पैशन और फैशन सुनने में तुकांत शब्द हैं लेकिन दोनों में बड़ा फर्क है। पैशन आत्मा /रूह का श्रृंगार है और फैशन बदन का। बिना किसी पैशन के ज़िन्दगी कागज़ के उस खूबसूरत फूल की तरह है जिसमें खुशबू नहीं होती। "पैशन" से इंसान का मन महकता है और महके मन से किये काम की प्रशंशा हर ओर होती है. आज हम जिस शायर की किताब का जिक्र "किताबों की दुनिया ' में करने जा रहे हैं उसको शायरी का 'पैशन' इस कदर है कि वो सिर्फ शायरी में ही जीता है उसे ही ओढ़ता बिछाता है. वो उन फैशनेबल शायरों से अलग है जो व्हाट्सऐप और फेसबुक पर वाह वाही और सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए आननफानन में ग़ज़लों की झड़ी लगा देते हैं :-
हमारे आज के शायर हैं ,10 अगस्त 1979 को जन्मे ,जनाब 'बुनियाद हुसैन' जो शायरी के हलके में 'ज़हीन बीकानेरी’ नाम से जाने जाते हैं जिनकी किताब 'हुनर महकता है' का जिक्र का हम करेंगे। युवा ‘ज़हीन’ ने थोड़े से ही वक्त में शायरी में बड़ा मुकाम हासिल किया है। ये मुकाम उनके पैशन, मेहनत और जूनून का मिला जुला नतीजा है।
'ज़हीन' बीकानेरी’ जैसा की उनके तखल्लुस से ज़ाहिर है बीकानेर के जवाँ शायर हैं और बीकानेर के ही अपने उस्ताद जनाब मोहम्मद हनीफ 'शमीम' बीकानेरी साहब से उन्होंने ग़ज़ल की बारीकियां सीखीं। उनका पहला ग़ज़ल संग्रह 'एहसास के रंग ' सन 2008 में प्रकाशित हो कर चर्चित हो चुका है, दूसरा 'हुनर महकता है ' ग़ज़ल संग्रह 2013 में प्रकाशित हुआ था।
'ज़हीन' साहब की कामयाबी का राज उनकी सकारात्मक सोच और बुलंद हौसलों में छुपा हुआ है ,वो कहते भी हैं कि :ज़मीं पे हैं कदम, ख़्वाब आसमान के हैं : शिकस्ता पर हैं मगर हौसले उड़ान के हैं " ज़हीन साहब की खासियत है कि वो शायरी में डूबने के साथ साथ अपने कार मेकेनिक के कारोबार को भी बखूबी संभाले हुए हैं। बहुत कम लोग जानते हैं की उन्हें कार के इंजिन हैड को ठीक करने में महारत हासिल है। जिस तरह वो इंजिन के कलपुर्जों की जटिलता से वाकिफ हैं वैसे ही उन्हें इंसानी फितरत उसके रंजो, ग़म, खुशिया, दुःख, बेबसी, उदासी, घुटन की भी जानकारी है तभी तो वो इन ज़ज़्बात अपनी को ग़ज़लों में बखूबी पिरो पाते हैं।
'सर्जना' प्रकाशन शिवबाड़ी बीकानेर द्वारा प्रकाशित "हुनर महकता है" किताब में 'ज़हीन' साहब की करीब 90 ग़ज़लें संगृहीत हैं। किताब में दी गयी एक संक्षिप्त भूमिका में डा.मोहम्मद हुसैन जो उर्दू डिपार्टमेंट ,डूंगर कालेज में सद्र हैं, लिखते हैं कि " शायरी महज़ ज़हन की तरंग नहीं बल्कि ये एक संजीदा तख्लीक़ी अमल है। बुनियाद हुसैन 'ज़हीन' में ये संजीदगी नज़र आती है जो उनके शै'री मुस्तकबिल की तरफ इशारा करती है। "
'ज़हीन' साहब की शायरी की सबसे बड़ी खासियत है उसकी सादा बयानी। वो जो कहते हैं सुनने पढ़ने वाले के दिल में सीधा उत्तर जाता है उनकी बात समझने के लिए न तो लुगद या शब्दकोष का सहारा लेना पड़ता है और न ही अधिक दिमाग लगाना पड़ता है। वो अपनी बात घुमा फिरा कर नहीं कहते, जो जैसा है सामने रख देते हैं। मेरी नज़र में ये बात एक कामयाब शायर की निशानी है। ये ऐसा हुनर है जो बहुत साधना और काबिल उस्ताद की रहनुमाई से हासिल होता है. जन-साधारण में लोकप्रिय होने के लिए यही खासियत काम आती है। शायरी में इस्तेमाल किये बड़े लफ्ज़ और उलझी फिलासफी की बातें आपको किसी कोर्स की किताब में शामिल जरूर करवा सकती हैं लेकिन किसी के दिल में घर नहीं।
खूबसूरत व्यक्तित्व के मालिक बुनियाद हुसैन साहब इन तमाम खूबसूरत ग़ज़लों के लिए दिली दाद के हकदार हैं। इस किताब की प्राप्ति लिए आप ज़हीन साहब को उनके मोबाइल न 09414265391 पर पहले तो इन लाजवाब ग़ज़लों के लिए बधाई दीजिये और फिर इस किताब को हासिल करने का आसान तरीका पूछिए। शायरी प्रेमियों का फ़र्ज़ बनता है के वो नए काबिल उभरते हुए शायरों की हौसला अफ़ज़ाही करें क्योंकि आने वाले कल में शायरी का मुस्तकबिल इन्ही के मज़बूत कन्धों पर टिकने वाला है।
आखिर में ज़हीन साहब की एक ग़ज़ल के इन शेरों के साथ विदा लेते हुए आपके लिए अगली किताब की तलाश में निकलता हूँ।
मिज़ाज़ अपना यही सोच कर बदल डाला
दरख्त धूप को साये में ढाल देता है
ये शायरी तो करिश्मा है दस्ते-कुदरत का
हैं जिसके लफ्ज़ वही तो ख्याल देता है
दस्ते कुदरत = कुदरत का हाथ
ये काम अहले-ख़िरद के लिए है नामुमकिन
दीवाना पल में समंदर खंगाल देता है
अहले-ख़िरद = बुद्धिमान लोग
हमारे दौर में वो शख्स अब कहाँ है 'ज़हीन'
जो करके नेकियां दरिया में डाल देता है
उसने मेरे वजूद को ज़ेरो-ज़बर किया
जब भी किया है वार तो एहसास पर किया
जेरो-ज़बर : छिन्न भिन्न
तूने भुला दिए वो सभी यादगार पल
मैंने तो इंतज़ार तेरा टूटकर किया
आये थे बिन लिबास ज़माने में हम 'ज़हीन'
बस इक कफ़न के वास्ते इतना सफर किया
'ज़हीन' बीकानेरी’ जैसा की उनके तखल्लुस से ज़ाहिर है बीकानेर के जवाँ शायर हैं और बीकानेर के ही अपने उस्ताद जनाब मोहम्मद हनीफ 'शमीम' बीकानेरी साहब से उन्होंने ग़ज़ल की बारीकियां सीखीं। उनका पहला ग़ज़ल संग्रह 'एहसास के रंग ' सन 2008 में प्रकाशित हो कर चर्चित हो चुका है, दूसरा 'हुनर महकता है ' ग़ज़ल संग्रह 2013 में प्रकाशित हुआ था।
खरे उत्तर न सके जो कहीं किसी भी जगह
ये क्या कि वो भी हमें आज़मा के देखते हैं
तमाम रिश्तों में है कौन कितने पानी में
ज़रा-सी तल्ख़नवाई दिखा के देखते हैं
'ज़हीन' रहता है हर वक्त जिनकी नज़रों में
वही 'ज़हीन' को नज़रें चुरा के देखते हैं
'ज़हीन' साहब की कामयाबी का राज उनकी सकारात्मक सोच और बुलंद हौसलों में छुपा हुआ है ,वो कहते भी हैं कि :ज़मीं पे हैं कदम, ख़्वाब आसमान के हैं : शिकस्ता पर हैं मगर हौसले उड़ान के हैं " ज़हीन साहब की खासियत है कि वो शायरी में डूबने के साथ साथ अपने कार मेकेनिक के कारोबार को भी बखूबी संभाले हुए हैं। बहुत कम लोग जानते हैं की उन्हें कार के इंजिन हैड को ठीक करने में महारत हासिल है। जिस तरह वो इंजिन के कलपुर्जों की जटिलता से वाकिफ हैं वैसे ही उन्हें इंसानी फितरत उसके रंजो, ग़म, खुशिया, दुःख, बेबसी, उदासी, घुटन की भी जानकारी है तभी तो वो इन ज़ज़्बात अपनी को ग़ज़लों में बखूबी पिरो पाते हैं।
उसने अश्कों के दिए कैसे जला रखें हैं
रात के घोर अंधेरों में वो तन्हा होगा
याद आएगा तुम्हें गाँव के पेड़ों का हजूम
जिस्म जब शहर की गर्मी से झुलसता होगा
जब भी अंगड़ाई मेरी याद ने ली होगी
'ज़हीन'
उसने आईना बड़े गौर से देखा होगा
'सर्जना' प्रकाशन शिवबाड़ी बीकानेर द्वारा प्रकाशित "हुनर महकता है" किताब में 'ज़हीन' साहब की करीब 90 ग़ज़लें संगृहीत हैं। किताब में दी गयी एक संक्षिप्त भूमिका में डा.मोहम्मद हुसैन जो उर्दू डिपार्टमेंट ,डूंगर कालेज में सद्र हैं, लिखते हैं कि " शायरी महज़ ज़हन की तरंग नहीं बल्कि ये एक संजीदा तख्लीक़ी अमल है। बुनियाद हुसैन 'ज़हीन' में ये संजीदगी नज़र आती है जो उनके शै'री मुस्तकबिल की तरफ इशारा करती है। "
सारी खुशियां इसके पैरों में रहती हैं
जब चिड़िया की चौंच में दाने रहते हैं
रंजो-ग़म की धूप यहाँ आये कैसे
इस बस्ती में लोग पुराने रहते हैं
सिर्फ भरम उम्मीद का रखने की खातिर
रिश्तों के सब बोझ उठाने रहते हैं
बे-घर हैं दुःख-दर्द 'ज़हीन' इनके अक्सर
खुशियों के घर आने जाने रहते हैं
'ज़हीन' साहब की शायरी की सबसे बड़ी खासियत है उसकी सादा बयानी। वो जो कहते हैं सुनने पढ़ने वाले के दिल में सीधा उत्तर जाता है उनकी बात समझने के लिए न तो लुगद या शब्दकोष का सहारा लेना पड़ता है और न ही अधिक दिमाग लगाना पड़ता है। वो अपनी बात घुमा फिरा कर नहीं कहते, जो जैसा है सामने रख देते हैं। मेरी नज़र में ये बात एक कामयाब शायर की निशानी है। ये ऐसा हुनर है जो बहुत साधना और काबिल उस्ताद की रहनुमाई से हासिल होता है. जन-साधारण में लोकप्रिय होने के लिए यही खासियत काम आती है। शायरी में इस्तेमाल किये बड़े लफ्ज़ और उलझी फिलासफी की बातें आपको किसी कोर्स की किताब में शामिल जरूर करवा सकती हैं लेकिन किसी के दिल में घर नहीं।
निकहत, बहार, रंग, फ़ज़ा, ताज़गी, महक
साँसों में तेरी आके गिरफ्तार हो गए
उनके ख़ुलूसे-दिल का अजूबा न पूछिए
सुनते ही हाल मेरा वो बीमार हो गए
ऊंची लगी बस एक ही बोली ज़मीर की
जितने थे बिकने वाले खरीदार हो गए
खूबसूरत व्यक्तित्व के मालिक बुनियाद हुसैन साहब इन तमाम खूबसूरत ग़ज़लों के लिए दिली दाद के हकदार हैं। इस किताब की प्राप्ति लिए आप ज़हीन साहब को उनके मोबाइल न 09414265391 पर पहले तो इन लाजवाब ग़ज़लों के लिए बधाई दीजिये और फिर इस किताब को हासिल करने का आसान तरीका पूछिए। शायरी प्रेमियों का फ़र्ज़ बनता है के वो नए काबिल उभरते हुए शायरों की हौसला अफ़ज़ाही करें क्योंकि आने वाले कल में शायरी का मुस्तकबिल इन्ही के मज़बूत कन्धों पर टिकने वाला है।
आखिर में ज़हीन साहब की एक ग़ज़ल के इन शेरों के साथ विदा लेते हुए आपके लिए अगली किताब की तलाश में निकलता हूँ।
जिस्म लिए फिरते हैं माना हम लेकिन
इक-दूजे की रूह के अंदर रहते हैं
सदियों से बहते देखा है सदियों ने
इन आँखों में कई समंदर रहते हैं
हमदर्दी कमज़ोर बना देती है 'ज़हीन'
हम ज़िंदा अपने ही दम पर रहते हैं
Bahut shaandaar , puri kitaab ka maja hi kuch or hoga.
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ReplyDeleteवाह ........बेमिसाल शेर कहे हैं ज़हीन बीकानेरी साहब ने ..........हुनर महकता है .....से मुलाक़ात करके दिली खुशी मिली ............ये शानदार सफर जारी रहे ........आपका भी शुक्रिया ...ऐसे नगीने को रोशनी मे लाने के लिए
Pramod Kumar
Delhi
" आये थे बिन लिबास ज़माने में हम 'ज़हीन'
ReplyDeleteबस इक कफ़न के वास्ते इतना सफर किया "
वाह!!!
Thanks a lot for the glimpse of the book in such an expressive way!
Regards,
Wah vastav me bemisal sher kahe h. Jahin bhai ko badhai otrr mangalkamnaye. Aur aapka behad shukriya sir unki jankari dene ke liye.
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर... एक-एक शेर अपने आप में एक ग़ज़ल है। वाह। इतने बेहतरीन ग़ज़लकार से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया नीरज जी
अमन चाँदपुरी 'उत्कर्ष'
Faizabad , uttar Pradesh
ज़हीन बीकानेरी की किताब 'हुनर महकता है' की सुन्दर समीक्षा प्रस्तुतिकरण हेतु आभार!
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ReplyDeleteek se badhkar ek sher kaha hai Zheen sb ne aapne bhi khoob kam an jam diya Bahut Mubarak zAheen sb ko apka shukriya salmat rahiye
Moni Gopal Tapish
Ghaziabad
ये काम अहले-ख़िरद के लिए है नामुमकिन
ReplyDeleteदीवाना पल में समंदर खंगाल देता है
ये एक शेर ही बता है रहा है ज़हीन साहब की शायरी और सोच की गहराई को। बाकमाल शायरी।
उसने मेरे वजूद को ज़ेरो-ज़बर किया
जब भी किया है वार तो एहसास पर किया
तूने भुला दिए वो सभी यादगार पल
मैंने तो इंतज़ार तेरा टूटकर किया
तमाम रिश्तों में है कौन कितने पानी में
ज़रा-सी तल्ख़नवाई दिखा के देखते हैं
उनके ख़ुलूसे-दिल का अजूबा न पूछिए
सुनते ही हाल मेरा वो बीमार हो गए
वाह वाह किस किस शेर की बात कहें बेमिसाल। और सर पैशन और फैशन वाली मिसाल कमाल। आप को पढ़ना भी अलग़ अनुभव है कुछ पोस्ट्स आपके ब्लॉग पर सिर्फ आपके लिखे जाएँ आगामी तो क्या बात हो।
माफ करें कभी-कभी आप अतिरेक मे आ जातें हैं। किताबों की दुनिया - 111 पढ़ते हुए ऐसा ही लगा। आज जबकि कोई हिंदी या अन्य भारतीय भाषा को नहीं चाहता वैसे मे फेसबुक और व्टासएप के फैसनेबल शाइरों को देखना सुखद होता है। फैसनेबल शाइर ने कभी भी शिकायत नहीं किया की लोग मुझे गंभीरता से क्यों नहीं लेता। और ना ही उसे गंभीर कहला कर मठाधीश बनने की चाहत होती है और ना ही पुरस्कार की। अगर किसी भी भारतीय भाषा को दो हजार छह के बाद से इंटरनेट पर देखें तो सबसे जियादा कथित फैसनेबल शाइर ही उसे सवाँरा है। वह कुछ लाइक और कमेन्ट से ही संतुष्ट है और कम से कम गंभीरता का आवरण ओढ़कर नहीं बैठा है।
ReplyDeleteसादा बयानी ठीक है मगर कुछ बड़े शब्दों का इस्तेमाल करना और कुछ बात घुमा-फिरा कर कह देना भी एक जादू है। वैसे कोर्स मे शामिल होने केलिये ना तो सादा बयना जरूरी है ना ही बात घुमा-फिरा कर कहने की, अगर आप विभागाध्यक्ष या वाइस-चांसलर है तो कुछ भी हो सकता है...
उम्मीद है अन्यथा ना लेगें..
Ashish
नीरज भाई
ReplyDeleteबीकानेर जैसे खुश्क रेत के फैले रेगिस्तान में आपने ज़हीन साहब से मिलवा कर जैसे ठन्डे पानी का चश्मा खोज निकाला है। ज़हीन की जितनी तारीफ़ की जाय कम ही होगी। यहाँ डेनमार्क में मेरे मिलने जुलने वालों में अब वो जाना पहचाना नाम हो गए हैं। शायरी के दीवानों लिए आपकी तरफ से ये अनमोल भेंट है। आपसे गुज़ारिश है कि ज़हीन साहब तक मेरी दिली दाद पहुंचा दें। कभी हिंदुस्तान आने का इतेफाक हुआ तो बीकानेर उनसे मिलने जरूर जाऊंगा।
चाँद हदियाबादी
डेनमार्क
Received on Mail
ReplyDeleteNeeraj Ji
Behtareen Shayri aur Lajawab Shayar...Jitni tareef ki jaay kam hai...dili daad kabool karen.
Vikas
Canada
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteReceived on e-mail :-
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
रंज-ओ-ग़म की धूप यहाँ आये कैसे
इस बस्ती में लोग पुराने रहते हैं
साधुवाद--- शुक्रिया --- मुबारकबाद
Ramesh Kanval
ये शायरी तो करिश्मा है दस्ते-कुदरत का
Deleteहैं जिसके लफ्ज़ वही तो ख्याल देता है
बहुत खूब ज़हीन साहब ।
मंगल सिंह 'नाचीज़'