Monday, February 15, 2016

किताबों की दुनिया - 118

वहाँ हैं त्याग की बातें, इधर हैं मोक्ष के चर्चे 
ये दुनिया धन की दीवानी इधर भी है उधर भी है 

हुई आबाद गलियाँ, हट गया कर्फ्यू , मिली राहत 
मगर कुछ कुछ पशेमानी इधर भी है उधर भी है 

हमारे और उनके बीच यूँ तो सब अलग सा है 
मगर इक रात की रानी इधर भी है उधर भी है 

किताबों की दुनिया श्रृंखला के हमारे आज के शायर "ज्ञान प्रकाश विवेक" हिन्दी के उन चंद शायरों में शुमार किए जाते हैं जिनमें उर्दू शायरी की रवानी भी है और हिन्दी कविता की सामाजिकता पक्षधरता भी। ,हम आज उनकी किताब "गुफ्तगू अवाम से है " का जिक्र करेंगे। पाठकों को ये भी बता दूँ कि ज्ञान जी ग़ज़ल विधा में ही श्रेष्ठ नहीं हैं वरन उनकी कलम कहानी और साहित्य के अन्य क्षेत्रों में भी अपना लोहा मनवा चुकी है।


हरेक शख्स मेरा दोस्त है यहाँ लोगो 
मैं सोचता हूँ कि खोलूं दुकान किसके लिए 

ग़रीब लोग इसे ओढ़ते-बिछाते हैं 
तू ये न पूछ कि है आसमान किसके लिए 

बड़ी सरलता से पूछा है एक बच्चे ने 
अगर ये शहर है , तो फिर मचान किसके लिए 

 एक जमाने में जब कमलेश्वर लिंक ग्रुप की पत्रिका “गंगा” का संपादन कर रहे थे तो उन्होंने पत्रिका के संपादकीय में ज्ञान प्रकाश विवेक की ग़ज़लें उसी तरह प्रकाशित की थीं जिस तरह से सारिका पत्रिका के दौर में उन्होंने संपादकीय में दुष्यंत कुमार की ग़ज़लें छापी थीं। उस दौर में गंगा पढ़नेवालों की स्मृतियों में ज्ञान प्रकाश जी के ऐसे शेर बचे होंगे :-

मैं कहता हूँ मेरा कुछ अपराध नहीं है 
मुंसिफ कहता है जुर्माना लगा रहेगा 

लाठी, डामर, चमरोधा, बीड़ी का बण्डल 
साथ ग़रीबी का नज़राना लगा रहेगा 

बहुत जरूरी है थोड़ी सी खुद्दारी भी 
भेड़ बना तो फिर मिमियाना लगा रहेगा 

30 जनवरी 1949 को बहादुरगढ़, हरियाणा में जन्में ज्ञान जी का नाम हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत कुमार के साथ लिया जाता है। उनके ग़ज़ल संग्रह "धूप के हस्ताक्षर" , "आँखों में आसमान" और "इस मुश्किल वक्त में " प्रकाशित हो कर धूम मचा चुके हैं. "गुफ्तगू अवाम से है " ग़ज़ल संग्रह सन 2008 में वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ था और अब तक याने सात आठ साल बाद भी उतना ही लोकप्रिय है। संग्रह पढ़ते हुए इसकी इतनी बड़ी लोकप्रियता का अंदाज़ा अपने आप लगने लगता है। संग्रह की सभी 66 ग़ज़लें पाठकों को आप बीती सी लगती हैं। सुगम सरल भाषा की ये ग़ज़लें पढ़ते सीधे पाठक के दिल में उत्तर जाती हैं और येही शायर की सबसे बड़ी कामयाबी है। 

पहाड़ों पर चढ़े तो हाँफना था लाज़मी लेकिन 
उतरते वक्त भी देखीं कई दुश्वारियां हमने 

किसी खाने में दुःख रक्खा , किसी में याद की गठरी 
अकेले घर में बनवायीं कई अलमारियां हमने 

सजाया मेमना, चाकू तराशा, ढोल बजवाये 
बलि के वास्ते निपटा लीं सब तैयारियां हमने 

लुधियाना के प्रसिद्ध शायर मुफ़लिस साहब ज्ञान जी के लिए क्या खूब फरमाते हैं जनाब " ज्ञान प्रकाश 'विवेक' “जी की ग़ज़लें पढ़ना हमेशा ही अपने आप में एक अनुभव रहता है आसान और सादा अल्फाज़ में भी संजीदा खयालात के इज़हार में महारत रखने वाले अदब और सकाफत को एक ख़ास मुक़ाम पर पहुंचाने वाले इस अज़ीम शाइर 'विवेक' जी न सिर्फ चर्चित बल्कि एक स्थापित साहित्यकार हैं बल्कि ग़ज़लियात की दुनिया में एक पुख्ता दस्तखत के तौर पर भी तस्लीम किये जाते हैं।

बस और कुछ न किया मैंने एक उम्र के बाद 
पिता की जेब से पैसे चुराना छोड़ दिया 

हवाएँ पूछती फिरती हैं नन्हें बच्चों से 
ये क्या हुआ कि पतंगे उड़ाना छोड़ दिया 

अगर बड़े हों मसाइल तो रंजिशें अच्छी 
ज़रा सी बात पे मिलना-मिलाना छोड़ दिया 

दस से अधिक कहानी संग्रह तीन से अधिक उपन्यास दो कविता संग्रह और एक आलोचनात्मक पुस्तक के रचयिता ज्ञान जी को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा तीन बार पुरुस्कृत किया जा चुका है इसके अलावा सन 2000 में उन्हें राजस्थान पत्रिका द्वारा सर्वश्रेष्ठ कथा सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है. दिसंबर 2014 को सहारनपुर में साहित्यिक संस्था 'समन्वय' की ओर से जीपीओ रोड पर हुए समारोह में उन्हें 25 वें सारस्वत सम्मान से सम्मानित किया गया। ज्ञान प्रकाश जी का कहना है कि हिंदी ग़ज़ल अपने दमखम अपनी हलचल और वैभव के साथ मौजूद है और हमेशा मौजूद रहेगी।

तुम्हारी प्रार्थना के शब्द हैं थके हारे 
सजा के देखिये कमरे में ख़ामुशी मेरी 

मुझे भँवर में डुबोकर सिसकने लगता है 
बहुत अजब है समंदर से दोस्ती मेरी 

खड़ा हूँ मश्क लिए मैं उजाड़ सहरा में 
किसी की प्यास बुझाना है बंदगी मेरी 

वाणी प्रकाशन, 21 -ए , दरियागंज नयी दिल्ली, से उनके फोन न 011 -23273167 पर संपर्क करके या उन्हें vaniprkashan @gmail.com पर मेल से पूछ कर इस किताब की प्राप्ति की सकती है। आप चाहें तो ज्ञान जी को उनके स्थाई पते : 1875 सेक्टर -6 , बहादुरगढ़ 124507 पर पत्र लिखें या उन्हें 09813491654 पर संपर्क करके पुस्तक प्राप्ति का आसान रास्ता पूछें मर्ज़ी आपकी है मेरी तो सिर्फ इतनी सी गुज़ारिश है कि आप इस विलक्षण प्रतिभा के धनी शायर की शायरी का लुत्फ़ लें :

ज़िंदा रहने का हुनर उसने सिखाया होगा 
जिसने आंधी में चरागों को जलाया होगा 

तू जरा देख जमूरे की फटी एड़ी को 
उसको रोटी के लिए कितना नचाया होगा 

थाप ढोलक की, डली गुड की, दिया मिटटी का 
खूब त्योंहार ग़रीबों ने मनाया होगा 

66 ग़ज़लों के बेजोड़ संग्रह से सिर्फ कुछ के शेर आप तक पहुँचाना निहायत ही मुश्किल काम है जनाब लेकिन क्या किया जाय पूरी किताब तो आप तक पहुंचे नहीं जा सकती मेरा काम तो सिर्फ खूबसूरत मंज़िल तक जाने वाले रास्ते की झलक दिखाना ही है मंज़िल तक पहुँचने के लिए चलना तो आपको ही पड़ेगा। पोस्ट की लम्बाई का बहाना बनाते हुए आपसे विदा होने से पहले ज्ञान जी की एक और ग़ज़ल के ये शेर पढ़वाते चलते हैं और बताते हैं कि कैसे ज्ञान जी का कलाम अजीब नहीं सबसे जुदा और दिलकश है : 

तेरे अश्क जलते हुए दिये,तेरी मुस्कुराहटें चाँदनी 
 मैं तुझे कभी न समझ सका, तेरी दास्तान अजीब है 

यहाँ मुद्दतों से खड़ा हूँ मैं ,यही सोचता कि कहाँ हूँ मैं 
यहाँ सबके घर में दुकान है , यहाँ हर मकान अजीब है 

नहीं मौसमों का गिला इसे, नहीं तितलियों से शिकायतें 
तेरे बंद कमरे का जाने मन, तेरा फूलदान अजीब है 

मुझे इल्म है मेरे दोस्तों मेरा तुम मज़ाक उड़ाओगे 
मैं बिना परों का परिंद हूँ कि मेरी उड़ान अजीब है

8 comments:

  1. शायर "ज्ञान प्रकाश विवेक" की किताब "गुफ्तगू अवाम से है" के बारे में सुन्दर समीक्षात्मक लेख प्रस्तुति हेतु आभार!

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  2. Vivek Ji Achchhe Ghazalkaar . Aapkaa Aabhaar Ki Aapne Unke Kaee Ashaar Padhwaaye Hain .

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  3. एक पैनी लेखनी से परिचय कराने का धन्यवाद!

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  4. बहुत जरूरी है थोड़ी सी खुद्दारी भी
    भेड़ बना तो फिर मिमियाना लगा रहेगा

    सटीक।
    हमेशा की तरह एक और हीरे की प्रस्तुति का धन्यवाद।

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  5. सार्थक व प्रशंसनीय रचना...
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  6. बहुत सुन्दर

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  7. जिस दिन से मिली मुझको, किताबों की ये दुनिया
    होती हूँ खफ़ा यदि कभी, नज़रें न मिलाए

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे