Monday, April 11, 2011

यादों के सब दरख़्त हरे, काट जब दिये

देवानंद साहब की सदा बहार फिल्म "हम दोनों" रंगीन अभी हाल ही में सिनेमा हाल के बड़े परदे पर देखने के बाद "मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया" गीत ज़ेहन में बस गया, उसी तुफैल में ये ग़ज़ल हुई, इस ग़ज़ल को उस गीत को याद करते हुये गुनगुनाइए शायद आनंद आये

कल खेल जीतने का हुनर जो सिखा गया
हमको नियम बदल के वही तो हरा गया

दुश्मन ने वार जब किया, ललकार के मुझे
नज़रों से दोस्तों को मेरी वो गिरा गया

यादों के सब दरख़्त हरे, काट जब दिये
आंखों से मेरी रूठ के सावन ,चला गया

ढाए जो ज़ुल्म सैंकड़ों वो तो भुला दिये
अहसान एक जब किया उसको जता गया

दस्तूर कुछ जहां का निभाया यूँ यार ने
फूलों की बात करके वो काँटा चुभा गया

लोगों की सोच हो गई उल्टी समय के साथ,
कल का लुटेरा आज है नेता चुना गया

गूंगा समझ के जिसपे सितम ढाते सब रहे
चीखा वो एक रोज तो सबको हिला गया

(हमारे प्रिय भाई गौतम को एक माह की छुट्टी मिली थी घर जाने के लिए ये शेर उसे और उस जैसे हमारे फौजी भाइयों को समर्पित है,जो छुट्टियों पर घर जाते हैं)

बस एक माह की मिली छुट्टी थी फौज से
कुछ और तिश्नगी को महीना बढ़ा गया

(गुरुदेव पंकज सुबीर जी की रहनुमाई में कही गयी ग़ज़ल)

48 comments:

  1. दस्तूर यूं जहां का निभाया है यार ने
    फूलों सी बात करके वो कांटा चुभा गया

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  2. गूंगा समझ के जिसपे सितम ढाते सब रहे
    चीखा वो एक रोज तो सबको हिला गया

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  3. दस्तूर यूं जहां का निभाया है यार ने
    फूलों सी बात करके वो कांटा चुभा गया

    ये शेर वो है नीरज जी, जो सबसे पहले पसंद आया है...बधाई
    यादों के सब दरख़्त हरे, काट जब दिये
    आंखों से मेरी रूठ के सावन ,चला गया
    ये शेर तो हासिले-ग़ज़ल है ही आपका...

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  4. गूंगा समझ के जिसपे सितम ढाते सब रहे
    चीखा वो एक रोज तो सबको हिला गया

    वाह नीरज जी……………हमेशा की तरह शानदार गज़ल्…………हर शेर लाजवाब्।

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  5. यादों के सब दरख़्त हरे, काट जब दिये
    आंखों से मेरी रूठ के सावन ,चला गया

    बहुत सुंदर ग़ज़ल है ....!
    प्रत्येक शेर लाजवाब ..

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  6. यादों के सब दरख़्त हरे, काट जब दिये
    आंखों से मेरी रूठ के सावन ,चला गया...
    .. bahut badhiya gazal.. yah sher sabse jaandaar !

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  7. यादों के सब दरख़्त हरे, काट जब दिये
    आंखों से मेरी रूठ के सावन ,चला गया...
    wah wah... kya baat hai...

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  8. नीरज जी,

    शानदार लगी ग़ज़ल....आपने गीत की बानगी को बखूबी पकड़ा है .....बहुत खूब|

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  9. दस्तूर यूं जहां का निभाया है यार ने
    फूलों सी बात करके वो कांटा चुभा गया

    वाह ...बहुत खूब ।

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  10. behad khoobsoorat ...
    यादों के सब दरख़्त हरे, काट जब दिये
    आंखों से मेरी रूठ के सावन ,चला गया
    ye to bahut achchha ..

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  11. नीरज जी ,
    गुनगुना के पढ़ी गज़ल..सच में आनंद आ गया ...और हर शेर में जिंदगी के अनुभवों को उकेरा ही आपने बेहद उम्दा... हमेशा की तरह ...

    ढाए जो ज़ुल्म सैंकड़ों वो तो भुला दिये
    अहसान एक जब किया उसको जता गया

    बहुत खूब

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  12. बेहतरीन, अब गाकर सुनाने की मांग उठने लगी है।

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  13. एक से एक बेहतरीन शेर निकाले है...


    प्रवीण पाण्डे जी आवाज के साथ मेरी भी मांग वही है...

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  14. लोगों की सोच हो गई उल्टी समय के साथ,
    कल का लुटेरा आज है नेता चुना गया

    गूंगा समझ के जिसपे सितम ढाते सब रहे
    चीखा वो एक रोज तो सबको हिला गया

    बहुत खूब ...

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  15. आज तो मिथुन चक्रवर्ती की तरह हम भी कह देते है, क्या बात, क्या बात, क्या बात!!!!!!!!!

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  16. ACHCHHEE GAZAL KE LIYE AAPKO
    BADHAAEE AUR HUBH KAMNA

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  17. ग़ज़ल पसंद आयी.
    नीरज जी, तिश्नगी मतलब ?
    सबके समझ आया लेकिन मेरा ज्ञान कुछ कम है उर्दू में. मैं पूरा लुल्फ़ लेना चाहता हूँ आपके शेअर का.

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  18. दस्तूर कुछ जहां का निभाया यूँ यार ने
    फूलों की बात करके वो काँटा चुभा गया

    यही तो हालात हैं आजकल.खूब शेर कहा है आपने.वाह.
    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है.

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  19. मैं अरसे से परेशान हलकान कि ज़ेह्न में अच्‍छे शेर क्‍यूँ नहीं आ रहे। अब समझ आया कि सब के सब खोपाली का रास्‍ता देख चुके हैं।
    कुछ करना पड़ेगा। सोचता हूँ शेर वेर छोड़कर कुछ नाग पाल लूँ कुण्‍डलियॉं तो प्रस्‍तुत कर ही दिया करेंगे।
    बहरहाल आपके इन उम्‍दा नस्‍ले के शेरों (अश'आर नहीं कहूँगा) की बधाई; दिल से।

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  20. वाह, करारे करारे शेर हैं बिलकुल :)

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  21. यादों के सब दरख़्त हरे, काट जब दिये
    आंखों से मेरी रूठ के सावन,चला गया

    pasand aaya ye sher khas tour se

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  22. गूंगा समझ के जिसपे सितम ढाते सब रहे
    चीखा वो एक रोज तो सबको हिला गया
    सुन्दर, बेमिसाल....

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  23. नीरज जी ,

    कल खेल जीतने का हुनर जो सिखा गया
    हमको नियम बदल के वही तो हरा गया
    ख़ूबसूरत मतला !


    यादों के सब दरख़्त हरे, काट जब दिये
    आंखों से मेरी रूठ के सावन ,चला गया
    बहुत ख़ूब !
    ग़ज़ल का सब से ख़ूबसूरत और नाज़ुक शेर

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  24. नाशायारों की लू के थपेड़े थे हर इक सिम्त
    नीरज ग़ज़ल का इक घना साया दिखा गया.

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  25. बहुत बढिया, नीरज जी!

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  26. यादों के सब दरख़्त हरे, काट जब दिये
    आंखों से मेरी रूठ के सावन ,चला गया

    इस शेर ने मुझे परेशान किया है ... ढेरो बधाई ..

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  27. ढाए जो ज़ुल्म सैंकड़ों वो तो भुला दिये
    अहसान एक जब किया उसको जता गया

    दस्तूर कुछ जहां का निभाया यूँ यार ने
    फूलों की बात करके वो काँटा चुभा गया
    kamaal ka har sher ,is khoobsurat gazal ke liye badhai .

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  28. हमेशा की तरह ही बहुत बढ़िया ग़ज़ल है. गौतम जी और फौजी भाइयों के लिए लिखा गया शेर बहुत अच्छा लगा.

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  29. नीरज जी
    गूंगा समझ के जिसपे सितम ढाते सब रहे
    चीखा वो एक रोज तो सबको हिला गया
    सुन्दर.

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  30. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है| धन्यवाद|

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  31. ढाए जो ज़ुल्म सैंकड़ों वो तो भुला दिये
    अहसान एक जब किया उसको जता गया

    ग़ज़ल के सभी शेर
    स्तरीय हैं श्रीमान ....
    जीवन और समय के साथ घटित
    हर बदलाव को उचित रूप से
    रूपांतरित किया है आपने...
    हर शेर के साथ
    गुनगुनाहट
    स्वयं ही खिंची चली आ रही है...
    बधाई स्वीकारें .

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  32. यादों के सब दरख़्त हरे, काट जब दिये
    आंखों से मेरी रूठ के सावन ,चला गया


    mujhe ye line bahut achhi lagi,bahut khoobsurat hai

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  33. नीरज जी मेरे लिये तो वैसे ही आपकी किसी गज़ल पर कुछ कहना बहुत मुश्किल होता है आपकी ही क्या सुबीर जी के सभी चेलों की गज़लों पर कुछ नही कहती। लाजवाब गुरूजी के लाजवाब शिष्य। मै तो आपको भी उस्ताद ही मानती हूँ। बहुत बहुत बधाई इस गज़ल के लिये।

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  34. यादों के सब दरख़्त हरे, काट जब दिये
    आंखों से मेरी रूठ के सावन ,चला गया

    बहुत बढ़िया !

    अच्छा लगा ये शेर

    -आशीष

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  35. आदरणीय नीरज जी भाईसाहब
    प्रणाम !
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    शानदार ग़ज़ल !
    हर शे'र लाजवाब !
    दस्तूर कुछ जहां का निभाया यूँ यार ने
    फूलों की बात करके वो काँटा चुभा गया


    एक शे'र याद गया …
    क्या कहूं दोस्तों के बारे में , मेरी क़िस्मत के फूल हैं ये लोग !
    जब भी देते हैं , ज़ख़्म देते हैं ; किस क़दर बाउसूल हैं ये लोग !!


    पूरी ग़ज़ल के लिए आपको मुबारकबाद !

    कुछ विलंब से …
    * श्रीरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं ! *

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  36. क्या खूब कही एक से एक शेर.. बोले तो मज़ा ही आ गया..
    खासकर के:
    ढाए जो ज़ुल्म सैंकड़ों वो तो भुला दिये
    अहसान एक जब किया उसको जता गया

    तीन साल ब्लॉगिंग के पर आपके विचार का इंतज़ार है..
    आभार

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  37. अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

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  38. Respected Neeraj Sahab,

    ढाए जो ज़ुल्म सैंकड़ों वो तो भुला दिये
    अहसान एक जब किया उसको जता गया

    Wah..Waah..Wah..Waah
    Bahut Khoob...

    Ek Taaza She'r aapki nazr kar
    raha hoon..

    मैं तो गमे-हयात से बेज़ार बैठा था
    आई जो तेरी याद मेरा जी बहल गया

    Satsih Shukla 'Raqeeb'

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  39. बहुत सुंदर विवरण ओर सुंदर गजल जी, धन्यवाद

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  40. छुट्टियाँ खत्म और ब्लग भ्रमण पे निकला तो इस लाजवाब ग़ज़ल ने बांध के रख लिया नीरज जी...बेताब तो हम उसी दिन से थे जब आपने ये खास शेर हमें सुनाया था मेरे ब्लौग पर...

    हसीले-ग़ज़ल शेर तो लेकिन ये वाला है, इस पर जितनी भी दाद दी जाय कम होगी :-
    "यादों के सब दरख़्त हरे, काट जब दिये
    आंखों से मेरी रूठ के सावन ,चला गया"

    ...और मेरे नाम वाला शेर मेरा हुआ...फेसबुक के लिए उठाए ले जा रहे हैं सरकार|

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  41. गूंगा समझ के जिसपे सितम ढाते सब रहे
    चीखा वो एक रोज तो सबको हिला गया ...

    नीरज जी ... कितना कमाल करते अहीं आप इन ग़ज़लों में ... गुरुदेव तो आपके दीवाने हैं साथ साथ हम भी आपके मुरीद हैं ... हमारे लिए तो आप भी उस्ताद ही हैं ....
    आपने देवा नंद साहब की याद भी ताज़ा कर दी ... वाह ... इस फिल्म का ये गाना ... अभी न जाओ छोड़ कर ... . आज तक का sabse pasandeeda गाना है ...

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  42. वाह-वा नीरज जी,
    ये शेर बहुत खूबसूरत बना है,
    "यादों के सब दरख़्त हरे, काट जब दिये
    आंखों से मेरी रूठ के सावन ,चला गया"

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  43. शानदार लगी ग़ज़ल ,बहुत सुंदर विवरण

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे