इन दिनों शादियों का सीजन अपने चरम पर है , हर शहर गली मुहल्लों में शादियों कि धूम मची हुई है। जिनकी हो रही है वो बहुत खुश हैं जिनकी नहीं हुई वो होने कि आस लगाए बैठे हैं और जिनकी हो गयी है वो गा रहे हैं " सोचा था क्या क्या हो गया ...."
इस मौके को ध्यान में रखते हुए मुम्बई निवासी मेरे प्रिय मित्र श्री सतीश शुक्ला "रकीब" जो गलती से शायर भी हैं ने सप्त पदी पर एक ग़ज़ल कह डाली है। ये ऐसा विषय है जिस पर शायद ही किसी शायर ने कलम चलाई हो।
मेरी मानें और इस ग़ज़ल को रट कर जिस शादी में जाएँ वहीँ सुनाएँ और वाह वाही पाएं।
अंजान हैं, इक दूजे से पहचान करेंगे
मुश्किल है ये जीवन, इसे आसान करेंगे
खाई है क़सम साथ निभाने की हमेशा
हम आज सरेआम ये ऐलान करेंगे
इज़्ज़त हो बुज़ुर्गों की तो बच्चों को मिले नेह
इक दूजे के माँ-बाप का सम्मान करेंगे
हम त्याग, सदाचार, भरोसे की मदद से
हर हाल में परिवार का उत्थान करेंगे
आपस ही में रक्खेंगे फ़क़त, ख़ास वो रिश्ते
हरगिज़ न किसी और का हम ध्यान करेंगे
हर धर्म निभाएंगे हम इक साथ है वादा
तन्हा न कोई आज से अभियान करेंगे
सुख-दुख हो, बुरा वक़्त हो, या कोई मुसीबत
मिल बैठ के हम सबका समाधान करेंगे
जीना है हक़ीक़त के धरातल पे ये जीवन
सपनोँ से नहीं ख़ुद को परेशान करेंगे
जन्नत को उतारेंगे यही मंत्र ज़मीं पर
सब मिल के 'रक़ीब' इनका जो गुणगान करेंगे
वाह , बेहद सुंदर गजल ,
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति..
ReplyDeletebahut sundar gazal
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १७/१२/१३को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है ----यहाँ भी आयें --वार्षिक रिपोर्ट (लघु कथा )
ReplyDeleteRajesh Kumari at HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR -
बहुत उम्दा ग़ज़ल !
ReplyDeleteनई पोस्ट चंदा मामा
नई पोस्ट विरोध
Msg received on e-mail:-
ReplyDeletebhai neeraj ji
namsty
poem abt ''Saptpadi'' is really nice n gud,
i liked it
regds
om sapra
delhi
Msg received on e-mail :-
ReplyDeleteवाह जी वाह! बहुत बढ़िया आइडिया है
Sarv Jeet'Sarv'
Delhi
बहुत ही लाजवाब ... सरल शब्दों में सहज ही लिखे हैं सब शेर ... कसमें वादे ... सभी कुछ है इन शेरों में ...
ReplyDeleteपहले तो मैं चौंक गया कि ये सप्तपदी कौनसी नयी ग़ज़ल स्टाईल है, पढ़ा तो समझ और आनन्द दोनों की प्राप्ति हुई। इस खूबसूरत सप्तपदी के लिये आभार।
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteरचना के लिए रक़ीब जी को बधाई...और इसे साझा करने के लिए आपको...धन्यवाद नीरज जी...
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा,गजल...!आभार
ReplyDeleteRECENT POST -: एक बूँद ओस की.
कल 19/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
विवाह, दाम्पत्य (एक स्त्री एवं एक पुरुष का योग) सूत्र में आबद्ध होने की रीति पर आधारित एक शपथ है, एक सौगंध है अन्यथा रिलेशन अर्थात संबद्ध में तो सभी हैं.....
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआशा
सुखी दांपत्य के सूत्र
ReplyDeletemajedaar ...
ReplyDeleteआदरणीय नीरज जी,
ReplyDeleteमेरी एक और तुकबंदी को अपनी मित्र मंडली के बीच प्रस्तुत करने के लिये के लिये बहुत शुक्रिया.
सादर,
सतीश शुक्ला 'रक़ीव'