामीर-दुनिया का ज़माना 
हवेली दिल की ढाई जा रही है 

कहाँ का दीन, कैसा दीन, क्या दीन 
ये क्या गड़बड़ मचाई जा रही है 

मुझे अब होश आता जा रहा है 
खुदा ! तेरी ख़ुदायी जा रही है 

नहीं मालूम क्या साज़िश है दिल की 
कि ख़ुद ही मात खायी जा रही है 

इस किताब की प्राप्ति के लिए आप ऐनी बुक, कॉटेज 45 प्रथम तल ,शिप्रा सन सिटी ,इंद्रापुरम गाज़ियाबाद को पत्र लिखें या contactanybook@gmail.com पर मेल करें या फिर पराग अग्रवाल जी से उनके मोबाईल नंबर 99716 98930 पर संपर्क करें कहने का मतलब कि इस किताब को येन-केन-प्रकारेण प्राप्त करें और फिर इत्मीनान से अधलेटे हो कर पढ़ें। जॉन साहब और उनकी शायरी पर बातें अभी चलती रहेंगी ,अभी तो आप उनके ये शेर पढ़ें , मैं चलता हूँ उनकी दूसरी किताबें लाने ।

मुझको ख्वाहिश ही ढूंढने की न थी 
मुझमें खोया रहा ख़ुदा मेरा 

जब तुझे मेरी चाह थी जानां 
बस वही वक्त था कड़ा मेरा 

कोई मुझ तक पहुँच नहीं पाता 
इतना आसान है पता मेरा

17 comments:

  1. अलग मिज़ाज़ के शायर थे जॉन एलिया साहब...बेहतरीन, बेशक़ीमती अशआर पढ़ने को मिले, शुक्रिया

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-05-2017) को
    "मानहानि कि अपमान में इजाफा" (चर्चा अंक-2636)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  3. Received on Fb:-


    Alok Chaturvedi

    JAIPUR

    ये बहुत अच्छा किया जी, बधाई

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  4. Received on Fb:-

    Himkar Shyam

    किताबों की दुनिया पुनः शुरू करने के लिए बधाई संग आभार।

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  5. Received on Fb:-

    Shailesh Jain

    नई शुरुआत के लिए हार्दिक शुभकामनाएं

    LALITPUR
    UP

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  6. Received on Fb:-

    आरती आलोक वर्मा

    बहुत बहुत सुंदर पोस्ट

    SIWAN- BIHAR

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  7. Received on Fb:-

    Satyaprakash Sharma

    Aap ek badi si badhai ke musthaq hain!

    LUCKNOW

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  8. Received on Fb:-

    सुरेश गोस्वामी 'सुरेशजी'

    वाह नीरज जी, सुंदर पोस्ट। नेक कार्य के लिए बधाई।

    JAIPUR

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  9. Received on Fb:-

    Nilesh Mishra

    Mai to unko nahi janta tha magar aapne Kohinoor se dhool hatakar uas chhipi hue jyoto KO navjiban diya hai, adhbut...


    KHOPOLI
    MAHARASHTRA


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  10. Received on Fb:-

    Pankaj Pandey

    बहुत बहुत बधाई और शुक्रिया सर जी

    LUCKNOW

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  11. Received on Fb:-

    Rajendra Tiwari

    bhai is post ke liye vishesh badhai, mere liye ek ahsan jaisi post

    LUCKNOW

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  12. Received on Fb:-

    Bhoopendra Singh

    स्वागत आदरणीय बन्धु का किताबो की दुनिया मे वापसी पर।

    REWA
    MP

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  13. Received on Fb:-

    Ashok Mizaj Badr

    Very Good Post

    GWALIOR

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  14. Received on Fb:-

    Anil Saxena Annee

    आभार और बधाई

    JAIPUR

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  15. Received on Fb:-

    Navin C. Chaturvedi

    भाई आप अदब के चाहने वाले हैं

    MUMBAI

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  16. Received on Fb:-


    Irshad Khan Sikandar

    बहुत शुक्रिया और वापसी का स्वागत

    DELHI

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  17. आज फिर यू ही घूमता फिरता आपके ब्लॉग पे चला आया नीरज जी, फिर जो देखा उसे देख कर मन खुश हो गया, बहुत बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग फिर से चलते हुए देख कर और उस पे भी ऐसे शायर की बात जो मिजाज़ से फक्कड़ हो पर जुबाँ से अमीर

    आपकी भेजी हुई किताबे मिली, और मिलते ही मन में पढने की धुन सवार हो गयी; आपकी गज़ले पढ़ी एक से बढ़ कर, किताब की पहली ही ग़ज़ल का मतला इतना शानदार की उसे कई बार पढ़ा, कई बार गुनगुनाया

    समझेगा दीवाना क्या
    बस्ती क्या विराना क्या

    और मक्ते ने जिन्दगी का सार ही सामने रख दिया

    'नीरज'सुलझाना सीखो
    मुद्दों को उलझाना क्या

    काश हम सब ये सीख पाते, तो इस दुनिया के हालात ही कुछ अलग होते; छोटी बहर की ये ग़ज़ल पढ़ कर मैं इस ग़ज़ल पे ही अटक कर रहा गया

    ऐसी ही ना जाने कितनी गजले जो जिन्दगी की सच्चाई से रूबरू कराती है


    आपका बहुत बहुत धन्यवाद

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे