Monday, October 27, 2014

अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं


दिपावली के शुभ अवसर पर पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर तरही मुशायरे का सफल आयोजन हुआ ,उसी में प्रस्तुत खाकसार की ग़ज़ल 

दुबक के ग़म मेरे जाने किधर को जाते हैं 
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं 

हज़ार बार कहा यूँ न देखिये मुझको 
हज़ार बार मगर, देख कर सताते हैं 

उदासियों से मुहब्बत किया नहीं करते 
हुआ हुआ सो हुआ भूल, खिलखिलाते हैं 

हमें पता है कि मौका मिला तो काटेगा 
हमीं ये दूध मगर सांप को पिलाते हैं 

कमाल लोग वो लगते हैं मुझ को दुनिया में 
जो बात बात पे बस कहकहे लगाते हैं 

जहाँ बदल ने की कोशिश करी नहीं हमने 
बदल के खुद ही जमाने को हम दिखाते हैं 

बहुत करीब हैं दिल के मेरे सभी दुश्मन 
निपटना दोस्तों से वो मुझे सिखाते हैं 

गिला करूँ मैं किसी बात पर अगर उनसे 
तो पलट के वो मुझे आईना दिखाते हैं 

रहो करीब तो कड़ुवाहटें पनपती हैं 
मिठास रिश्तों की कुछ फासले बढ़ाते हैं 

नहीं पसंद जिन्हें फूल वो सही हैं, मगर 
गलत हैं वो जो सदा खार ही उगाते हैं 

ये बादशाह दिए रोंध कर अंधेरों को 
गुलाम मान के, अपने तले दबाते हैं 

बहुत कठिन है जहां में सभी को खुश रखना 
कि लोग रब पे भी अब उँगलियाँ उठाते हैं 

जिसे अंधेरों से बेहद लगाव हो 'नीरज' 
चराग सामने उसके नहीं जलाते हैं

22 comments:

  1. नहीं पसंद जिन्हें फूल वो सही हैं, मगर
    गलत हैं वो जो सदा खार ही उगाते हैं ...
    सुभान अल्ला ... इस खूबसूरत ग़ज़ल को एक बार फिर से पढ़ कर दिल बाग़ बाग़ हो उठा .... हर शेर पे वाह वाह ही निकलती है ...

    ReplyDelete

  2. बहुत कठिन है जहां में सभी को खुश रखना
    कि लोग रब पे भी अब उँगलियाँ उठाते हैं
    नि:शब्‍द करती पंक्तियां

    ReplyDelete
  3. बहुत कठिन है जहां में सभी को खुश रखना
    कि लोग रब पे भी अब उँगलियाँ उठाते हैं

    वाकई

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (28-10-2014) को "माँ का आँचल प्यार भरा" (चर्चा मंच-1780) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    छठ पूजा की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  5. "बहुत करीब हैं दिल के मेरे सभी दुश्मन
    निपटना दोस्तों से वो मुझे सिखाते हैं "

    बेहतरीन ग़ज़ल...इक इक शेर बेहद ही उम्दा...."वाह" बरबस ही दिल से निकल जाती है..

    ReplyDelete
  6. दुबक के ग़म मेरे जाने किधर को जाते हैं
    अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं
    All couplets very nice

    ReplyDelete
  7. इस लाजवाब प्रस्‍तुति के लिये हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर,जिंदगी के खट्टे-मीठे अनुभव,जैसे झरबेरी के बेर.

    ReplyDelete
  9. रहो करीब तो कड़ुवाहटें पनपती हैं
    मिठास रिश्तों की कुछ फासले बढ़ाते हैं
    ...वाह..सभी अशआर बहुत सटीक और उम्दा..बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

    ReplyDelete
  10. sabhi sher ek se badhkar ek hai ...kya kahne ..

    ReplyDelete
  11. बहुत कठिन है जहां में सभी को खुश रखना
    कि लोग रब पे भी अब उँगलियाँ उठाते हैं

    बहुत सही !
    हर शेर बेहतरीन !

    ReplyDelete
  12. Waah.... Kuch kahne ko nhi bacha ab bas yun jaan lijiye ki lajawaab..bemisaal...shandaar likha hai aapne..zabardast!!

    ReplyDelete
  13. बहुत कठिन है जहां में सभी को खुश रखना
    कि लोग रब पे भी अब उँगलियाँ उठाते हैं

    सुन्दर भाव समेटे शेर...। आनन्द आया।

    ReplyDelete
  14. बहुत ही बढ़िया। बेहतरीन !! आम बोल चाल की भाषा में कहे तो Super Duper से ऊपर !!

    ReplyDelete
  15. बहुत बढ़िया ग़ज़ल

    ReplyDelete
  16. बहुत खूब.. हर पंक्ति जिन्दगी की सच्चाई बयाँ करती मालूम होती है...

    "उदासियों से मुहब्बत किया नहीं करते
    हुआ हुआ सो हुआ भूल, खिलखिलाते हैं "

    ReplyDelete
  17. हमीं ये मगर दूध सांप को पिलाते हैं …
    विचारणीय।
    अच्छी ग़ज़ल !

    ReplyDelete
  18. नीरजजी ....छोटे बाहर में इतनी बड़ी बाते कह देना ...कमाल का फन हैं आप में ...
    नहीं पसंद जिन्हें फूल वो सही हैं, मगर
    गलत हैं वो जो सदा खार ही उगाते हैं ...वाह.. बेहतरीन ....

    ReplyDelete
  19. जिसे अंधेरों से बेहद लगाव हो 'नीरज'
    चराग सामने उसके नहीं जलाते हैं

    नीरज जी बहुत दिन बाद ब्लॉग पे आना हुआ.. आपकी ग़ज़ल हमेशा की तरह बहुत खूबसूरत.... खासतौर पर यह शे'र ..बधाई एक मुक्कमल ग़ज़ल के लिए

    ReplyDelete
  20. क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही है.. पढ़ने में देर हो गया.. दिवाली की शुभकामनाएं!

    ReplyDelete

तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे