हुआ जो सोच में बूढा उसे फागुन सताता है
मगर जो है जवां दिल वो सदा होली मनाता है
अपुन तो टुन्न हो जाते भिडू जब हाथ से अपने
हमें घर वो बुला कर प्यार से पानी पिलाता है
उसे बाज़ार के रंगों से रंगने की ज़रूरत क्या
फ़कत छूते ही मेरे जो गुलाबी होता जाता है
गलत बातों को ठहराने सही हर बार संसद में
कोई जूते लगाता है कोई चप्पल चलाता है
सियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
हर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है
बदल दूंगा मैं इसका रंग, कह कर देखिये नेता
बुरे हालात सी हर भैंस पर उबटन लगाता है
बहुत मटका रही हो आज पतली जिस कमरिया को
उसे ही याद रख इक दिन खुदा कमरा बनाता है
दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
सुनाई ही नहीं देगा किसी को सच वहां "नीरज"
तू क्यूँ नक्कार खाने में खड़ा तूती बजाता है
बहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteसुन्दर :)
ReplyDeleteकमर और कमरे की बात हमने भी समझ ली है।
ReplyDeleteबहुत मटका रही हो आज पतली जिस कमरिया को
ReplyDeleteउसे ही याद रख इक दिन खुदा कमरा बनाता है
इन पंक्तियों ने तो सचमुच फिर से होली मनवा दी |
जबरदस्त |
हर शेर एक से बढ़ कर एक ||
नीरज जी
ReplyDeleteदेर से सही मगर कविता तो नसीब हुयी.................... होली का रंग अभी उतरा नहीं है.... सो यह ग़ज़ल नयी सी ही समझी जाएगी.
अपुन तो टुन्न हो जाते भिडू जब हाथ से अपने
हमें घर वो बुला कर प्यार से पानी पिलाता है
उसे बाज़ार के रंगों से रंगने की ज़रूरत क्या
फ़कत छूते ही मेरे जो गुलाबी होता जाता है
क्या रंग बरपाया है हुज़ूर..... दाद ढ़ेरों दाद !!!
हा हा हा....
ReplyDelete:-)
बहुत बढ़िया सर...........हास्य रस से भरपूर...........
दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
अरे हाँ श्रृंगार रस भी तो है....
उसे बाज़ार के रंगों से रंगने की ज़रूरत क्या
फ़कत छूते ही मेरे जो गुलाबी होता जाता है
आनंद आ गया...
सादर.
अनु
हा हा हा....
ReplyDelete:-)
बहुत बढ़िया सर...........हास्य रस से भरपूर...........
दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
अरे हाँ श्रृंगार रस भी तो है....
उसे बाज़ार के रंगों से रंगने की ज़रूरत क्या
फ़कत छूते ही मेरे जो गुलाबी होता जाता है
आनंद आ गया...
सादर.
अनु
बहुत बढ़िया ...बहुत मजेदार ....
ReplyDeleteशुभकामनायें .
एक शेर पेट वाला( वह भी खालिस हास्य के लिए लिखा गया है) छोड़ दें तो बाकी गज़ल के शेर बेहतरीन कटाक्ष करते हैं..लाज़वाब हैं।
ReplyDeleteवर्तमान राजनीति पर इससे तीखा कटाक्ष और क्या हो सकता है...!
सियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
हर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है।
..बहुत बधाई।
mast
ReplyDeleteअति सुन्दर...मजेदार..........
ReplyDeleteदबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
ReplyDeleteकरें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
हा हा हा ! जाने कितनों की व्यथा कह दी !
करके देखो एक कोशिश सुधरने की भाई
क्यों आज के नेताओं की तरह खाता है . :)
बेहतरीन व्यंग!
सुभानाल्लाह........हर शेर बेहतरीन और शानदार...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteहुआ जो सोच में बूढा उसे फागुन सताता है
ReplyDeleteमगर जो है जवां दिल वो सदा होली मनाता है
बेहतरीन शानदार ………बहुत खूब
कहा तेरा नही नक्कार की तूती सुनों "नीरज"
ReplyDeleteये सच है आज का हर शेर यही बताता है।
बहुत बढिया नीरज जी।
जोरदार हजल...
ReplyDeleteसचमुच धमाल है आदरणीय नीरज जी...
सादर।
नीरज भाई आप सचमुच गज़ल ओढ़ते -बिछाते हैं |बधाई |
ReplyDeleteबहुत-बहुत बढ़िया. पढ़कर लगा जैसे होली फिर से आ गई. किस शेर को टिप्पणी में कोट करूं और किसको नहीं?
ReplyDeleteपूरी की पूरी ग़ज़ल लाजवाब है. ये शेर
बदल दूंगा मैं इसका रंग, कह कर देखिये नेता
बुरे हालात सी हर भैंस पर उबटन लगाता है
और
दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
बहुत-बहुत मस्त हैं.
हँसी के साथ गंभीर सोच भी है,यही असली हास्य है !
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है आपने...
ReplyDeleteमज़ा आ गया पढके, एक-एक पंक्ति में हास्य-व्यंग्य कूट कूट के भरा है...
मुझे जो शेर बहुत अच्छा लगा :-
'सियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
हर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है
बदल दूंगा मैं इसका रंग, कह कर देखिये नेता
बुरे हालात सी हर भैंस पर उबटन लगाता है'
अरे वाह! आप तो ऊंचे दर्जे के शायर हो लिये। :)
ReplyDeleteला-जबाव!!
ReplyDeleteसभी की असीम प्रशंसा जायज है इस श्रेष्ठ रचना के लिए।
बहुत बढिया ...
ReplyDeleteसियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
ReplyDeleteहर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है
BAHUT SUNDAR RACHNA NEERAJI,
SAB KI HI POL KHOL DI,PAR YEH SAB KAHAN SAMJHNE WALE HAE,
AAPNE THEEK HI KAHA
सुनाई ही नहीं देगा किसी को सच वहां "नीरज"
तू क्यूँ नक्कार खाने में खड़ा तूती बजाता है
GAZAL MEIN CHUTKEELAPAN AUR TAAZGEE
ReplyDeleteHAI . PADH KAR MAZAA AA GAYAA HAI .
नीरज भा जी, त्वाडा जवाब नहीं। डायलाग पुराना है, लेकिन और कुछ सूझता ही नहीं यहाँ आने के बाद।
ReplyDelete:)
ReplyDeletekhoobssorat hai andaje bayan aapke
ReplyDeleteसुनाई ही नहीं देगा किसी को सच वहां "नीरज"
ReplyDeleteतू क्यूँ नक्कार खाने में खड़ा तूती बजाता
गोस्वामी जी बौने हो जाते हैं मेरे शब्द ,कितनी सिद्दत से भावों की तासीर ,शब्दों के माध्यम से उड़ेल देते हैं ,रब दी मेहर हो हम यही कह सकते हैं जी ....
Msg received on e-mail:-
ReplyDeletebhai neeraj ji
namstey
aapki achi gazal ke liye badhai
om sapra, delhi-9
Msg received on e-mail:-
ReplyDeleteNeeraj ji namaskaram
behatreen gazal ke liye badhai
sajeevan mayank
हुज़ूर कमर यूं ही तो कमरा नहीं बन जाती है!इसके पीछे भाभी जी की बरसों की म्हणत है!
ReplyDeleteउसे मालूम क्या जो प्यार से हलवा खिलाती है
कमर मेरी बनी कमरा कहाँ जलवा दिखाती है!
दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
ReplyDeleteकरें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है ...
नीरज जी आपने तो दुखती रक् पे हाथ रख दिया ... पेट कम करना पड़ेगा अब ... हा हा .... मज़ा आ गया पूरी गज़ल पढ़ के ... धमाल किया है आपने ...
दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
ReplyDeleteकरें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
hahaha! shaandaar...
दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
ReplyDeleteकरें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
waha bhi padhi thi yaha fir padh li...:)
कमरें कमरा कब बन जाती हैं, पता ही नहीं चलता है।
ReplyDeleteदबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
ReplyDeleteकरें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
:)))
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteholi ke rang .....aapke sang ..bahut hi badhiya ....
ReplyDeleteअपना भी पसंदीदा शेर यही है ...
ReplyDelete"दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है"
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - कब तक अस्तिनो में सांप पालते रहेंगे ?? - ब्लॉग बुलेटिन
उसे बाज़ार के रंगों से रंगने की ज़रूरत क्या
ReplyDeleteफ़कत छूते ही मेरे जो गुलाबी होता जाता है
ओये होए .....:))
सियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
हर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है
ये ठीक नहीं ....
स्त्री की तकदीर तो पुरुष के साथ जुडी होती है ....
बदल दूंगा मैं इसका रंग, कह कर देखिये नेता
बुरे हालात सी हर भैंस पर उबटन लगाता है
बहुत खूब ....
इस सोच पर सलाम .....!!
बहुत मटका रही हो आज पतली जिस कमरिया को
उसे ही याद रख इक दिन खुदा कमरा बनाता है
कैसे ..?
दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
हा...हा...हा.....
लाजवाब.....:))
बहुत मटक मटक हो गई जी .......बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत गहरे तीर मारे हैं...हुजूर ने...मज़ा आ गया...हर शेर चुनिन्दा...ज़बरदस्त...
ReplyDeletebahut, bahut maza aaya is ko padh kar!! din ban gaya!
ReplyDeletebhains ko ubatan lagata hai.. ye upma hindi mein hi ho sakti hai.. :-)
ReplyDeleteउसे बाज़ार के रंगों से रंगने की ज़रूरत क्या
ReplyDeleteफ़कत छूते ही मेरे जो गुलाबी होता जाता है
kya baat hai bahut khub
rachana
wah, mazaa aa gaya
ReplyDeleteसुनाई ही नहीं देगा किसी को सच वहां "नीरज"
ReplyDeleteतू क्यूँ नक्कार खाने में खड़ा तूती बजाता है....waah bahut khoob!
बहुत सुन्दर ....मस्त भाव..
ReplyDeleteहा हा!! ये मस्ति!! बहुत खूब!
ReplyDeleteसियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
ReplyDeleteहर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है
बहुत मस्त ग़ज़ल है.
आदरणीय नीरज जी,
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत हज़ल कही है वाह वाह... मज़ा आ
गया पढ़कर...
सियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
हर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है
....कितना दर्द है इस शे'र में
दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
हा..हा...हा क्या कहने...
इस उम्दा कलाम के लिए दिली मुबारकबाद और ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
बहुत मटका रही हो आज पतली जिस कमरिया को
ReplyDeleteउसे ही याद रख इक दिन खुदा कमरा बनाता है
दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
क्या बेजोड़ प्रस्तुति है. हर एक शेर लाजवाब
बहुत मटका रही हो आज पतली जिस कमरिया को
ReplyDeleteउसे ही याद रख इक दिन खुदा कमरा बनाता है
:) बहुत खूब!
अच्छी प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई....
ReplyDeleteलाजवाब ! बहुत बधाई आपको इन गज़ब के शेरों के लिए!
ReplyDelete"सुनाई ही नहीं देगा किसी को सच वहां "नीरज"
तू क्यूँ नक्कार खाने में खड़ा तूती बजाता है"
वाह ! जानते हुए भी दिल कहाँ मानता है!
वाह ...मजा आ गया ......फील फ्रेश !
ReplyDeleteबहुत खूब .. मजेदार
ReplyDeletekya bat hai neraj je
ReplyDelete