आप सब को नव वर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएं.
हजारों में किसी इक आध के ही गैर होते हैं
वगरना दुश्मनी करते हैं जो होते वो अपने हैं
कभी मेरे भी दिल में चांदनी बिखरा जरा अपनी
सुना है लोग तुझको चौदहवीं का चाँद कहते हैं
कोई झपका रहा आंखें है शायद याद कर मुझको
अंधेरी रात में जुगनू कहां इतने चमकते हैं
हमें मालूम है घर में नहीं हो तुम मगर फिर भी
यूं ही आंगन में जा जा कर तुम्हें आवाज़ देते हैं
ज़रूरी तो नहीं के फूल हों या फिर लगे हों फल
ये क्या कम है मेरी शाखों पे फिर भी कुछ परिंदे हैं
मनाते हैं बहुत लेकिन नहीं जब मानता है तो
हमीं थक हार कर हर बात दिल की मान लेते हैं
कहीं चलते नहीं दुनिया में फिर भी नाज़ है इनपर
विरासत में ये हमने प्यार के पाए जो सिक्के हैं
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
कहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
भले थे तो किसी ने हाल त़क 'नीरज' नहीं पूछा
बुरे बनते ही देखा हर तरफ अपने ही चरचे हैं
( इस ग़ज़ल को गुरुदेव पंकज सुबीर जी का आशीर्वाद प्राप्त है )
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
ReplyDeleteकहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
बहुत खूब!
हर शब्द... हर पंक्ति... बेहतरीन है!!!
नव वर्ष की शुभकामनाएं!
सादर!
नीरज भाई साहब!
ReplyDeleteआपने गालियाँ क्या छोडीं बस रौनके महफ़िल ही चली गयी.. मकते में अपने बुरे होने का ज़िक्र करके आप ने हमें सांसत में डाल दिया... नए साल में इतने खूबसूरत अशार लेकर आये आप..हमें दिली खुशी हुई.. ये मोगरे की डाल सदा महकती रहे!!
मैं हर पल आपके ब्लॉग का इन्तजार करता रहता हूँ नीरज जी, और जब ये इन्तजार ख़त्म होता हैं तो...
ReplyDeleteit is always awesome...no word to say for this blog...
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
कहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
भले थे तो किसी ने हाल त़क 'नीरज' नहीं पूछा
बुरे बनते ही देखा हर तरफ अपने ही चरचे हैं
नीरज जी ,
ReplyDeleteनए साल की मुबारक और अहसास से भरपूर अश'आर के लिए बधाई स्वीकारें!
वाह:
हमें मालूम है घर में नहीं हो तुम मगर फिर भी
यूं ही आंगन में जा जा कर तुम्हें आवाज़ देते हैं ||
ज़रूरी तो नहीं के फूल हों या फिर लगे हों फल
ReplyDeleteये क्या कम है मेरी शाखों पे फिर भी कुछ परिंदे हैं
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
कहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! और ये शेर तो बहुत ही खूब हैं
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
ReplyDeleteकहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
यौ तो हरेक के दिल में भावनाओं का समुद्र उमड़ रहा होता है पर कई लोग इन भावनाओं को शब्द बक्श देते हैं...
आप उनमें से एक हैं हैं नीरज
बेहतरीन गज़ल के लिए साधुवाद.
हमें मालूम है घर में नहीं हो तुम मगर फिर भी
ReplyDeleteयूं ही आंगन में जा जा कर तुम्हें आवाज़ देते हैं
behad umda sir...
nutan varsh ki hardik shubhkamnayen..
हमें मालूम है घर में नहीं हो तुम मगर फिर भी
ReplyDeleteयूं ही आंगन में जा जा कर तुम्हें आवाज़ देते हैं
ज़रूरी तो नहीं के फूल हों या फिर लगे हों फल
ये क्या कम है मेरी शाखों पे फिर भी कुछ परिंदे हैं
वाह ...बहुत खूब ...
नववर्ष की अनंत शुभकामनाएं ।
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
ReplyDeleteकहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
भले थे तो किसी ने हाल त़क 'नीरज' नहीं पूछा
बुरे बनते ही देखा हर तरफ अपने ही चरचे हैं
वाह, बहुत सुन्दर नीरज जी ! आपको नव-वर्ष की ढेरों मंगलमय कामनाएं !
लाजवाब... नववर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएं..
ReplyDeleteज़रूरी तो नहीं के फूल हों या फिर लगे हों फल
ReplyDeleteये क्या कम है मेरी शाखों पे फिर भी कुछ परिंदे हैं
sabhi panktiyan gajab ki hain.
nav varsh mubarak ho.
नीरज जी , नए साल की शुभकामनाये . आपकी गज़ल सही कहूँ तो ऐसा लग रहा ही कि , मुझ पर ही लिखी गयी है .. कुछ हाल अपना भी आजकल ऐसा ही है .. वगरना दुश्मनी करते हैं जो होते वो अपने हैं..!!
ReplyDeleteआपका
विजय
ज़रूरी तो नहीं के फूल हों या फिर लगे हों फल
ReplyDeleteये क्या कम है मेरी शाखों पे फिर भी कुछ परिंदे हैं... वरना अब परिंदे भी नज़र नहीं आते , वाह
खूब कहा है नीरज जी.
ReplyDeleteजो दिखे वोह हमेशा सच नहीं होता !!
नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !
हमें मालूम है घर में नहीं हो तुम मगर फिर भी
ReplyDeleteयूं ही आंगन में जा जा कर तुम्हें आवाज़ देते हैं
ज़रूरी तो नहीं के फूल हों या फिर लगे हों फल
ये क्या कम है मेरी शाखों पे फिर भी कुछ परिंदे हैं
गज़ब गज़ब गज़ब्…………हर शेर दिल मे उतर गया…………बेहतरीन गज़ल सच्चाइयों से रु-ब-रु कराती हुई।
ज़रूरी तो नहीं के फूल हों या फिर लगे हों फल
ReplyDeleteये क्या कम है मेरी शाखों पे फिर भी कुछ परिंदे हैं..
बहुत सुंदर शेर हैं ....
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ...
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
ReplyDeleteकहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
बहुत खूबसूरत गज़ल आदरणीय नीरज सर, सादर बधाई और नूतन वर्ष की सादर शुभकामनाएं
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल... एक - एक शब्द असरदार है...
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ...
बढ़िया ग़ज़ल . आपकी ग़ज़लों में जीवन का सार हमेशा रहता है .
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें नीरज जी .
बहुत ही उम्दा और बेहतरीन गजल हैं ...नववर्ष की शुभकामनाएं
ReplyDeleteएक खूबसूरत और सार्थक अर्थगम्भीर गज़ल है।
ReplyDeleteबहुत आभार
हमें मालूम है घर में नहीं हो तुम मगर फिर भी
ReplyDeleteयूं ही आंगन में जा जा कर तुम्हें आवाज़ देते हैं
बहुत खूब ...इसी तरह के ज़ज्बात ही जिंदगी में यादो में ..सपने देते हैं ...सपने जो सिर्फ अपने होते हैं ...आभार
नववर्ष मंगलमय हो
बहुत सुंदर रचना,
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा और बेहतरीन गजल हैं
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
कहीं चलते नहीं दुनिया में फिर भी नाज़ है इनपर
ReplyDeleteविरासत में ये हमने प्यार के पाए जो सिक्के हैं
बहुत ख़ूब !!
और हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम ये विरासत अगली पीढ़ी को सौंपें
"हम नई नस्ल को दे पाएं तो हो फ़र्ज़ अदा
जो कि अजदाद ने सौंपी थी विरासत हम को "
मक़ता भी बहुत ख़ूबसूरत है
भले थे तो किसी ने हाल त़क 'नीरज' नहीं पूछा
बुरे बनते ही देखा हर तरफ अपने ही चरचे हैं
क्या बात है !!
ज़रूरी तो नहीं के फूल हों या फिर लगे हों फल
ये क्या कम है मेरी शाखों पे फिर भी कुछ परिंदे हैं
बहुत ख़ूब !!
ख़ुशक़िस्मत है वो पेड़ जिस पर फल-फूल के न होने पर भी परिंदे आएं
बहुत ही सुन्दर, ऐसे ही चरचे बने रहें।
ReplyDeleteबेहतरीन गजल....
ReplyDeleteज़रूरी तो नहीं के फूल हों या फिर लगे हों फल
ReplyDeleteये क्या कम है मेरी शाखों पे फिर भी कुछ परिंदे हैं.
वाह, बढ़िया शेर है.
एक साहब ऐसे भी शेर कह गए:-
कोई इन्सान बेमतलब कहीं पर भी नहीं जाता,
परिंदे भी फलों को देख कर शाखों पे गिरते हैं.
आपकी ग़ज़ल ज़बरदस्त है भाई.
नया साल बहुत बहुत मुबारक.
नीरज जी,
ReplyDeleteकभी लफ़्ज़ भी कम रह जाते हैं किसी रचना की तारीफ़् के लिये!
ये हैं आंखो के धोखे या फिर कुछ रंगीं सपने हैं
धोखे भी हसीं कितने कि बेगाने भी अपने हैं !
सर्व
कोई झपका रहा आंखें है शायद याद कर मुझको
ReplyDeleteअंधेरी रात में जुगनू कहां इतने चमकते हैं
वाह! हमेशा की तरह सभी शेर सादगी लिए हैं, और सीधा दिल में उतर गए!
कोई झपका रहा आंखें है शायद याद कर मुझको
ReplyDeleteअंधेरी रात में जुगनू कहां इतने चमकते हैं
khubsurat
एक तो आपकी ग़ज़ल, उस पर पंकज भाई का वरद् हस्त और उस पर ये सटीक चित्र एक खूबसूरत सैंडविच की तरह है।
ReplyDeleteऔर हुजूर सब कुछ भ्रम ही है, यह तो आप भी जानते हैं।
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
कहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
नज़र भर जिसको देखा था
समझ आया कि धोखा था।
और बुरा बनना तो आपके बस में ही नहीं है, चर्चा हो न हो। (बिना बुरा बने कौनसे कम चर्चे हैं आपके)
हमें मालूम है घर में नहीं हो तुम मगर फिर भी
ReplyDeleteयूं ही आंगन में जा जा कर तुम्हें आवाज़ देते हैं...aapki har post ka intezaar rahta hai sir aur jab bhi padhti hu maza aa jata hai
भले थे तो किसी ने हाल त़क 'नीरज' नहीं पूछा
ReplyDeleteबुरे बनते ही देखा हर तरफ अपने ही चरचे हैं
बहुत खूबसूरत |
नीरज जी हर शेर कमाल का
ReplyDeleteकुछ कभी न भूलनेवाले...
कहीं चलते नहीं दुनिया में फिर भी नाज़ है इनपर
विरासत में ये हमने प्यार के पाए जो सिक्के हैं
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
कहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
नीरज जी!
सभी खींचीं हुई रेखाएं न बन पाती तस्वीरें
उन्हें वो छू जरा सा दें तो सब इंसान बन जातीं।
इस्स्लाहात खुदा का करिश्मा होती हैं। इससे हमारे हाथ जो आता है वह कमाल होता है साहब! आप की यह गजल उसी जादू की पेशकस है
नया साल खुशहाल और कामयाब हो।
Umda ashaar hain . Hardik badhaaee
ReplyDeleteaur shubh kamna
कहीं चलते नहीं दुनिया में फिर भी नाज़ है इनपर
ReplyDeleteविरासत में ये हमने प्यार के पाए जो सिक्के हैं
bahut badhiya gazal
बहुत बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteReceived through e-mail:-
ReplyDeletethanx and gud wishes for new year
thansx for sending such a gud poem/gazal
especially these lines:-
मनाते हैं बहुत लेकिन नहीं जब मानता है तो
हमीं थक हार कर हर बात दिल की मान लेते हैं
कहीं चलते नहीं दुनिया में फिर भी नाज़ है इनपर
विरासत में ये हमने प्यार के पाए जो सिक्के हैं
yours
-om sapra, delhi-9
ज़रूरी तो नहीं के फूल हों या फिर लगे हों फल
ReplyDeleteये क्या कम है मेरी शाखों पे फिर भी कुछ परिंदे हैं
vaise to har pangti bahut achchi hai......par ye kuch khas hai.
आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को नये साल की ढेर सारी शुभकामनायें !
ReplyDeleteख़ूबसूरत चित्र के साथ उम्दा ग़ज़ल! हर पंक्तियाँ लाजवाब लगा!
अरे वाह! शानदार गज़ल लिखी है आपने। नये वर्ष का तोहफा मान कर दिल में बसा लिया। एक से बढ़कर एक शेर। मैने अब तक कमेंट नहीं पढ़े, बहुत दाद मिल चुकी होगी अब तक।
ReplyDeleteज़रूरी तो नहीं के फूल हों या फिर लगे हों फल
ये क्या कम है मेरी शाखों पे फिर भी कुछ परिंदे हैं
..इसका तो कहना ही क्या और मक्ता,शुभानअल्लाह!
बधाई..बधाई..नया वर्ष भी खुश हो गया होगा इसे पढ़कर।
भाई नीरज जी नए वर्ष में आपकी लेखनी और नई सोच विचार के साथ हम सब को एक अद्भुत ताजगी से भर दे |अच्छी गज़ल |
ReplyDeleteदिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
ReplyDeleteकहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
बेहतरीन प्रस्तुति हर बार की तरह...
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
ReplyDeleteकहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं ...
बहुत खूब ... कमाल की गज़ल है नीअज जी ... पहले तो मैं मकते में ही अटक के रह गया .. फिर आगे बढ़ा तो हर शेर पे वाह वाह ही कहता गया ...
गुरुदेव की कृपा है आप पर ...
नए साल की बहुत बहुत मुबारक बाद ...
Hello Uncle, (Happy New Year)
ReplyDeleteHamen maloom hai ghar men naheen hain..
Jaroori to naheen ke phool hon ya phir lage hon fal
Ye kya kam hai meri shakhon pe phir bhee kuchh parinde hain
Week ki sabse keemati cheejon men se 1 hotee hai aapaki gazal. Sadhuwaad.
Aabhar jaise shabd isake liye bahut kam hain.
Rgds
Vishal
असीमित शुभकामनायें नीरज जी !! आपको !!सिर्फ इसलिये ही नहीं कि आपने अच्छी ग़ज़ल कही बल्कि इसलिये कि आपने नयी ग़ज़ल कही -ज़बान की ग़ज़ल कही -और सच्ची ग़ज़ल कही -- ये सभी बातें किसी एक ग़ज़ल के लिये बहुत मुश्किल होती हैं लेकिन ये कामापने बेहद आसांनी से किया है -- ये कलम ऐसे ही आगे भी चलेगा इसकी उम्मीद भी है और विश्वास भी --
ReplyDeleteहजारों में किसी इक आध के ही गैर होते हैं
वगरना दुश्मनी करते हैं जो होते वो अपने हैं
कोई झपका रहा आंखें है शायद याद कर मुझको
अंधेरी रात में जुगनू कहां इतने चमकते हैं-नया खयाल और सुन्दर भाव -भूमि
हमें मालूम है घर में नहीं हो तुम मगर फिर भी
यूं ही आंगन में जा जा कर तुम्हें आवाज़ देते हैं
उम्र भर जिसमें दर पे मै दस्तक दिया करता रहा /// आज ये पर्दा खुला , रहता वहाँ कोई (मैनें ये शेर यहाँ बन्द किया था -आपका शेर यहाँसे आरम्भ हुआ है -- बहुत खूब !!!Sachin starts from where others end their career )
ज़रूरी तो नहीं के फूल हों या फिर लगे हों फल
ये क्या कम है मेरी शाखों पे फिर भी कुछ परिंदे हैं
मनाते हैं बहुत लेकिन नहीं जब मानता है तो
हमीं थक हार कर हर बात दिल की मान लेते हैं
कहीं चलते नहीं दुनिया में फिर भी नाज़ है इनपर
विरासत में ये हमने प्यार के पाए जो सिक्के हैं
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
कहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
ऊपर के चारों शेर बेहतरीन हैं अपनी सादगी और अपने प्रवाह के कारण \
भले थे तो किसी ने हाल त़क 'नीरज' नहीं पूछा
बुरे बनते ही देखा हर तरफ अपने ही चरचे हैं
इस शेर का हमख़्याल एक शेर लिखना रहा हूँ --
बावफा था तो मुझे पूछने वाले भी न थे // बेवफा हूँ तो हुआ नाम भी घर घर मेरा (शायर का नाम भूल रहा हूँ --ग़ज़ल -कभे साया हैकभी धूप मुक़द्दर मेरा - ) --आपको एक बार फिर नये साल कीमुबारकबाद और बधाई इस खूबसूरत ग़ज़ल केलिये ---मयंक
भले थे तो किसी ने हाल त़क 'नीरज' नहीं पूछा
ReplyDeleteबुरे बनते ही देखा हर तरफ अपने ही चरचे हैं
bahut hi sunder puri gazar kamal ki hai
aapko aur aapke parivar me sabhi ko nav varsh ki bahut bahut shubhkamnayen
saader
rachana
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 7/1/2012 को होगी । कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें। आभार.
ReplyDeleteहर पंक्ति उम्दा !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति !
आभार !
बहुत खूब सर!
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
gazab hi gazal hai..gazal me gazab hai...
ReplyDeleteदिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
ReplyDeleteकहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
वाह ..क्या बात कही है ..बहुत खूबसूरत गज़ल
कमाल है साहब....हमेशा की तरह
ReplyDeleteशुक्रिया आपका.
======================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
bahut khoob. ek ek sher bemisaal
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर,,
ReplyDeleteकहीं चलते नहीं दुनिया में फिर भी नाज़ है इनपर
विरासत में ये हमने प्यार के पाए जो सिक्के हैं
लाजवाब पंक्तियाँ..
सादर.
बहुत अच्छी प्रस्तुति,मन की भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति,सुंदर गजल ,,,
ReplyDeleteWELCOME to--जिन्दगीं--
हमें मालूम है घर में नहीं हो तुम मगर फिर भी
ReplyDeleteयूं ही आंगन में जा जा कर तुम्हें आवाज़ देते हैं.waah.very nice.
क्या खूब है अंदाजे-बयां.
ReplyDeleteकहीं चलते नहीं दुनिया में फिर भी नाज़ है इनपर
ReplyDeleteविरासत में ये हमने प्यार के पाए जो सिक्के हैं
badhai neeraj ji ....prabhavshali gazal.
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
ReplyDeleteकहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
....लाज़वाब...हरेक शेर अपने आप में एक कहानी..बहुत प्रभावी प्रस्तुति...आभार
मुक्कमल गजल ! खूबसूरत ....
ReplyDeleteBhale the to kisi ne hal tak neeraj nahi poocha
ReplyDeletebure bante hi dekha har taraf,apne hi churche hai
WAH,KYA SACCHAIE BAYAN KAR DI HAI kABILE DAD HAI APKI GAZAL NEERAJJI
बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
ReplyDeleteदिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
ReplyDeleteकहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
.sach kaha aapne..
भले थे तो किसी ने हाल त़क 'नीरज' नहीं पूछा
बुरे बनते ही देखा हर तरफ अपने ही चरचे हैं
..aajkal unhi ki hi to charcha hoti hai....lekin bahut din tak burayee tikkar nahi rahti
waah bahut khoob kahi aapne..
haardik shubhkamnayen!
कल 11/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, उम्र भर इस सोच में थे हम ... !
ReplyDeleteधन्यवाद!
ek ek shabd dil ko chu gaya sir
ReplyDeletefollowing your blog
check mine also
बहुत अच्छे लगे मुझको,
ReplyDeleteये सारे शेर नीरज के।
नहीं संदेह इसमें कुछ,
हृदय में ये उतरते हैं।
आपकी हर गज़ल बेहतरीन लगती है .. बहुत खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteकहीं चलते नहीं दुनिया में फिर भी नाज़ है इनपर
ReplyDeleteविरासत में ये हमने प्यार के पाए जो सिक्के हैं...
...
नीरज जी पढ़ता रहा आपको यदा कदा...अब कम से कम ब्लॉग से जुड़ गया हूँ ...कोशिश रहेगी कि अब न चूकूं !
आदरणीय नीरज जी,
ReplyDeleteएक और खूबसूरत ग़ज़ल पढ़कर अच्छा लगा...
इस बीच ज़रा मसरूफ़ था इस लिए जवाब देने में
ताखीर हुई.
वाह! वाह!..बहुत खूब..
कभी मेरे भी दिल में चांदनी बिखरा जरा अपनी
सुना है लोग तुझको चौदहवीं का चाँद कहते हैं
क्या मासूमियत है इस शे'र में...
हमें मालूम है घर में नहीं हो तुम मगर फिर भी
यूं ही आंगन में जा जा कर तुम्हें आवाज़ देते हैं
दिली मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.
सादर,
सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
हमें मालूम है घर में नहीं हो तुम मगर फिर भी
ReplyDeleteयूं ही आंगन में जा जा कर तुम्हें आवाज़ देते हैं
behad umda sir...
nutan varsh ki hardik shubhkamnayen..
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
ReplyDeleteकहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
भले थे तो किसी ने हाल त़क 'नीरज' नहीं पूछा
बुरे बनते ही देखा हर तरफ अपने ही चरचे हैं
बेहतरीन, वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
भले थे तो किसी ने हाल त़क 'नीरज' नहीं पूछा
ReplyDeleteबुरे बनते ही देखा हर तरफ अपने ही चरचे हैं ।
वाह वाह नीरज जी बेहतरीन गज़ल ।
हमें मालूम है घर में नहीं हो तुम मगर फिर भी
ReplyDeleteयूं ही आंगन में जा जा कर तुम्हें आवाज़ देते हैं
जब ऐसा करते हो तो कैसा कैसा लगता है...कि क्या गजब करते हो जी....वाह!!
khoobsoorat gazal ke sath naye sal ka aagaaz ...vaah , nya sal mubarak ho...
ReplyDeleteखयालात के बिखराव को
ReplyDeleteअपनी गिरफ्त में बाँध लेना
और उन्हें खूबसूरत लफ़्ज़ों की सौगात दे पाना
बड़ी महारत और सूझ-बूझ का काम है
और....
इन्हीं खूबियों का
अगर कोई दूसरा नाम है, तो वो है
नीरज गोस्वामी
मुबारकबाद कुबूल फरमाएं जनाब .
har sher bahut kamaal, duniya aur duniyadari ka sach hai...
ReplyDeleteदिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
कहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
भले थे तो किसी ने हाल त़क 'नीरज' नहीं पूछा
बुरे बनते ही देखा हर तरफ अपने ही चरचे हैं
daad sweekaaren.
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
ReplyDeleteकहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
वाह! बहुत सुन्दर.
सदा जी की हलचले से आपकी इस पोस्ट
पर आकर बहुत ही अच्छा लगा.
आभार.
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
ReplyDeleteकहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
खूबसूरत लफ़्ज़ों में सीधी सच्ची बात!