दिपावली के शुभ अवसर पर पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर तरही मुशायरे का सफल आयोजन हुआ ,उसी में प्रस्तुत खाकसार की ग़ज़ल
दुबक के ग़म मेरे जाने किधर को जाते हैं
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं
हज़ार बार कहा यूँ न देखिये मुझको
हज़ार बार मगर, देख कर सताते हैं
उदासियों से मुहब्बत किया नहीं करते
हुआ हुआ सो हुआ भूल, खिलखिलाते हैं
हमें पता है कि मौका मिला तो काटेगा
हमीं ये दूध मगर सांप को पिलाते हैं
कमाल लोग वो लगते हैं मुझ को दुनिया में
जो बात बात पे बस कहकहे लगाते हैं
जहाँ बदल ने की कोशिश करी नहीं हमने
बदल के खुद ही जमाने को हम दिखाते हैं
बहुत करीब हैं दिल के मेरे सभी दुश्मन
निपटना दोस्तों से वो मुझे सिखाते हैं
गिला करूँ मैं किसी बात पर अगर उनसे
तो पलट के वो मुझे आईना दिखाते हैं
रहो करीब तो कड़ुवाहटें पनपती हैं
मिठास रिश्तों की कुछ फासले बढ़ाते हैं
नहीं पसंद जिन्हें फूल वो सही हैं, मगर
गलत हैं वो जो सदा खार ही उगाते हैं
ये बादशाह दिए रोंध कर अंधेरों को
गुलाम मान के, अपने तले दबाते हैं
बहुत कठिन है जहां में सभी को खुश रखना
कि लोग रब पे भी अब उँगलियाँ उठाते हैं
जिसे अंधेरों से बेहद लगाव हो 'नीरज'
चराग सामने उसके नहीं जलाते हैं
नहीं पसंद जिन्हें फूल वो सही हैं, मगर
ReplyDeleteगलत हैं वो जो सदा खार ही उगाते हैं ...
सुभान अल्ला ... इस खूबसूरत ग़ज़ल को एक बार फिर से पढ़ कर दिल बाग़ बाग़ हो उठा .... हर शेर पे वाह वाह ही निकलती है ...
ReplyDeleteबहुत कठिन है जहां में सभी को खुश रखना
कि लोग रब पे भी अब उँगलियाँ उठाते हैं
नि:शब्द करती पंक्तियां
बहुत कठिन है जहां में सभी को खुश रखना
ReplyDeleteकि लोग रब पे भी अब उँगलियाँ उठाते हैं
वाकई
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (28-10-2014) को "माँ का आँचल प्यार भरा" (चर्चा मंच-1780) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
छठ पूजा की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
"बहुत करीब हैं दिल के मेरे सभी दुश्मन
ReplyDeleteनिपटना दोस्तों से वो मुझे सिखाते हैं "
बेहतरीन ग़ज़ल...इक इक शेर बेहद ही उम्दा...."वाह" बरबस ही दिल से निकल जाती है..
दुबक के ग़म मेरे जाने किधर को जाते हैं
ReplyDeleteअँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं
All couplets very nice
इस लाजवाब प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर,जिंदगी के खट्टे-मीठे अनुभव,जैसे झरबेरी के बेर.
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति , धन्यवाद ! ⌒ ★ ×
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
रहो करीब तो कड़ुवाहटें पनपती हैं
ReplyDeleteमिठास रिश्तों की कुछ फासले बढ़ाते हैं
...वाह..सभी अशआर बहुत सटीक और उम्दा..बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
sabhi sher ek se badhkar ek hai ...kya kahne ..
ReplyDeleteबहुत कठिन है जहां में सभी को खुश रखना
ReplyDeleteकि लोग रब पे भी अब उँगलियाँ उठाते हैं
बहुत सही !
हर शेर बेहतरीन !
Waah.... Kuch kahne ko nhi bacha ab bas yun jaan lijiye ki lajawaab..bemisaal...shandaar likha hai aapne..zabardast!!
ReplyDeleteबहुत कठिन है जहां में सभी को खुश रखना
ReplyDeleteकि लोग रब पे भी अब उँगलियाँ उठाते हैं
सुन्दर भाव समेटे शेर...। आनन्द आया।
बहुत ही बढ़िया। बेहतरीन !! आम बोल चाल की भाषा में कहे तो Super Duper से ऊपर !!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत खूब.. हर पंक्ति जिन्दगी की सच्चाई बयाँ करती मालूम होती है...
ReplyDelete"उदासियों से मुहब्बत किया नहीं करते
हुआ हुआ सो हुआ भूल, खिलखिलाते हैं "
हमीं ये मगर दूध सांप को पिलाते हैं …
ReplyDeleteविचारणीय।
अच्छी ग़ज़ल !
नीरजजी ....छोटे बाहर में इतनी बड़ी बाते कह देना ...कमाल का फन हैं आप में ...
ReplyDeleteनहीं पसंद जिन्हें फूल वो सही हैं, मगर
गलत हैं वो जो सदा खार ही उगाते हैं ...वाह.. बेहतरीन ....
जिसे अंधेरों से बेहद लगाव हो 'नीरज'
ReplyDeleteचराग सामने उसके नहीं जलाते हैं
नीरज जी बहुत दिन बाद ब्लॉग पे आना हुआ.. आपकी ग़ज़ल हमेशा की तरह बहुत खूबसूरत.... खासतौर पर यह शे'र ..बधाई एक मुक्कमल ग़ज़ल के लिए
क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही है.. पढ़ने में देर हो गया.. दिवाली की शुभकामनाएं!
ReplyDelete