सभी पाठकों को नव वर्ष की शुभकामनाएं
सांप, रस्सी को समझ डरते रहे
और सारी ज़िन्दगी मरते रहे
खार जैसे रह गए हम डाल पर
आप फूलों की तरह झरते रहे
थाम लेंगे वो हमें ये था यकीं
इसलिए बेख़ौफ़ हो गिरते रहे
तिश्नगी बढ़ने लगी दरिया से जब
तब से शबनम पर ही लब धरते रहे
छांव में रहना था लगता क़ैद सा,
इसलिये हम धूप में फिरते रहे
रात भर आरी चलाई याद ने,
रात भर ख़़ामोश हम चिरते रहे
जिंदगी उनकी मज़े से कट गई
रंग ‘नीरज’ इसमें जो भरते रहे
(ये ग़ज़ल श्री पंकज सुबीर जी के पारस स्पर्श से सोना हुई है )
सांप, रस्सी को समझ डरते रहे
ReplyDeleteऔर सारी ज़िन्दगी मरते रहे
खार जैसे रह गए हम डाल पर
आप फूलों की तरह झरते रहे
बेहद सशक्त भाव ... लाजवाब प्रस्तुति
सादर
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ सर!:)
ReplyDeleteपूरी ग़ज़ल... बहुत ही बढ़िया !
तिश्नगी बढ़ने लगी दरिया से जब
तब से शबनम पर ही लब धरते रहे
रात भर आरी चलाई याद ने,
रात भर ख़़ामोश हम चिरते रहे ~ बहुत खूबसूरत !
~बात दिल की, दिल में ही दबकर रही
खामोश हम ... सबकी कही करते रहे...~
~सादर!!!
छाँव हमको पाश लगती,
ReplyDeleteधूप में नव आस लगती।
सांप, रस्सी को समझ डरते रहे
ReplyDeleteऔर सारी ज़िन्दगी मरते रहे
खार जैसे रह गए हम डाल पर
आप फूलों की तरह झरते रहे
_________________________
आज और अपने हालात को व्यक्त करते अच्छे शेर
बढ़िया प्रस्तुती |
ReplyDeleteप्रभावी गजल |
शुभकामनायें भाई नीरज जी ||
जिंदगी उनकी मज़े से कट गई
ReplyDeleteरंग ‘नीरज’ इसमें जो भरते रहे |"
सच कहा ..आपकी समीक्षा हमेशा साधारण को भी असाधरण बना देती है ..
"खार जैसे रह गए हम डाल पर
आप फूलों की तरह झरते रहे"
बहुत खुबसूरत
छांव में रहना था लगता क़ैद सा,
ReplyDeleteइसलिये हम धूप में फिरते रहे
वाह!
एक-एक शेर बहुत बढ़िया।
नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
रात भर आरी चलाई याद ने,
ReplyDeleteरात भर ख़़ामोश हम चिरते रहे ...
यादों का घेरा ऐसा ही होता है ... लाजवाब शेर ... मज़ा आ गया नीरज जी ... कलाम की गज़ल है ... सुभान अल्ला ...
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवार के चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteनीरज जी ..बधाई कबूलें !इस खुबसूरत गज़ल पर !
ReplyDeleteवाह!
थाम लेंगे वो हमें ये था यकीं
इसलिए बेख़ौफ़ हो गिरते रहे
badhiya lagi gazal...
ReplyDeleteथाम लेंगे वो हमें ये था यकीं
ReplyDeleteइसलिए बेख़ौफ़ हो गिरते रहे ...
चोट लगी तो जाना
कोई नहीं रहा अपना ...
वाह वाह,खुबसूरत गज़ल के लिए बधाई नीरज जी,.
ReplyDeleteथाम लेंगे वो हमें ये था यकीं
इसलिए बेख़ौफ़ हो गिरते रहे ...
recent post: वह सुनयना थी,
"लाजवाब" गजल के लिए - आपको और आपकी कलम को नमन। पंकज सुबीर साहब का सादर वंदन
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteहर शेर मुकम्मल....
बहुत खूब...!
इतनी अच्छी ग़ज़ल पर दाद दिए बगैर रहा नहीं गया।
ReplyDeleteसांप, रस्सी को समझ डरते रहे
ReplyDeleteऔर सारी ज़िन्दगी मरते रहे
सांप का भ्रम जिन्दगी को कहाँ खुलकर जीने देता है !
सुन्दर शेर है सभी लाजवाब !
तिश्नगी बढ़ने लगी दरिया से जब
ReplyDeleteतब से शबनम पर ही लब धरते रहे
vaah...
"रात भर आरी चलाई याद ने,
ReplyDeleteरात भर ख़़ामोश हम चिरते रहे!"
वाह! क्या पंक्तियाँ हैं!
थाम लेंगे वो हमें ये था यकीं
ReplyDeleteइसलिए बेख़ौफ़ हो गिरते रहे ...
यही यकीं तो हमें गिरने की हिम्मत देती है. अति सुन्दर
New post: अहँकार
जिंदगी उनकी मज़े से कट गई
ReplyDeleteरंग ‘नीरज’ इसमें जो भरते रहे
वाह! अति सुंदर...
जिंदगी उनकी मज़े से कट गई
ReplyDeleteरंग ‘नीरज’ इसमें जो भरते रहे
Waaaah! achhi ghazal Neeraj ji!
Bahot Khoob!
Aalam Khursheed
नमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteआशा है आप कुशल होंगे।
"खार जैसे रह गये हम डाल पर ......" हमेशा की तरह ही बेहद खूबसूरत!
आँख के कोरों में रुक कर अश्क ये
मुस्कुराने का जतन करते रहे,
ज़िन्दगी मिसरी सी उनकी ही रहे
हम नमक की तरह बस खरते रहे!
सर्व
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 12/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeletenav varsh ki aapko bhi shubhkamnaein sir
ReplyDeleteकमाल की ग़ज़ल
ReplyDeletebahut badiya gazal....
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल.
ReplyDelete✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿
रात भर आरी चलाई याद ने
रात भर ख़़ामोश हम चिरते रहे
वाह ! वाऽह ! वाऽऽह !
क्या बात है !
आदरणीय नीरज जी
बहुत बढ़िया ग़ज़ल !
हमेशा की ही तरह बहुत सुंदर !
बधाई एवं
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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good ghazal
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत गजल..
ReplyDeleteसांप, रस्सी को समझ डरते रहे
ReplyDeleteऔर सारी ज़िन्दगी मरते रहे
खार जैसे रह गए हम डाल पर
आप फूलों की तरह झरते रहे
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Badhia
छांव में रहना था लगता क़ैद सा,
ReplyDeleteइसलिये हम धूप में फिरते रहे
ab to uncle 45degree ki garmee men bhee sadkon men swantra ghuma karenge.. aur aapaka ye sher yaad karenge.. sadhuwaad..
रात भर आरी चलाई याद ने,
रात भर ख़ामोश हम चिरते रहे
karvaten badalate huve katane walee raten yaad aayee..
जिंदगी उनकी मज़े से कट गई
रंग ‘नीरज’ इसमें जो भरते रहे
Aise chitere hain Hamare Neeraj Uncle.. aanand aa gaya.. Sadhuwaad.
aapaka
Vishal
रात भर आरी चलाई याद ने,
ReplyDeleteरात भर ख़़ामोश हम चिरते रहे
शुभकामनायें भाई नीरज जी ||