Monday, October 21, 2013

राह तयकर इक नदी सी


( एक पुरानी ग़ज़ल नए पाठकों के लिए ) 

 कब किसी के मन मुताबिक़ ही चली है जिन्दगी 
राह तयकर इक नदी सी, ख़ुद बही है जिन्दगी 

ये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा 
तेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी 

मौत से बदतर समझ कर छोड़ देना ठीक है 
ग़ैर के टुकड़ों पे तेरी, गर पली है ज़िन्दगी 

बस जरा सी सोच बदली, तो मुझे ऐसा लगा 
ये नहीं दुश्मन, कोई सच्ची सखी है ज़िन्दगी 

जंग का हिस्सा है यारो, जीतना या हारना 
ख़ुश रहो गर आख़िरी दम तक, लड़ी है जिन्दगी 

मोल ही जाना नहीं इसका, लुटा देने लगे 
क्या तुम्हें ख़ैरात में यारो मिली है जिन्दगी ? 

जब तलक जीना है "नीरज", मुस्कुराते ही रहो 
क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी

24 comments:

  1. बहुत बढ़िया प्रस्तुति .

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  2. आपकी ग़जल हमेशा कुछ दे जाती है। आज सोचा कि मैं भी कुछ जोड़ता चलूँ:

    जिंदगी के मायने जैसे बड़ी कोई किताब
    हर सफ़े पर नयी बातें ही लिखी है जिन्दगी

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  3. जब तलक जीना है "नीरज", मुस्कुराते ही रहो
    क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी
    वाह ... हर शेर नि:शब्‍द करता हुअा

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  4. जब तलक जीना है "नीरज", मुस्कुराते ही रहो
    क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी
    गजब कि शायरी है नीरज जी !
    बधाई
    नई पोस्ट महिषासुर बध (भाग तीन)

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  5. बस जरा सी सोच बदली, तो मुझे ऐसा लगा
    ये नहीं दुश्मन, कोई सच्ची सखी है ज़िन्दगी....

    बहुत सुंदर गजल ,,,नीरज जी

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  6. मौत से बदतर समझ कर छोड़ देना ठीक है
    ग़ैर के टुकड़ों पे तेरी, गर पली है ज़िन्दगी ..

    बहुत उम्दा ... हर शेर अलग स लुत्फ़ दे रहा है ... लाजवाब गज़ल नीरज जी ...

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  7. जब तलक जीना है "नीरज", मुस्कुराते ही रहो
    क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी

    बहुत गहन और सुंदर बात ....!!वैसे हर शेर लाजवाब नीरज जी ....!!

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  8. ये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा
    तेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी
    बस जरा सी सोच बदली, तो मुझे ऐसा लगा
    ये नहीं दुश्मन, कोई सच्ची सखी है ज़िन्दगी
    अच्छी सुन्दर ग़ज़ल

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  9. मौत से बदतर समझ कर छोड़ देना ठीक है
    ग़ैर के टुकड़ों पे तेरी, गर पली है ज़िन्दगी

    बेहतरीन शेर !

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  10. बहुत खूब , सुंदर गजल है आदरणीय

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  11. मौत से बदतर समझ कर छोड़ देना ठीक है
    ग़ैर के टुकड़ों पे तेरी, गर पली है ज़िन्दगी ..

    मोल ही जाना नहीं इसका, लुटा देने लगे
    क्या तुम्हें ख़ैरात में यारो मिली है जिन्दगी ?

    वाह सर बहुत खूबसूरत ग़ज़ल

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  12. बहुत सुन्दर कही है जिन्दगी, आनन्द आ गया।

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  13. मोल ही जाना नहीं इसका, लुटा देने लगे
    क्या तुम्हें ख़ैरात में यारो मिली है जिन्दगी ? वाह क्या बात है
    बहुत अच्छी गजल

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  14. मोल ही जाना नहीं इसका, लुटा देने लगे
    क्या तुम्हें ख़ैरात में यारो मिली है जिन्दगी ?

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

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  15. waahh sundar gajal ... Jindgi ka rahsya .. jo samjh gya jeet gya

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  16. जब तलक जीना है "नीरज", मुस्कुराते ही रहो
    क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी
    बहुत सुंदर.

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  17. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-24/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -33 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

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  18. जब तलक जीना है "नीरज", मुस्कुराते ही रहो
    क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी

    बेहद उम्दा पोस्ट

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  19. जब तलक जीना है "नीरज", मुस्कुराते ही रहो
    क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी
    bahut sundar gajal yek arse baad padh rahi hun aapki gajal !

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  20. बस जरा सी सोच बदली, तो मुझे ऐसा लगा
    ये नहीं दुश्मन, कोई सच्ची सखी है ज़िन्दगी - वाकई

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  21. बहुत गहन और लाजवाब गजल ......

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  22. बेहतरीन अभिवयक्ति.....

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