Monday, September 9, 2013

किताबों की दुनिया - 86

देवियों और सज्जनों क्या आपने जयपुर के "नवरत्न प्रजापति" का नाम सुना है ? अरे ये क्या आपतो बगलें झाकने लगे। शर्मिंदा न हों मैंने कौनसा सुना था , ये तो भला हो गूगल का जिसकी मेहरबानी से ये नाम पता चला। नवरत्न जी वो मिनिएचर आर्टिस्ट हैं जिन्होंने विश्व की सबसे छोटी, काम में आने वाली लालटेन बनाई है। ये लालटेन केरोसिन की सिर्फ तीन बूंदों से बीस सेकण्ड तक जलती है .

आप पूछेंगे की किताबों की दुनिया में प्रजापति जी का किस्सा क्यूँ ? प्रजापति जी का जिक्र मिनिएचर आर्ट के कारण आया। इस कला में कलाकार का दक्ष होना आवश्यक है जरा सी चूक पूरी कृति को बर्बाद कर सकती है। इस कला में सुधारने की गुंजाईश नहीं के बराबर होती है इसलिए कलाकार को अपना हर कदम बहुत सोच समझ के उठाना पड़ता है।

शायरी में ये ही बात छोटी बहर की ग़ज़लों पर लागू होती है। देखने में बहुत सरल सी लगने वाली छोटी बहर को साधना उस्तादों के बस की ही बात होती है। ग़ज़ल की इस विधा में विज्ञानं व्रत जी ने अपना एक खास मुकाम बनाया है। उन्हीं के नक़्शे कदम पर चलने की कोशिश कर रहे हैं अपेक्षा कृत युवा शायर " सलीम खाँ फ़रीद " साहब जिनकी किताब "एक सवाये सुर को साधो" का जिक्र हम आज करेंगे .


छोटे छोटे द्वार हमारे 
ओ' हाथी हैं यार हमारे 

एक अंगूठे ही के कारण 
चुकते नहीं उधार हमारे 

कई हजारों की बस्ती में 
हम ही हैं हर बार हमारे 

डर,शंका,विस्मय लाते हैं 
मिलजुल कर त्योंहार हमारे 

10 जुलाई 1964 को राजस्थान के सीकर जिले के हसामपुर में जन्में फरीद साहब ने हिंदी साहित्य में एम् ऐ किया है . आप पिछले तीस वर्षों से ग़ज़लें कह रहे हैं लेकिन सिमित मात्रा में, तभी तो उनकी अभी पहली ही किताब प्रकाशित हुई है। उन्होंने क्वांटिटी से अधिक क्वालिटी पे जोर दिया है। यही कारण है कि उनकी ग़ज़लों में किसी दूसरे शायर का प्रभाव नज़र नहीं आता बल्कि मौलिकता दिखाई देती है।

खाली थैला ले घर लौटे 
हमने भी बाज़ार किया है 

चिड़ियों ने मिल-जुल कर फिर से 
बाज़ों को सरदार किया है 

उजियारों के राजमहल में 
अंधों ने दरबार किया है 

खुद से आगे सोच न पाए 
सबने यों विस्तार किया है 

डा कुंअर बैचैन साहब इस किताब पर दिए फ्लैप में लिखते हैं " फरीद साहब अपनी शायरी के माध्यम से घटाघोप घिरे बादलों में बिजली की चमक भी प्रदान करते हैं तथा प्यासी धरती और प्यासी रूहों को शीतल जल जैसी शायरी की फुहार भी बन के आते हैं .उनकी शायरी के आलोक में हम अपने देश के हालात को देख पाते हैं और उन पर सोचने को मजबूर भी होते हैं।

जान भले ही भाले पर है 
लेकिन ध्यान निवाले पर है 

अंधियारी अंधी बस्ती में 
सारा दोष उजाले पर है 

मंजिल के सारे काँटों का 
खून हमारे छालों पर है 

नीचे द्वार बजाती जनता 
राजा दसवें माले पर है 

निदा फाजली साहब ने इस किताब की भूमिका में लिखा है की सलीम खाँ फरीद साहब की भाषा व्यंगात्मक है . वो बातों को संकेतों, प्रतीकों तथा बिम्बों के माध्यम से व्यक्त करते हैं, जिसके कारण वे अखबार की खबर की तरह पढ़ते ही बासी नहीं हो जाती उनकी हरारत और शेरियत बहुत दिनों तक पाठकों के साथ जीवित रहती है .
तुझ पर, मुझ पर, पग धर पहुंचे 
फिर वो सिंहासन पर पहुंचे 

कितने लोग सफ़र पर निकले 
कितने लोग मगर घर पहुंचे 

जारी है वह दौड़ की जिसमें 
लंगड़े लोग बराबर पहुंचे 

बचकर रहना देश, सदन में 
फिर तेरे सौदागर पहुंचे 

छोटी बहर के सिद्ध हस्त शायर जनाब विज्ञान व्रत साहब ने लिखा है की फरीद साहब ग़ज़ल कहने की हड़बड़ी या जल्दी में कतई नहीं रहे अगर ऐसा होता तो अब तक तो इस शायर के कई संकलन प्रकाशित हो गए होते। भाई सलीम खाँ साहब की ग़ज़लों में सियासत ,धर्म और विसंगतियां, सामाजिक कटु सत्य और आपसी सम्बन्ध अक्सर आते हैं। सलीम भाई का व्यंग उनकी ग़ज़लों को न केवल मार्मिक बनाता है अपितु व्यंग में निहित दंश पाठक के भीतर ऐसी तिलमिलाहट पैदा करता है जो उसे देर तक छटपटाने पर बाध्य करती है।

तू सचमुच नादान है प्यारे 
जो अब तक इंसान है प्यारे 

जब तक यह मतदान है प्यारे 
तब तक तुझ पर ध्यान है प्यारे 

तेरी ही कुर्बानी देंगे 
तू जिन पर कुर्बान है प्यारे 

सच की खातिर लड़ना मुश्किल 
पर मुश्किल आसान है प्यारे 

ये सच है की फरीद साहब की ये पहली किताब है लेकिन इस से पहले और बाद भी वो देश के प्रतिष्ठित अखबारों और रिसालों में बरसों से लगातार छपते रहे हैं। उनकी चुनिन्दा ग़ज़लों को जयपुर के बोधि प्रकाशन ने एक ही किताब में छाप कर हम जैसे उनके अनगिनत पाठकों पर बहुत बड़ा उपकार किया है।

उनकी ग़ज़ल साधना के लिए, रचना सांस्कृतिक संस्थान , नीम का थाना तथा साहित्य संस्थान नगर श्री चुरू द्वारा उनका ,सार्वजानिक सम्मान किया गया है।

इस्तेमाले गए 
फिर निकाले गए 

इक अँधेरा उगा 
सौ उजाले गए 

सत्य है सत्य के 
बोल बाले गए 

सर जो झुक न सके 
वो उछाले गए 

इस किताब की प्राप्ति के लिए आप बोधि प्रकाशन से उनके मोबाइल नुम्बर 98290 18087 पर संपर्क करें और फिर अनूठी शायरी के लिए सलीम खाँ फरीद साहब को उनके मोबाईल न 9413070032 पर दाद देना न भूलें.

आपके लिए एक और किताब की तलाश के लिए निकलें तब तक पढ़िए फरीद साहब की ग़ज़ल के ये शेर :- 

फिरती सासू फूली-फूली 
बहुओं ने हर बात कबूली 

जब तुझको ही याद नहीं तो 
मैं भी तेरा सब कुछ भूली 

कह न सकी कम्पन अधरों की 
बात वही तो दिल को छू ली 

कब तक होगी  'हाँ जी हाँ जी !' 
हाँ ! अब होगी हुक्म उदूली

21 comments:

  1. बहुत खूबसूरत विवेचना।

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  2. सलीम खाँ फ़रीद साहब को बधाई...
    सुंदर समीक्षा ,,,

    RECENT POST : समझ में आया बापू .

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  3. बहुत सरल पर सधी हुई शैली है शायर की, बहुत अच्छी समीक्षा की की आपने, पुस्तक से मेरा परिचय करवाने के लिए आपको साधुवाद !

    हिंदी फोरम एग्रीगेटर पर करिए अपने ब्लॉग का प्रचार !

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  4. सलीम खान साहब को बधाई ....बढ़िया समीक्षा...
    साभार....

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  5. उत्तम-
    बधाई स्वीकारें आदरणीय-
    गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें-

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  6. एक अंगूठे ही के कारण
    चुकते नहीं उधार हमारे

    कई हजारों की बस्ती में
    हम ही हैं हर बार हमारे

    डर,शंका,विस्मय लाते हैं
    मिलजुल कर त्योंहार हमारे

    सलीम खाँ साहब को बहुत बधाई। बूंद में सागर वाली उनकी इस शायरी से परिचय करवाने के लिये आपका भी बहुत आभार।

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  7. .. शायद तो पर, एक बूंद से ज़िंदगी भर जला करते हैं

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  8. बढ़िया समीक्षा--सलीम खान साहब को बधाई!
    latest post: यादें

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  9. वाह, कम में अधिक कह जाने की कला कम ही देखने को मिलती है, आभार परिचय का।

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  10. आपकी यह रचना आज (10-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  11. कहाँ कहाँ से मोती खोजकर लाते हैं नीरज जी, मेरा एक शे’र आपके नाम

    गहराई में जाकर आना सबके बस की बात नहीं
    सागर तल से मोती लाना सबके बस की बात नहीं

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  12. एक अंगूठे ही के कारण
    चुकते नहीं उधार हमारे

    छोटी बह्र में गहरी बात
    इससे बेहतर क्‍या सौगात।

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  13. सलीम खान साहब को बधाई!!!!
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

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  14. बहुत अच्छी समीक्षा की आपने..........

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  15. नीरज जी हर बार की तरह एक और नायाब हीरा खोज कर हम तक पहुंचाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया । छोटी छोटी बहर में ये शेर बहुत बड़ी बड़ी बातें बयां कर रहे है ।
    इस्तेमाले गए
    फिर निकाले गए
    इक अँधेरा उगा
    सौ उजाले गए
    सचमुच कितनी बड़ी बात कह डाली है फरीद साहब ने ।
    किताबों की दुनिया के ८७ वे अंक का इन्तेजार है अब :)

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  16. बहुत खूबसूरत.चलो मंगवाता हू......

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  17. Received on mail:-

    बहुत खूब और काबिले तारीफ़ !

    छोटे पैकेट में बड़ा माल !

    Sarvjeet 'Sarv'

    Delhi

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  18. वाह हर एक शेर बहुत सुंदर है, इस किताब को पढने की इच्छा बन गयी

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  19. छोटे छोटे द्वार हमारे
    ओ' हाथी हैं यार हमारे

    बहुत सुंदर है.....आप के सुनहरे शब्दों ने बचपन की यादों में लौटा दिया....अदभुत

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  20. छोटे छोटे द्वार हमारे
    ओ' हाथी हैं यार हमारे

    बहुत सुंदर है.....आप के सुनहरे शब्दों ने बचपन की यादों में लौटा दिया....अदभुत

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  21. बहुत खूब और काबिले तारीफ़ !

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे